ज्यादातर हम झूठ बोलते हैं क्योंकि सच बोलने पर लोग अक्सर हमारा साथ छोड़ देते हैं। यह विडम्बना है कि झूठ ज्यादा खूबसूरत और मधुर होता है, इसीलिए जल्दी स्वीकार भी हो जाता है…
सच कड़वा, तीखा और ज्वलनशील होता है… इसीलिए सच सुनकर वो लोग भी आपसे दूर हो जाते हैं जो कहते फिरते हैं कि वो आपके साथ हैं…. लोग अकेले पड़ जाने के भय से झूठ बोलते हैं, फिर उसी झूठ को सच मानने लगते हैं, और फिर धीरे – धीरे उसी झूठ में जीने लगते हैं।
ज़िन्दगी में हमें तीन तरह के लोग मिलते हैं….
एक वो जिन्हें आपसे जुड़ने में रुची होती है, आपसे गप्पे मारने में, टाइम पास करने में… किंतु आपके सच को सुनने में कतई रुचि नहीं होती… ये लोग मौका पड़ने पर आपकी ज़िन्दगी आप जानों कहकर भाग जाते हैं…
दूसरे लोग वो होते हैं जो आपका सच बड़े प्रेम और भावुकता से सुनते हैं, पर मौका पड़ने पर बड़ी धूर्तता से उसे आपके विरुद्ध प्रयोग करते हैं… ऐसे लोगों को जरा सा भी फर्क नहीं पडता कि उनके इस व्यवहार से, कुटिलता से आप किस हद तक टूट सकते हैं।
तीसरा प्रकार उन लोगों का है जो आपकों सुनते हैं, और अपने जीवन अनुभवों से आपकों समझाते हैं, धैर्य रखने की सलाह देते हैं, साथ ही आपके हर निणर्य में आपके नज़रिए को समझने का प्रयास करते हैं, क्योंकि ऐसे लोग वाकई आपको समझते हैं।
तीसरे प्रकार के लोग कम ही मिलते हैं… इसीलिए हम झूठ बोलते हैं और झूठ ही जीते हैं… क्योंकि वही सरल है, वही सहज है, वही स्वीकार्य भी है।…. इसीलिए तो संत रहीमदास कहते हैं।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।
हमारे इस कहानी मे सचाई नजर जरुर आ रही होगी। अगर हाँ तो आप के साथ रहने वाले लोग कैसे हैं, उन्हें पहचानने का प्रयास करें। आप कैसे लोगों के साथ रह रहे हैं कैसे लोग पसंद करते हैं निर्णय स्वयं करें। गूगल ब्लोगर प्रिन्ट मिडिया संपादक अमित श्रीवास्तव। अपने विचार ब्लोगर सम्पर्क फार्म के माध्यम से करें… ताकि आप सभी की इच्छानुसार अपनी कलम को अग्रसर करने में मुझे मदद मिले।