छठवीं कामाक्षीदेवी, युगाद्या शक्तिपीठ- पाताल लोक, क्षीरग्राम

Amit Srivastav

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कामाक्षीदेवी, युगाद्या शक्तिपीठ- पाताल लोक, क्षीरग्राम
छठवीं कामाक्षीदेवी, युगाद्या शक्तिपीठ- पाताल लोक, क्षीरग्राम
भूतधात्री महामाया भैरव: क्षीरकंटक:।
युगाद्यायां महादेवी दक्षिणागुंष्ठ: पदो मम।।
छठवीं कामाक्षीदेवी, युगाद्या शक्तिपीठ- पाताल लोक, क्षीरग्राम
युगाद्या शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। हमारे शक्तिपीठ लेखनी में सबसे पहले सर्वशक्तिशाली योनी रुप में स्थापित।
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तांत्रिकों की अधिष्ठात्री देवी सर्व मनोकामना पूरी करने वाली असम राज्य के कामरुप जिले में ब्रह्पुत्र नदी तट निलांचर पर्वत पर शक्तिपीठ कामाख्या देवी का वर्णन आप सब ने पढ़ा और गुप्त अद्भुत रहस्यों को जाना जो जगत जननी रूप में मुक्ती देने वाली सम्पूर्ण मनोकामना पूरी करने वाली इस जग में विराजमान हैं।
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दूसरी शक्तिपीठ जिसे तांत्रिक दृष्टि से भी पूजा जाता है। दस महाविद्या में छठवीं महाविद्या धारण करने वाली।
सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली। हर तरह की रोग से ग्रसित भक्त जनों को रोग मुक्त कर अपार कृपा दृष्टि बनाये रखने वाली। सतीयों के सतीत्व को संवारने वाली। दुराचारीयों के दुराचार को मिटाने वाली। झारखंड राज्य के रजरप्पा में सिर कटी नग्न रुप धारण किए अपने रूधीर से अपनी व सहचरीयों की भूख मिटाते रूप में विराजमान यह शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका भवानी के नाम से जानी जाती है।
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तीसरी शक्तिपीठ। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित मस्तिष्क रुप में हिंगलाज शक्तिपीठ उग्रतारा को पढ़ा जो मुसलमानों की नानी पीर के रूप में मुसलमानों द्वारा भी पूजी जाती हैं। यहां दर्शन करने वाली महिलाओं को हजियाजी कहा जाता है, मार्ग में स्थापित कुओं के अम्रित रूपी जल सेवन से शरीर स्वक्छ मन निर्मल हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी।।
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चौथा शक्तिपीठ। विश्वनाथ जी की पावन नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्थापित, कण-कण हर-घर का वासी हूं। मैं काशी हूँ मैं काशी हूँ मैं काशी हूँ।।
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पांचवीं शक्तिपीठ। त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ जालंधर में, शक्तिपीठ से जुड़ी शिव की तेज से उत्पन्न पुत्र असुर जलंधर पत्नी वृदा के सतीत्व को छलिया विष्णु द्वारा जलंधर रुप ले भंग कर जलंधर का वध कराने वृदा द्वारा श्रापित हो शालिग्राम पत्थर रुप पाने और विष्णु द्वारा वृदा को जनकल्याण के लिए उपयोगी तुलसी का पौधा रुप में जन्म पाने की सम्पूर्ण जानकारी को सार्वजनिक किया।
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छठवीं  शक्तिपीठ लेखनी जगत-जननी कि कृपा से मां सरस्वती की दिब्य आभास से भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम से – कामाक्षीदेवी, युगाद्या शक्तिपीठ- पाताल लोक, क्षीरग्राम आपके सम्मुख है। इन अद्भूत रहस्यों को उजागर लेखनी पढ़कर अपने तक सीमित न रखें अधिक से अधिक शेयर करें।
शक्तिपीठ सभी युगों में अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
कामाक्षीदेवी युगाद्या शक्तिपीठ दो रूपों में स्थापित भद्रकाली और सीता।
पाताल लोक से जब हनुमानजी कामाक्षीदेवी को लंका सुमेर पर्वत पर स्थापित किया, धर्म युद्ध में विष्णु अवतार श्रीराम जी का सहयोगी बनने के लिए, तब मायावी रावण कि माता कैकशी रावण वध के बाद अपने अत्यंत मायावी पुत्र शहस्त्र रावण को बुलाया और अपने दशानन भाई रावण के वध का प्रतिशोध लेने के लिए कहा, शहस्त्र रावण के प्रहार से राम सहित पूरी सेना त्रस्त होने लगी तब सीता ने माता का आवाह्न किया। त्रिदेवीयों सहित कामाक्षीदेवी ने अपनी-अपनी शक्ति सीता को प्रदान की भद्रकाली रूप में सीता जी ने शहस्त्र रावण का वध किया। शहस्त्र रावण को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था… स्त्री के हाथ मृत्यु का। भद्रकाली रूप जो सीता ने लिया था, वो कामाक्षीदेवी का ही था। इस लिए दो रूपों में वर्णित शक्तिपीठ कामाक्षीदेवी।
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जब सती के इक्यावन भाग जगह-जगह स्थापित होने के लिए पृथ्वी पर गिरने लगे, तब अहिरावण इन शक्तियों को एकत्रित कर पाताल लोक में स्थापित करने के लिए अपने पराक्रमी असुरों को भेजा। असुर देवी के अंगों को आकाश मार्ग में छूने की कोशिश मात्र से जल कर भस्म होते गए। यह स्थिति देख, अहिरावण खुद पृथ्वी पर गिरते सती के अंग वस्त्र आभूषण को पृथ्वी पर स्थापित होने से पहले लेकर पाताल लोक में स्थापित करने की मंशा से प्रयास किया। सती के अंगों में से एक अंग दाहिने पैर के अंगुठा को अपने शक्ति से धारण कर पाताल लोक लाकर स्थापित कर शक्तिपीठ को जागृत किया। देवी के दाहिने अंगुठे में तंत्र विद्या थी। जो भद्रकाली का अवतरण हुआ और तांत्रिक सिद्धी के लिए उपयुक्त हुईं।
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भद्रकाली की कृपा से अहिरावण अपनी इच्छानुसार जो चाहता कर लिया करता था। त्रेतायुग में जब रावण माता सीता को वनवास के समय हरण कर ले गया। तब पवनपुत्र हनुमानजी सीता माता की खोज में लंका गये। सीता माता की पता लगा लंका विध्वंस कर लौट रहे थे। तब स्नान के समय उनका तेज समुद्र में भुखे मगरमच्छी के मुख में चला गया। जिससे मकरध्वज कि उत्पत्ति हुई। वही मकरध्वज अहिरावण के द्वार का पहरी था। मेघनाथ वध के बाद रावण के उकसाने पर अहिरावण राम-लक्ष्मण को भद्रकाली कामाक्षीदेवी के सामने बलि देने के लिए पाताल लोक ले गया। विभीषण के बताए अनुसार हनुमानजी पाताल लोक गये। मकरध्वज से युद्ध हुआ, पराक्रमी मकरध्वज जब अपने पिता हनुमान से परिचित हुआ तब राम भक्त को अहिरावण के महल जाने दिया और अपने पिता हनुमानजी की सहायता की।
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भद्रकाली हनुमानजी को शिव अवतार में देख अपनी शक्तिपीठ का भैरव नियुक्त कर अधर्मी अहिरावण वध व विष्णु अवतारी रामकाज में सहायक बनीं। अहिरावण वध में जब हनुमानजी को सफलता नहीं दिखी तब मकरध्वज ने युद्ध का कमान संभाल हनुमानजी को अहिरावण की दूसरी हरण कि गई पत्नी रुप के लिए नाग कन्या चित्रसेना के पास भेजा जो अहिरावण की बंदी विष्णु भक्त थी। चित्रसेना ने अहिरावण के वध का राज बताने से पहले विष्णु अवतार राम से विवाह कराने का प्रस्ताव रखी, जिसमें हनुमानजी ने शर्त रख दिया, आपका पलंग अगर श्रीराम प्रभु जी का वजन सहन कर लिया तो विवाह होगा अन्यथा नहीं तब चित्रसेना ने बताया भवरों में अहिरावण का प्राण बसता है।
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देवी कामाक्षी के मंदिर में पंच दीपक को एक साथ बुझाने कि राज बताई तब हनुमानजी ने सभी भवरों को मार एक वृद्ध भंवरे को पलंग की लकड़ी खा जाने को कहा। और पंचमुखी हनुमान जी का रुप ले एक साथ पांचों दीपों को बुझा फिर अहिरावण का वध किया। श्रीरामचंद्र जी चित्रसेना के पास शर्त पूरा करने गए, भंवरे ने लकड़ी अंदर ही अंदर खा लिया था। जिससे उनका भार पड़ते ही पलंग टूट गया, तब विष्णु अवतार श्रीराम ने चित्रसेना को वरदान दिया… आपको द्वापरयुग में सत्यभामा के रूप में मेरी पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा। वहीं नाग कन्या चित्रसेना अग्नि में अपने शरीर को त्याग परलोक चली गई। अहिरावण की पहली पत्नी ने अपने पुत्र से, अहिरावण वध का प्रतिशोध लेने को कहा तब पुत्र शक्तिपीठ को उठा लावा में डालने चला, भैरव ने पीछा किया और अहिंरावण पुत्र का वध कर लावा से उस शक्ति को निकाल बाहर आ गए। तब भद्रकाली ने कहा हे भैरव मुझे इस पाताल लोक से ले चलो और लंका में राम-रावण युद्ध क्षेत्र में स्थान दो जहां से मै प्रभु राम की सहायता कर सकूं। वैसा ही हुआ मां भद्रकाली धर्म युद्ध में, धर्म की रक्षा में, विष्णु अवतार राम और देवी सीता कि सहायक बनीं। जिस प्रकार द्वापर युग में पांच पांडवों के हर अस्त्र-शस्त्र पर श्रीकृष्ण का चक्र सुदर्शन चलता था। वैसे ही त्रेता युग में राम रावण के धर्म युद्ध में भद्रकाली कामाक्षीदेवी का कटार राम लक्ष्मण द्वारा धर्म की रक्षा के लिए हर प्रहार पर चला और सीताराम को विजय प्राप्त हुई।
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धर्मयुद्ध के बाद शिव अंश हनुमान रुपी क्षीरकंटक भैरव ने माता को वास्तविक स्थान क्षीरग्राम वर्धमान बंगाल लाकर स्थापित किया। पृथ्वी लोक पर युगाद्या शक्तिपीठ बंगाल में पूर्वी रेलवे के वर्धमान जंक्शन से 39 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से 21 किमी दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानान्तर्गत क्षीरग्राम में स्थित है। इस शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी युगाद्या तथा भैरव क्षीरकंटक हैं। क्षीरग्राम की भूतधात्री महामाया के साथ देवी युगाद्या की भद्रकाली शक्तिपीठ एक हो गई और देवी का नाम योगाद्या- युगाद्या हो गया।
तंत्र चूड़ामणि के अनुसार माता सती के दाहिने चरण के अँगूठे से स्थापित हुआ युगाद्या शक्तिपीठ।
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भूतधात्री महामाया भैरव: क्षीरकंटक:।
युगाद्यायां महादेवी दक्षिणागुंष्ठ: पदो मम।।
माता सती को भूतधात्री और शिव भैरव को क्षीरकंटक या युगाध कहा जाता है। इस शक्तिपीठ को पाताल लोक से पृथ्वी लोक पर लंका बाद बंगाल में जिला वर्धमान अन्तर्गत क्षीरग्राम मूल स्थान लाकर स्थापित भैरव क्षीरकंटक ने किया। जिसे क्षीरग्राम शक्तिपीठ भी कहा जाता है। इस मंदिर में एक यात्री निवास भी है। यहाँ वर्धमान से बस द्वारा भी पहुँचा जा सकता है। बंगला भाषा में अनेक ग्रंथों के अलावा गंधर्वतंत्र, साधक चूड़ामणि, शिवचरित’ तथा कृत्तिवासी रामायण में इस देवी का वर्णन मिलता है। हमारे इस amitsrivastav.in साइड के बेल आइकन को दबा एक्सेप्ट किजिए ताकि हमारी न्यू अपडेट आप तक गूगल से पहुंच सके। किसी मुद्दे पर ज्यादा जानकारी के लिए सम्पर्क करें भारतीय हवाटएप्स +917379622843 पर चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव लेखक, ब्लोगर, संपादक, एडिटर से।
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