बरगद को ही वट वृक्ष कहा जाता है। धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता त्रिदेव का निवास स्थान वट वृक्ष में माना गया है- जड़ में ब्रम्हा, छाल में विष्णु, तना में देवों के देव महादेव अब तो आप समझ सकते हैं जिस वृक्ष में तीनों देवों का संयुक्त स्थान प्राप्त है वह बरगद वट-वृक्ष धार्मिक मान्यता अनुसार कितना महत्वपूर्ण है। बरगद एक ऐसा वृक्ष है जिसे ऑक्सीजन का प्राकृतिक कारखाना भी कहा जाता है। वहीं अन्य पेड़ों की तुलना में वट-वृक्ष बरगद से कई गुना अधिक ऑक्सीजन निकलता है। यह बहुत लंबी आयु का वृक्ष है। इसमें फैलाव क्षेत्र अधिक होने के चलते इनके आसपास की हवा में नमी बनी रहती है। गर्मी के दिनों में बरगद का पेड़ छाया के साथ-साथ ठंडक भी प्रदान करता है। बरगद पेड़ दिन मे ही नहीं बल्कि रात में भी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। वट वृक्ष में फैलाव अधिक होने के चलते इसमें ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलती है।

इसके अलावा वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बरगद पेड़ अन्य पेड़-पौधों की अपेक्षा चार-पांच गुना अधिक ऑक्सीजन देता है। शुद्ध हवा और प्राकृतिक ऑक्सीजन से शरीर निरोग रहता है। जिस जगह बरगद पेड़ होता है, उसके आसपास के 200 मीटर का क्षेत्र लगभग ठंडा रहता है। कोरोना के लहर में ऑक्सीजन के महत्व को हर कोई समझ गया है। आक्सीजन की कमी महसूस होने से लाखों जान जा चुकी है।
वट सावित्री व्रत कब है
वर्ष 2024 में 21 जून को महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखेंगी। इस दिन पती ब्रता नारी को अपने पति के मंगल स्वास्थ्य की कामना के साथ-साथ वट वृक्ष की पूजा अनुष्ठान करनी चाहिए। घर-परिवार की सुख-समृद्धि के साथ समाज, प्रदेश और देश के स्वास्थ्य की मंगल कामना भी करनी चाहिए। बरगद पेड़ काफी विशाल होता है, इसलिए यह दूर-दूर तक के इलाके में शुद्ध हवा विसर्जित करता है। इससे शुद्ध ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है। यह 20 घंटे से अधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। चूंकि इसकी जड़ें धरती में काफी दूर तक फैलती है। इसलिए इसे ऐसी जगह पर रोपित किया जाना चाहिए जहां कम से कम 100 मीटर तक खाली जगह हो। ताकि आसपास किसी का मकान, भवन प्रभावित न हो। खासकर तालाब, स्कूल के मैदान, मंदिर, मठ के आसपास बरगद पेड़ लगाना चाहिए। वट वृक्ष अमरत्व बोध का प्रतीक है।

बरगद पेड़ में किस स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है ऊपर बता चुका हूं। सनातन संस्कृति में बरगद पेड़ की पूजा की जाती है, ऐसी पौराणिक कथा है कि सावित्री के पति की मृत्यु हो गई थी तब सावित्री ने वट-वृक्ष के नीचे शव रखकर वट वृक्ष की पूजा करके अपने पति सत्यवान के प्राण को यमराज से वापस लौटा लाने में सफल रही थी। इस मान्यता के चलते आदि काल से वट वृक्ष को पूजा जाता है। धार्मिक महत्व के साथ बरगद का औषधीय महत्व भी है। इसके पत्ते, छाल, तना, जड़ व तने से निकलने वाला दूध से कई औषधियां बनती है। वट सावित्री अमावस्या व्रत पर बरगद पौधे का रोपण करने का संकल्प लेना चाहिए। बरगद का पौधा लगाने से आक्सीजन की कमी दूर होगी। कोरोना काल में यह वृक्ष बेहद मददगार साबित हुआ है। वट सावित्री व्रत पर अपने पतियों के निरोगी जिवन एवं जनम जनम सातों जनम बना रहे साथ की कामना लिए, अपने पतियों के हाथ वट वृक्ष का रोपण करवाना चाहिए। इस वृक्ष का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही यह आक्सीजन के रूप में हमें प्राणवायु देते हैं। कोरोना काल में हुई आक्सीजन की कमी को देखते हुए ऐसा उम्मीद की जाती है। इसके लिए हर गांव में खाली पड़ी जमीन पर ग्रामीणों के सहयोग से पतिव्रता महिलाओं द्वारा पौधा लगाया या लगवाया जाना चाहिए। हर पती ब्रता नारी को निरोग जिवन की कामना को फलीभूत, प्राण वायु विकसित करने के लिए एक बरगद का पौधा लगाने के लिए संकल्प लेनी चाहिए। सदा सुहागन रहने की कामनाओं को लेकर सदियों से पति की लंबी उम्र की कामना कर हर सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। मान्यता ही नहीं पौराणिक सत्य भी है कि जब शादी की पवित्र बन्धन के बाद सत्यवान की अल्पायु के कारण यमराज सत्यवान का प्राण लेने आए तो पतिव्रता नारी सावित्री के पति सत्यवान मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। तब सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही सत्यवान का मृत शरीर रख ईश्वर की पूजा अर्चना की सदा सुहागन का ईश्वर से आशिर्वाद प्राप्त कर अपने सुहाग को यमलोक से वापस लाने में कामयाब हुई। वट वृक्ष से पूर्ण कामना की पती ब्रता नारी सावित्री के पति सत्यवान जीवित हो उठे थे। तभी से हर सुहागिन महिलाएं अपने पति के निरोग एवं दीर्घायु की शुभकामना लिए यह वट-वृक्ष की शुभ पर्व करती आ रही हैं।
सनातन इतिहास में बरगद पेड़ की धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व को आपने पढ़ा अच्छा लगा तो शेयर किजिये ताकि वट-वृक्ष बरगद का पेड़ का महत्व सभी को समझ आ सके।