भारत में तिरंगे झंडे का महत्व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। यह केवल एक ध्वज नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्र की आत्मा, संघर्ष, और विविधता का प्रतीक है। दूसरी ओर, भगवा ध्वज को हिंदुत्व की पहचान के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है। इन दोनों ध्वजों के प्रतीकों के बीच संघर्ष लंबे समय से देखा जा रहा है, खासकर जब यह मुद्दा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उसकी विचारधारा से जुड़ता है। इस संघर्ष की एक झलक नागपुर के केस नंबर 176 में भी देखी जा सकती है, जब कुछ युवकों ने RSS मुख्यालय पर तिरंगा फहराने की कोशिश की।
घटना का विवरण: केस नंबर 176:

26 जनवरी 2001 को तीन युवक – बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे, और दिलीप चटवानी – नागपुर स्थित आरएसएस संघ मुख्यालय पर तिरंगा झंडा फहराने गए। इससे पहले RSS के मुख्यालय पर कभी भी तिरंगा नहीं फहराया गया था, क्योंकि RSS का मानना था कि भारत का एकमात्र ध्वज भगवा होना चाहिए। युवकों द्वारा तिरंगा फहराने की इस कोशिश के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया, जो बाद में केस नंबर 176 के रूप में जाना गया। इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और संघ और तिरंगे के रिश्ते पर सवाल खड़े किए।
RSS और तिरंगे का रिश्ता:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तिरंगे के प्रति रवैया हमेशा विवादास्पद रहा है। संघ के प्रमुख नेताओं, जैसे सावरकर और गोलवलकर, ने तिरंगे के प्रति अपनी नकारात्मक भावनाओं को कई बार व्यक्त किया। सावरकर ने कहा था, “हिंदू केवल भगवा ध्वज को ही सम्मान दे सकते हैं,” जबकि गोलवलकर ने तिरंगे को ‘अशुभ’ बताया और भारत का ध्वज केवल भगवा होने की वकालत की।
यह स्थिति 2002 तक जारी रही, जब पहली बार संघ मुख्यालय में तिरंगा फहराया गया। इससे पहले, RSS तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता देने के लिए तैयार नहीं था। कई जानकारों के अनुसार, 1948 में गांधी की हत्या के बाद जब संघ पर प्रतिबंध लगा, तो उसे हटाने की शर्त यह थी कि संघ तिरंगे को राष्ट्रध्वज माने। हालांकि, संघ इस बात को नकारता है।
न्यायिक प्रक्रिया और परिणाम:
केस नंबर 176 की न्यायिक प्रक्रिया ने 2013 में इन तीन युवकों को बाइज़्ज़त बरी कर दिया। इस घटना ने RSS के अंदर और बाहर दोनों में तिरंगे के प्रति दृष्टिकोण में एक नया मोड़ ला दिया। इसके बाद, 15 अगस्त और 26 जनवरी को RSS मुख्यालय पर तिरंगा फहराने की परंपरा शुरू हुई।
संघ और तिरंगे के प्रति बदलता दृष्टिकोण:
हालांकि, तिरंगे को RSS ने औपचारिक रूप से अपनाया, लेकिन संघ के मुख्य विचारधारा के अनुसार, “झंडा ऊँचा रहे हमारा” का मतलब हमेशा भगवा ध्वज का ऊँचा रहना रहा है। यह दृष्टिकोण आज भी संघ के अनुयायियों में देखा जा सकता है, जब वे तिरंगे के साथ-साथ भगवा ध्वज को भी साथ लेकर चलते हैं।
केश नम्बर 176 नागपुर आर्टिकल निष्कर्ष:
नागपुर का केस नंबर 176 केवल एक कानूनी मामला नहीं था, बल्कि यह तिरंगे और भगवा ध्वज के बीच चल रही एक विचारधारात्मक लड़ाई का प्रतीक है। यह घटना भारत की राष्ट्रीय पहचान और धार्मिक विचारधारा के बीच संतुलन को दर्शाती है। भगवा और तिरंगे का साथ-साथ लहराना आज भी कई सवाल खड़े करता है, खासकर जब इसे किसी राजनीतिक या धार्मिक एजेंडा के तहत प्रस्तुत किया जाता है।