nda government: विपक्ष की तरफ से बार-बार दावा किया जा रहा है कि यह गठबंधन की सरकार कुछ दिन की ही मेहमान है। आइए इसकी जांच पड़ताल करते हैं। कैसे भाजपा टिक सकती है और कैसे भाजपा को सत्ता से बेदखल होना पड़ सकता है।

प्राइम मिनिस्टर के रूप में तीसरी बार नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण किया। इस बार उन्होंने एनडीए गठबंधन का सहारा लिया। जबकि पिछले दो बार बीजेपी का पूर्ण बहुमत था। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी बिना किसी हिंचक के खटाखट फैसले लेते रहे। जिसमें कुछ बड़े पूंजीपतियों के हित में तो कुछ नेताओं के हितों में रहा। बहुत थोड़ा सा देश हित में कश्मीर से 370 हटा, कोर्ट के फैसले पर अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण शुरू हुआ बाकी जनहितैषी मुद्दे दरकिनार रहे थोड़ा भी ध्यान नही गया। बेरोजगारों, संविदा कर्मियों और सरकारी नौकरी करने वालों की उपेक्षा करते रहे। यहां तक कि बेरोजगारों का मजाक उड़ाया गया बेरोजगारी के नाम पर पकौड़ा तलने की बात कही गई। यह भी सोचना चाहिए जब आमजन की जेब में पैसा आयेगा तभी बेचारे पकौड़ा बेचने वालों की रोजी-रोटी चल सकेगी।

एनडीए सरकार की आने वाली परेशानियां
बेरोजगारी महंगाई से तंग देश में युवा व युवतियों द्वारा देह व्यापार का धंधा जोर पकड़ रहा है जो गोदी मीडिया नही दिखाती। इस मुद्दे पर बहुत जल्द विस्तार से खुलासा amitsrivastav.in की टीम करने वाली है। जो देह व्यापार का धंधा बडे-बडे शहरों तक सीमित था अब बेरोजगारी और महंगाई की दौर में गांवों की गली खोंचे सहित सोशल साइट्स द्वारा तेजी से फैल रही है।
जिस कारण एक बड़ा वर्ग लोकसभा चुनाव में भाजपा से खिलाफ हो गया। फिर खुद की बहुमत नही मिल सकी।
इस बार भाजपा अपने दम पर बहुमत से बहुत पीछे है। ऐसे में चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के साथ बहुमत का आंकड़ा उन्होंने पार किया है, मन की बात कहने वाले नरेंद्र मोदी क्या गठबंधन की बात सुन पाएंगे? क्या गठबंधन के साथ में तालमेल बना पाएंगे? इस बार विपक्ष भी मजबूत हो गया है। माना जा रहा है विपक्ष के नेता के रूप में कांग्रेस के राहुल गांधी सामने नजर आएंगे।
इस बार प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के लिए अब गठबंधन की सरकार चलाने के साथ-साथ मजबूत विपक्ष का भी सामना करना पड़ेगा। इस चुनौती से निपटने के लिए उन्होंने क्या प्लान बनाया है। यह तो वक्त आने पर ही सामने आएगा। लेकिन सत्ता के गलियारों से अंदाजा लगाया जा रहा है कि नरेंद्र मोदी को गठबंधन की सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है। पिछले दो बार भाजपा अपने बलबूते पर पूर्ण बहुमत हासिल की थी। इस वजह से एनडीए के घटक दलों का दबाव उन पर नहीं था। एनडीए के दूसरे दलों के साथ मिलकर सरकार को चलाना अब उनकी मजबूरी बन गई है।

पहले जहां वे अकेले मंचों पर नजर आते थे। अब इन्हें एनडीए घटक दल के प्रमुख नेताओं के साथ नजर आते हुए देखा जा सकता है। उनकी व्यक्तिवाद की छवि आखिरकार टूटने वाली है। अब नरेंद्र मोदी की असली अग्नि परीक्षा शुरू हुई है। अब जो भी फैसला लेने होंगे वह कैबिनेट के साथ बैठकर उनको लेना होगा। पिछली बार मीडिया में मोदी कैबिनेट के चेहरे कम ही नजर आते थे। इस बार एनडीए के सहारे सरकार बनने पर घटक दलों को भी सरकार में शामिल किया है ऐसे में अब मोदी के कैबिनेट को भी मीडिया में महत्वपूर्ण जगह मिलेगी।
मीडिया मे तरह-तरह के सवालों के बीच भ्रम की स्थिति में किस तरह से नरेंद्र मोदी एनडीए के घटक दल से तालमेल बना पाएंगे यह एक बड़ी चुनौती के रूप में उनके सामने है।
इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छी तरीके से जानते हैं कि सभी प्रमुख नेता खास कर बीजेपी को समर्थन दे सरकार बनवाने वाले को साथ लेकर चलने पर ही यह सरकार पांच साल तक चलाई जा सकती है।
अब सवाल उठता है कि यह सरकार कितने समय तक चल पाएगी। जब तक नरेंद्र मोदी अच्छे से तालमेल बिठाकर घटक दल एनडीए के साथ समझौता वादी स्थिति में रहेंगे, तब तक सरकार चलती रहेगी। अपनी मनमानी जब करना शुरू करेगें तब तालमेल बिगड़ सकता है और सरकार गीर सकती है।
अब गोदी मीडिया से नरेंद्र मोदी को मन की बात की जगह आमने-सामने प्रेस कॉन्फ्रेंस करना होगा। मीडिया के सवालों का जवाब आमने-सामने बैठकर अगर वह देने की हिम्मत कर पाएंगे तो निश्चित तौर पर एनडीए के दूसरे दलों के नेताओं से बेहतरीन तालमेल बैठा पाएंगे।
हालांकि अभी सरकार की हनीमून पीरियड्स शुरू हो रही है ऐसे में मीडिया भी बहुत ज्यादा हावी नहीं रहेगी। 90 दिन के अंदर अगर किसी तरह का मतभेद नहीं हुआ तो सम्भवत नरेंद्र मोदी सरकार को पांच साल तक आसानी से चला सकते हैं।
गठबंधन की सरकार के दो लाभ

एक तो निजीकरण पर प्रतिबंध लगने की उम्मीद है और पूंजीपतियों को जो लाभ पहुंचाने में दस साल व्यतित किए वैसा विपक्ष सहित समर्थन देने वाले नही करने देगें। जिससे फायदा आमजन मानस को मिलने की उम्मीद है।
मोदी के जुबान का कितना भैल्यू
प्रधानमंत्री होते हुए अपने ही जुबान का कोई भैल्यू दस सालों में नही रखा 2014 चुवावी मुद्दा जो लेकर एकक्ष राज्य स्थापित किए, बेरोजगारों को रोजगार दूंगा, गुजरात के तर्ज पर देश का विकास करुंगा, नौकरियों के लिए दूर-दूर नही जाना पडेगा, आपके आस-पास ही कर-कारखाना लगेगा, हर जन को रोजगार मिलेगा, काला धन लाऊगा, देश की हर जनता को पंद्रह पंद्रह लाख दूंगा, गैस बहुत महंगे दामों पर बिक रहे हैं सस्ता गैस हर घर को उपलब्ध कराने का काम करुंगा, पेट्रोल 70 का है 35 रुपये कर दूंगा वगैरह वगैरह मतलब जो भी चुनावी मुद्दा था, उसमें से कुछ भी नहीं किया। अपने ही जुबान का भैल्यू पूरी बहुमत की सरकार पाकर भी किये वादों को पूरा नही किए। बीच-बीच में जो मंचों से आश्वासन देते रहे उसे भी अमलीजामा नही पहनाया। जब अपने संसदीय क्षेत्र बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में मंच से जनसभा को संबोधित कर रहे थे उससे कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश शिक्षा मित्रों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। अपनी समस्याओं को लेकर शिक्षा मित्र नरेंद्र मोदी से मिलने मंच तक जाने का प्रयास कर रहे थे। तो प्रशासन ने रोका मुझे याद है प्रधानमंत्री ने खुद अपने हाथों से इशारा करते कहा उन्हें आने दो, दुख ब्यक्त करते हुए कहा था कि यह शिक्षा मित्र हमारे घर परिवार के सदस्य हैं और यह हमारा अपना मामला है जल्द ही उचित रास्ता निकाल कानून संसोधन कर सम्मान वापस दिलाऊंगा। लेकिन मोदी के जुबान का कोई भैल्यू नही है वो पहले से ही साबित करते रहे हैं। अब उम्मीद की जाती है गठबंधन की सरकार से विपक्ष के दबाव में आ रही विधानसभा चुनाव खासकर 2027 उत्तर प्रदेश से पहले वो सारे वादे पूरा करेगें जिससे आने वाली विधानसभाओं में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद खत्म हो जाए। इंडिया गठबंधन से लोकसभा में कोई प्रधानमंत्री का चेहरा न होते हुए इतना प्रचंड बहुमत देख कर भी जमीनी स्तर पर कार्य नही दिखाई दिया तो उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान होना तय है। अब गठबंधन की सरकार है और विपक्ष भी मजबूत हो गया है, खटाखट नरेंद्र मोदी जनहितैषी मुद्दों पर काम शुरू नही किये तो विपक्ष आवाज उठाने का काम करेगा। फिर दबाव बना जनहित में काम कराएगा जिसका श्रेय विपक्ष को जायेगा।