PM Modi 3.0 challenge: तीसरी पारी में सबका साथ मोदी की मजबूरी, नहीं कर पाएंगे मन की बात, एनडीए घटक दल के साथ विपक्ष का भी जीतना होगा भरोसा

Amit Srivastav

PM Modi 3.0 challenge: Narendra Modi की यह तीसरी पारी एक चुनौती के रूप में देखी जा रही है। अब कोई भी बड़े फैसले लेते हैं इसके लिए एनडीए से एडवाइस लेनी पड़ेगी। मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री को अपने मन की बात सबसे पहले एनडीए के घटक दलों के साथ करनी होगी। ‌हालांकि ‌ पिछले दो बार भाजपा को पूर्ण मैंडेट मिला था। ‌ इस कारण से मोदी हर तरह के फैसले लेने के लिए स्वतंत्र थे। ‌लेकिन इस बार अपने दम पर मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी माइंडेड हासिल नहीं कर पाई है। ‌इसलिए कमजोर बहुमत के कारण इस तीसरी पारी में क्या वे बड़े रिफॉर्म कर पाएंगे। ‌ इसी पर चर्चा करते हुए यह लेख amitsrivastav.in टीम के द्वारा तैयार की गई है। ‌NDA की सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस तीसरी पारी में कौन-कौन सी चुनौतियां हैं। क्या वह बड़े रिफॉर्म फैसला ले पाएंगे? इस पर आपको हम भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव अपनी विशेष टीम कि विचार विमर्श पर मंथन से जानकारी देने जा रहे हैं। हमारी साइट पर प्रकाशित सम्पूर्ण लेखनी बहुत ही सोच-विचार के बाद पूरी सत्यता को उजागर करते हुए आसान भाषा में अखबारों के संपादकीय पेज में भी प्रकाशित कि जाती है ताकि लेखनी हर तरह के लोगों को समझने में आसान हो।
सबसे पहले आपको बता दे कि सिविल कोर्ट जनसंख्या कानून और NRC जैसे रिफॉर्म मुद्दे को क्या अमली जामा पहना पाएगी? कमजोर बहुमत में भाजपा अपने घटक दल के साथ क्या रिफॉर्म को लागू कर पाएगी?

तीसरी पारी में मोदी की नई चुनौतियां

PM Modi 3.0 challenge: तीसरी पारी में सबका साथ मोदी की मजबूरी, नहीं कर पाएंगे मन की बात, एनडीए घटक दल के साथ विपक्ष का भी जीतना होगा भरोसा

पहले आपको बता दे कि भारतीय लोकतंत्र में लगातार तीसरी बार केंद्र में एनडीए की सरकार बनी है। यह सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बनी है। ‌लेकिन यह सरकार एनडीए के सहयोग गठबंधन से बनी है इसलिए यह सरकार एनडीए की है। पिछले दो कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की बीजेपी पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल की थी। आज के संदर्भ में कहानी पलट गई है। ‌इस बार नरेंद्र मोदी की बीजेपी पार्टी को पूरा बहुमत नहीं मिला है। बहुमत के आंकड़े से पीछे हैं इसलिए एनडीए के घटक दल की सहायता से भी सरकार चलाएंगे। जिसमें चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे। नरेंद्र ‌मोदी के इस सहयोगी को राजनीति में पल्टू चाचा के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी को मीडिया में व्यक्तिवादी का चेहरा बताया जाता है। ऐसे में एनडीए के साथ क्या नरेंद्र मोदी सरकार चला पाएंगे ? इस पर एक बहुत बड़ा प्रश्न उठ रहा है। ‌फिर यह भी प्रश्न उठ रहा है कि क्या वह हिंदुत्व की राजनीति आगे कायम रख पाएंगे? यही चंद्रबाबू नायडू जहां मुस्लिम तुष्टिकरण की विसात पर सत्ता हांसिल की है, तो वहीं नीतीश कुमार भी मुसलमानों के हिट… ऐसी माने जाते हैं, यहां इस बात को इसलिए स्पष्ट कर रहे हैं कि चुनाव में ही नरेंद्र मोदी का मंगलसूत्र छीन बाट देगी कांग्रेस मुसलमानों में वाला बयान काफी हंगामा मचाया हुआ था। ‌
पिछले 10 साल इस तरह का हिसाब किताब बीजेपी के लिए था कि नरेंद्र मोदी कोई भी कदम उठाते थे उसका विरोध नहीं होता था। ‌ इसका कारण यह था कि बीजेपी को बहुमत से अधिक सीट मिली हुई थी। ‌और विपक्ष को कम सीट मिलने से विपक्ष बहुत ही कमजोर था। अब कमजोर बहुमत है और मजबूत विपक्ष ऐसे में बड़े फैसले लेने के लिए उन्हें एनडीए से सलाह लेनी पड़ेगी। ‌आपको याद दिला दे कि पिछली बार मजबूत बहुमत होने के कारण अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला ले पाए थे। इसके साथ ही ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून ला पाए थे‌, और सीएए को लागू कर दिया था। अन्य फैसलों के दम पर सरकार बनाने की बात कही जा रही थी। ‌ पीएम मोदी लगातार यह बात कह रहे थे कि तीसरा कार्यकाल बड़े परिवर्तन वाला होगा। एक देश एक चुनाव, यूनिफॉर्म सिविल कोड और कुछ हद तक जनसंख्या कानून भी इसमें शामिल था। उस बीच अगर चाहे होते तो जनहितैषी कईयों फैसले ले कानून संशोधन कर दिए होते लेकिन राजनीति ऐसी होती है कि जनहितैषी फैसले की लालीपाप दिखाई जाती है और जन विरोधी फैसले पहले ले ली जाती है। अब प्रचंड बहुमत न मिलने के कारण क्या यह रिफॉर्म मोदी कर पाएंगे। अब तो मुद्दा सही से गवर्नमेंट चलाने और सबको साथ लेकर चलने वाला बन गया है। पहले बस नारा था सबका साथ सबका विकास लेकिन ज्यादातर मामलों में था उसका उल्टा। बरहाल आने वाले समय में यह बात भी सार्वजनिक रूप से क्लियर हो जाएगा।

गठबंधन के दौर में मजबूरी की सरकार


भले यह सरकार गठबंधन की सरकार हो, अगर नरेंद्र मोदी सबको लेकर चलने की अपनी नीति पर कामयाब होते हैं तो एक बेहतरीन प्रधानमंत्री के रूप में वे पिछले दो कार्यकाल से भी अधिक पॉपुलर हो सकते हैं। ‌हर किसी का सहयोग यहां तक कि विपक्ष भी नरेंद्र मोदी का साथ देगा। जन हितैषी मुद्दों पर काम करें, सरकारी संपत्तियों का निजीकरण उचित नहीं, और अडानी अंबानी का जेब भरने तक पहले जैसा संभव नहीं, अब विपक्ष मजबूत है। न खायेंगे न खाने देगें यह बस एक दिखावा था।
PM Modi 3.0 challenge को भी वह आसानी से पार कर ले जाएंगे। लेकिन माना जाता है कि उनका अनुभव गठबंधन की सरकार चलाने वाला नहीं है। लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री के रूप में भी तीसरी बार चुने गए हैं ऐसे में वे गठबंधन की सरकार चलाने के लिए अभ्यस्त भी हो जाएंगे।

निजीकरण पर लग जाएगी रोक


जिस तरह से धड़ाधड़ निजीकरण पिछले कार्यकाल में किया जा रहा था उस पर रोक लग सकती है, क्योंकि? एनडीए दल के घटक इस पर एक मत नहीं हो पाएंगे। और विपक्ष मजबूत है, विरोध जरुर करेगा। ऐसा अनुमान के साथ हम कह सकते हैं, क्योंकि? निजीकरण के खिलाफ विपक्ष की तरफ से भी एक बड़ा माहौल रहा है। ‌

पूंजीवादी व्यवस्था का होगा दमन


मजबूत विपक्ष के आने के बाद से और एनडीए की सरकार गठबंधन वाली बनने के कारण पूंजीवाद के पक्षधर मानी जाने वाली बीजेपी अब इस पर मनमानी फैसला नहीं ले पाएगी। वैसे भी इस चुनाव में अडानी अंबानी पर ज्यादा मेहरबानी करने वाले प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम विपक्ष द्वारा उछाला गया है, ऐसे में आने वाले समय में किसी एक या दो पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियों पर रोक लग सकता है।

बड़े आर्थिक सुधार और श्रम कानून सबके सहमति से बन सकेगा

PM Modi 3.0 challenge: तीसरी पारी में सबका साथ मोदी की मजबूरी, नहीं कर पाएंगे मन की बात, एनडीए घटक दल के साथ विपक्ष का भी जीतना होगा भरोसा

देखिए बात बिल्कुल सही मानी जाती रही है कि बीजेपी निजीकरण के पक्ष में रही है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की तरफदार बीजेपी मानी जाती रही है। ‌निजीकरण जैसे फैसले और श्रम कानून जनता के भलाई में लिए गए फैसले कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। ‌पूंजीवादी व्यवस्था हमेशा मजदूरों और कामगारों का शोषण करता रहा है। वह अपनी स्थिति से सरकार से ऐसे नियम कानून बनवा लेती है जो कामगारों मजदूरों के लिए नुकसानदायक होती है और पूंजी पत्तियों के लिए फायदेमंद होती है। ‌
अगर अब कोई भी श्रम कानून संशोधन या बनेगा जिसमें पूंजी पतियों को लाभ पहुंचाया जा रहा है और श्रमिक और कामगारों का अहित किया जा रहा है, उस पर भी सवाल एनडीए की घटक दल के द्वारा उठाए जा सकता है। वहीं विपक्ष भी बड़ी मजबूती से इन सब मुद्दों पर सत्ता पक्ष से सवाल पूछ सकती है। ‌
गोदी मीडिया की जो धारणा रही है कि विपक्ष से ही सवाल करो अब जब सवाल सत्ता पक्ष से होने लगेगा और उसमें सत्ता पक्ष रहने लगेगी तो गोदी मीडिया को भी अब सत्ता पक्ष से सवाल पूछना मजबूरी बन जाएगी। ‌
कुल मिलाकर देखा जाए तो नरेंद्र मोदी के लिए तीसरा कार्यकाल बड़ी चुनौतियों भरा है। ‌अब नरेंद्र मोदी को सबके साथ मिलकर चलना होगा, शिक्षा स्वास्थ्य जैसे मामलों में भी विपक्ष उनको घेर सकता है, इसके साथ ही इन मामलों में निजीकरण की अपनी नीति को भाजपा बड़ी आसानी से आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं हो पाएगी। ‌

क्या बड़े आर्थिक सुधारो पर लग जाएगा ब्रेक?

मुख्य धारा की गोदी मीडिया द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा है कि मोदी के कमजोर मैंडेट टिकट कारण बड़े आर्थिक सुधारो पर ब्रेक लग जाएगा। अगर यह आर्थिक सुधार केवल पूंजी पतियों के हित के लिए ही बनाए जाएंगे और आम लोगों के अहित के लिए बनाए जाएंगे तो निश्चित तौर पर इन आर्थिक सुधारो पर सरकार को चुनौतियां मिलना शुरू हो जाएगी। इसलिए किसी भी तरह के आर्थिक सुधार नीति बनाने से पहले उन्हें इस पर गौर करना होगा। गोदी मीडिया द्वारा उठाए गए इस सवाल पर की क्या बड़े आर्थिक सुधारो पर ब्रेक लग जाएगा यह कहना गलत है, क्योंकि? अगर आर्थिक सुधार सभी के भले के लिए होगा तो वह आर्थिक सुधार को हरी झंडी एनडीए और विपक्ष की तरफ से आसानी से मिल जाएगी। यानि कहने का मतलब है कि एनडीए के घटक दल की सहमति होना बहुत जरूरी है और इसके साथ ही विपक्ष का विश्वास जीतना भी बहुत जरूरी है। ‌

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