एक बार की बात है। एक परिवार में पति-पत्नी एवं बहू बेटा यानी चार प्राणी रहते थे। समय आराम से बीत रहा था। चंद वर्षों बाद सास ने गंगा स्नान करने का मन बनाया। वो भी अकेले पति-पत्नी। बहू बेटा को भी साथ ले जाने का मन नहीं बनाया। उधर बहू मन में सोच विचार करती है कि भगवान मैनें ऐसा कौन सा पाप किया है जो मै गंगा स्नान करने से वंचित रह रही हूँ। सास ससुर गंगा स्नान हेतु काशी के लिए रवाना होने की तैयारी करने लगी तो बहू ने सास से कहा कि माँ आप अच्छी तरह गंगा स्नान एवं यात्रा करिएगा। इधर घर की चिंता मत करिएगा। मेरा तो अभी अशुभ कर्म का उदय है वर्ना मैं भी आपके साथ चलती। सारी तैयारी करके दोनों काशी के लिए रवाना हुए। मन ही मन बहू अपने कर्मो को कोस रही थी, कि आज मेरा पुण्य कर्म होता तो मै भी गंगा स्नान को जाती। खैर मन को ढाढस बंधाकर घर में रही थी। स्नान करते करते घर में रखी आलमारी की तरफ़ ध्यान गया और मन ही मन सोचने लगी कि अरे आलमारी खुली छोड़कर आ गई कैसी बेवकूफ़ औरत हूँ, बंद करके नही आई। पीछे से बहू सारा गहना निकाल लेगी। यही विचार करते करते स्नान कर रही थी कि अचानक हाथ में पहनी हुईं अंगुठी हाथ से निकल कर गंगा में गिर गई। अब और चिंता बढ़ गई कि मेरी अंगुठी गिर गई।उसका ध्यान गंगा स्नान में न होकर सिर्फ़ घर की आलमारी में था। उधर बहू ने विचार किया कि देखो मेरा शुभ कर्म होता तो मैं भी गंगा स्नान के लिए जाती। सासु माँ कितनी पुण्यवान हैं जो आज गंगा स्नान कर रही है। ये विचार करते करते एक कठौती लेकर आई और उसको पानी से भर दिया और सोचने लगी सासु माँ वहां गंगा स्नान कर रही है और मै यहां कठौती में गंगा स्नान कर लूँ।

यह विचार करके ज्योंही कठौती में बैठी तो उसके हाथ में सासु माँ की अँगूठी आ गई और विचार करने लगी ये अँगूठी यहाँ कैसे आई ये तो सासु माँ पहन कर गई थी। इतना सब करने के बाद उसने उस अँगूठी को अपनी आलमारी में सुरक्षित रख दी और कहा कि सासु माँ के आने पर उनको दे दूँगी। उधर सारी यात्रा एवं गंगा स्नान करके सास लौटी तब बहू ने उनकी कुशल यात्रा एवं गंगा स्नान के बारे में पूछी – तो सास ने कहा कि बहू सारी यात्रा एवं गंगा स्नान तो की पर मन नही लगा। बहू ने कहा कि क्यों माँ? मैने तो आपको यह कह कर भेजा था कि आप इधर की चिंता मत करना मैं अपने आप संभाल लूँगी। सास ने कहा बहू गंगा स्नान करते पहले तो ध्यान घर में रखी आलमारी की तरफ़ गया और ज्योंही स्नान कर रही थी कि मेरे हाथ से अँगूठी निकल कर गंगाजी में गिर गई। अब तूँ ही बता बाकी यात्रा में मन कैसे लगता।इतनी बात बता ही रही थी कि बहू उठकर अपनी आलमारी में से वह अँगूठी निकाल सास के हाथ में रख कर कही की माँ इस अँगूठी की बात कर रही हैं क्या ?

सास ने कहा – हाँ। यह तेरे पास कहाँ से आई मेरी अंगुली से निकल कर गंगाजी में गिरी थी। बहू ने जबाव देते हुए कहा कि माँ जब गंगा स्नान कर रही थी तो मेरे मन में आया कि देखो माँ कितनी पुण्यवान है जो आज गंगा स्नान हेतु गई। मेरा कैसा अशुभ कर्म आड़े आ रहा था जो मै नही जा सकी। इतना सब सोचने के बाद मैनें विचार किया कि क्यों न मै यही पर कठौती में पानी डाल उसको ही गंगा समझकर गंगा स्नान कर लूँ। जैसे मैंनें ऐसा किया और कठौती में स्नान करने लगी कि मेरे हाथ में यह अँगूठी आई। मै देखी यह तो आपकी है और यह यहाँ कैसे आई। फिर भी मै आगे ज्यादा न सोचते हुए इसे सुरक्षित अपनी आलमारी में रख दी। सास ने बहू से कहा – बहू मै बताती हूँ कि यह तुम्हारी कठौती में कैसे आई।
बहू ने कहा – माँ कैसे ? सास ने बताया बहू देखो मन चंगा तो कठौती में गंगा। मेरा मन वहां पर चंगा नही था। मै वहाँ गई थी परन्तु मेरा ध्यान घर की आलमारी में अटका हुआ था और मन ही मन विचार कर रही थी आलमारी खुली छोड़कर आई हूँ कहीं बहू ने आलमारी से मेरे गहने निकाल लिए तो। तो बता ऐसे बुरे विचार मन में आए तो मन कहाँ से लगने वाला और अँगूठी जो मेरे हाथ से निकल कर गिरी वह तेरे शुद्ध भाव होने के कारण तेरी कठौती में निकली।
मन चंगा कठौती में गंगा का अर्थ
इस कहानी का अर्थ यह है कि जीवन में पवित्रता निहायत जरूरी है। वर्तमान में हर प्राणी का मन अपवित्र है। हर व्यक्ति का चित्त अपवित्र है। चित्त और चेतना में काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकार इस तरह हावी है कि हम उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं। उस विकृति के कारण हमारा जीना बहुत मुश्किल हो रहा है। बाहर की गंदगी को हम पसंद नहीं करते, वह दिखती है, तत्क्षण हम उसे दूर करने के प्रयास में लग जाते हैं। हमारे भीतर में जो गंदगी भरी पड़ी है उस ओर हमारा ध्यान नही जाता है। आज जिस पवित्रता की बात की जानी है, उस पवित्रता का सम्बन्ध बाहर से नही है, भीतर की पवित्रता से है।

रविदास जयंती कब है
कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानक देव का जन्म हुआ तो वैशाख पूर्णिमा को गौतम बुद्ध भगवान का जन्म हुआ था। माघ पूर्णिमा की तिथि पर संत रविदास का जन्म हुआ। गंगा स्नान के लिए गंगा घाट जाने से वंचित संत रविदास अपने आत्मविश्वास के कारण कठौती में गंगा मैया को बुला लिए थे।






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