कई वर्षों पहले एक बार, दिन का नाम था शनिवार। पति-पत्नी की एक जोड़ी थी, नोंकझोंक जिनमें थोड़ी थी। अधिक था उनमें प्यार, मीठी बातों का अम्बार। सुबह पतिदेव ने ली अंगड़ाई, पत्नी ने बढ़िया चाय पिलाई। फिर नहाने को पानी किया गर्म, निभाया अच्छी पत्नी का धर्म। पति जब नहाकर निकल आए, पत्नी ने बढ़िया पकौड़े खिलाए।

फिर पतिदेव ने समाचार-पत्र पकड़ा, दोनों हाथों में उसे कसकर जकड़ा। अगले तीन घंटे तक न खिसके, रहे वो समाचार-पत्र से चिपके। पत्नी निपटाती रही घर के काम, मिला न एक पल भी आराम। एक पल को जो कुर्सी पर टिकी, पति ने तुरंत फरमाइश पटकी। बोले अब नींद आ रही है ढेर सारी, प्रियतमा बना दो पूड़ी और तरकारी। पत्नी बोली मैं हूँ आपकी आज्ञाकारी, लेकिन फ्रिज में नहीं है तरकारी। पति बोले दोपहर तक कोहरा छाया है, सूरज को भी बादलों ने छिपाया है।ऐसे में तरकारी लेने तो न जाऊँगा, छोड़ो पूड़ी, दाल-चावल ही खाऊँगा। पत्नी बोली थोड़ी देर देखिए टीवी, अभी खाना बनाकर लाती बीवी। पति तुरंत ही गए कमरे के अंदर, पत्नी ने रसोई में खोले कनस्तर। दाल-चावल उसमें रखे थे पर्याप्त, पर सिलेंडर होने वाला था समाप्त। बन सकते थे चावल या फिर दाल, क्या बनाएँ क्या न का था सवाल। कोहरा, बादल और था थरथर जाड़ा, सूरज निकले गुजर चुका था पखवाड़ा। कैसे कहती पत्नी कि सिलेंडर लाना है, वरना दाल-चावल को भूल जाना है। इतनी ठंड में पति को कैसे भेजूँ बाजार, काँप-काँप उनका हो जाएगा बँटाधार। इस असमंजस से पाने के लिए मुक्ति, धर्मपत्नी ने लगायी एक सुंदर युक्ति। कच्ची दाल में कच्चे चावल मिलाए, धोकर उसने तुरंत कुकर में चढ़ाए। कुछ देर में एक लम्बी सी आई सीटी, पति के पेट में चूहे करने लगे पीटी। पत्नी ने मेज पर खिचड़ी लगायी, साथ में अचार और दही भी लायी।

नया व्यंजन देखकर दिमाग ठनका, और पति के मुख से स्वर खनका। बोले न तो है चावल न ही है दाल, दोनों को मिलाजुला ये क्या है बवाल। पत्नी बोली सिलेंडर हो गया खाली, इसलिए मैंने चावल-दाल मिला डाली। एक बार ही कुकर था चढ़ सकता, दाल-चावल में से कोई एक पकता। इतनी ठंड में आप जो बाहर जाते, अगले दो घण्टे तक कंपकंपाते। इसलिए मैंने इन दोनों को मिलाया, आपके लिए ये नया व्यंजन बनाया। खाने से पहले धारणा मत बनाइए, तनिक एक चम्मच तो चबाइए। पेट में चूहे घमासान मचा रहे थे, चावल देख पति ललचा रहे थे। नुक्ताचीनी और नखरे छोड़कर, खाया एक कौर चम्मच पकड़कर। नये व्यंजन का नया स्वाद आया, पत्नी का नवाचार बहुत भाया। बोले अद्भुत संगम तुमने बनाया, और मुझे ठण्ड से भी है बचाया। तृप्त हूँ मैं ये नया व्यंजन खाकर, और धन्य हूँ तुम-सी पत्नी पाकर। पर एक बात तो बताओ प्रियतमा, क्या नाम है इसका, क्या दूँ उपमा। पत्नी बोली पहली बार इसे बनाया, नाम इसका अभी कहाँ है रख पाया। खिंच रही थी गैस दुविधा थी बड़ी, इसलिए इसको बुलाएँगे खिचड़ी। मित्रों इनके सामने जब समस्या हुई खड़ी, न तो पति चिल्लाया न ही पत्नी लड़ी। आपके समक्ष भी आए जब ऐसी घड़ी, प्रेम से पकाइएगा कोई नयी खिचड़ी। तो इस पूरी घटना का जो निकला सार, उसे हम कह सकते हैं कुछ इस प्रकार। कि पति-पत्नी में जब हो असीम प्यार, तो हो जाता है खिचड़ी का अविष्कार। 1

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