महाप्रभु जगन्नाथ जी की रथ यात्रा, जिसे पवित्र रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है, ओडिशा राज्य के पुरी में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह त्योहार जगन्नाथ मंदिर से जुड़े देवता भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों पर नगर भ्रमण का अवसर है। इस अनुष्ठान को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु हर साल पुरी में एकत्रित होते हैं।
रथ यात्रा का महत्व:
रथ यात्रा का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ की अनंत शक्ति और भक्तों के प्रति उनके असीम प्रेम का प्रतीक है। इसके माध्यम से यह भी संदेश मिलता है कि भगवान सभी जीवों के प्रति समान भाव रखते हैं और सबको अपने स्नेह का अंश देते हैं।
रथ यात्रा के दौरान, तीनों देवता – भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, अपने विशाल और भव्य रथों पर सवार होते हैं और शहर के विभिन्न हिस्सों में भ्रमण करते हैं। यह रथ यात्रा गुंडीचा मंदिर तक जाती है, जो मुख्य मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे गुंडीचा यात्रा भी कहा जाता है, क्योंकि गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

रथ यात्रा की परंपरा का इतिहास सदियों पुराना है। इस पर्व का वर्णन प्राचीन हिन्दू शास्त्रों और पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि इस उत्सव का प्रारंभ राजा इंद्रद्युम्न के समय हुआ था, जिन्होंने पुरी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनवाया था।
कहा जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्तों को दर्शन देने का निर्णय लिया और इस प्रकार रथ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ। इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए अपने भव्य रथों पर सवार होते हैं। यह भी माना जाता है कि इस यात्रा के दौरान भगवान अपने मौसी के घर जाते हैं और कुछ दिन वहीं व्यतीत करते हैं।
रथों का निर्माण:
रथ यात्रा के दौरान उपयोग किए जाने वाले रथों का निर्माण एक विशिष्ट प्रक्रिया और समयावधि के अंतर्गत होता है। इन रथों का निर्माण पुरी के एक विशिष्ट समुदाय द्वारा किया जाता है, जिन्हें महापात्रा कहते हैं।
प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया के दिन से रथों का निर्माण आरंभ होता है। रथों के निर्माण में लकड़ी का उपयोग होता है, जिसे पास के जंगलों से लाया जाता है। प्रत्येक रथ की ऊंचाई, आकार और सजावट अलग होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’, बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ और सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ कहा जाता है।
प्रत्येक रथ के निर्माण में महीनों की मेहनत लगती है और इसमें नक्काशी, चित्रकला और सजावट का काम शामिल होता है। रथों की सजावट में मुख्य रूप से रंग-बिरंगी कपड़े, झंडे, फूल और अन्य सजावटी सामग्री का उपयोग किया जाता है।
रथ यात्रा का इतिहास:
धर्म ग्रंथों के मुताबिक रथ यात्रा की परंपरा हजारों साल पुरानी है और इसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका में भी रथ यात्रा का आयोजन होता था। पुरी में रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं सदी में हुई थी, जब जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ था।
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को तीन अलग-अलग विशाल रथों में सजाया जाता है। इन रथों को हजारों श्रद्धालु रस्सियों से खींचते हैं और इस प्रक्रिया में भाग लेना एक बहुत ही पुण्य का कार्य माना जाता है।
रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जो जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह यात्रा नौ दिनों तक चलती है, और इस दौरान भगवान गुंडिचा मंदिर में विश्राम करते हैं। नौवें दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस अपने मंदिर लौटते हैं।
रथ यात्रा की धार्मिक और सामाजिक महत्ता:
रथ यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व सभी जातियों, वर्गों और धर्मों के लोगों को एक साथ लाता है। इस दौरान, भक्तों के बीच कोई भेदभाव नहीं होता और सभी भगवान के दर्शन के लिए समान अवसर पाते हैं।
इस पर्व के दौरान, अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भक्ति संगीत, नृत्य, और अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियां इस पर्व की शोभा बढ़ाते हैं।
रथ यात्रा की तैयारियाँ:
रथ यात्रा की तैयारियाँ महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। रथों का निर्माण विशेष प्रकार की लकड़ी से किया जाता है, और इन रथों को सजाने के लिए रंग-बिरंगे कपड़े, फूल, और अन्य सजावटी सामग्री का उपयोग किया जाता है।
रथ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु पुरी नगर में आते हैं, इसलिए सुरक्षा और व्यवस्था की विशेष तैयारियाँ की जाती हैं।
रथ यात्रा की रस्में और अनुष्ठान:
रथ यात्रा के दिन, सुबह-सुबह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को स्नान कराकर सजाया जाता है। इसके बाद इन्हें रथों पर विराजमान किया जाता है। इस प्रक्रिया को ‘पाहंडी’ कहा जाता है। पाहंडी के दौरान भक्तजन भगवान की मूर्तियों को अपने कंधों पर उठाकर रथों तक पहुंचाते हैं।
इसके बाद ‘छेरा पहरा’ नामक रस्म होती है, जिसमें पुरी के राजा सुनहरे झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं। यह रस्म भगवान के प्रति नतमस्तक होने और सेवा भाव का प्रतीक है।
रथ यात्रा के दौरान भक्तजन भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सियों को खींचते हैं। इसे अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस प्रक्रिया में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु पुरी में एकत्रित होते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं।
गुंडीचा मंदिर की यात्रा:
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने-अपने रथों पर सवार होकर गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा करीब तीन किलोमीटर की होती है।
गुंडीचा मंदिर पहुंचने के बाद भगवान कुछ दिनों तक वहां निवास करते हैं। इस अवधि को ‘अष्टमी का दिन’ कहा जाता है। इस दौरान भक्तजन गुंडीचा मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।
बहुड़ा यात्रा:
अष्टमी के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने रथों पर सवार होकर वापस मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा को ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। बहुड़ा यात्रा के दौरान भी भक्तजन भगवान के रथ की रस्सियों को खींचते हैं और उनके प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं।
जगन्नाथ पुरी, ओडिशा राज्य में स्थित एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और इसे हिंदू धर्म में विशेष महत्व प्राप्त है। यहां की यात्रा की योजना बनाने के लिए निम्नलिखित जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है:-

यात्रा के लिए सही समय:
जगन्नाथ पुरी की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है। इस समय मौसम सुखद और ठंडा होता है, जो यात्रा के लिए उपयुक्त होता है। हालांकि, रथ यात्रा (जून-जुलाई) का विशेष महत्व है और इस समय बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं।
जगन्नाथ धाम कैसे पहुंचें:
हवाई मार्ग किराया:
भुवनेश्वर हवाई अड्डा, पुरी से लगभग 60 किमी दूर है। यह हवाई अड्डा प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से पुरी तक टैक्सी या बस द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
हवाई किराया यात्रा के समय और विमान कंपनी पर निर्भर करता है। औसतन, दिल्ली से भुवनेश्वर तक का एकतरफा हवाई किराया ₹3000-₹7000 के बीच हो सकता है।
रेल मार्ग किराया:
पुरी रेलवे स्टेशन, भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और अन्य प्रमुख शहरों के लिए नियमित ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं।
रेलवे किराया यात्रा की श्रेणी और ट्रेन पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली से पुरी तक के लिए स्लीपर क्लास का किराया लगभग ₹800-₹1000, एसी 3 टियर का किराया लगभग ₹2000-₹2500 और एसी 2 टियर का किराया लगभग ₹3000-₹3500 हो सकता है।
सड़क मार्ग किराया:
पुरी, ओडिशा के अन्य प्रमुख शहरों और राज्यों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप भुवनेश्वर से बस, टैक्सी या कार द्वारा पुरी पहुंच सकते हैं। भुवनेश्वर से पुरी की दूरी लगभग 60 किमी है और यात्रा में लगभग 1-2 घंटे लगते हैं।
भुवनेश्वर से पुरी के बीच बस का किराया लगभग ₹100-₹200 हो सकता है। रिजर्व टैक्सी किराया लगभग ₹1500-₹2500 के बीच हो सकता है।
ठहरने की व्यवस्था:
पुरी में विभिन्न प्रकार के होटलों और धर्मशालाओं की व्यवस्था है, जिनमें से कुछ प्रमुख विकल्प इस प्रकार हैं:–
होटल्स:
मयफेयर हेरिटेज: यह एक 5 स्टार होटल है जो समुद्र के किनारे स्थित है और सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस है।
हंस कोकिला: यह 3 स्टार होटल है जो आरामदायक और उचित कीमत पर उपलब्ध है।
स्वर्गद्वार बीच रिसॉर्ट: समुद्र के नजदीक स्थित यह होटल बजट यात्रियों के लिए अच्छा विकल्प है।
जगन्नाथ धाम कि धर्मशालाएँ:
जगन्नाथ धर्मशाला: यह पुरी मंदिर के पास स्थित है और यहाँ पर उचित दर पर ठहरने की सुविधा मिलती है।
गुजराती धर्मशाला: यह भी मंदिर के निकट स्थित है और सस्ते दरों पर सुविधाएं उपलब्ध कराती है।
अन्य जानकारी:
भोजन: पुरी में आपको विभिन्न प्रकार के उपलब्ध होंगे। विशेषकर, यहां के स्थानीय व्यंजनों को अवश्य चखें।
महाप्रभु जगन्नाथ दर्शन समय:
जगन्नाथ मंदिर का दर्शन सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक होता है।
दर्शनीय स्थल:
जगन्नाथ मंदिर के अलावा पुरी बीच, चिलिका झील और कोणार्क सूर्य मंदिर भी देखने योग्य स्थान हैं।
नीलांचल निवासाय नित्याय परमात्मने।
बलभद्र सुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः।।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक आयोजन भी है, जिसमें ओडिशा की समृद्ध संस्कृति, परंपराएं और कला की झलक मिलती है। यह त्योहार धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रथ यात्रा के दौरान पुरी शहर का वातावरण भक्तिमय हो जाता है। चारों ओर हरिनाम संकीर्तन की ध्वनि गूंजती है और भक्तजन भगवान के जयकारे लगाते हैं। रथ यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
यह त्योहार हमें प्रेम, भक्ति, सेवा और समानता का संदेश देता है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के प्रति असीम भक्ति और श्रद्धा का यह पर्व हमें जीवन के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करता है।
उम्मीद है कि यह जानकारी आपकी जगन्नाथ पुरी यात्रा की योजना बनाने में सहायक होगी। कमेंट बॉक्स में प्रेम से लिखिए जय महाप्रभु जगन्नाथ।