कुलहंता : आज संपूर्ण अखंड भारत अर्थात अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और बर्मा आदि में जो-जो भी मनुष्य निवास कर रहे हैं, वे सभी निम्नलिखित प्रमुख हिन्दू वंशों से ही संबंध रखते हैं। कालांतर में उनकी जाति, धर्म और प्रांत बदलते रहे लेकिन वे सभी एक ही कुल और वंश से हैं। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कुल का नाश तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने कुलधर्म को छोड़ देता है। इस तरह वे अपने मूल एवं पूर्वजों को हमेशा के लिए भूल जाते हैं। कुलहंता वह होता है, जो अपने कुलधर्म और परंपरा को छोड़कर अन्य के कुलधर्म और परंपरा को अपना लेता है। जो वृक्ष अपनी जड़ों से नफरत करता है उसे अपने पनपने की गलतफहमी नहीं होना चाहिए।
भारत खंड का विस्तार : महाभारत में प्राग्ज्योतिष- असम, किंपुरुष- नेपाल, त्रिविष्टप- तिब्बत, हरिवर्ष- चीन, कश्मीर, अभिसार- राजौरी, दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिन्ध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिन्ध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग दो सौ जनपद वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।
आज इन सभी के नाम बदल गए हैं। भारत की जाट, गुर्जर, पटेल, राजपूत, मराठा, धाकड़, सैनी, परमार, पठानिया, अफजल, घोसी, बोहरा, अशरफ, कसाई, कुला, कुंजरा, नायत, मेंडल, मोची, मेघवाल आदि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध की कई जातियां सभी एक ही वंश से उपजी हैं। खैर, अब हम जानते हैं हिन्दुओं मूलत: भारतीयों के प्रमुख वंशों के बारे में जिनमें से किसी एक के वंश से आप भी जुड़े हुए हैं।
जो खुद को मूल निवासी मानते हैं वे यह भी जान लें कि प्रारंभ में मानव हिमालय के आसपास ही रहता था। हिमयुग की समाप्ति के बाद ही धरती पर वन क्षेत्र और मैदानों का विस्तार हुआ तब मानव यहां आकर रहने लगा। हर धर्म में इसका उल्लेख मिलता है कि हिमालय से निकलने वाली किसी नदी के पास ही मानव की उत्पत्ति हुई थी। वहीं पर एक पवित्र बगिचा था जहां पर प्रारंभिक मानवों का एक समूह रहता था। धर्मो के इतिहास के अलावा धरती के भूगोल और मानव इतिहास के वैज्ञानिक पक्ष को भी जानना जरूरी है।
ब्रह्मा कुल : ब्रह्माजी की प्रमुख रूप से तीन पत्नियां थीं। सावित्री, गायत्री और सरस्वती। तिनों से उनको पुत्र और पुत्रियों की प्राप्ति हुई। इसके अलावा ब्रह्मा के मानस पुत्र भी थे जिनमें से प्रमुख के नाम इस प्रकार हैं- अत्रि, अंगिरस, भृगु, कंदर्भ, वशिष्ठ, दक्ष, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, पुलस्त्य, नारद, चित्रगुप्त, मरीचि, सनक, सनंदन, सनातन, सनतकुमार आदि।
स्वायंभुव मनु कुल : स्वायंभुव मनु कुल की कई शाखाएं हैं। उनमें से एक प्रमुख शाखा की बात करते हैं। स्वायंभुव मनु समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पांच संतानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएं आकूति, देवहूति और प्रसूति थीं। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि को आकूति से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था।
गौरतलब है कि देवहूति ने नौ कन्याओं को जन्म दिया जिनका विवाह प्रजापतियों से किया गया था। देवहूति ने एक पुत्र को भी जन्म दिया था, जो महान ऋषि कपिल के नाम से जाने जाते हैं।
भारत के कपिलवस्तु में उनका जन्म हुआ था और वे सांख्य दर्शन के प्रवर्तक थे। उन्होंने ही सगर के सौ पुत्रों को अपने शाप से भस्म कर दिया था।
दो पुत्र- प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी।
स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।
महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने ‘मनु स्मृति’ की रचना की थी, जो आज मूल रूप में नहीं मिलती। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ रंग होता था और आज जाति।
प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकांत में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए, लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही। सुनंदा नदी के किनारे सौ वर्ष तक तपस्या की। दोनों पति-पत्नी ने नैमिषारण्य नामक पवित्र तीर्थ में गोमती के किनारे भी बहुत समय तक तपस्या की। उस स्थान पर दोनों की समाधियां बनी हुई हैं।
प्रियव्रत का कुल
स्वायंभु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।
दूसरा प्राचीन वंश… कश्यप कुल
मरीचि ने कला नाम की स्त्री से विवाह किया और उनसे उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। कश्यप की माता कला, कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिलदेव की बहन थी। मान्यता के अनुसार कश्यप को ही अरिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। सुर और असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था। आज भी सुर और असुरों की जाति भारतवर्ष में विद्यमान है।
ब्रह्मा के पोते ऋषि कश्यप ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की तेरह कन्याओं से विवाह किया था।
कश्यप की पत्नियां : इस प्रकार ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनीता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं।
अदिति : पुराणों के अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्यों को जन्म दिया। माना जाता है कि चाक्षुष मन्वंतर काल में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम- भगवान वामन। ऋषि कश्यप के पुत्र विस्वान से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। अदिति के पुत्र ही देव हुए इनके राजा इन्द्र हैं। इन देवों को शिव-पार्वती मिलन में विघ्न डालने के कारण श्राप भी प्राप्त हुआ।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राजा इक्ष्वाकु के कुल में जैन और हिन्दू धर्म के महान तीर्थंकर, भगवान, राजा, साधु-महात्मा और सृजनकारों का जन्म हुआ है।
वैवस्वत मनु से ही सूर्यवंश की स्थापना हुई। मनु के दसों पुत्रों का वंश अलग-अलग चला और सभी की रोचक जीवन गाथाएं हैं। मनु ने अपने ज्येष्ठ पुत्र इल को राज्य पर अभिषिक्त किया और वे स्वयं तप के लिए वन को चले गए। इक्ष्वाकु ने अपना अलग राज्य बसाया। भगवान राम इसी कुल में जन्मे थे।
इक्ष्वाकु का वंश:
कुक्षि के कुल में भरत से आगे चलकर सगर, भागीरथ, रघु, अम्बरीष, ययाति, नाभाग, दशरथ और भगवान राम हुए। उक्त सभी ने अयोध्या पर राज्य किया।
दनु : ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि एकसठ महान पुत्रों की प्राप्ति हुई।
चार अन्य पत्नियां : रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान – राक्षस उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छु आदि विषैले जंतु पैदा किए।
ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जंतुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।
तार्क्ष्य की पत्नी विनीता के गर्भ से गरूड़ विष्णु का वाहन और वरुण सूर्य का सारथि पैदा हुए। रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों – पतंगों का जन्म हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ, जो कि कालांतर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।
माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था। कश्यप ऋषि के जीवन पर शोध किए जाने की आवश्यकता है। click me जानिए अपने पूर्वजों की उत्पत्ति, कौन किसके वंशज- भाग एक में दो प्राचीन वंश…. तक। भाग दो गूगल पर डायरेक्टर पढ़ने के। भाग एक को यहीं विराम देते हैं। भाग दो तीन चार क्रमशः अगले अंक में, इक्कीसवीं प्राचीन वंश…. तक। इस लेख का भाग दो गूगल ब्लोग पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक किजिये।
जानिए अपने पूर्वजों की उत्पत्ति