मकर संक्रांति: भारतीय संस्कृति, परंपराएं और वैज्ञानिक महत्व का अनूठा संगम

Amit Srivastav

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महाकुंभ मेला 2025: विस्तृत जानकारी और योजना

मकर संक्रांति पर्व पूरे देश में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस दिन सूर्य मकर “Makar Sankranti” राशि में प्रवेश करता है और दक्षिणायन से उत्तरायर्ण में आता है, जिसका वैज्ञानिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। जानिए नीचे लिखीं मुख्य 10 बिंदुओं पर अभिषेक कांत पांडेय की कलम से amitsrivastav.in Google side पर।

1. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का वैज्ञानिक महत्व:
2. मकर संक्रांति: भारत के विविध रंगों का पर्व:
3. उत्तर भारत की खिचड़ी परंपरा और दान-पुण्य का महत्व:
4. प्रयागराज कुंभ मेला 2025: मकर संक्रांति पर स्नान का महत्व:
5. पंजाब की लोहड़ी: खुशहाली और भाईचारे का उत्सव
6. दक्षिण भारत का पोंगल: फसल और समृद्धि का त्योहार
7. मकर संक्रांति 2025: धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलू
8. उत्तरायण की शुरुआत: मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व
9. भारत की समृद्ध संस्कृति और मकर संक्रांति की परंपराएं
10. लोहड़ी से पोंगल तक: मकर संक्रांति के अनोखे रीति-रिवाज

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का वैज्ञानिक महत्व

ऋतु परिवर्तन और लहलाती फसल को देखकर भारत में यह त्योहार जीवन की खुशियां और प्रकृति के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करने की मकर संक्रांति, संस्कृति जीवन उत्साह का त्योहार है, इसका वैज्ञानिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। मकर संक्रांति पर्व प्रत्येक वर्ष पौष शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होता है। यह एक ऐसा त्योहार है, जो सौर्य कलेंडर के अनुसार हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन पुण्यदायक काल में स्नान करने का महत्व है।

मकर संक्रांति: भारत के विविध रंगों का पर्व

भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक, यह त्योहार अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस दिन स्थानीय परंपरा और रीति-रिवाज के साथ यह त्योहार लहलाती फसलों और उसके साथ आई खुशियों का प्रतीक है।

उत्तर भारत की खिचड़ी परंपरा और दान-पुण्य का महत्व

उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति यानी खिचड़ी स्नान, दान-पुण्य का त्योहार है। इस दिन खिचड़ी यानी चावल और विभिन्न दालों के मिश्रण दान किया जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाकर भी खाए जाने की परंपरा है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम स्थली प्रयाग में इसी दिन से माघ मेले की शुरुआत होती है।

प्रयागराज कुंभ मेला 2025: मकर संक्रांति पर स्नान का महत्व

इस बार महाकुंभ मेला का आयोजन किया जा रहा है। प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025‌ धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण मेला है।‌ पूरी दुनिया से लोग यहां पर स्नान ध्यान और ज्ञान के लिए आये हुए हैं। 2025 में 14 जनवरी को खिचड़ी के अवसर पर यहां स्नान का बड़ा ही महत्व है। ‌देश के अलग-अलग भागों से लोग एक माह लगने वाले इस मेले में घूमने के लिए आते हैं। सांस्कृतिक, सौहार्द और देश एकता का परिचय कराते हैं, यहां पर हर जाति, धर्म और संस्कृति के लोग आते हैं। 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन संगम तट पर लोग स्नान, दाण्य-पुण्य करते हैं।

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उत्तर भारत में इस दिन रंग-बिरंगी पतंग उड़ाने की परंपरा है, ऐसा माना जाता है कि खिचड़ी के दिन अच्छे दिनों की शुरुआत होती है और आसमान में उड़ने वाली रंग-बिरंगी पतंगे जीवन में रंगों, उत्साह के महत्व को दर्शाती है। यानी लहलाती फसल को काटने के समय, खुशियां बिखेरती यह त्योहार परिश्रम के फल की प्राप्ति है। इस दिन सूर्य देव को प्रसाद अर्पित किया जाता है, ऊर्जा के देव सूर्य को एक तरह से धन्यवाद दिया जाता है कि उन्हीं की कृपा से भोजन प्राप्त होता है।

पोंगल साफ-सफाई का त्योहार है, इस दिन नए-नए वस्त्र पहने जाते हैं। पुरानी वस्तुओं को अग्नि को समर्पित किया जाता है, और जलती हुई आग के इर्द- गिर्द सभी आस-पास के लोग इकट्ठा होकर पारंपरिक गीत गाते हैं, खुशियां मनाते हैं, जीवन में धन-धान और समृद्धि के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। इस दिन एक खास तरह का व्यंजन बनाया जाता है, जिसे पोंगल कहा जाता है। जिस बरतन में बनाया जाता है, उसे पोंगल फ्राई कहते हैं। पोंगल को बनाने के लिए चावल और मूंग की दाल के साथ गुड़, मेवा आदि डालकर मीठा पोंगल का सूर्य भगवान को भोग लगाया जाता है और इस प्रसाद को मिल- बांटकर खाया जाता है।

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पंजाब की लोहड़ी: खुशहाली और भाईचारे का उत्सव

पंजाब में लोहड़ी के नाम से यह पर्व मकर संक्रांति की पूर्व संन्ध्या पर मनाई जाती है। खेतों में लहलाती गेंहू की बालियां प्रतीक होती हैं, खुशी और संपदा की, यहां पर लोहड़ी जलाई जाती है, पारंपरिक लोहड़ी गीत गाई जाती है। उत्साह और जीवन चेतना का यह त्योहार पंजाब के हर घर में मनाया जाता है। सांयकाल को आग जलाकर उसके इर्द-गिर्द यहां के लोग लोहड़ी जलाते हैं, मान्यता है कि अग्नि देव को प्रसन्न करने और कृपा पाने के लिए, थोड़ी-सी लहलाती फसल जलती हुई लोहड़ी में समर्पित कर लोग प्रार्थना करते हैं।

दक्षिण भारत का पोंगल: फसल और समृद्धि का त्योहार

दक्षिण में यह त्योहार पोंगल के नाम से जाना हैं कि इसी तरह अन्न-धन की कृपा बनाए। दक्षिण भारत में पोंगल मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी धरती अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण करती है, जिससे आकाशमंडल में स्थित ग्रह एवं नक्षत्र एक समान नहीं रहता है। पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है, इस वार्षिक गति के कारण धरती पर अलग-अलग ऋतुएं होती है।

मकर संक्रांति 2025: धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलू

पृथ्वी की इस वार्षिक गति से गणना कर समय को वर्ष और मास में बांटा जाता है। वहीं सूर्य की स्थिति के अनुसार उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।

उत्तरायण की शुरुआत: मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व

इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बंटा होता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है। चूंकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है।

भारत की समृद्ध संस्कृति और मकर संक्रांति की परंपराएं

मकर संक्रांति: भारतीय संस्कृति, परंपराएं और वैज्ञानिक महत्व का अनूठा संगम

अतः भारत की मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही मनाई जाती है। वहीं हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्यरेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलार्द्ध में ही आता है, अतः मकर संक्रांति को ही विशेष महत्व दिया गया है।

लोहड़ी से पोंगल तक: मकर संक्रांति के अनोखे रीति-रिवाज

लोहड़ी से पोंगल तक का पावन पर्व भांगड़ा की गूंज और आग में डाले जाने वाले खाद्यान्नों की महक, बधाईयां देते एक दूसरे को लोग, भाई-चारा और आपसी प्रेम की मिसाल बन जाता है।

मकर संक्रांति का महत्व क्या है?

मकर संक्रांति न केवल एक खगोलीय घटना है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह पर्व जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और खुशहाली का संदेश देता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से जुड़े धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं का यह उत्सव विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। उत्तर में खिचड़ी और दान-पुण्य की परंपरा हो, दक्षिण में पोंगल का उत्सव, या पंजाब में लोहड़ी की खुशियां—यह पर्व भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

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मकर संक्रांति क्यो मनाते हैं – सार

मकर संक्रांति हमें प्रकृति और मानव जीवन के बीच गहरे संबंध को समझने का अवसर देती है। यह त्योहार केवल उत्सव का अवसर नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता, प्रकृति के प्रति आभार और परिश्रम के महत्व का उत्सव है।

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