काफ़िर हिंदूओं कि दास्तान, गजवा ए हिंद

Amit Srivastav

इतिहास से सबक सिखने वाला समझदार कहा जाता है। साथ ही समझने के लिए अपने दिमाग का उपयोग करना होता है। अच्छी-बुरी हर तरह की लेखनी या बातचीत समाज में मिलती है। अच्छाई को ग्रहण और बुराई का परित्याग कर देना बुद्धिमानी है। कहीं-कहीं बुराई में भी अच्छाई छूपी होती है इसलिए बुरा दिखाई देने वाली लेखनी या बातचीत को बिना देखे समझें नज़र अंदाज नहीं करना चाहिए। काफ़िर एक उर्दू शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है वो व्यक्ति जिसका अपने धर्म में आस्था न हो वो काफ़िर व्यक्ति कहा जाता है। तो जानिए काफ़िर हिंदूओं kafir hindu कि कुछ दास्तान भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम व डाक्टर पीटर हैमंड की रिसर्च से।

दास्तान ऐ हिंदू काफ़िर

काफ़िर हिंदूओं कि दास्तान, गजवा ए हिंद

इतिहास गवाह है हिंदू समुदाय कि लडकियां औरतें मुस्लिम समुदाय में कुछ सौख तो कुछ लूट-पाट से जाती रही है। बीते जमाने में मुस्लिम राजाओं द्वारा हिंदू महिलाओं की लूट-पाट कर अपने हरम में रखा जाता था। आज बालीवुड सहित बडे-बडे राजनेताओं कि लाड़ली लडकियां सौख से धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम समुदाय में जाते हुए देखी जा रही है। बालीवुड की अभिनेत्रियां तो अपनी सौख के साथ ही हिंदू समुदाय को ठेस पहुंचाने से बाज ही नही आ रही हैं। इन कुछ अभिनेत्रियों से तो लाख गुना अधिक कोठे की वेश्याएं हैं जो समाज को गंदा नही करती बल्कि उन अभिनेत्रियों द्वारा फैलाई गई गंदगी से समाज की साफ-सुथरी लड़कियों की इज्जत बची रहे उन अभिनेत्रियों की खुलेआम अईयासी व अश्लीलता से प्रभावित उत्तेजित पुरुषों की काम वासना शांत करने का बंद कमरे में प्रबन्ध करती हैं। गली-खोंचे की वेश्याएं खुलेआम अपनी प्राइवेट पार्ट का प्रदर्शन नही करती लाख कोई रुपये देने वाला हो, किन्तु बालीवुड की अभिनेत्रियां रुपये कमाने के चक्कर में सार्वजनिक अपने प्राइवेट पार्ट का दर्शन कराने से बाज नहीं आ रही हैं।

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एक तरफ भाईचारा दूसरे तरफ़ अखाड़ा

जम्मू कश्मीर का एक गांव जो हिन्दू बाहुल्य है। किश्तवाड़ स्थित हिन्दू बाहुल्य हंगा पंचायत के खरोती गांव के लोगों ने एक मुस्लिम को अपना निर्विरोध पंच चुना। इस गांव में 450 परिवारों में केवल एक ही मुस्लिम परिवार है। इस इलाके के लोगों का कहना है यहाँ कभी हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा नहीं हुआ। कुछ सेक्युलर इस प्रसंग को गंगा-जमुनी तहज़ीबी, हिन्दू-मुस्लिम एकता का उदहारण दे महिमामंडित कर रहे हैं। तो कुछ इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। पर क्या आप जानते है कि यहाँ कभी हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा क्यों नहीं हुआ? इसके लिए आपको कुछ आकड़ें जानने होंगे। हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा कहाँ होता है कुछ लोगों को जानकारी जरूर होगा।

पीटर हैमंड का शोध peter hammond

2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियां भर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।

मुसलमानों की जनसंख्या muslim population

काफ़िर हिंदूओं कि दास्तान, गजवा ए हिंद

उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानून पसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।
जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।
जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।

जनसंख्या फैक्टर

इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) (Muslim law) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।
जब मुस्लिम जनसंख्या (Muslim population) किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आर्थिक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इज़राईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।
जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगते हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डाट. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।
किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

क्या है गजवा ए हिंद what is gajwa e Hind

काफ़िर हिंदूओं कि दास्तान, गजवा ए हिंद

आपने उपरोक्त आर्टिकल में पढ़ा कि मुसलमान के द्वारा एक ऐसी शासन व्यवस्था की कल्पना की जाती है, जो गजवा ए हिंद होता है। कट्टरपंथी मुसलमान अपनी हुकूमत अपने धर्म के अनुसार चलाने की इरादा हमेशा रखते रहे हैं। गजवा ए हिंद इनका सपना है कि हिंदुस्तान में मुस्लिम धर्म के अनुसार शासन भविष्य में हो जाए। इसके लिए अंदर ही अंदर कई तरह के संगठन हिंदुस्तान को तोड़ने के लिए काम करते हुए भी नजर आए हैं जिस पर कई तरह के रोक लगे हैं। मुसलमान की तुष्टिकरण करने वाली सरकार अगर सप्ताह में होती है तो इन कट्टरपंथी के पंख उगजाते हैं। यह कट्टरपंथी विदेश से पैसा लेकर हिंदुस्तान में आतंकवादी घटनाएं करने और यहां के ही व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने की पूरी कोशिश करते हैं।
मीडिया खबरों के अनुसार सहारनपुर में देश की सबसे बड़ी इस्लामी संस्था दारुल उलूम देवबंद अपने फतवा को लेकर एक बार चर्चा में रहा है फुल स्टाफ उसने गजवा ए हिंद (gajwa e Hind) को मान्यता दी जिस पर पूरी दुनिया में खलबली मच गई। इस्लामी संस्था अपनी वेबसाइट के माध्यम से यह फतवा जारी किया था।
जिसमें उन्होंने सही माना था जबकि आपको बता दे कि गजवा ए हिंद जो है हिंदुओं को खत्म करके या किसी और धर्म को खत्म करके भारत में इस्लाम धर्म के अनुसार कानून की स्थापना करना उनका सपना है।
थोड़े शब्दों में मैंने सब कुछ कह दिया है। अभी भी समय है। भारत में जनसँख्या नियंत्रण कानून को लागु किया जाये। अन्यथा भविष्य में क्या होगा आप अनुमान लगा सकते हैं।

आर्टिकल सारांश

इस आर्टिकल में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती हुई जनसंख्या पर इसलिए चिंता व्यक्त की गई है, क्योंकि? कई ऐसे संगठन हैं जो कट्टरपंथी द्वारा चलाए जाते हैं, जिसमें मुस्लिम समुदाय के भोले भाले लोगों को गजवा ए हिंद के सपने दिखाकर उन्हें हिंदुस्तान की संविधान के प्रति भड़काया जाता है।
हिंदुस्तान में इस्लामी धर्म के अनुसार कानून की स्थापना करने का एक सपना गजवा ए हिंद का नाम दिया गया है।
जितने भी विकसित देश हैं जैसे अमेरिका कनाडा रूस इंग्लैंड यहां पर मुसलमान की आबादी कुल आबादी का लगभग एक प्रतिशत ही है। इसलिए यहां पर बहुत ही शांति व्यवस्था दिखाई देती है। लेकिन उस इस्लामिक कंट्री जिसमें उनकी संख्या 80% से भी अधिक है, वहां की स्थिति पाकिस्तान देश की तरह नजर आती है, जहां पर किसी और धर्म के लोगों को काफ़िर कहा जाता है उनके लिए जीने का कोई स्थान नहीं रहता है।

Click on the link अटल के पथ पर योगी जनसंख्या नियंत्रण पढ़ने के लिए यहां क्लिक किजिये ।

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