ओबीसी को खुश करने के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते हैं। लेकिन सबको खुश करने के लिए जनहितैषी कार्य नही होगा कुर्सी बचाने की राजनीति चरम पार देखी जा रही है जिसका भुक्तभोगी अभी लोकसभा चुनाव में भाजपा हो चुकी है, फिर भी जातिगत कुर्सी पर ही राजनीति चल रही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल अक्सर दिखाई देती रही है। ये सब नयी बात नहीं है। योगीराज में सबसे बड़ा मुद्दा लोगों को यह अच्छा लगा कि माफिया राज का अंत हुआ और कानून व्यवस्था दुरुस्त रही। लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह से उत्तर प्रदेश की सियासत में योगी का महत्व डाउन हुआ सीटेट कमाई मोदी का चेहरा भी छोटा हो गया। ऐसे में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का वर्चस्व बढ़ता हुआ नजर आ रहा है, तो यहीं पर RSS ने भाजपा के अंदर गोटी बैठाना शुरू कर दिया है, ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री बन सकते हैं ऐसी खबरें मिल रही है।
आइए इन खबरों की पड़ताल करें, क्या सच में केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं? अभी तो उत्तर प्रदेश के चुनाव में तीन साल का समय बचा हुआ है, क्या ऐसे में योगी को हटाकर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा? बीजेपी के अंदर साह और आरएसएस के मोहन भागवत के बयानों से हम इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि वास्तव में यूपी में बड़ा फेर बदल होने की संभावना है।
click on the link नौकरी के नाम पर बड़ा स्क्रैम योगीराज में पेपर लीक एक बड़ी समस्या

उत्तर प्रदेश के योगी सरकार के शासनकाल में पेपर लीक, बेरोजगारी और संविदा कर्मियों कि नाराजगी एक बड़ी समस्या सुरसा की तरह मुंह खोल खड़ी है। सीएम योगी आदित्यनाथ इस पर खरे उतर नहीं रहे हैं। उन पर ठाकुरवाद का भी आरोप लग रहा है। शिक्षा व्यवस्था की लचर स्थिति में भी इन 7 सालों में कोई बड़ा सुधार उत्तर प्रदेश में देखने को नहीं मिला। बैकवर्ड क्लास को रिझाने के लिए RSS की ओर से लगातार दबाव बन रहा है कि मुख्यमंत्री ओबीसी का होना जरूरी है, नहीं तो अगली बार उत्तर प्रदेश का चुनाव भी हार जाएंगे। तो यह सोच जमीनी स्तर से देखने पर निराधार प्रतिक हो रही है, क्योंकि जनता को जरुरी सुविधाओं से वंचित कर जातिगत कुर्सी का फेरबदल सत्ता कायम रखने का कोई स्थाई समाधान नही है। ओबीसी से मुख्यमंत्री हो जाने से न तो ओबीसी के युवाओं को नौकरी व रोजगार मिल जायेगा न सामान्य वर्ग से योगी आदित्यनाथ के रहते सामान्य वर्ग के युवाओं को नौकरी व रोजगार मिला। यहां सत्ता कायम रखने के लिए युवाओं को नौकरी व रोजगार देने कि जरुरत है न कि मुख्यमंत्री बदल सत्ता कायम रख पाना संभव है। ओबीसी से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सार्वजनिक नौकरी व रोजगार दिया था जो लोकसभा चुनाव में घोषणा किए प्रति वर्ष एक करोड़ नौकरी दिया जायेगा। उनके साथ ही राहुल गांधी के मेनिफेस्टो पर ध्यान देते हुए युवाओं ने इंडिया गठबंधन को वोट दिया। अखिलेश यादव को ओबीसी होने का लाभ नही बल्कि युवाओं को नौकरी व रोजगार दिए जाने का लाभ मिला है। बेरोजगारों के हित में काम करने वाले अखिलेश यादव की वजह से सभी जाति वर्ग का वोट गठबंधन को मिला। अब आगे उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के लायक युवा वर्ग अखिलेश यादव का चेहरा देख रहा है जिन्होंने पिछले अपनी सरकार मे सराहनीय कार्य नौकरी व रोजगार दिया।

योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री के रूप में यह दूसरा कार्यकाल है। लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा की करारी हार हुई है उत्तर प्रदेश की सिम गढ़ी गई है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में बीजेपी की राजनीति उत्तर प्रदेश में कमजोर होती चली जा रही है। जो वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शिक्षा मित्रों संविदा कर्मियों का मंच संभाला करते थे वो मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही शिक्षा मित्र सहित संविदा कर्मियों के विरोधी बन सत्ता चला रहे हैं और हर गांव में लगभग बीसों परिवार से लोग संविदा कर्मी हैं जो पूरी हठी सरकार से तरह खफा हैं। उत्तर प्रदेश के अंदर ही बीजेपी में भीतर घात के कारण भाजपाई नेता खुद ही एक दूसरे कैंडिडेट को हरवाने में लग रहे हैं। जातिगत समीकरण को भी सम्भाल नहीं पाए, अब आलाकमान को लगता है कि उत्तर प्रदेश मे ओबीसी जाति को खुश करने के लिए ओबीसी वर्ग से मुख्यमंत्री बनाने की आवश्यकता बीजेपी महसूस कर रही है। ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य जो इतने दिन से चुप बैठे थे वह अब दिल्ली में डेरा जमा चुके हैं, Rss मोहन भागवत से उनकी मुलाकात भी हो चुकी है। अब देखना है क्या समीकरण योगी के खिलाफ जा रहा है, ऐसे में ओबीसी वर्ग के चेहरे के रूप में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य नजर आ रहे हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है बीजेपी को संचालित करने वाली Rss इस पर तो मोहर अंदर ही अंदर लगा चुकी है। इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन के चलते बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में ज्यादातर वोटर गठबंधन में प्रधानमंत्री का चेहरा न होते हुए इंडिया गठबंधन समाजवादी पार्टी की ओर चला गया। ऐसे में उत्तर प्रदेश में भाजपा कमजोर नजर आ रही है। केंद्र में इसका असर साफ देखने को मिल रहा है। अपने बल पर बहुमत न पाने वाली भाजपा के लिए केंद्र मे सरकार गठबंधन के सहारे बनाना पड़ा है। उत्तर प्रदेश में जातिगत फैक्टर को संभाल भाजपा विधानसभा फतह की सपना देख रही है। महंगाई बेरोजगारी संविदा कर्मी की समस्या पुरानी पेंशन बहाल की मांग आदि समस्याओं पर जल्द असरदार कार्य नही हुआ तो विधानसभा 2027 भाजपा को नुकसान पहुंच सकता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव तीन साल में होने वाला है। ऐसे में उम्मीद लग रहा है कि केशव प्रसाद मौर्य को अब तीन साल के लिए मुख्यमंत्री पद दिया जा सकता है।
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