अमेरिका की हथियार लॉबी, डोनाल्ड ट्रंप की रणनीति और यूक्रेन युद्ध के पीछे की असली साजिश को समझें। कैसे अमेरिका युद्ध भड़काकर आर्थिक और सामरिक लाभ उठाता है, और ट्रंप ने भारत की पोल खोलकर क्या संदेश दिया? जानिए डोनाल्ड ट्रंप का भारत के खिलाफ व्यान बाजी के बाद इस विश्लेषणात्मक लेखनी में भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में अमेरिका की हथियार लॉबी, डोनाल्ड ट्रंप रणनीति, यूक्रेन युद्ध साजिश, भारत-अमेरिका संबंध, वैश्विक शक्ति संतुलन मुद्दों पर विशेष जानकारी।
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अमेरिकी राजनीति और विदेश नीति को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम सिर्फ सतही घटनाओं को न देखें, बल्कि उन नीतियों और गुप्त उद्देश्यों को समझने की कोशिश करें जो वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करते हैं। डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने यूक्रेन संकट को लेकर जो रुख अपनाया है, वह केवल मानवता, लोकतंत्र या न्याय से प्रेरित नहीं है, बल्कि इसके पीछे बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामरिक हित छिपे हुए हैं।
एक देहाती कुछ कहावत है कि दुधारू गाय का दो चार लात भी बर्दास्त किया जाता है। हाथी चलती रहती है कुत्ते भोंकते रहते हैं। भला शेर के सामने कौन टिकता है। डोनाल्ड ट्रंप का भारत के खिलाफ व्यान बाजी के बाद यह कहावत कुछ गिने-चुने देशों और लोगों पर सटीक बैठती है, जैसे भारत पर भी। अमेरिका कुछ देशों के लिए एक दुधारू गाय के समान है, जो दुधारू गाय का दूध खायेगा वो तो दुधारू गाय का दो चार लात खाकर खिलाफ बोल भी नहीं सकता।
चीन जैसे आत्मनिर्भर देश तो सह भी नहीं सकता, वो डोनाल्ड ट्रंप के वक्तव्य का तुरंत जबाब दे दिया, चीन अमेरिकी टैरिफ नीतियों का मुकाबला करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहा है। वहीं ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री मुते बोर्गे एगेडे ने स्पष्ट रूप से कहा कि ग्रीनलैंड के लोग न ही डेनिश बनना चाहते और ना ही कोई अमेरिकी बनना चाहता है। डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ कम पर भारत की पोल खोलने कि बात कह रहे हैं, इसपर कुछ कह रहे हैं भारत चुप्पी साधे हुए है।
डोनाल्ड ट्रंप को क्या पता? भारत विश्व गुरु बनने के पथ पर अग्रसर है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शेर के साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं, डोनाल्ड ट्रंप क्या शेर को देखकर रुक भी सकेगें? विचारणीय बात भारत का पोल खोलने कि बात ट्रंप ने कहा और विश्व गुरू बनने की राह पर ले जाने वाले भारतीयों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत दूर तक देखते हैं और सोचते हैं। इसलिए ट्रंप के व्यान बाजी पर मुस्कुराते नज़र आते हैं।
यह भी तो सच है न कि अमेरिका भारत के लिए दुधारू गाय जैसा है, तभी तो भारतीय गोदी मीडिया भी इस ट्रंप के व्यान बाजी पर विरोध नही करती। करे भी कैसे अमेरिका के न्यायालय में प्रधानमंत्री के चहेते का जो मामला लटका हुआ है।

युद्ध के पीछे अमेरिका की असली मंशा
अगर हम गहराई से देखें, तो यूक्रेन संकट में अमेरिका का सीधा हस्तक्षेप महज एक संयोग नहीं है, बल्कि इसे सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया है। हथियार लॉबी, सैन्य ठेकेदार, और अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान—ये सभी इस युद्ध को भड़काने और इसका फायदा उठाने के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिका की इस नीति को समझने के लिए हमें कुछ मुख्य बिंदुओं पर गौर करना होगा।
1. अमेरिका की हथियार लॉबी: युद्ध का असली कारण
अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनियां युद्ध से मुनाफा कमाती हैं। जब भी कोई बड़ा सैन्य संघर्ष होता है, इन कंपनियों के शेयर आसमान छूने लगते हैं। इराक युद्ध, अफगानिस्तान संघर्ष और अब यूक्रेन संकट—हर बार हथियार उद्योग ने अकूत संपत्ति अर्जित की है। अमेरिकी नीति निर्माताओं को यह भली-भांति पता है कि जब दुनिया में युद्ध की स्थिति बनी रहेगी, तभी उनकी अर्थव्यवस्था में पैसा आता रहेगा।
2023 में, अमेरिका ने यूक्रेन को 50 अरब डॉलर से अधिक की सैन्य सहायता दी। यह पैसा सीधे अमेरिकी हथियार कंपनियों को जाता है, जो हथियारों का उत्पादन करती हैं।
नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन, लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन जैसी कंपनियों के शेयरों में यूक्रेन युद्ध के दौरान भारी उछाल आया।
अमेरिका का लक्ष्य केवल रूस को रोकना नहीं है, बल्कि अपने हथियार उद्योग को फलने-फूलने का अवसर देना भी है।
2. रूस को चीन से अलग करने की कोशिश
अमेरिका अच्छी तरह जानता है कि रूस और चीन की बढ़ती नजदीकी उसके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। अगर ये दोनों शक्तिशाली राष्ट्र एक हो गए, तो अमेरिका की वैश्विक सत्ता को गंभीर चुनौती मिलेगी। इसलिए, अमेरिका रूस को चीन से अलग करने के लिए यूक्रेन संकट को एक “बाजारू सौदेबाजी” की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
अमेरिका चाहता है कि रूस को ऐसा लगे कि चीन के बजाय अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारना उसके लिए फायदेमंद है।
यूक्रेन संकट में रूस को उलझाकर अमेरिका चीन के लिए एक अलग मोर्चा खोलना चाहता है, जिससे चीन की सैन्य और आर्थिक ताकत कमजोर हो।
यह रणनीति भारत के लिए भी उपयोगी हो सकती है, क्योंकि भारत रूस और चीन के बढ़ते गठजोड़ से असहज महसूस कर रहा था। मैने कहा कि दुधारू गाय का दो चार लात भी बर्दास्त करना पड़ता है, भारत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत दूर तक देखते हैं, तभी तो वो डोनाल्ड ट्रंप के भारत के खिलाफ व्यान बाजी पर मुस्कुराते नज़र आये हैं।
यह बात मोदी विरोधी कहां समझ सकते हैं। मोदी क्यों ट्रंप के बयान पर मुस्कुरा रहे हैं? और भारतीय मीडिया ट्रंप के व्यान बाजी पर क्यों चुप्पी साधे गुणगान कर रही है? यहां वह देहाती कहावत दो मुद्दे पर एक तो अडानी का अमेरिका में फंसा मामला, दूसरा चीन को कमजोर करने कि डोनाल्ड ट्रंप कि कोशिश पर चरितार्थ होती दिख सकती है। भले ही अमेरिकी रवैये से भारत में आर्थिक संकट ही क्यों ना उत्पन्न हो जाए, उससे क्या लेना देना है।
3. आर्थिक और सामरिक दबदबे की रणनीति
यूक्रेन संकट सिर्फ सैन्य संघर्ष नहीं है, बल्कि यह आर्थिक खेल भी है। अमेरिका का मकसद यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेना और यूरोप पर अपनी पकड़ मजबूत करना है।
यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े गेहूं उत्पादकों में से एक है। अमेरिका चाहता है कि उसकी कंपनियां इस बाजार पर कब्जा करें।
अमेरिका यूरोप को रूसी गैस पर निर्भरता से मुक्त कराकर अपनी महंगी LNG (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) बेचना चाहता है।
अमेरिका यूक्रेन में सैन्य अड्डा बनाकर रूस की सीमाओं तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है।
4. इतिहास से सबक: अमेरिका की पुरानी चालें
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने किसी देश में युद्ध भड़काने के बाद वहां अपनी सैन्य उपस्थिति दर्ज कराई हो।
इराक युद्ध 1991, 2003: अमेरिका ने पहले इराक और कुवैत के बीच विवाद में निष्क्रियता दिखाई और फिर इराक को आक्रमण के लिए उकसाया। बाद में खुद हस्तक्षेप कर दिया।
अफगानिस्तान 2001-2021: आतंकवाद के नाम पर अमेरिका ने 20 साल तक इस देश में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी और अपने सैन्य ठेकेदारों को भारी मुनाफा दिलाया।
सीरिया 2011-2020: अमेरिका ने पहले विद्रोहियों को समर्थन दिया और फिर अपने सैनिक भेजकर वहां के तेल संसाधनों पर नियंत्रण कर लिया।
5. भारत और दुनिया के लिए क्या मायने हैं?
भारत के लिए यह स्थिति दोनों तरह से प्रभाव डाल सकती है।सकारात्मक पक्ष यह है कि अमेरिका रूस और चीन के बीच दूरी बनाकर भारत को रणनीतिक लाभ दे सकता है।
नकारात्मक पक्ष यह है कि अगर अमेरिका यूक्रेन में सैन्य अड्डा बना लेता है, तो यह रूस को और उकसाएगा, जिससे वैश्विक तनाव और बढ़ेगा।
भारत को सावधानी से अमेरिका की चालों को समझना होगा और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखनी होगी।
युद्ध एक योजना है, महज संयोग नहीं
अमेरिकी राजनीति को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम इसके पीछे के आर्थिक और रणनीतिक कारकों को जानें। यूक्रेन युद्ध केवल लोकतंत्र या न्याय की रक्षा के लिए नहीं लड़ा जा रहा, बल्कि यह अमेरिका की पुरानी रणनीति का हिस्सा है—युद्ध भड़काओ, हथियार बेचो, संसाधनों पर कब्जा करो, और वैश्विक प्रभुत्व बनाए रखो। हमें अमेरिकी हस्तक्षेप की असली मंशा को पहचानना होगा और यह समझना होगा कि युद्ध केवल सैन्य संघर्ष नहीं होता, बल्कि यह सत्ता और व्यापार की एक गहरी साजिश होती है।

डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की पोल क्यों खोली?
डोनाल्ड ट्रंप कोई साधारण नेता नहीं हैं—वे एक बिजनेसमैन की मानसिकता के साथ राजनीति करते हैं। उनके हालिया बयान, जिसमें उन्होंने भारत को लेकर चौंकाने वाली बातें कही हैं, महज संयोग नहीं हैं, बल्कि इसके पीछे एक गहरी रणनीति छिपी हुई है। ट्रंप जानते हैं कि अमेरिका के वैश्विक वर्चस्व में भारत एक महत्वपूर्ण मोहरा बन चुका है, जिसे काबू में रखना जरूरी है। भारत ने हाल के वर्षों में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और रूस से संबंधों को संतुलित बनाए रखा है, जिससे अमेरिका पूरी तरह संतुष्ट नहीं है।
ट्रंप का यह बयान भारत पर दबाव बनाने और मोदी सरकार को स्पष्ट संदेश देने के लिए दिया गया है कि अगर भारत ने अमेरिका की लाइन से हटकर कोई कदम उठाया, तो उसे राजनीतिक और आर्थिक तौर पर झटके दिए जा सकते हैं। इसके अलावा, ट्रंप का इशारा भारतीय उद्योगपतियों और सत्ता प्रतिष्ठान के उन पहलुओं की ओर भी था, जिन पर अमेरिका का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। ट्रंप की यह ‘पोल खोलने’ वाली चाल सिर्फ उनकी बेबाकी नहीं, बल्कि अमेरिका की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने सहयोगियों को भी अपनी शर्तों पर चलाने की कोशिश करता है।
अब सवाल यह है कि भारत इस चुनौती का जवाब कैसे देगा—क्या वह अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए अमेरिका की कूटनीति का सामना करेगा, या फिर अमेरिका को दुधारू गाय समझ बेतुकी बातों समान लात सहते हुए खामोश रहेगा? यह तो आने वाले समय में ही देखने को मिलेगा की भारत क्या रुख अख्तियार करता है।
https://youtu.be/t4ERSuVYcyU?si=STaD3jwyyQOu-C1u

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