पिछले दशक में भारत और चीन के बीच संबंध जटिल रहे हैं। मोदी सरकार के दौरान, चीन पर भारत की आर्थिक निर्भरता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई है। सरकार ने शुरुआत में चीनी सामान के बहिष्कार का जोर-शोर से प्रचार किया। लेकिन इसके बावजूद, वास्तविकता यह है कि चीनी कंपनियों को भारत में काम करने के लिए वीजा देने का सिलसिला जारी है।
चीनी सामान का बहिष्कार: एक प्रोपेगेंडा:
सरकार ने अपने आईटी सेल और गोदी मीडिया के माध्यम से चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चलाया। इसका उद्देश्य राष्ट्रवाद की भावना को भड़काना था। हालांकि, यह एक रणनीति थी ताकि जनता अन्य मुद्दों से ध्यान हटाकर इन भावनात्मक विषयों पर केंद्रित रहे। जब भी जनहितैषी मुद्दे जनता ने उठाया सरकार कोई न कोई प्रोपेगेंडा बना जनता के मूल ध्यान को हटाने का सफल प्रयास करती रही है। इस बार मजबूत विपक्ष जनहित में काम होने की संभावना को बढ़ा रही है।
आर्थिक निर्भरता का यथार्थ:

वास्तविकता में, भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा चीन से आयातित उत्पादों पर निर्भर है। चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक्स हो या फार्मास्यूटिकल्स, चीन की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है। भारत में चीनी निवेश भी कई क्षेत्रों में बढ़ा है, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूती पकड़ रहे हैं।
चुनौतियाँ और समाधान:
इस परिस्थिति में, यह आवश्यक है कि भारत अपनी आर्थिक रणनीति पर पुनर्विचार करे। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। इसके अलावा, जनता को जागरूक करना और विदेशी निवेश की जरूरतों का संतुलन बनाना भी आवश्यक है।
भारत की चीन पर निर्भरता और सरकार की नीतियों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस दिशा में पारदर्शिता और सटीक नीतियों की आवश्यकता है, ताकि भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता को बनाए रखते हुए वैश्विक संबंधों का भी सम्मान कर सके।