मेरी अंतरात्मा की आवाज सुन लो, हे एफबी दोस्तों!

Amit Srivastav

गोदी मीडिया । मेरी अंतरात्मा की आवाज सुन लो, हे एफबी दोस्तों!

किसी राजनीतिक दल के समर्थक के रूप में लोग अपनी मर्यादा भूल रहे हैं, ऐसे लोगों को अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट से बाहर करने का वक्त आ गया है। ‌कुछ एफबी फ्रेंड राजनीतिक दल के प्रचारक के रूप में उलूल-जुलूल की पोस्ट करते हुए नजर आ रहे हैं।
अगर आपने किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर ली है, तो अच्छी बात है; उसकी भी घोषणा फेसबुक पर कर दीजिए। ताकि आपके फेसबुक दोस्तों और हमें पता चल जाए। ‌ताकि लोग आपकी भावनाओं को समझ पाए। ‌

खट्टी-मीठी

मेरी अंतरात्मा की आवाज सुन लो, हे एफबी दोस्तों!

और ऐसे लोग जो किसी राजनीतिक दल के समर्थन में इस हद तक गिर जाते हैं, कि गाली-गलौच और नफरत की पोस्ट डाल रहे हैं। उन्हें यहां से आउट करना जरूरी है।
और वह पत्रकार जो किसी राजनीतिक दल के लिए लिखते पढ़ते हैं। वह भी साफ-साफ बता दें कि जनता के लिए पत्रकारिता करते हैं, कि किसी पार्टी विशेष के लिए वे समर्पित हैं।‌ वैसे उनके पिछले पांच साल के पोस्ट और विचारों से तो पता चल जाता है। हम लोग भी अपना माइंड सेट कर ले, आपको सीरियस ना ले।
जैसे आप हैं, वैसे आपके फॉलोअर होंगे।
और इस भाषण के साथ हाल में तालियां चटकने लगी।
एक राजनीतिक दल के नेता ने इस तरह का भाषण दे डाला।‌ चारों ओर हड़कम मच गई। ‌
भाई यह क्या हुआ! सब दनादन गरदन घूमाने लगे। ‌क्या दिमाग उनका फिर गया है, कुछ तो आपस में यही बोलकर गुनगुनाने लगे।
नेता जी भाषण देने के लिए उठे थे और अंतरात्मा उनकी जाग गई है। ‌भाषण देने वाले परम आदरणीय नेता की अंतरात्मा फिर शरीर के अंदर चली गई, तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। माइक के सामने बोला, “जो मैंने बोला, उसे डिलीट समझो।”
विपक्षी लोग हंसने लगे, पक्ष वाले किसी तरह का रिएक्शन न करने का नाटक करने लगे और तो और वह नेता था बड़ा तो कुछ इशारों ही इशारों में नेताजी का चरण वंदन करने लगे। नेताजी की अंतरात्मा वाला भाषण, किसी मीडिया में नहीं छापा गया, न दिखाया गया।
हम अपने दर्शक दीर्घा की खंडित कुर्सी पर बैठे, गोदी मीडिया के स्क्रीन मोबाइल पर रील सरका रहे थे, हमें रील से मतलब था रियल से नहीं। व्यंग्य  का मर्म रील में नजर आ रहा था। ‌तभी वहीं ऊंघता हुआ असली वाला व्यंग्यकार की आत्मा ने हमें समझाया। ‌ देखो भैया! व्यंग्य लिखना हमारा काम है, आपका नहीं। असफल प्रयास मत करो।
व्यंग्य लेख : amitsrivastav.in टीम से अभिषेक कांत पांडेय

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