महायक्षिणी एक अत्यंत रहस्यमयी और शक्तिशाली तांत्रिक देवी हैं, Mahayakshini का उल्लेख तंत्र शास्त्र, यक्षिणी साधनाओं और गुप्त विद्याओं से संबंधित ग्रंथों में मिलता है। तंत्र मार्ग में यह सिद्धियों, ऐश्वर्य और वशीकरण की परम अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। महायक्षिणी की साधना को अत्यंत कठिन और गोपनीय माना जाता है, इन्हें केवल उच्च कोटि के तांत्रिक ही सिद्ध कर सकते हैं। इनकी साधना में लेस मात्र का भी अशुद्धि क्षम्य नही होती है।
इस साधना को शुरू करने से पहले ही सम्पूर्ण विधि-विधान कि जानकारी आवश्यक होती है। जानिए इस लेख में माँ कामाख्या देवी की कृपा से भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में महालक्ष्मी साधना के लिए विधि-विधान मंत्र आदि कि जानकारी। जय मां आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा 51 शक्तिपीठों में प्रथम स्थान प्राप्त तंत्र-मंत्र साधना कि सर्वोच्च योनि रुपा सृष्टि की जननी माँ कामाख्या देवी। जानिए महायक्षिणी का स्वरूप और महत्व क्रमशः सम्पूर्ण जानकारी।
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महायक्षिणी “Mahayakshini” कौन हैं?

महायक्षिणी को तंत्र विद्या में यक्षिणियों की सर्वोच्च देवी माना गया है। उन्हें महाशक्ति का अवतार भी कहा जाता है, जो साधकों को धन, ऐश्वर्य, वशीकरण, आकर्षण, सिद्धियाँ और अनेक तांत्रिक शक्तियाँ प्रदान करती हैं।
महायक्षिणी के कुछ प्रमुख स्वरूप
मोहिनी महायक्षिणी – प्रेम, आकर्षण और वशीकरण में सहायक देवी मोहिनी महायक्षिणी की स्वरूप हैं।
कालरात्रि महायक्षिणी – शत्रु नाश और सुरक्षा प्रदान करने वाली देवी कालरात्रि महायक्षिणी की स्वरूप हैं।
विद्यादायिनी महायक्षिणी – ज्ञान और तंत्रविद्या में निपुणता देने वाली देवी विद्या दायिनी महायक्षिणी की स्वरूप हैं।
धनदायिनी महायक्षिणी – धन, ऐश्वर्य और समृद्धि देने वाली देवी धनदायिनी महायक्षिणी की स्वरूप हैं।
यक्षिणियाँ और महायक्षिणी का स्थान
यक्षिणियाँ हिंदू तांत्रिक परंपरा में देवी लक्ष्मी की सहचरी मानी जाती हैं, जो धन, ऐश्वर्य और सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। महायक्षिणी सभी यक्षिणियों मे प्रमुख देवी यक्षिणी हैं।
मुख्य यक्षिणियाँ
कामरूपी यक्षिणी – इच्छानुसार रूप परिवर्तन की शक्ति देती हैं।
मदनस्वरूपी यक्षिणी – वशीकरण और आकर्षण की सिद्धि देती हैं।
अष्टलक्ष्मी यक्षिणी – समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।
महायक्षिणी इन सभी यक्षिणियों की प्रधान देवी यक्षिणी मानी जाती हैं और इनमें समस्त तांत्रिक शक्तियाँ समाहित होती हैं। इनकी सिद्धि प्राप्त साधकों को अन्य यक्षिणी साधना कि आवश्यकता नहीं पड़ती। यह महायक्षिणी सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण करती हैं।
महायक्षिणी साधना Mahayakshini Sadhana
महायक्षिणी साधना Mahayakshini Sadhana अत्यंत कठिन और गोपनीय होती है। इसे बिना गुरु के करना अनुचित और हानिकारक हो सकता है। इन कि साधना शुरू करने से पहले ही एक योग्य गुरु कि तलाश आवश्यक है, साथ ही साधना के लिए उपयुक्त स्थान का होना जरूरी है। अगर साधना के इच्छुक व्यक्ति वर्तमान के असम राज्य गुवाहाटी के समीप ब्रह्मपुत्र नदी तट पर स्थित निलांचल पर्वत पर माँ कामाख्या देवी के पवित्र एवं सुरक्षित स्थान मे बैठकर साधना करे तो उत्तम फलदायी होगा।
जून माह के अंबुबाची पर्व पर यहाँ विश्व भर के तांत्रिक अपनी तंत्र-मंत्र साधना विद्या की सिद्धि के लिए आते हैं। मां कामाख्या देवी से बड़ा गुरु और सुरक्षित स्थान तंत्र-मंत्र साधना के लिए हमारे दृष्टिकोण से दूसरा कोई नहीं है। साधक अपने गुरु के संरक्षण में और उपयुक्त अन्य उपयोगी स्थानों में भी साधना कर सकता है।
महायक्षिणी साधना की आवश्यकताएँ
(i) महायक्षिणी साधना में गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य
महायक्षिणी की साधना करने के लिए एक योग्य गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है। बिना गुरु के साधना करने से विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
(ii) महायक्षिणी साधना स्थल
महायक्षिणी साधना श्मशान, एकांत कक्ष, सिद्ध स्थान या किसी विशेष तांत्रिक क्षेत्र में की जाती है। सबसे सर्वश्रेष्ठ स्थान तांत्रिक साधना के लिए कामाख्या शक्तिपीठ माना गया है। साधक कोई भी साधना अपनी-अपनी व्यवस्था और आवश्यकतानुसार कहीं भी करने के लिए स्वतंत्र है। कामाख्या देवी मंदिर साधना स्थल सर्वोच्च स्थान है।
(iii) महायक्षिणी साधना के नियम
साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साधना के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। साधक के लिए मानसिक और आत्मिक शुद्धता आवश्यक है। गुरु द्वारा दी गई विधि का ठीक से पालन करना चाहिए। गुरु के ज्ञान पर लेशमात्र मन में संदेश साधक के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
माता की इच्छा के बिना यहां तक पहुंच पाना हर किसी के लिए नामुमकिन होता है। यहां तक कि यहां आये श्रद्धालु भी मां के इच्छा के बिना दर्शन से भी वंचित हो जाता है। यहां स्थापित योनि भाग गर्भगृह में प्रकाश कि विस्तृत व्यवस्था नही रहती और योनि भाग तक जाने का मार्ग संकुचित है। जिन भक्तों पर माँ कि कृपा होती है वही योनि भाग से श्रावित अमृत जल का स्पर्श और योनि भाग का दर्शन पाता है।
महायक्षिणी मंत्र साधना
महायक्षिणी के मंत्र अत्यंत प्रभावशाली होते हैं और इनका उच्चारण शुद्धता और विधि-विधान से करना अनिवार्य होता है। तो आइये महायक्षिणी मंत्र को जानिए और इसका शुद्ध अभ्यास किजिए सभी विधि-विधान को समझने के बाद योग्य गुरु या कामाख्या तांत्रिक क्षेत्र का चयन कर अपनी साधना को पूर्ण करने का सफलतापूर्वक प्रयास सम्पन्न करें।
(i) साधारण मंत्र – ॐ ह्रीं महायक्षिण्यै नमः
इस मंत्र का जप 1,25,000 बार करने से महायक्षिणी की कृपा प्राप्त हो सकती है।
(ii) तांत्रिक महायक्षिणी मंत्र – ॐ ह्रीं क्लीं महायक्षिणी स्वाहा
यह मंत्र विशेष तांत्रिक प्रयोगों के लिए उपयोग किया जाता है और इसे उपयुक्त स्थान पर गुरु के मार्गदर्शन में ही सिद्ध किया जाता है।
महायक्षिणी साधना की प्रक्रिया
(i) महायक्षिणी साधना का समय और अवधि
साधना पूर्णिमा, अमावस्या, नवरात्रि या किसी विशेष ज्योतिषीय संयोग में करनी चाहिए। इसे सामान्य स्थानों पर 21, 41 या 108 दिनों तक किया जा सकता है।
(ii) महायक्षिणी साधना की विधि
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। रक्त या लाल रंग का आसन प्रयोग करें।महायक्षिणी का यंत्र (यदि उपलब्ध हो) स्थापित करें। मंत्र का जप माला से करें (रुद्राक्ष या स्फटिक माला उत्तम मानी जाती है)। साधना के दौरान पूर्ण एकाग्रता बनाए रखें। मन मे किसी भी प्रकार का भ्रम या भय न पालें। तन-मन को साधना के दौरान पवित्र रखें।
महायक्षिणी साधना के लाभ
महायक्षिणी साधना साधक को असाधारण शक्तियाँ प्रदान कर सकती है।
आध्यात्मिक और तांत्रिक लाभ – उच्च कोटि की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। वशीकरण, आकर्षण और मोहन शक्ति मिलती है। साधक को तांत्रिक क्रियाओं में निपुणता प्राप्त होती है।
भौतिक लाभ – धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।व्यापार और व्यवसाय में वृद्धि होती है। पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
सुरक्षा और शत्रु नाश – साधक को अदृश्य सुरक्षा कवच प्राप्त होता है। शत्रु और विरोधियों से मुक्ति मिलती है। बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा होती है।
महायक्षिणी साधना से संबंधित सावधानियाँ
महायक्षिणी साधना अत्यंत शक्तिशाली होती है और इसमें छोटी-सी गलती भी घातक सिद्ध हो सकती है। गुरु के बिना साधना न करें, बिना गुरु के साधना करना जोखिम भरा हो सकता है। गलत विधि से साधना करने पर अनिष्ट हो सकता है।
शुद्धता और नियमों का पालन करें – साधना के दौरान पूर्ण शुद्धता बनाए रखें। किसी भी प्रकार का अधार्मिक कार्य न करें। मन को साफ रखें गलत मानसिकता को मन मे पालकर साधना न करें क्योंकि अनिष्टकारी हो सकता है।
सिद्धि प्राप्ति के बाद संयम बरतें – किसी भी सिद्धि का दुरुपयोग न करें। सिद्धियों का प्रयोग परोपकार और आत्मिक उन्नति के लिए करें। सिद्धियों कि प्राप्ति के बाद भी जब सिद्धि का दुरुपयोग साधक शुरू कर देता है तो सिद्धियाँ नष्ट होते देर नही लगती। और दुष्परिणाम भी भोगना पड़ता है।
महायक्षिणी एक अत्यंत शक्तिशाली तांत्रिक देवी हैं, जिनकी साधना अत्यधिक रहस्यमयी और प्रभावशाली मानी जाती है। यह साधना साधक को सिद्धियाँ, धन, ऐश्वर्य, सुरक्षा और आत्मिक उन्नति प्रदान कर सकती है, लेकिन इसके लिए अत्यधिक संयम और गुरु मार्गदर्शन आवश्यक होता है। यदि इस साधना को सही विधि से किया जाए, तो साधक को असाधारण शक्तियाँ और महायक्षिणी देवी की कृपा प्राप्त हो सकती है। लेकिन इस साधना को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि किसी भी प्रकार की गलती साधक के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
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