यक्षिणी और योगिनी में अंतर: यक्षिणी का इतिहास, नाम, मंत्र और सिद्ध करने की विधि-विधान

Amit Srivastav

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यक्षिणी और योगिनी में अंतर – तंत्र-मंत्र साधना विद्या से सम्बंधित हमारी लेखनी तांत्रिकों की देवी लोना चमारिन, गुरु गोरखनाथ, सोरठी- विरजाभार और जादूगरनी हिरीया – जिरीया, फिर 64 योगिनियों की तंत्र-मंत्र साधना सम्पूर्ण विधि-विधान जानकारी आप सब ने हमारी पिछली लेखनी से पढ़ा उसी क्रम में आज पढ़िए यक्षिणी और योगिनी में अंतर और 36 यक्षिणियों का मंत्र साधना सम्पूर्ण विधि-विधान भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम से।

Table of Contents

1. परिभाषा और प्रकृति:

यक्षिणी: यक्षिणियाँ हिंदू, जैन, और बौद्ध पौराणिक कथाओं में अद्भुत स्त्री देवियाँ हैं, जो विशेष रूप से धन, समृद्धि, और भौतिक सुख प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। यक्षिणियाँ आमतौर पर यक्षों की पत्नियाँ होती हैं और प्रकृति के दैवीय रूप मानी जाती हैं।

योगिनी: योगिनियाँ तंत्र साधना से जुड़ी शक्तिशाली स्त्री दिव्य सत्ताएँ हैं, जो साधक को आध्यात्मिक ज्ञान, शक्ति, और सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। इन्हें विशेष रूप से तांत्रिक और योग साधना में महत्वपूर्ण माना जाता है।

2. यक्षिणी और योगिनी में अंतर भूमिका और उद्देश्य:

यक्षिणी का उद्देश्य: यक्षिणियों का प्रमुख उद्देश्य साधक की भौतिक इच्छाओं को पूरा करना होता है, जैसे धन प्राप्ति, समृद्धि, वैभव, और सुख-शांति। ये अधिकतर सांसारिक और भौतिक लाभों से संबंधित हैं।

योगिनी का उद्देश्य: योगिनियाँ साधक को उच्च आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाती हैं और उसे गूढ़ तंत्र साधनाओं और योग सिद्धियों में सहायता करती हैं। योगिनियाँ आत्मज्ञान, ध्यान और अंतरज्ञान की शक्ति साधक को देने का काम करती हैं।

3. उपस्थिति:

यक्षिणी: यक्षिणियाँ सुंदर और आकर्षक रूप धारण करती हैं, जो साधारण व्यक्ति को मोहित कर सकती हैं। वे अक्सर धन और वैभव का प्रतीक होती हैं।

योगिनी: योगिनियाँ साधारण से अधिक अलौकिक रूप धारण करती हैं। उनका स्वरूप साधारण हो सकता है, परंतु वे अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली होती हैं।

4. साधना में स्थान:

यक्षिणी साधना: यक्षिणियों की साधना मुख्य रूप से सांसारिक इच्छाओं और लाभों को पाने के लिए की जाती है। यक्षिणियों की साधना आसान मानी जाती है और साधक को जल्द परिणाम देती है।

योगिनी साधना: योगिनी साधना तंत्र मार्ग में कठिन मानी जाती है। यह साधक की मानसिक और आध्यात्मिक क्षमता को परखती है। योगिनी साधना से साधक को उच्चतर सिद्धियाँ और शक्तियाँ मिलती हैं।

5. प्रसिद्धि और कथाएँ:

यक्षिणी: यक्षिणियों से जुड़ी कथाएँ मुख्य रूप से धन की देवी लक्ष्मी, अलकापुरी, और कुवेर की कहानियों में मिलती हैं। उन्हें कई जगहों पर धन और वैभव की रक्षक माना जाता है।

योगिनी: योगिनियों के बारे में कई तांत्रिक ग्रंथों और शैव धर्म की परंपराओं में उल्लेख मिलता है। ‘64 योगिनियों’ की पूजा और उनका महत्व प्राचीन भारत की तांत्रिक परंपराओं में मुख्य रूप से मिलता है।

6. पूजन विधि:

यक्षिणी की पूजा: यक्षिणियों की पूजा अधिकतर धन प्राप्ति और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसमें मंत्र, स्तुति, और तांत्रिक साधनाओं का प्रयोग होता है।

योगिनी की पूजा: योगिनियों की पूजा तंत्र साधनाओं के जटिल नियमों के अंतर्गत होती है। यह साधना गूढ़ और लंबे समय तक की जाने वाली होती है, जो साधक को मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।

यक्षिणी और योगिनी में अंतर: यक्षिणी का इतिहास, नाम, मंत्र और सिद्ध करने की विधि-विधान

यक्षिणी और योगिनी दोनों ही शक्तिशाली स्त्री दैवीय सत्ताएँ हैं, लेकिन उनके उद्देश्यों और साधना मार्गों में स्पष्ट अंतर है। यक्षिणी सांसारिक लाभों के लिए पूजी जाती हैं, जबकि योगिनी साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करती हैं और उच्च सिद्धियों की प्राप्ति में सहायता करती हैं।

आप पढ़ रहे हैं भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज अमित श्रीवास्तव की 64 योगिनियों के बाद 36 यक्षिणियों पर विशेष लेखनी।

यक्षिणी, भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित दिव्य स्त्री शक्तियाँ हैं, जिनका संबंध यक्षों से होता है। यक्षिणियाँ भारतीय धर्मों जैसे हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनका इतिहास और उनका विकास विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों से प्रेरित है।

1. प्रारंभिक संदर्भ (वेदों और पुराणों में)

यक्ष और यक्षिणियों का प्राचीनतम उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है। यक्षों को प्राकृतिक शक्तियों के रूप में माना गया, जो जंगलों, नदियों, पर्वतों और खजानों की रक्षा करते थे। यक्षिणियाँ इन यक्षों की संगिनी मानी जाती थीं। यक्ष और यक्षिणियों का संबंध भूमि और प्रकृति की रक्षा करने वाले दैवीय प्राणियों से था।

वेदों में यक्षिणियों का विशेष रूप से वर्णन नहीं मिलता, लेकिन पुराणों और रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में इनका उल्लेख है। इन ग्रंथों में यक्षिणियाँ कुवेर की सहयोगी और उनकी अलकापुरी में रहने वाली दैवी स्त्रियाँ मानी जाती हैं।

2. बौद्ध और जैन साहित्य में यक्षिणियाँ

बौद्ध धर्म में यक्षिणियाँ विभिन्न स्थानों पर दैवीय शक्तियों के रूप में चित्रित होती हैं। बौद्ध धर्म के ग्रंथों में यक्ष और यक्षिणियों को शक्तिशाली परियों और देवताओं के रूप में देखा जाता है, जो बुद्ध धर्म के रक्षक हैं। बौद्ध मूर्तिकला में यक्षिणियों को मंदिरों और स्तूपों की रक्षा करते हुए भी चित्रित किया गया है।

जैन धर्म में यक्षिणियों को तंत्र साधनाओं और देवी के रूप में पूजा जाता है। जैन तीर्थंकरों की सुरक्षा करने वाली यक्षिणियाँ प्राचीन जैन मंदिरों में प्रमुख रूप से दिखती हैं। जैन धर्म के अनुसार, यक्षिणियाँ तीर्थंकरों की सहायक होती हैं और उनकी सुरक्षा करती हैं।

3. कला और मूर्तिकला में यक्षिणियाँ

प्राचीन भारतीय कला और मूर्तिकला में यक्षिणियों को अत्यंत सुंदर और आकर्षक रूप में चित्रित किया गया है। मौर्य काल में यक्षिणियों की मूर्तियों का प्रमुख रूप से निर्माण हुआ। सांची स्तूप, भरहुत स्तूप, और मथुरा की कला में यक्षिणियों की मूर्तियाँ प्रमुख रूप से देखी जा सकती हैं। ये मूर्तियाँ न केवल धार्मिक महत्त्व रखती हैं, बल्कि इन्हें सुंदरता और शारीरिक आकर्षण का प्रतीक भी माना जाता है।

मौर्य काल में पाई गई यक्षिणी मूर्तियाँ, जैसे दीदारगंज यक्षिणी, भारतीय मूर्तिकला की उत्कृष्ट कृतियाँ मानी जाती हैं। ये मूर्तियाँ यक्षिणियों की भव्यता और सौंदर्य का उदाहरण हैं।

4. यक्षिणी साधना और तांत्रिक परंपराएँ

भारतीय तांत्रिक परंपराओं में यक्षिणियों की साधना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यक्षिणी साधना मुख्य रूप से तंत्र साधकों द्वारा की जाती है, जो विशेष मंत्रों और अनुष्ठानों के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। यक्षिणियों को धन, समृद्धि, और सौंदर्य की देवी के रूप में पूजा जाता है। तांत्रिक साधना में यक्षिणियाँ साधक को भौतिक इच्छाओं की पूर्ति और आत्मिक संतुलन प्रदान करती हैं।

प्रमुख यक्षिणियाँ:

यक्षिणी और योगिनी में अंतर: यक्षिणी का इतिहास, नाम, मंत्र और सिद्ध करने की विधि-विधान

मणिभद्रा यक्षिणी: जिन्हें धन और समृद्धि की देवी माना जाता है।

पद्मावती यक्षिणी: जैन धर्म में पूजी जाने वाली देवी, जो तीर्थंकर पार्श्वनाथ की यक्षिणी मानी जाती हैं।

हरितालिका यक्षिणी: जो विशेष रूप से तांत्रिक साधना में साधकों द्वारा पूजी जाती हैं।

5. आधुनिक संदर्भ में यक्षिणी

आधुनिक काल में यक्षिणियों का उल्लेख तांत्रिक साहित्य और साधना से जुड़ी परंपराओं में मिलता है। यक्षिणी साधना अभी भी कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है, विशेषकर उन साधकों के बीच जो भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए विशेष साधनाओं का अभ्यास करते हैं। यक्षिणी साधना के बारे में कई तांत्रिक ग्रंथों में विस्तार से जानकारी दी गई है।

यक्षिणियों का इतिहास भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक और तांत्रिक परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है। वे न केवल प्राचीन मूर्तिकला और पौराणिक कथाओं का हिस्सा रही हैं, बल्कि आज भी तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यक्षिणियाँ धन, समृद्धि और भौतिक सुख की देवी के रूप में पूजी जाती हैं, और उनका महत्व भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है।

36 यक्षिणियों के नाम और मंत्र

यक्षिणी और योगिनी में अंतर: यक्षिणी का इतिहास, नाम, मंत्र और सिद्ध करने की विधि-विधान

यक्षिणी साधना तंत्र शास्त्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। विभिन्न यक्षिणियाँ अलग-अलग इच्छाओं और लाभों की पूर्ति के लिए पूजी जाती हैं। यहाँ 36 यक्षिणियों के नाम और उनके मंत्र दिए गए हैं, जो तांत्रिक साधना के लिए जाने जाते हैं।

1. कमला यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं श्रीं कमलायै नमः"
2. स्वर्णमाला यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं स्वर्णमालायै नमः"
3. कुबेर यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं कुबेरायै नमः"
4. पद्मिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं पद्मिन्यै नमः"
5. सौम्या यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं सौम्यायै नमः"
6. चंद्रकांता यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं चंद्रकांतायै नमः"
7. विलासिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं विलासिन्यै नमः"
8. महामाया यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं महामायायै नमः"
9. मोहिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं मोहिन्यै नमः"
10. सिद्धि यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं सिद्ध्यै नमः"
11. भूतिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं भूतिन्यै नमः"
12. त्रिलोक्या यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं त्रिलोक्यायै नमः"
13. कलावती यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं कलावत्यै नमः"
14. पिंगला यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं पिंगलायै नमः"
15. मदालसा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं मदालसायै नमः"
16. चित्रलेखा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं चित्रलेखायै नमः"
17. अनुराधा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं अनुराधायै नमः"
18. सुवर्णा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं सुवर्णायै नमः"
19. कामिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं कामिन्यै नमः"
20. रतिप्रिया यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं रतिप्रियायै नमः"
21. नारायणी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं नारायण्यै नमः"
22. श्री यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं श्री यक्षिण्यै नमः"
23. विरजा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं विरजायै नमः"
24. कृष्णप्रिया यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं कृष्णप्रियायै नमः"
25. सुरसा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं सुरसायै नमः"
26. विद्या यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं विद्यायै नमः"
27. तारा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं तारायै नमः"
28. वसुंधरा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं वसुंधरायै नमः"
29. विरजिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं विरजिन्यै नमः"
30. अलका यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं अलकायै नमः"
31. रत्नमाला यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं रत्नमालायै नमः"
32. मंदाकिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं मंदाकिन्यै नमः"
33. सिद्धमालिनी यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं सिद्धमालिन्यै नमः"
34. मंजुला यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं मंजुलायै नमः"
35. धनवती यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं धनवतिन्यै नमः"
36. सुभद्रा यक्षिणी
मंत्र: "ॐ ह्रीं सुभद्रायै नमः"

यक्षिणियों का महत्व:

इन यक्षिणियों की साधना के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इनकी साधना तांत्रिक विधि पर आधारित होती है। यक्षिणी साधना से धन, ऐश्वर्य, और सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं, लेकिन यह साधना कठिन होती है और एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए।

यक्षिणी को बुलाने की साधना विधि एक तांत्रिक प्रक्रिया है, जो विशेष नियमों और अनुशासन के साथ की जाती है। यह साधना अत्यधिक शक्तिशाली मानी जाती है, इसलिए इसे करते समय सावधानी और सही मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए।

यक्षिणी साधना की विधि

यक्षिणी और योगिनी में अंतर: यक्षिणी का इतिहास, नाम, मंत्र और सिद्ध करने की विधि-विधान

1. साधना की तैयारी:

स्थान: एकांत और पवित्र स्थान का चयन करें जहाँ आपको साधना के दौरान किसी प्रकार का विघ्न न हो। साधना का स्थान शांत और सात्विक होना चाहिए।

आसन: साधना के लिए कंबल का आसन या काले रंग का आसन उपयुक्त माना जाता है। आसन स्थिर हो और बिना किसी विकार के होना चाहिए।

भोजपत्र: भोजपत्र को शुद्ध और साफ स्थान पर रखें। यह तांत्रिक साधनाओं में बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह दैवीय ऊर्जा को आकर्षित करने का माध्यम है।

लाल चंदन और अनार की कलम: भोजपत्र पर लाल चंदन से अनार की कलम द्वारा उस यक्षिणी का नाम लिखें जिसे आप बुलाने या साधना करने जा रहे हैं।

2. शुभ मुहूर्त का चयन:

साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, ग्रहण, नवरात्रि, या कोई विशेष तांत्रिक दिन।

रात्रि समय यक्षिणी साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है, विशेषकर मध्यरात्रि (12 बजे से 3 बजे तक) को सबसे प्रभावी माना गया है।

3. यक्षिणी का आह्वान और प्रतिष्ठा:

भोजपत्र पर यक्षिणी का नाम लिखने के बाद उसे अपने सामने प्रतिष्ठित करें। इसे अपने साधना स्थान पर रखें, जैसे किसी आसन या चौकी पर।

अब यक्षिणी का ध्यान करें और पूजन सामग्री जैसे कि फल, फूल, दीपक, धूप, चंदन, और नैवेद्य (भोग) आदि से उनकी पूजा करें। दीपक में घी का प्रयोग करें और दीप को लगातार जलते रहने दें।

4. मंत्र जाप की विधि:

यक्षिणी का मंत्र आपके उद्देश्य के अनुसार चुना जाना चाहिए। जिस यक्षिणी की साधना कर रहे हैं, उनके नाम से सम्बंधित मंत्र का चयन करें।

मंत्र जाप का संकल्प करें। कम से कम 10,000 जाप और यदि संभव हो, तो 1,00,000 मंत्र जाप का लक्ष्य रखें।

उदाहरण के लिए, यदि आप कमला यक्षिणी की साधना कर रहे हैं तो मंत्र होगा:
“ॐ ह्रीं श्रीं कमलायै नमः”

मंत्र का जाप करते समय मानसिक रूप से यक्षिणी का ध्यान करें, और यह विश्वास रखें कि वे आपकी साधना को स्वीकार कर रही हैं।

5. साधना का अनुशासन:

साधना के दौरान पूर्ण आसन की पवित्रता और नियमों का पालन करें। साधना के समय मानसिक और शारीरिक शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।

इस साधना में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

साधना के दौरान किसी भी प्रकार का नकारात्मक विचार मन में न लाएँ, बल्कि साधना को पूर्ण समर्पण के साथ करें।

6. मंत्र जाप की समाप्ति:

जब आपने अपने निर्धारित जाप की संख्या पूरी कर ली हो, तो अंत में यक्षिणी को धन्यवाद दें और उनसे प्रार्थना करें कि वे आपकी इच्छा को पूर्ण करें।

इसके बाद यक्षिणी को विदा करने की विधि का पालन करें, जो साधना की समाप्ति का संकेत होता है। यह विदाई विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिना उचित विदाई के साधना अधूरी मानी जाती है और इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।

7. आह्वान के बाद सावधानी:

यक्षिणी साधना के बाद साधक को सावधान रहना चाहिए। यक्षिणियाँ अत्यधिक शक्तिशाली होती हैं, और यदि साधना सही तरीके से नहीं की गई या लापरवाही हुई, तो इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं। साधना के दौरान या उसके बाद कोई भी अनुभव या संकेत मिलने पर उस पर ध्यान दें और उचित मार्गदर्शन प्राप्त करें।

यक्षिणी साधना का निष्कर्ष:

यक्षिणी साधना एक गंभीर तांत्रिक प्रक्रिया है, जिसे सही तरीके से करने पर भौतिक इच्छाओं की पूर्ति और आत्मिक उन्नति प्राप्त होती है। इस साधना में नियम, अनुशासन और गुरु के मार्गदर्शन का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

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और गुप्त रहस्यों सहित अधिक जानकारी के लिए कमेंट बॉक्स में लिखिए। आगे पढ़िए यक्षिणियों से जुड़ी कथाएँ। कौन सी यक्षिणी सबसे शक्तिशाली। कौन यक्षिणी क्या प्रदान करती है। कौन यक्षिणी साधना कैसे कि जाए विस्तार से। दैवीय शक्तियों की लेखनी में सहायक बनने के लिए आभार व्यक्त करते आज यहीं लेखनी को विराम देते हैं। जय मां आदिशक्ति जगत अंश स्त्री स्वरूपा यक्षिणी व योगिनी सत्ता की।

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6 thoughts on “यक्षिणी और योगिनी में अंतर: यक्षिणी का इतिहास, नाम, मंत्र और सिद्ध करने की विधि-विधान”

    • अति महत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक आलेख। क्या आपश्री का संपर्क सूत्र प्राप्त हो सकता है।
      …….मनीष श्रीवास्तव
      9617619515

      धन्यवाद एवं आभार।

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