मीरा बाई, जिन्हें संत मीरा के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं सदी की एक प्रसिद्ध भक्त कवयित्री थीं। वे राजस्थान के एक राजघराने में जन्मी थीं और कृष्ण भक्ति के लिए प्रसिद्ध थीं। उनकी भक्ति और कविताओं ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। amitsrivastav.in
मीरा बाई का जन्म 1498 में राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठौर एक राजपूत योद्धा थे। मीरा बाई का विवाह चित्तौड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ था, जो उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। लेकिन उनके पति राजकुमार भोजराज की जल्दी ही मृत्यु हो गई, जिसके बाद मीरा बाई ने अपना जीवन पूरी तरह से कृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया।
मीरा बाई का कृष्ण के प्रति प्रेम अत्यंत गहरा था। वे मानती थीं कि कृष्ण उनके सच्चे पति हैं और उन्हीं के साथ उनका सच्चा संबंध है। उनकी कविताएं और भजन कृष्ण की भक्ति, प्रेम, और अनुराग से परिपूर्ण हैं। मीरा बाई ने अपने जीवन के कठिन समय में भी अपनी भक्ति को कभी नहीं छोड़ा।
उनके परिवार ने उनकी भक्ति को अस्वीकार किया और उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कहा जाता है कि उन्हें जहर भी दिया गया, लेकिन कृष्ण की कृपा से वे बच गईं।
मीरा बाई की कविताएं आज भी भारतीय भक्ति साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी भक्ति की गाथा अनेक लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी भक्ति और कविताएँ मुख्य रूप से कृष्ण के प्रति उनके प्रेम और समर्पण को दर्शाती हैं। उनका जीवन और रचनाएँ कृष्ण भक्ति पर केंद्रित थीं, और वे भगवान कृष्ण को अपने आराध्य और प्रियतम मानती थीं। उनकी रचनाएं सादगी, भक्ति, और कृष्ण प्रेम की अद्वितीय मिसाल पेश करती हैं। मीरा बाई ने अपना अंतिम समय वृंदावन और द्वारका में बिताया।
मीराबाई का जीवन परिचय:

नाम: मीराबाई
जन्म: 1498, कुड़की, पाली जिले, राजस्थान
मृत्यु: 1547 (अनुमानित)
पारिवारिक पृष्ठभूमि: मीराबाई का जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रत्न सिंह था। मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज से हुआ था, जो राणा सांगा के पुत्र थे।
भक्ति और काव्य: मीराबाई ने बचपन से ही कृष्ण को अपना आराध्य मान लिया था और उनकी भक्ति में ध्यान लग गया था। वे भगवान कृष्ण की परम भक्त थीं और अपनी कविताओं और भजनों के माध्यम से अपनी भक्ति को व्यक्त करती थीं। उनके काव्य में प्रेम, भक्ति, और ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण का अद्भुत मिश्रण है।
भक्तिकाल: मीराबाई संत कवयित्री थीं और भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक मानी जाती हैं। उनके भजन और पद आज भी बहुत लोकप्रिय हैं और भक्ति संगीत में विशेष स्थान रखते हैं।
प्रमुख कृतियाँ: मीराबाई के प्रमुख कृतियों में उनके पद और भजन शामिल हैं। उनके द्वारा रचित भजनों में “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,” “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई,” और “ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी” विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
जीवन का अंत: मीराबाई के जीवन का अंतिम समय वृंदावन और द्वारका में बीता। ऐसा माना जाता है कि वे अपने अंतिम समय में भगवान कृष्ण में लीन हो गईं।
मीराबाई का जीवन, उनकी भक्ति और उनके काव्य आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और वे भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
मीराबाई किसकी शिष्या थी:
मीराबाई रैदास (रविदास) की शिष्या थीं। रैदास संत और कवि थे, जो भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक थे। उन्होंने मीराबाई को भक्ति के मार्ग पर प्रेरित किया और उनकी शिक्षाओं का मीराबाई के जीवन और काव्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। मीराबाई ने कई स्थानों पर अपने पदों में रैदास का उल्लेख किया है और उन्हें अपना गुरु माना है।
मीराबाई के भजन हिंदी में:

मीराबाई के कुछ प्रसिद्ध भजन निम्नलिखित हैं।
1- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो:
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
बिछुड़े जुगल जोड़ी पुनि मिलायो।।
खंजन नैन तेरे मोरे पासा।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।।
2- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई:
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।
छाड़ि दई कुल की कानि कहा करिहै कोई।।
अणत भये मन धीर घर लागत नहिं मीत।
नाम रटन रटन लागु नाम रटन ही बीत।।
सीस झुकाय मन भाय अस लगन लगी हो।
सो तन चंद्रावली भाय मीरा की विभो।।
3- पग घुंघरू बाँध मीरा नाची रे:
पग घुंघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो अपने नारायण की आपहि हो गई दासी रे।।
लोग कहे मीरा भई बावरी न्यात कहे कुलनासी रे।
विष का प्याला राणा जी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे।।
4- ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी:
ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय।
घाव किए लख जतन किए कोई न बिसाही मोय।।
ठगुली दीनी मोकौं लगाई माटी महल बनाय।
मूक भयो बड़ बाम बोलत हरि दरसन की आसाय।।
पिय मिलन की आस समुझै नीत तेरे दरसन की आस।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर करुणा में रस भरियो।।
मीराबाई के भजन उनके गहरे आध्यात्मिक अनुभव और भगवान कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाते हैं। ये भजन भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं और भक्ति संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
निम्न में कौन सा ग्रंथ मीराबाई द्वारा रचित नहीं है?:
मीराबाई की रचनाएँ भजन और पदों के रूप में अधिकतर संकलित की गई हैं, लेकिन उनके नाम से कोई बड़ा ग्रंथ प्रसिद्ध नहीं है।
निम्न में से कोई ग्रंथ मीराबाई द्वारा रचित नहीं है:
– गीता गोविंद: यह ग्रंथ जयदेव द्वारा रचित है।
– रामचरितमानस: यह तुलसीदास द्वारा रचित है।
– सूर सागर: यह सूरदास द्वारा रचित है।
इस प्रकार, “गीता गोविंद,” “रामचरितमानस,” और “सूर सागर” तीनों ग्रंथ मीराबाई द्वारा रचित नहीं हैं।
मीराबाई के छोटे दोहे:
मीराबाई के दोहे और पद बहुत प्रसिद्ध हैं, जो उनके भक्ति और प्रेम को दर्शाते हैं। यहाँ कुछ उदाहरण हैं।
1- पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे:
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे,
मैं तो अपने नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
2- मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई:
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।
3- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो:
बिछुड़े जुगल जोड़ी पुनि मिलायो।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
4- मैली चादर ओढ़ सांवरिया :
मीरा निसदिन रैन अंधेरी, दीपक मोर पिया।
मीराबाई के ये दोहे और पद उनके भक्ति भाव और कृष्ण के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं और आज भी भक्ति संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई:
मीराबाई की मृत्यु के संबंध में कई कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन सबसे अधिक मान्य कथा के अनुसार, मीराबाई ने अपने जीवन के अंतिम समय में द्वारका में भगवान कृष्ण के मंदिर में समाधि ली थी। यह कहा जाता है कि वे भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गईं, अर्थात उनकी मृत्यु आत्मसमर्पण और भक्ति के उच्चतम स्तर पर हुई।
कुछ अन्य कथाओं के अनुसार, वे विष पीने से भी बच गई थीं, क्योंकि उनके भक्ति और प्रेम के कारण विष का उन पर कोई असर नहीं हुआ। लेकिन उनकी मृत्यु का वास्तविक कारण और समय ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट नहीं है।
आर्टिकल सारांश
मीराबाई की मृत्यु का विवरण किंवदंतियों और लोक कथाओं पर आधारित है, और इसका ऐतिहासिक प्रमाण स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं है।