अहंकार की सजा

Amit Srivastav

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पुराने समय में बहुत जंगल होते थें। उसी समय की बात है, एक सुन्दर घना बहुत बड़ा जंगल था। उस जंगल में बहुत सारे पेड़ पौधे थे। मधुमक्खियों का एक झुण्ड जंगल के ऊपर से गुजर रहा था। झुण्ड की रानी मधुमक्खी ने उसी घने जंगल में अपना घर बनाने की इच्छा जताई। एक घने पीपल वृक्ष के पास जाकर कही- हे पीपल भाई मुझे अपने परिवार के साथ अपनी एक डाली पर छत्ता बना रहने कि इजाजत दे दो। पीपल बड़ा अहंकारी था, उसे कोई परेशानी हो स्वीकार नहीं था। अपने अहंकार के कारण पीपल अपनी डाली पर रानी मधुमक्खी को छत्ता लगाने से मना कर दिया। वहीं खड़ा आम का एक पेड़ ने कहा पीपल भाई लगा लेने दो छत्ता ये आपके धने डाली में सुरक्षित रहेंगी। तब अहंकारी पीपल ने कहा तुम्हीं अपने डाली में इन्हें जगह दे दो। तब आम ने रानी मधुमक्खी से कहा बहन चाहो तो हमारे डाली पर अपना छत्ता लगा लो।

अहंकार की सजा

रानी मधुमक्खी

आम के पेड़ का आभार व्यक्त कर अपना छत्ता लगा अपने परिवार के साथ रहने लगी। समय बीतता गया और कुछ सालों बाद जंगल में कुछ लकड़हारे पेड़ काटने आ गये। वो आम के पेड़ के पास जाकर कहा इसे काटा जाए। तभी ऊपर मधुमक्खी का छत्ता देख एक ने कहा इस पर तो बहुत बड़ी मधुमक्खी का छत्ता है वे हम लोगों पर आक्रमण कर दी तो कुछ हाथ नहीं आयेगा। चलो दूसरा पेड़ देखा जाए तब तक लकड़हारो की नजर उसी विशाल पीपल पेड़ पर पड़ी उसको काटने में कोई समस्या नहीं थी। लकड़हारो ने पीपल को काटना शुरू किया और पीपल दर्द से कराह चिल्लाना शुरू किया मुझे बचाओं मुझे बचाओ यह देख आम को दया आ रही थी। आम ने रानी मधुमक्खी से कहा बहन पीपल को बचा लो उसका प्राण संकट में है, वो लकड़हारे पीपल को काट रहे हैं। आम की बात मानकर मधुमक्खियों ने उन लकड़हारो पर आक्रमण कर दिया। लकड़हारे जंगल से भाग गए। पीपल ने मधुमक्खियों को धन्यवाद बोला और अपने अहंकारी आचरण से शर्मिन्दा हो क्षमा मांगी। तब रानी मधुमक्खी ने कहा धन्यवाद हमे नही उस आम के पेड़ को दो भाई जिसपर हम लोगों का बसेरा है उन्हीं के कहने पर हम लोगों ने लकड़हारो पर हमला की। हमें आम के ने कहा वो अहंकार बस जगह नही दिया तो भी उसका बुरे समय में साथ देना चाहिए। अब अहंकारी पीपल को अपने अहंकार पर पछतावा हो रहा था और उसका अहंकार टूट चुका था। पीपल के वृक्ष को अहंकार की सजा मिल चुकी थी। पीपल ने आम के पेड़ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते अपने अहंकार को त्याग छमा मांग मित्रता स्थापित किया।

अहंकार की सजा

शिक्षा- हमें अपने पर कभी अहंकार नही करना चाहिए। जितना हो सके क्षमता अनुसार दूसरों के काम आना चाहिए। आज हम दूसरों के काम आ रहे हैं तो कल हमे भी कोई जरूरत पड़ती है, तो कोई न कोई काम आ ही जायेगा। भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की लेखनी से अगर थोड़ा भी आचरण अहंकार में परिवर्तन आता है, तो हमारा लिखना आपका पढ़ना दोनों ही सार्थक होगा।

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