Election 2024 : लोकसभा 2024 का परिणाम सामने आ चुका है लेकिन अभी भी सरकार किसकी बनेगी इस पर कई दिनों तक मंथन चल सकता है। आप निर्भर करता है कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का झुकाव किस ओर है। क्या वे एनडीए के साथ रहना पसंद करेंगे या फिर इंडिया गठबंधन के साथ जाना पसंद करेंगे। इन सवालों के बीच में सबसे बड़ा सवाल की भाजपा आखिर इस चुनाव में अपने बल पर 272 का आंकड़ा क्यों नहीं कर पाई? इसके बारे में मीडिया और पॉलिटिक्स न्यूज़ विशेषज्ञ AK Pandey द्वारा यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
74 वर्षीय चंद्रबाबू नायडू और 73 साल के नीतीश कुमार इस समय सबसे महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरकर सामने आ रहे हैं। इनके बिना एनडीए या इंडिया गठबंधन की सरकार बनना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। जनता जनार्दन ने इस बार इस तरह से मतदान किया है कि अहंकार की राजनीति टूट गई।
गठबंधन के सहारे बनेगी सरकार election 2024
जनता ने इस तरह का जनादेश दिया है कि अब बिना गठबंधन का सहारा लिए भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में इस समय नहीं है। आखिरकार ऐसा कैसे हुआ? इसका सरल-सा जवाब है, जनता के मुद्दे को अहमियत नहीं दी गई। महंगाई, बेरोजगारी पर जनता नाराज थी। 2014 के बाद जब कांग्रेस से सत्ता मिली तो उस समय महंगाई- बेरोजगारी और भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा रहा है। लेकिन इन मुद्दों को केंद्र सरकार हल नहीं कर पाई।
फिर भी जनता ने दो बार पूर्ण बहुमत भाजपा को दिया। इस बार यदि नहीं दिया तो इसका सबसे बड़ा कारण समझने की कोशिश कीजिए। इस चुनाव में ध्रुवीकरण को मुद्दा बनाया गया लेकिन वह चल नहीं सका। बेरोजगारी, महंगाई और गलत निर्णयों ने भाजपा को बहुमत से दूर कर दिया। नोटबंदी, किसानों की नाराज़गी, बेरोजगारों की अपेक्षा, महिला सुरक्षा, पूंजीपतियों का सहयोग, इलेक्ट्रोल बांड, गुजरातीवाद, पूंजीवाद ये सब मुद्दे हावी रहे है।
हालांकि इस विषय पर कई मुद्दे जनता के बीच में रहे हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी हमेशा पर्दा डालती रही हैं।
भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना पा रही है इसलिए तीसरी बार सत्ता पर रिपीट करने के लिए अब गठबंधन की बैसाखी का सहारा लेना पड़ेगा। यह स्थिति भाजपा के लिए चिंताजनक है।
इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि जनता ने विपक्ष को मजबूत बनाया है। लोकतंत्र में हार-जीत तो लगा रहता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता ही सर्वोपरि होती है। इस बार जनता ने अलग तरह का जनमत बीजेपी को दिया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत तुम्हें आने वाली उग्र राजनीति की जगह एक संतुलित राजनीति जन्म ले रही है। जब जब व्यक्ति बाद तेजी से बढ़ता है तो लोकतंत्र में जनता व्यक्तिवाद को धरातल पर अपने वोट के जरिए ही ले आती है।
संतुलित राजनीति की ओर भाजपा

यह बात हर कोई अच्छी तरीके से जानता है, अगर सबका साथ और सब का विकास वास्तव में लेकर चलना है तो चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली राजनीति से अलग अपनी पहचान बनानी होगी। पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी एक अलग तरह की छवि बना चुके थे। जिसमें निजीकरण और पूंजीवादियों को लाभ पहुंचाने वाली राजनीति सामने आने लगी थी। इसके बाद बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई जैसे मुद्दे गायब होने लगे थे लेकिन जनता इन सब को झेल रही थी।
युवाओं का खासा वर्ग नाराज
युवा नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं, ऐसे में राजनीति एक ठोस कदम उठा नहीं पा रही थी कि इनको किस तरह से रोजगार में जोड़ा जाए बल्कि सोशल मीडिया में इन पर ही हमला किया गया। रोजगार और जीविका में अंतर नहीं समझा गया। पकौड़ा बेचने को ही उन्होंने रोजगार बता कर जनता का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। यह बात गोदी मीडिया भी सत्ता पक्ष के फेवर में परोसने लगी। इन सब गलतियां के बावजूद भी, अपने दम पर जीत के लिए आश्वस्त भारतीय जनता पार्टी व्यक्तिवादी राजनीति का चेहरा ही बनी रही।
ऐसे में अब राजनीति की उठापटक में एक ऐसा दौर आ रहा है, जहां गठजोड़ की राजनीति फुल फॉर्म में नजर आ रही है।
इस चुनाव के दौरान मोदी मीडिया से हटकर निर्भीक पत्रकारों ने कई ऐसे सवाल खड़े किए जिनका जवाब उस समय भारतीय जनता पार्टी अपने चुनावी रणनीति में विचार करके रखती तो निश्चित तौर पर यह जीत एक बड़ी जीत के रूप में सामने आती।
सोशल मीडिया पर बीजेपी के समर्थक ही उनके हार का कारण बने। पिछले दो बार चुनाव में बीजेपी के सोशल मीडिया समर्थक एक सुनियोजित तरीके से काम कर रही थी। लेकिन इस बार उन्हें सोशल मीडिया पर ही जनता द्वारा जवाब मिलना शुरू हो गया। इस तरह से जनता समझदार होती चली गई। वे अपने स्थानीय मुद्दे महंगाई बेरोजगारी को तवज्जो देने लगी। भाजपा को कम वोट मिलने का यह भी एक बड़ा कारण है।
2024 का चुनाव जनता वर्सेस मोदी रहा

चुनाव के दौरान किए गए कई विश्लेषण जिसमें ‘फ्लोटर वोटर’ की भी बड़ी भूमिका रही है। इन सब विश्लेषण के माध्यम से पता चल रहा था कि अंडर करंट भाजपा के खिलाफ है।
भाजपा की सीटें कम आना कोई चौकाने वाली बात नहीं है। इस बार का चुनाव जनता वर्सेस मोदी रहा है। इस चुनाव में शुरू से तय था, कि भाजपा को तगड़ा नुकसान होने वाला है। इसलिए चुनाव के पहले चरण में ही 400 के पार का नारा दिया गया। गोदी मीडिया में विपक्ष के खिलाफ बहुत तेजी से मुद्दे उछल गए। लेकिन भारत की जनता अपने अलग-अलग मुद्दों के कारण मतदान किया है।
नरेंद्र मोदी के जीत का अंतर कम होने के मायने
वाराणसी में प्रधानमंत्री के जीत का कम अंतर बताता है कि वहां के स्थानीय लोग भी उनसे नाराज हैं। गोदी मीडिया देखने वालों को यह बात कैसे मालूम हो सकती है। गोदी मीडिया में पैकेट को रंग-बिरंगा बनाकर दिखाया जाता रहा है। बनारस से कुछ किलोमीटर दूर चंदौली में भाजपा की हार यह बताती है कि वाराणसी का विकास कुछ दूर चंदौली तक नहीं पहुंच पाया।
बीजेपी के हार के 72 कारण हो सकते हैं। इसकी समीक्षा बीजेपी कार्यालय में इन दिनों बहुत तेजी से चल रही है। समर्थक भी इन बातों को समझ नहीं पा रहे है कि यह कैसे हो गया।
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के बिना नहीं बन सकती है किसी की सरकार

नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू इस जनादेश में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में निकलकर सामने आ रहे हैं। एनडीए की सरकार अगर बनती है तो इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी। हालांकि इंडिया गठबंधन को भी बहुमत के लिए नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू के सहारे की जरूरत है तभी यह सरकार बना सकते हैं।
भाजपा ने चंद्रबाबू नायडू पर मुस्लिम आरक्षण देने का आरोप भी चुनाव में लगा दिया था। नीतीश कुमार से भी तना तनी बनी हुई है। लेकिन चुनावी गोटी फिट करते समय पुरानी बातें भुला दी जाती है। क्योंकि सरकार बनाने का मामला होता है?
अंत में यह कहना जरूरी समझता हूं कि अब मंच में जब भी कोई बड़ा माला पहनाया जाएगा तो उसमें तीन लोग आसानी से आ जाएंगे।
दिग्गज केंद्रीय मंत्री भी हारे
पिछले दो बार के चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर जीतने वाले कई नेता इस बार हार गए। लेकिन यह चौंकाने वाली बात है कि केंद्रीय मंत्री के रूप में कई दिग्गज को करारी हार मिली है। वहीं दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई नेताओं ने इस चुनाव में लाखों वोट से अपने नजदीकी उम्मीदवार को शिकस्त भी दी है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता शिवराज सिंह चौहान सात लाख वोटो से बड़ी जीत हासिल की है।
बीजेपी के दिग्गज नेता नितिन गडकरी का काम शानदार रहा है। राजनाथ सिंह भी सम्मानजनक जीत हासिल की है। इन सब नेताओं को भाजपा ने हासिये पर रख दिया था।
जब किसी पार्टी में एक चेहरा व्यक्तिवाद हो जाता है। तो कई चेहरे छोटे हो जाते हैं। यही कारण है कि केंद्र सरकार की कई दिग्गज मंत्री भी इस चुनाव में हार गए हैं। इन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लोकसभा 2024 के चुनाव में केंद्र सरकार के 18 मंत्रियों की करारी हार भी हुई है। मंत्रियों की इस करारी हार के बाद अंदाजा लगा सकते हैं कि इन मंत्रियों के काम से जनता खुश नहीं थी। कुछ दिग्गज चेहरों के नाम भी यहां पर गिना देते हैं। महंगाई को मात देकर 2014 में जिस तरीके से स्मृति ईरानी ने लोगों को चौकाया था, वे लोकसभा चुनाव 2024 अमेठी से हार गई है। जनता ने उन्हें नाकार दिया और कांग्रेस के उम्मीदवार को जीता दिया।
केंद्रीय मंत्रियों की लिस्ट में अर्जुन मुंडा, राजीव चंद्रशेखर, एल मुरूगन, आरके सिंह, वी मुरलीधरन, साध्वी निरंजन ज्योति जैसे 18 दिग्गज केंद्रीय मंत्री को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है। यानी अपने क्षेत्र में ही जनता ने इन्हें नकार दिया है। यह सब मुद्दे एक बार भारतीय जनता पार्टी को सोचने पर मजबूर करती है।
लेखक: ए० के० पांडेय, मीडिया विशेषज्ञ हैं। मीडिया न्यूज़ चैनल और वेबसाइट के विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं के लिए लगातार राजनीतिक सामाजिक और नई मीडिया पर लेखन कार्य करती हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद 10 साल से अधिक समय तक कई मीडिया संस्थानों में कार्य किया। आप वर्तमान में स्वतंत्र लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।