मोहल्लों में RSS के चेले जो घर से AC छोड़कर कैसे बाहर ग्राउंड जीरो पर निकले ! कॉलोनी व्हाट्सएप व फेसबुक छाप आरएसएस के अंकल-आंटी खुद ही निष्क्रिय नजर आ रहे थे।
जब अपनी पत्रकारिता समीक्षा के बल पर इनसे बात कर रहे थे कि आपकी तो ‘सरकार बड़ी मुश्किल से बनेगी’ तो दांत निपोर कर बोलते रहें, ‘आएगा तो मोदी ही’।

इन्हें मोदी के लिए काम करना चाहिए था, ये निष्क्रिय रहकर ऐसी बातें बोलते रहें, इस कारण से बीजेपी को नुकसान होना ही था। इन्हें लगता था कि इनकी बातों से ही मोदी जीत जाएंगे। जबकि मोदी कि हर गारंटी जनता झूठ के रूप में देख और परख चुकी है।
आरएसएस और बीजेपी महिला संगठन को भी कायदे से खड़ा नहीं कर पायी, मोहल्ले में 2-4 धार्मिक आयोजन भी सही से नहीं करा पाएं। और हिन्दूवादी होने की बस नारेबाजी करते रहे। हिन्दू धर्म स्थलों से सरकारी आय का श्रोत बनाने का काम किए। वहां पुस्तैनी पंडा पुजारियों को भगाने का हर संभव प्रयास किए।
अगली पंक्ति के RSS व BJP से जुड़े अंकल-आंटी जाति की गुणा भक्ति में मोदी को जीताते हुए नजर आ रहे थे। यही कारण रहा आरएसएस और मोदी समर्थक हाथ में हाथ धरे रहें। मोदी आयेगें रोड़ सो कर देगें और बेरोजगारी महंगाई से त्रस्त जनता हर बार मोदी को वोट दे देगी।
जिन कार्यकर्ताओं पर ग्राउंड जीरो से जनता को अपने फेवर में करने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने 10 साल तक खूब फायदा उठाया पर रिटर्न में उसने संगठन को कुछ नहीं दिया। बीजेपी सत्ता का फलदार वृक्ष है जिसका स्वाद आरएसएस और बीजेपी के समर्थक ही चखते रहें। बड़ा हिस्सा अडानी अंबानी के हाथ लगता रहा। बल्कि संगठन से खूब फायदा उठाया। जो फायदा नहीं उठा पाए वे उनके खिलाफ हो गए।
बीजेपी आरएसएस के शीर्ष पंक्ति के नेता भी आंख मूंद कर सब तमाशा देख रहे थे। उन्हें भी इस बात से लेना देना नहीं था। मोदी की बेतुके भाषणों में उन्हें जीत ही नजर आ रही थी। इधर मोदी जनता में उत्साह भरते उधर उनके जमीनी कार्यकर्ता निष्क्रिय होते चले गए और गोदी मीडिया पर भरोसा करते चले गए कि भाजपा जीत रही है। गोदी मीडिया बीजेपी के लिए दो धारी तलवार साबित हुई।
आरएसएस और बीजेपी समर्थक पिछले 10 साल में खूब फायदा उठाया। यह सब उन्हीं के कास्ट के रिश्तेदार और नातेदार समझने और जानने लगे।
आरएसएस और बीजेपी समर्थक गोदी मीडिया का ज्ञान हम जैसे स्वतंत्र लेखक और पत्रकारों पर झाड़ते हुए नजर आते रहे हैं।
अति उत्साह में अपर कास्ट मोदी समर्थक किसी को कुछ नहीं समझता था। आज ये सवालों के घेरे में हैं। इन्होंने अपने ही लोगों पर तनिक दया दृष्टि नहीं रखी, जो बहुत मुश्किल से रोजी-रोटी के जुगाड़ में जिंदगी जी हैं। अपने ही जाति के गरीब रिश्तेदार, भाई, बहन लोगों के साथ आरएसएस व्हाट्सएप के अंकल व आंटी कभी खड़े हुए ही नहीं। उन्हें लज्जित करने में भी पीछे नहीं रहें। बल्कि उनके खिलाफ मोहल्ले और सोसाइटी में हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्सएप ग्रुप में अंकल आंटी खिल्ली उड़ाते हुए नजर आए। जिसका परिणाम यह हुआ कि एक ही परिवार और एक ही समुदाय में वोट बंट गया, जो वोट बीजेपी को जाना चाहिए था, वह वोट कहीं और चला गया।

भाई साहब मुद्दा बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी का रहा है। लेकिन बीजेपी और आरएसएस के समर्थक मोहल्ले और सोसाइटी के अंकल व आंटी ग्राउंड जीरो रिपोर्ट महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दे को शीर्ष नेताओं तक पहुंचाने में असफल रहें, असल में यह लोग अपना पेट तो भर लिए दूसरे को बेरोजगारी महंगाई पर ज्ञान देते हुए भी नजर आएं। ये जिम्मेदार लोग निचले स्तर पर हो रहे आक्रोश को भी बताने में असफल रहें। ये लोग जान बूझकर इन बातों को आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि इन्हें दो बार की सत्ता में इतना फायदा मिल गया कि अब आनंद ही आनंद में जीवन बिता रहे थे।
मजेदार बात यह है कि हर जाति वर्ग के मतदाता ने अपने-अपने मुद्दे पर वोटिंग किया। आरएसएस के अंकल और आंटियों के समूह जो इनमें घुसे थे, वह पहले से ही सत्ता सुख का आनंद ले रहे थे। उनके भाई- बंधु रिश्तेदार बेरोजगारी से लड़ रहे थे। इनकी खिल्ली यही RSS और BJP में पद प्रतिष्ठा का छोटा बड़ा फायदा उठाने वाले अंकल और आंटी समूह उड़ाते रहे हैं। जाकर अभी भी देख लीजिए, एक नजर से जरा सर्वे कर लीजिए तो आपको हकीकत भी पता चल जाएगी।
प्रदेश और किसी जाति विशेष और शहर विशेष को यही लोग गाली देकर बीजेपी के छद्म समर्थक अपनी सफाई देते हुए नजर आ रहे हैं।
जबकि RSS व्हाट्सएप अंकल और आंटी का परिवार आरएसएस और बीजेपी में जुड़कर फायदा पाते हुए नजर आते रहे हैं।
अपने ही समाज के आर्थिक रूप से कमजोर रिश्तेदार और जाति के लोगों की खिल्ली उड़ाते नजर आ रहे थे। महंगाई और बेरोजगारी चिल्लाते हो, जाओ पकौड़ा तलो, कोई महंगाई और कोई बेरोजगारी नहीं है।
आज भी यह सुधरे नहीं है। अब यह अपनी कमी छुपाने के लिए अयोध्या नगरवासी और देश की जनता को भला बुरा कह रहे हैं।
बस यह कहते हुए थकते नहीं थे, आएगा तो मोदी ही। इन्हीं लोगों की वजह से बीजेपी पूर्ण बहुमत नहीं ला पाई।

बीजेपी का दिया खाते रहे, उसी की थाली में छेद करते रहें। ये लोग गोदी मीडिया के पत्रकारों को छोड़ निस्पक्ष पत्रकारों और बुद्धिजीवों को गाली देते रहे, व्हाट्सएप ग्रुप और सोशल मीडिया में यह होड़ रहती थी कि कौन कितना किसी को गाली दे दे ताकि वह अपने लोगों में बड़ा दिखने लगे।
बीजेपी समर्थक के रूप में उसकी मान मर्यादा और बढ़ जाए।
इन्हीं शब्दों के साथ इस लेख को समाप्त करते हैं, लिखा बहुत थोड़ा है, जान गए होंगे बहुत कुछ। क्योंकि आपके आसपास की घटना है। इस लेखनी को amitsrivastav.in टीम द्वारा सर्वेक्षण व मंथन से प्रकाशित किया गया है।