इस साइट से पहले भी बताया गया और आज भी दोहरा दिया जा रहा है कि यह चुनाव जनता वर्सेस नरेंद्र मोदी रहा है। बेरोजगारी और महंगाई एक बड़ा मुद्दा रहा, लेकिन भाजपा ने इस मुद्दे को गोदी मीडिया के सहारे आम जन के सामने जाने नहीं दिया। धर्म की राजनीति के नाम पर मुद्दे को ध्रुवीकरण करने की बहुत कोशिश की गई। लोकसभा 2024 के चुनाव में एक बात साफ है कि नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्वाद हारा है। यह जनता और विपक्ष की एक बड़ी जीत है। पिछली दो बार चुनावों में नरेंद्र मोदी के चेहरे से उनके उम्मीदवार जीते थे। इस बार यह सिलसिला थम गया है। फिर भी कुछ सीटों पर योगी मोदी के नाम पर जीत या भाजपा उम्मीदवारों की बढ़त देखी जा रही है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा बहुत सारे सीटों पर गलत उम्मीदवार खड़े किए जाने लगे हैं। जिन्हें जनता ने सिर्फ मोदी योगी के नाम पर वोट किया तो वहीं बुद्धिमान लोगों ने नकार दिया। इस चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत नहीं ला पाई है, जबकि एनडीए घटक दल के साथ वह बहुमत को पार करने वाली स्थिति में है। लेकिन क्या कारण है कि मोदी का सिक्का नहीं चल पाया? इस चुनाव बाद इन सब के बारे में बेहतरीन विश्लेषण हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं। इसके साथ आपको बता दें कि इससे पहले भी हम अपनी टीम सहित चुनाव के समय में फ्लोटर वोटर वाली बात कही थी, जो मोदी का खेल बिगाड़ सकते हैं। यह सब बातें सच साबित हुई है। गोदी मीडिया की भूमिका ने भी कहीं ना कहीं मोदी को जिताने की भरसक प्रयास किया। लेकिन जनता अंदर ही अंदर बेरोजगारी, महंगाई से परेशान रही तो वहीं पर अग्निवीर जैसी योजना के प्रति आक्रोश भी रहा, साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाई गई संविदा व्यवस्था के अन्तर्गत आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे संविदा कर्मियों का गुस्सा व पुरानी पेंशन बहाल की आस रखने वाले सरकारी कर्मचारियों का भाजपा से कटाव रहा। जो कर्मी मतदान में लगाये गये और उन्होंने अपना मत बैलेट पेपर से दिया वो कर्मी ज्यादातर भाजपा के खिलाफ मतदान किया। कारण यह रहा कि दस साल से पुरानी पेंशन बहाल की आस और संविदा कर्मियों को पक्की नौकरी कि उम्मीद भाजपा से टूटती और गठबंधन से जुडती दिखाई दी। जो मोदी की सीटों को कम करने का कारण बना। इस पर एक विश्लेषण amitsrivastav.in साइड की टीम द्वारा मंथन से निस्पक्ष सुस्पष्ट कलम कि लेखनी प्रस्तुत किया जा रहा है।

इस पूरे चुनाव में बात की राजनीति हावी रही तो वहीं विपक्ष की ओर से जनता के पक्ष के मुद्दे उठाएं जाने लागे। इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी कांग्रेस की ओर से बेहतरीन तरीके से अपनी बात जनता के सामने रखा। जेल से आने के बाद गठबंधन के साथ चुनाव प्रचार में लगने वाले अरविंद केजरीवाल दस गारंटी योजना को गठबंधन की सरकार बनने पर लागू कराने की गारंटी ली जो मतदाताओं पर बेहतर प्रभाव डाला और गठबंधन की भारी जीत देखा गया है। अपनी मंचों से चुनावी प्रचार प्रसार में नरेंद्र मोदी 400 पार, अडानी-अंबानी टेम्पो भर-भर माल दिया काग्रेस को, मंगलसूत्र छीन बाट देगी कांग्रेस मुसलमानों में बेफजूल की अपने बातों पर ही विवादों में घिर गए।
व्यक्तिवाद की राजनीति के चलते भाजपा को हो रहा है बड़ा नुकसान

इस पूरे चुनाव में पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ जहां विपक्ष का आंदोलन रहा वहीं पर सत्ता पक्ष पूंजीवादी व्यवस्था के पक्ष में दिखती हुई नजर आई। अडानी अंबानी के मुद्दे ने आखिरकार जनता की आंखें खोल दी। फ्लोटर वोटर जो महंगाई बेरोजगारी के मुद्दे पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के मुद्दे पर पिछली बार भाजपा को वोट किया था, यह फ्लोटर वोटर इस बार भाजपा का साथ नहीं दिया।
व्यक्तिवाद की राजनीति भाजपा पर पड़ी भारी
अटल बिहारी वाजपेई के जमाने में भाजपा व्यक्तिवाद की पार्टी के रूप में नहीं थी। बल्कि सभी का इसमें विशेष स्थान रहा है। लेकिन दस साल की इस राजनीति में नरेंद्र मोदी व्यक्तिवाद की राजनीति का अभिप्राय बन गए। भाजपा के मंचों पर केवल नरेंद्र मोदी ही नजर आते हुए दिखाई दिए। अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी पिछली बार कमाल कर गई थी। बिते दस सालों में 2014 चुवावी एजेंडा जनता की खास जरुरत बेरोजगारी महंगाई आदि पर ध्यान नहीं दिया गया और इस चुनाव गठबंधन द्वारा जनता कि आस पूरी करने का मेनिफेस्टो में भरोसा दिया जो इस बार जनता ने समझ बूझ भाजपा को सत्ता से किनारे करने का मुड़ बना लिया। और कोई प्रधानमंत्री का चेहरा न होते हुए भी एक बड़ा जनादेश गठबंधन को दिया गया। अब समय रहते विधानसभा 2027 से पहले जनता की जरूरत को नही समझा गया तो 2027 उत्तर प्रदेश से भाजपा का सफाया लगभग तय हो चुका है। हालांकि मीडिया में एंटीकबेंसी दिखाया नहीं गया पर साफ देखा जाता है कि विकास के अपने वादे पर खड़ी न उतरने वाली भारतीय जनता पार्टी की छवि निजीकरण की ओर बनने लगी थी। लगातार पूंजी पतियों के आश्रय में जीत का ख्वाब देखने वाली भारतीय जनता पार्टी जनता के समझ से परे नहीं रही। जनता का एक बड़ा हिस्सा मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी से नाराज होती नजर आई। यही कारण रहा है कि इस चुनाव में भले ही कई मुद्दे हावी रहे हो लेकिन जनता ने इस बार खुलकर नरेंद्र मोदी का साथ नहीं दिया इसके कई बड़े वजह हैं। नोटबंदी जैसी असफल योजना, अग्निवीर जैसी दूसरी असफल स्कीम, बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई से जनता परेशान, विकास के नाम पर थोथा चना बाजे घना, मीडिया का गलत इस्तेमाल, ध्रुवीकरण करने की असफल कोशिश इन सबसे चुनाव के पहले चरण से लेकर सातवें चरण तक बीजेपी के प्रति जनता का विश्वास कहीं ना कहीं कम होता चला गया। इस बार पिछली बार की तुलना में भाजपा अकेले दम पर सरकार बनाते हुए नजर नहीं आ रही है।
नौकरशाहों पर पूरा भरोसा

देखा जाए तो व्यक्तिवाद की राजनीति में अपने ही पार्टी के लोगों का महत्व जब खत्म कर दिया जाता है तो प्रशासनिक ढांचे में नौकरशाहों को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया जाता है। कहीं ना कहीं भाजपा के नरेंद्र मोदी सबका साथ और सबका विश्वास हासिल करने में नाकामयाब रहे हैं। जनप्रतिनिधि के रूप में भाजपा के सांसद और मंत्री के रूप में भाजपा के चेहरे जनता के साथ सीधा संवाद स्थापित नहीं कर पाए। इस कारण से भी जनता में मोदी के प्रति विश्वास घटता चला गया। अब सवाल उठता है कि आने वाले समय में किस तरीके से जनता के प्रति अपने विश्वास को मजबूत बनाते हुए बीजेपी आगे बढ़ेगी यह एक सबसे बड़ी चुनौती नरेंद्र मोदी के लिए आने वाले समय में खड़ी हो रही है।
राहुल गांधी द्वारा उठाए गए मुद्दे मील का पत्थर साबित हो रहा है। आने वाले समय में इन्हीं मुद्दों पर सरकार को काम करना जरूरी पड़ सकता है। महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर एक्शन प्लान बनाने की आवश्यकता पर भी ध्यान देना और इसे जमीनी स्तर पर लागू करना सरकार की जिम्मेदारी बनेगी। रोजगार के नाम पर पकोड़ा तलने वाली बात से अब काम नहीं बनने वाला है। इस बार जनता ने मजबूत विपक्ष दिया है, इस कारण से अब पिछली बार के मुकाबले सरकार की ज्यादा जवाबदेही जनता के प्रति बनती हुई नजर आ रही है। पूंजीपतियों द्वारा संचालित मीडिया के सच से भी जनता रूबरू हो चुकी है। इस बार सरकार का गठन होने के बाद सत्ता पक्ष को बेहतर काम के जरिए अपनी पहचान जनता में बनानी होगी। लेकिन जिस तरीके से विपक्ष मजबूत हुआ है और सत्ता पक्ष की सीटें पिछली बार से कम हुई है, ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि इस बार की सरकार हर फैसले को सोच समझ कर लेगी ताकि उसे भविष्य में दूसरे चुनाव में नुकसान ना उठाना पड़े। अगर भाजपा इस बार सरकार बना रही है और केजरीवाल के द्वारा दी गई दस गारंटी सहित कांग्रेस की मेनिफेस्टो को ध्यान में रख जनता की जरूरत को पूरा करने में भाजपा एक दो साल में सफल हो जाती है तभी 2027 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में टीकी रहेगी अन्यथा 2027 विधानसभा उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा का सफाया स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
असल में यह लोकसभा चुनाव विपक्ष की प्रतिष्ठा का सवाल तो था ही इसके साथ ही नरेंद्र मोदी के कार्यो का इम्तिहान भी था। नंबर भले ही दोनों का कम आया लेकिन नरेंद्र मोदी जनता के इस इम्तिहान में पास किसी तरह हो गए हैं। लेकिन अगली चुनौती उनकी बहुत बड़ी होगी। हम पूरी टीम आशा करते हैं कि इस बार भारतीय जनता पार्टी अपने इतिहास से सबसे बेहतरीन कार्यो को करके इस देश का मान सम्मान और गौरव बढ़ाने में अपना भूमिका अदा करेगी। जितना देश अंदर से मजबूत होगा उतना ही देश बाहर से शक्तिशाली बनेगा। गरीबी बेरोजगारी और महंगाई एक बड़ी समस्या है। इससे आंख मूद कर कोई भी सत्ताधारी सुनहरा इतिहास नहीं बना सकता है।
अगर एनडीए सरकार बनाने के लिए चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का सहारा लेती है तो राजनीति का व्यक्तिवाद भाजपा में टूटेगा चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार नए चेहरे के रूप में देश की सत्ता को प्रभावित करेंगे। सबसे बड़ा सवाल-
क्या गोदी मीडिया अब भी विपक्ष से ही करेगी सवाल?

मेन स्ट्रीम की मीडिया अगर जनता के सवालों को उठाते नहीं है तो निश्चित तौर पर गोदी मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो बैठी है। आर्टिकल लिखे जाने तक सरकार बनने की कवायद बीजेपी की तरफ से शुरू हो गई है। मेंन स्ट्रीम की मीडिया को आप देखते रहिए किस तरीके से खबरों को एजेंडे के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करते हुए नजर आ रहे हैं।
कुछ हिन्दू संगठनों का कहना है अयोध्या में भगवान राम की विवादित मंदिर बनवाने के बाद वहां भाजपा हार गई, मंदिर तोड़ने वालों की हुई जीत। भगवान राम का मंदिर हिन्दुओं को रास नहीं आया, इस पर जमीनी हकीकत क्या है? अगले लेख में उन हिन्दू संगठनों के लिए amitsrivastav.in की टीम के मंथन से भगवान चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव की कलम से- साथ ही बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में नरेंद्र मोदी के गलत रवैए से नरेंद्र मोदी को मिला पिछले दो चुनावों कि अपेक्षा इस बार मामूली वोट इस पर जमीनी हकीकत के साथ विचारणीय लेखनी बहुत जल्द।