सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट – कालों की काल महाकाली भवानी माई कोलकात्ता वाली

Amit Srivastav

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सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट - कालों की काल महाकाली भवानी माई कोलकात्ता वाली
कालों की काल महाकाली भवानी माई कलकत्ते वाली,

तेरे ही गुण मईया दर दर सुनाऊँ, ऐसा दी तू मुझको ज्ञान

भवानी माई कलकत्ते वाली…. कालों की काल महाकाली….

मुझपे महिमा तुम्हारी निराली, भवानी माई कलकत्ते वाली,कालों की काल……….

दसों महाविद्या तू धारण करती, तू ही जग की भवानी

भवानी माई कलकत्ते वाली, कालों की काल महाकाली..

मेरे कलम पर तू रहना सवार भवानी माई कलकत्ते वाली,

चरण में तुम्हारे जो शीष नवाया दे दी उसे अभयदान

भवानी माई कलकत्ते वाली, कालों की काल महाकाली..

वो मुरख अज्ञानी जो न जाने, तेरी कहानी भवानी माई…

वरदहस्त मेरे सर पर तुम्हारे, मै तो हूं बड़ा भागी भवानी…

तेरे शरण मईया भक्त गण आतें, उनपर दयानिधि दिखाती भवानी माई कलकत्ते वाली,

कालों की काल महाकाली भवानी माई कलकत्ते वाली।

सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट - कालों की काल महाकाली भवानी माई कोलकात्ता वाली
कोलकात्ता की महाकाली माता की महिमा का चंद पंक्तियों से गुणगान करते आज आदिशक्ति जगत-जननी स्वरुपा सती के 51 शक्तिपीठों में सातवें शक्तिपीठ के रूप में बंगाल के कोलकात्ता कालीघाट स्थित महाकाली का वर्णन आद्या अंश सती के दाहिने पैर की चार उंगलियों पर आदिशक्ति जगत जननी मां कि इच्छा रुपी आशिर्वाद स्वरूप भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव मां सरस्वती की कलम को आगे बढ़ा रहा हूं।
सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट - कालों की काल महाकाली भवानी माई कोलकात्ता वाली
यहां काली घाट की शक्ति कालिका और भैरव नकुलेश हैं। आदिशक्ति आद्या की प्रेरणा से अभी तक हमारी शक्तिपीठ लेखनी में आप सब ने पढ़ा प्रथम सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ कामाख्या जहां सती का योनी भाग स्थापित है।
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सती के योनी भाग को श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति धाम माना जाता है, सम्पूर्ण शक्तिपीठों में यह सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ है। इसका प्रमाण देवासुर संग्राम में दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य से भी मिला है, नरकासुर को सर्व शक्तिशाली शक्तिपीठ नष्ट करने को कहा था उसमें योनी रुप में स्थापित आद्या अंश सती के कामाख्या पीठ ही है। इस शक्तिपीठ को नष्ट करने के बाद अन्य सभी शक्तिपीठों का अस्तित्व स्वतः खत्म होने की बात कही है। कामाख्या शक्तिपीठ वहीं त्रिया राज से सिद्धि प्राप्त कईयों का वर्णन अपने प्रथम शक्तिपीठ लेखनी – कामाख्या शक्तिपीठ श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति का द्वार में किया हूं। गुप्त रहस्यों को उजागर करते माता की महिमा का वर्णन हमारे लेखनी से समाज को प्राप्त हो और माता के प्रति आस्था व्याप्त हो इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए दूसरे शक्तिपीठ के रूप में झारखंड के रजरप्पा में।
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दस महाविद्याओं में से एक छठवीं महाविद्या धारण करने वाली नग्न देवी असुरों का संहार करने के बाद अपने ही सिर को काटकर सहचरीयों संग अपना रुधीर पान कर भुख को शांत करने वाली छिन्नमस्तिका भवानी, इस भवानी को जैसी मनोकामना के साथ पूजा जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है। जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।। राम चरित्र मानस के बालकांड की यह चौपाई नग्न रुप छिन्नमस्तिका भवानी की महिमा पर सटीक बैठती है। जिसकी जैसी भावना होती है छिन्नमस्तिका नग्न देवी उसी रूप में मनोरथ पूरन करती है।
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तीसरी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगलाज भवानी उग्रतारा शक्तिपीठ मोक्ष प्रदान करने वाली। हिंगलाज शक्तिपीठ की पूजा अर्चना मुस्लिम समुदाय भी करता है मुस्लिम समुदाय अपनी नानी पीर के रूप में मानता है।
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चौथी बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्थापित विशालाक्षी शक्तिपीठ, मणिकर्णिका जन्म मरण से मुक्ति प्रदान करने वाली। यहां चौबीसों घंटे जलती रहती है चिताएं जलती रहती हैं। यहां माता के कान का कुंडल गिरा था।
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पांचवीं त्रिपुरमालिनी वक्ष शक्तिपीठ जालंधर पंजाब राज्य में एकमात्र पीठ। इस शक्तिपीठ का इतिहास शिव पुत्र दैत्यराज जलंधर पत्नी वृंदा जो आज तुलसी के रूप में जगत कल्याण के लिए पृथ्वी पर जीवन दायी औषधि के रूप में विराजमान है। विष्णु शालिग्राम पत्थर के रूप में तुलसी के साथ पूजे जाते हैं का ऐतिहासिक इतिहास जुड़ी हुई है।
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छठवीं दक्षिणेस्वरी काली रुपी कामाक्षीदेवी पाताल लोक, युगाद्या शक्तिपीठ क्षीरग्राम वर्धमान बंगाल, इसी शक्तिपीठ मे सती के दाहिने पैर का अंगुठा जहां माता का तंत्र बसता है.. अहिरावण द्वारा पाताल लोक में स्थापित था, अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहरा कामाक्षीदेवी धर्म युद्ध में सीता और राम की लंका में सहयोगी बन युगाद्या शक्तिपीठ – क्षीरग्राम में भैरव क्षीरकंटक, हनुमानजी द्वारा स्थापित हुईं। पाताल लोक अहिरावण द्वारा स्थापित कामाक्षीदेवी भद्रकाली ही सीता मे समाहित होकर सहस्त्ररावण का वध कि थी।
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कालीघाट शक्तिपीठ

आते हैं कोलकाता की काली घाट सातवीं शक्तिपीठ मे समस्त कामनाओं को पूरा करने वाली 10 महाविद्याओं में देवी काली प्रथम महाविद्या धारण करने वाली हैं, भगवान शिव की चौथी अर्धांगिनी काली ही हैं। काली को 108 नामों से जाना जाता है। काली का चार रुप है भद्रकाली, दक्षिणेस्वरी काली, मात्रृकाली, श्मशानकाली। माता का यह रूप साक्षात तथा जाग्रत अवस्था में है। दैत्यों का विनाश करने के लिए माता ने यह रूप समय-समय पर धारण किया।
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इनका स्वरूप अत्यंत भयानक मुण्डमाल धारण किये खड्ग-खप्पर हाथ में उठाये हुये मां अपने भक्तों को अभय दान देती है। ये रक्तबीज तथा चण्ड व मुण्ड जैसे महादैत्यों का नाश करने वाली मां शिवप्रिया साक्षात चामुण्डा का रूप हैं। इनका क्रोध शांत करने के लिए स्वयं महादेव को इनके चरणों के आगे लेटना पड़ा था। दक्षिणेस्वरी मां काली का शक्तिपीठ कोलकात्ता के इस कालीघाट तथा मध्य प्रदेश उज्जैन के भैरवगढ़ में गढ़कालिका के नाम से स्थित है। इसके अलावा गुजरात के पावागढ़ में भी माता का जागृत शक्तिपीठ स्थित है।
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दस महाविद्या

दस महाविद्या उत्पत्ति से सम्बंधित पुराणों में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय की बात है भगवान महादेव की किसी बात से माता पार्वती रूष्ट हो गईं। माता को इतना क्रोध आया कि क्रोध से शरीर काला पड़ने लगा। यह देखकर माता के क्रोध को कम करने कि सोच लिए शिव जी माता के पास से उठे और किसी अन्य स्थान की ओर जाने लगे। अभी वे थोड़ा ही चले थे तभी शिव जी अपने सामने मां के दिव्य स्वरूप को देखा। फिर जब दूसरी दिशा की ओर मुड़े तो दूसरा तेजस्वी रूप दिखाई दिया फिर एक-एक करके महादेव दसों दिशाओं में गये तो प्रत्येक दिशा मेें माता का ही विराट स्वरूप खड़ा दिखाई दिया। ये देखकर महादेव आश्चर्य में पड़ गये और सोचने लगे कि यह देवी पार्वती की माया तो नहीं है ?
सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट - कालों की काल महाकाली भवानी माई कोलकात्ता वालीदस महाविद्या रहस्य 
तब शिव जी माता पार्वती से इस रहस्य को पूछा तो माता ने कहा कि आपके समक्ष काले स्वरूप में सिद्धिदात्री काली हैं, ऊपर की ओर नीलवर्णा देवी तारा हैं, पश्चिम में कटे सिर को हाथ में उठाये मोक्ष प्रदान करने वाली देवी छिन्नमस्तिका, बांई और भुवनेश्वरी, पीछे शत्रु का स्तम्भन करने वाली देवी बगलामुखी, अग्निकोण में धूमावती, वायव्य कोण में मोहिनी विद्या वाली मातंगी, ईशान कोण में षोडशी और सामने भैरवी रूप में स्वयं मैं उपस्थित हूं। माता ने कहा कि मेरे इन स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। इसके बाद महादेव द्वारा माता पार्वती से निवेदन करने पर ये समस्त दस महाविद्या माता काली में समाकर एकरूप हो गईं।
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कोलकात्ता के कालीघाट पर महाकाली के विग्रह रुप का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को कुछ सावधानियां रखनी होती है। कोई भी माता के प्रति श्रद्धा लेकर कालीघाट महाकाली शक्तिपीठ आता है यहां मेन रोड से मंदिर परिसर तक प्रत्येक रास्तें पर दोनों तरफ़ शरीर की व्यवसायी युवतियां, स्त्रियां माता के श्रद्धालु जनों के साथ शारीरिक धन्धे के लिए छेड़छाड़ करती हैं इनके कारण ज्यादातर बाहरी श्रद्धालु महाकाली शक्तिपीठ पर आकर शुद्ध रूप से दर्शन पूजन नही कर पाते हैं मेन रोड विक्रम घाट से कालीघाट शक्तिपीठ की दूरी पांच किलोमीटर यहां हजारों की संख्या में दोनों तरफ़ से शारीरिक धंधा करने वाली स्त्रियां पर्यटकों को आकर्षित कर अशुद्ध करती हैं।
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कालीघाट शक्तिपीठ कोलकाता हाजरा रोड, दक्षिणी एवेन्यू, श्यामा प्रसाद मुखर्जी रोड, रास बिहारी एवेन्यू और शरत बोस रोड जैसी प्रमुख सड़कों से पहुंचा जा सकता है। कालीघाट लगभग 1 किलोमीटर के भीतर, ब्लू लाइन पर, कालीघाट मेट्रो स्टेशन है, जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी रोड के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। इसके अलावा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ठाकुरनगर-पंचपोता रोड और बनगांव-कुलपी रोड के माध्यम से 25 किमी दूर है। हावड़ा रेलवे स्टेशन से 10 किमी दूर स्थित है। मेट्रो, ट्रस्म, सरकारी व प्राइवेट गाड़ियां पर सेकेंड पर मिलती है। टंगरा इंडस्ट्रियल एस्टेट, कासा इंडस्ट्रियल पार्क और कस्बा इंडस्ट्रियल एस्टेट जैसे औद्योगिक पार्कों से इसकी निकटता के कारण, कालीघाट उच्च मांग में स्थित है। इस धर्म क्षेत्र में युवतियों का शारीरिक धंधा कोलकात्ता के प्रमुख सोना गाछी, बहू बाजार से थोड़ा ही कम है। माता की महाकाली विग्रह रुप का दर्शन करने आ रहे हैं तो इन युवतियों से दूर रहने का प्रयास करें और भक्ति भाव से दक्षिणेस्वरी दस महाविद्याओं में प्रथम महाविद्या धारण करने वाली महाकाली का दर्शन पूजन करें। मां भगवती के इस जगत में आने तथा इनके रूपों को धारण करने का कारण जगत कल्याण, साधक की उपासना की सफलता तथा दुष्टों के नाश के लिए है।
निचे लिखे मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब असम्भव काम संभव हो जाते हैं। 15 दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाना चाहिए। हमारे इस गूगल साईट का बेल आइकन को दबा एक्सेप्ट किजिए ताकि हमारी न्यू अपडेट आप तक पहुंच सके। इस साइट पर हर तरह की लेखनी उपलब्ध होती रहती है। ज्यादा कुछ जानकारी के लिए भारतीय हवाटएप्स कालिंग +917379622843 पर लेखक भगवान चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव से सम्पर्क कर सकते हैं। गूगल पर हमारी इस amitsrivastav.in साइड पर जाकर अपनी पसंदीदा लेख पढ़िए। माँ काली आप सभी देश विदेश के पाठकों का सदैव कल्याण करें।
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ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली, चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई, अब बोलो काली की दुहाई।

51 शक्तिपीठों में आठवीं ह्रदय शक्तिपीठ वैद्यनाथ धाम यहां स्थित है वैद्यनाथं द्वादश ज्योतिर्लिंग, विश्व का सबसे बड़ा यहां लगता है मेला हमारे ब्लॉग साइड पर पढ़ने के लिए इस लाइन पर क्लिक किजिये पढ़िए सभी भक्त जन को शेयर किजिये ।

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