स्त्री और पुरुष के बीच मधुर संबंध को प्रेम, स्नेह, श्रद्धा, वात्सल्य आदि कई नामों से जाना जाता है। माता-पुत्र, पिता-पुत्री, ससुर-पुत्र वधु आदि के बीच वात्सल्य प्रेम रहता है। भाई-बहन के बीच स्नेह भाव छोटों के प्रति बडों की श्रद्धा शेष स्त्री-पुरुष, पति-पत्नी या समान आयु वर्ग के बीच मधुर संबंध को प्रेम कहा जाता है। कुछ लोग इस प्रकार के प्रेम को प्रेम न कहकर वासना कहते हैं।

इसलिए बहस का एक मुद्दा प्रेम बनाम वासना हो जाता है जिसे अलग करके देखना असम्भव नही तो अत्यन्त कठिन अवश्य है। स्त्री और पुरुष के बीच आकर्षण का आधार शरीर होता है या मन? इसका निर्णय करना सरल नहीं होता। मूल प्रश्न आता है कि आकर्षण क्यों और कैसे होता है? सौन्दर्य स्त्री में ही नहीं पुरुष में भी होता है, इसलिए प्रेम में पहले कौन पहल करता है या कर सकता है, यह व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। प्रेम का निवेदन या उसकी कामना पुरुष ही करता है। यह कहना गलत होगा, क्योंकि अनेक उदाहरणों में स्त्री भी पहल करती पायी गई हैं। इसलिए किसी भी ओर से प्रेम की कामना हो सकती है। प्रेम शून्य में नहीं होता, उसे एक आधार चाहिए और वह आधार कोई परलिंगी व्यक्ति का शरीर हो सकता है।

जब प्रेम का आधार ही शरीर होता है तो फिर प्रेम अशरीर कैसे होगा? स्त्री-पुरुष प्रेम का आकर्षण मन से होता है। मन किसी परलिंगी के प्रति आकृष्ट होता है। परलिंगी में कौन सा अंग आकर्षण का केंद्र होता है, यह कहना कठिन होगा। इस विषय वस्तु पर लिखने से पहले बहुत ही सावधानी पूर्वक तमाम प्रेमी प्रेमिकाओं के साथ मंथन किया। सर्वप्रथम तो नेत्र ही टकराता है, नेत्र मन का द्वार होता है। नेत्रों में प्रिय की छवि जब समा जाती है तो सीधे ह्रदय में उतर जाती है। स्त्रियाँ इस अर्थ में बहुत चतुर सयानी होती हैं। वे प्रियतम की छवि को ह्रदय में कैद करके नेत्रों के पट बन्द कर लेती हैं। जैसे जनक की फुलवारी में सीता ने राम की छवि को ह्रदय में उतार लिया “दीन्हें पलक कपाल सयानी”
नैनो की भाषा केवल नैन ही पढ़ पाते हैं।
बेमुख रह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं।।
प्रेमी-प्रेमिका जब पास-पास बैठते हैं तो पत्थर की मुर्ति नही रहते। उनके मन में कहने सुनने को बहुत कुछ रहता है। वे घन्टों बातें करते रहते हैं तब भी उनकी बातें समाप्त नही हो पाती कहने सुनने को बहुत कुछ रह जाता है। प्रेमी-प्रेमिका प्रायः सटकर या पास-पास बैठते और अधिक कुछ नहीं तो एक दूसरे का हाथ तो पकड़ ही लेते हैं।
इस प्रकार का अनुभव स्पर्शानुभव कहलाता है। परलिंगियों का स्पर्श उनके शरीरों में विद्युत रासायनिक अभिक्रिया उत्पन्न करता है। इससे दिलों के तार झनझना उठते हैं प्रेम का यह द्वितीय चरण होता है। इस चरण में एक दूसरे का शरीर स्पर्श भिन्न-भिन्न स्थानों पर हो सकता है- बांहों, बालों, चेहरा, पीठ आदि को सहलाना या उस पर हाथ रख देना- इस चरण की अनिवार्य क्रियाएँ होती है।

हाथ में हाथ पकड़ या स्त्री-पुरुष का हाथ एक दूसरे के कमर पर डाल टहलना भी इसी चरण के अन्तर्गत आता है। कभी-कभी प्रेमी युगल पास-पास लेट कर भी बातें करते हैं यह कार्य सूने स्थानों पर प्रायः होता है। कुछ भाग्यवान युगल नदियों या झीलों में नौकायन का आनंद लेते हैं, कल्पना के घोर सरपट दौड़ने या मुक्त पक्षी की भांति अनन्त आकाश में कुलांचे भरने लगते हैं। प्रेम का तीसरा चरण आलिंगन से प्रारम्भ होता है प्रेमिका प्रियतम की गोंद में लेटकर या उसकी छाती पर मस्तक टेक कर बैठ जाती है। फिर दोनों इसी स्थिति में रहकर बातें करते हैं या एक दूसरे के सौन्दर्य को निहारा करते हैं। आलिंगन या परिरंभण के दौरान प्रेमी युगल एक दूसरे को बाहों में बांध कर बैठे या लेटे रह सकते हैं।

कामशास्त्रों में आलिंगन के अनेक प्रकार बताए गए हैं। सामान्यतः स्त्री-पुरुष की गोद में रहती है और पुरुष स्त्री की बाहों में पकड़े सहलाता रहता है। प्रेम का चौथा चरण चुम्बन होता है। यह आरम्भ में कपोल, ललाट, नेत्र, और अंत में अधरों पर आता है। अधर चुम्बन में अतिशय उत्तेजना वश युगल एक दूसरे के मुंह में जीभ डाल देते हैं। आलिंगन चुम्बन एक साथ होने वाली क्रियाएं हैं। प्रियतमा के अधर रस कि पान प्रेम प्रदर्शन की पराकाष्ठा होती है। यह प्रदर्शन अदभुद आनंद प्रदान करता है। चुम्बनों का इतिहास और विस्तार अनन्तकाल से चला आ रहा है। “वो योगी हो गया जिसने यह मोहन भोग चखा है।” या- लव पै लव रख कर लिपट जाऊं तुम्हारे सदके।
वोसा वह शै है जो दोनों को मजा देता है।।
या- क्या नजाकत है कि आरिज उनके नीले पड गये।
मैने तो वोसा लिया था, ख्वाब में उस तस्वीर का।।
चुम्बन लेने वाले को तो सुख मिलता ही है देने वाले को अधिक सुख मिलता है। स्त्री-पुरुष के प्रेम का यह रूप या चरण बहुत ही उत्तेजक और रोमांचक होता है। यह तन-मन को बिहवल कर देता है। यों तो चुम्बन के दूसरे स्थल भी होते हैं। स्तन, कुचाग्र, गर्दन का पिछला भाग, हथेली, छाती, नाभि, जांघें, कटि, कांख, गुप्तांग आदि। किन्तु गर्दन के नीचे भागों का चुम्बन तब लिया जाता है जब कामोत्तेजना बलवती हो जाती है और निकट की दूरी असहनीय होने लगती है। प्रेम का पांचवां चरण मर्दन होता है। यह क्रिया थपथपाने, गुदगुदाने या सहलाने के द्वारा प्रदर्शित की जाती है। नव युगल प्रायः एक दूसरे का कपोल मसल देते हैं या बांह, पीठ या बाल सहलाते हैं। यों तो मर्दन का मुख्य लक्ष्य स्तन और जांघें होते हैं किन्तु उसका नम्बर बहुत बाद में आता है। स्तनों और जांघों को सहलाने या मसलने के बाद कामाग्नि इतनी प्रज्वलित हो जाती है कि फिर प्रेमी-प्रेमिका जब तक एक दूसरे में संलिप्त न हो जाए या नीर-छीर की भांती एक दूसरे में समा न जाएं तब तक कामाग्नि शांत ही नहीं होती।

किन्तु यह एकीकरण प्रेम नाटिका की यवनिका होती है पर्दा गिरा खेल खत्म। प्रेम की अंतिम मंजिल संभोग होती है यह सत्य होने पर भी यह आवश्यक नहीं कि प्रेमी-प्रेमिका संभोग करें ही। भारतीय युवतियाँ प्रेम के चौथे चरण तक सरलता से चढ़ जाती हैं किन्तु पांचवें चरण पर पैर रखते ही उसका ह्रदय धड़कने लगता है। उसे आगे बढ़ने में खतरा दिखाई देता है। इसलिए आमतौर पर कुछ युवतियां पीछे भी हट जाती हैं।
किशोरावस्था में शरीर के साथ-साथ ही मन भी तेजी से विकसित होता है।

स्त्री-पुरुष जननांगो पर पड़ने वाला नयसर्गिक प्रभावों से यौनांग तो विकसित पुष्ट और संभोग सक्षम बनते ही हैं, मन भी इन परिवर्तनों से अछूता नहीं रहता। घर मे ही किशोर किशोरियों को बडों के लाख गोपनीय व्यवहार करने के बावज़ूद ऐसे दृश्य देखने को मिल जाता है जो उनके मन को मथने लगते हैं। साथ ही स्कूल कालेज में फैशन और ग्लेमर की प्रदर्शनी और रोमांस के नए किस्से देखने सुनने को मिला करते हैं। फिल्मों, बीडीओ, दूरदर्शन और इन्टरनेट द्वारा भी पूर्ण सहयोग प्राप्त कर लेते हैं।

आजकल तो यूट्यूब गुगल नेट पर ऐसे ऐसे चित्र बीडीओ दिखाया जा रहा है जो सात्विक मन को भी झकझोर काम वासना को प्रज्वलित कर देता है। ऐसे वातावरण और परिवेश में सतीत्व और सात्विकता का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है। रोमांटिक पाकेट बुक में पढ़ने को मिलता है, ज्यादातर भोजपुरी अश्लीलता भरे फिल्म व गाने, इन्टरनेट पर तो अश्लीलता का भंडार ही है, डंके की चोट पर दिखाया व बताया जाता है कि प्रेम का अर्थ शरीर सम्बन्ध स्थापित करना होता है। प्रेम की इस नौटंकी के तीन दृश्य होता है-ऐन, केन, प्रकारेण- किसी लड़की को पटाना, उसके साथ विवाह का वचन देना या कभी-कभी विवाह कर लेना, अंत में हनीमून पर निकल जाना।

आज का प्रेम न तो जायस के जायसी के पद्मावती का प्रेम है न काशी के कबीर का न राजस्थान की मीरा का प्रेम है न दक्षिण भारत की ओण्डाल का। अमीर खुसरो के प्रेम गीतों के प्रमुख नायक ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया हैं तो ओण्डाल और मीरा कृष्ण के साथ रमणेच्छु हैं, जायसी और कबीर दोनों आत्मा और परमात्मा के मिलन को पति-पत्नी के शारीरिक प्रेम के उदाहरणों से व्यक्त करते हैं। प्रेम का आधार शरीर ही होता है अब शरीर का मिलन संभोग हो ही यह परिस्थितियों, प्रेम की सीमा और प्रेमी-युगल की भावनाओं पर निर्भर करता है। यदि कोई प्रेमी युगल इस सीमा तक प्रेम करता है कि बिना शरीर सम्बन्ध के उसे शांति नहीं मिल सकती तो शरीर सम्बन्ध अनहोनी बात भी नही होती। शरीर रांगो का जब प्यार दुलार किया जाएगा तो कामाग्नि के धधक उठने पर उसको बुझाना अवश्यंभावी हो जाता है। कोई शरीर से छेड़छाड़ करे और उसकी प्रतिक्रिया न हो यह अस्वाभाविक है। प्रिय द्वारा अंगुली छू जाने पर ही जब शरीर में सनसनी फैल जाती है तब आलिंगन चुम्बन मर्दन से क्या दशा होती होगी? प्रेमी-प्रेमिका दूर-दूर बैठकर प्रेमालाप करें यह अपने आप में ही एक हास्यास्पद बात होगी।

जब प्रेमी-प्रेमिका निकट बैठेंगे तो सट कर बैठना चाहेंगे, जब सट कर बैठेंगे तो कम से कम प्रिय का हाथ प्रियतमा के हाथ में या गोद में होगा, जब इतना चल कर कोई आएगा तो खाली हाथ कैसे जायेगा। निकट से निकटतर और निकटतर से निकटतम होने की कामना को अस्वभाविक भी कैसे कहेंगें? यह तो प्रेम का गणित है, दो दूनी चार और चार चौका सोलह होना ही है। फिर भी यह सर्वथा आवश्यक नहीं कि प्रेमी-प्रेमिका के यौनांगो का मिलन हो ही। अनेक बार केवल उपर-उपर से अंगों का प्यार दुलार करके मन को समझा लिया जाता है। कभी-कभी जननांगो को छेड़ कर भी प्यार का इजहार कर लिया जाता है। पश्चिमी देशों में उसे ‘हेवी पेटिंग’ कहते हैं। इसमे केवल शिश्न-योनी मिलन न होकर शेष सब कुछ कर यौन तृप्ति कर ली जाती है। वे लोग मानते हैं कि ऐसा करके पवित्र बने रहते हैं और लड़की का भी कुँवारीत्व भंग नहीं होता। ऐसा कुँवारीत्व कुछ ही लडकियां बचाएं रहतीं हैं, शेष तो आत्मसमर्पण करने का मन बना कर ही प्रेम की राह पर चलती हैं। शारीरिक प्रेम अनैतिक है या व्यवाहारिक मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि प्रेम शून्य में नहीं किसी व्यक्ति से किया जाता है।

जब व्यक्ति साकार है शरीर धारीवाल है तो उसका प्रेम अशरीर हो ही नहीं सकता। साधारण जन जब प्रेम करते हैं तो उनका शरीर ही माध्यम बनता है जिसके द्वारा ह्रदय का विनियम करते हैं इसलिए मनुष्य के प्रेम को अशरीरी कहना या मानना एक हास्यास्पद कल्पना के सिवा कुछ दूसरा नही हो सकता। भारतीय संस्कृति भी भानुमति के पिटारे से कम जादूई नही है। इसमे विधि और निषेध, स्वीकृति और वर्जित के इतने उदाहरण भरें पडे हैं कि कौन सा रास्ता चुना जाए यह निर्णय कर पाना कठिन है। राधाकृष्ण का प्रेम, गोपियों के रास और महारास के रस का सागर श्रीमदभागवत मध पुराण है। उसके विवरण एक ओर शुद्ध अध्यात्म की ओर ले जाते हैं तो दूसरी ओर मानसिकता के भोग का भी संकेत देते हैं। कुमार संभवत में शिव पार्वती का विवाह वात्स्यायन के कामसूत्रो की व्याख्या प्रतीत होती है। छांदोग्य और बृहदारण्यक में संभोग को यज्ञ के माध्यम से समझाया गया है। पूरे वैदिक और संस्कृत वांग्मय में प्रेम और संभोग के रूपक जहां तक बिखरे पड़े हैं पर उनकी समझ में यह नही आता कि कहां पहुंच कर वापस लौटा जाए। प्रेम पथ पर चल कर ऐसा दो राह मिलता है जहाँ वे भ्रमित हो जाती हैं।

एक ओर प्रेम की पावन धारा, दूसरी ओर शरीर की ज्वालामुखी उन्हें दुविधा में डाल देती है। प्रेमी का सानिध्य जहाँ मन में सतरंगी इन्द्रधनुष बनाता है वहीं उसके अंगुली पकडने के साथ उरोजों तक बढ़ते हाथ से घबड़ाने लगती हैं। लरिका लेवे के मिशन लंगर मो ढिग आय गयो अचानक आंगुरी छाती छैल छुवाय, कहावत का मतलब – गोद में से बच्चा लेने के बहाने उस प्रेमी ने मेरी छाती- स्तन को छू लिया। एक ओर प्रेम का लोभ दूसरी ओर प्रेमी की काम भावना मन अजीब भवर जाल में फंस जाता है। ज्यादातर साहसी लडकियां प्रेम की पांचवें चरण पर चढ़ पीछे पैर हटा लेती हैं। निश्छल व भावुक लडकियां सर्वस्व लुटा देती हैं। क्या करूं क्या न करूं? यह दुविधा सभी प्रारम्भिक युगलों के मन मे होती है। पश्चिम की लडकियां जहाँ पूरी तरह प्रेम का समापन करती हैं, वहीं हमारे पुर्वीय प्रदेश की लडकियां भयभीत हिरणी बनी रहती हैं। ये यह चाहती हैं कि उनका एक अदद प्रेमी हो, पर यह देख सिहर उठती हैं कि उनका प्रेमी उनका प्रेम नहीं शरीर चाहता है।

हमारा समाज दोहरी नैतिकता का कट्टर समर्थक है। पुरुष किसी स्त्री का प्रेम के नाम पर शरीर भोग करे तो उसका पौरुष, किशोर युवक हुआ तो उसकी नादानी या लड़कपन माना जाता है। किंतु लड़की भंवर जाल में फंस कर सर्वस्व लूटा बैठी तो उसके सात पुस्त की बखिया उडेल कर रख दी जाती है। उसे छमा करने का साहस या मानसिकता हमारे समाज में है ही नही। इस लेखनी में अहम भूमिका अदा करने वाली अपनी सहयोगियों के साथ-साथ इतना कहूंगा, दूसरों के प्रति आप को भी वैसा व्यवहार करना चाहिए जिसे हम अपने लिए पसंद करें। वैसे तो प्रेम की भाषा सब जानते हैं कुछ छुपकर इजहार करते कुछ यादगार बन जाते हैं। खग जाने खगही के भाषा के साथ-साथ कामदेव की ससम्मान में- नीचे लिखित दो पंक्तियाँ।
आगे पढ़िए मोंक्ष का एक मार्ग इस लाइन पर क्लिक किजिये ।
प्रेम प्यार सुख चैन की वर्षा तेरी नजर से वर्षे।
कोई भी न पनघट तरसे कोई न प्यासा तडपे।।
Related
6 thoughts on “खग जाने खगही के भाषा – प्रेम, वासना, प्रेरणा स्रोत”