51 शक्तिपीठों के नाम और जगह का वर्णन-देवी भागवत पुराण में 108, तंत्र चूड़ामणि और दुर्गा शप्तसती में 52, कलिका पुराण में 26, शिव पुराण, शिव चरित्र में 51 आदि ग्रंथों में अलग-अलग उल्लेखित है। आमतौर पर सती के अंग आभुषण से स्थापित शक्तिपीठ 51 माना जाता है। आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा दक्ष पुत्री शिव की अर्धांगिनी देवी सती के अंग जहां-जहां गिरे थे, उन स्थानों पर स्थापित हो शक्तिपीठ कहलाये। पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित कथा के अनुसार जब देवी सती ने ब्रह्मा के मानस पुत्र अपने पिता पृथ्वी सम्राट दक्ष प्रजापति के यज्ञ में बिना बुलावा शिव के मना करने पर भी हठपूर्वक आज्ञा लेकर चली गई, तब पिता के यज्ञ में अपने स्वामी शिव का अपमान सहन नहीं कर सकीं और दक्ष प्रजापति की पुत्री रुप में अपने शरीर को त्याग दीं। यह सूचना शिव गणों ने शिव को पहुंचाया, जिससे शिव सती बियोग में उग्र हो उठे, फलस्वरूप भद्रकाली का आगमन हुआ और शिव व भद्रकाली के क्रोधाग्नि शिव की जटा से भद्रकाल की उत्पत्ति हुई, शिव और भद्रकाली की आज्ञा से भद्र काल सभी देवताओं को पराजित करते हुए दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दक्ष प्रजापति के सिर को काट दिए। सभी देवताओं के आग्रह पर शिव ने दक्ष प्रजापति के “मैं” को नष्ट कर बकरे का सिर दे जीवन दान दिया। सती की उस अवस्था को देखकर शिव विचलित हो सती के शव को उठा सृष्टि में टांडव करने लगे, जिससे सृष्टि प्रलय की ओर जाने लगी, तभी सभी देवताओं में हाहाकार मच गया। सृष्टि के पालन हार को आदिशक्ति ने निदान का मार्ग – सती के शरीर को शिव से अलग करने को बताई, तब भगवान विष्णु सती के शरीर को अपने चक्र सुदर्शन से खंडित किया, जो 51 भागों में विभाजित हो पृथ्वी पर शक्तिपीठ रूप में स्थापित हुआ। इन शक्तिपीठों में देवी उर्जामान रहतीं हैं और सभी भक्त जनों के दुखों व कष्टों का निवारण करती हैं। शक्तिपीठ लेखनी में जानिए ब्रह्मा जी के काया से उत्पन्न सृष्टि में सभी के कर्म फलो का लेखा-जोखा लिखने व डंड निर्धारण करने वाले भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज कायस्थ संपादक अमित श्रीवास्तव की कर्म धर्म लेखनी से- 51 शक्तिपीठों का संक्षिप्त परिचय। जो-जो शक्तिपीठ विस्तार पूर्वक लिख चुके हैं उसके साथ साथ शेष शक्तिपीठों का संक्षिप्त रूप में जगत जननी स्वरुपा देवी कि कृपा से यहां वर्णन कर रहा हूं। और साथ ही अपनी शक्तिपीठ लेखनी का लिंक संलग्न कर रहा हूं।

सम्पूर्ण रहस्यों को उजागर करते माता की महिमा का वर्णन हमारी लेखनी से समाज को प्राप्त हो और माता के प्रति आस्था व्याप्त हो, इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए “51 शक्तिपीठों” पर अग्रसर लेखनी का संक्षिप्त विवरण यहाँ दिया जा रहा है। विस्तार से जानने के लिए सम्बंधित शक्तिपीठ का लिंक दिया गया है क्रमशः क्लिक कर या गूगल पर सर्च कर हमारी वेबसाइट पर सुस्पष्ट भाषा में सत्यता के साथ पढ़िए और माता के प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न होने पर दर्शन पूजन कर अपने – अपने जन्म को सफल किजिये। “बड़े भाग्य मानुष तन पावा” । तो इस मनुष्य तन को पाकर ईश्वरीय शक्तियों में लिन हो अच्छे-बुरे कर्म का ध्यान रखते हुए गृहस्थ जीवन को सफल बनाते ब्रह्म ऋण से मुक्ति पाकर कर्म धर्म करते हुए ईश्वर में विलिन होने के मार्ग पर समय रहते अग्रसर हो जाईऐ।
Table of Contents
51 शक्तिपीठ के नाम और जगह
यहाँ मां आदिशक्ति जगत जननी की प्रेरणा स्वरूप 51 शक्तिपीठों का उल्लेख किया हूं – प्रेम से बोलिए जय मां आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा सभी देवीयों की जय और पढ़िए क्रमशः 51 शक्तिपीठ लेखनी चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव कि कलम से।
1- कामाख्या शक्तिपीठ: योनिपीठ: सृष्टि का केन्द्र बिन्दु मोंक्ष का द्वार-

कामरुप गुवाहाटी असम। यहां नीर गिरी पर्वत पर ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर सती का योनि भाग है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव उमानंद हैं। यहाँ माता रजस्वला होती है और माता के जून मासी रजस्वला पर अंबुबाची मेला लगता है। जो यह प्रकट करता है कि इस सृष्टि में स्त्री स्वरूपा देवियाँ ब्रह्म ऋण से मुक्ति दिलाने वाली सृष्टि विस्तार में पति-पत्नी रूप में सहभागी होती हैं। जिस तरह देवी रूपी औरतें हर महीने मासिक धर्म से गुजरती हैं वैसे ही मां कामाख्या मासिक धर्म से गुजरती हैं, महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़ा मां कामाख्या देवी का उद्देश्य सृष्टि के विस्तार से जूड़ा है। यह सृष्टि का केन्द्र बिन्दु मोंक्ष का द्वार माना जाता है। यहां देश विदेश के तांत्रिक जादूगर अपनी तंत्र-मंत्र विद्या की सिद्धि के लिए आते हैं। यह स्थान तंत्र-मंत्र विद्या की सिद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने नरकासुर को यह शक्तिपीठ नष्ट करने के लिए उकसाया था, ताकि शिव शक्तिहीन हो जाएं और दैत्यों का साम्राज्य सम्पूर्ण लोक पर स्थापित हो सके। यहां नरकासुर द्वारा निर्मित मार्ग को नर्क द्वार माना जाता है और इस मार्ग से देवी की पूजा-अर्चना करने नही आना चाहिए।
2- छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ – रजरप्पा रामगढ़ झारखंड।
यहां दामोदर भैरवी नदी के संगम स्थल पर सती का सिर भाग से स्थापित शक्तिपीठ है। जब देवासुर संग्राम में रक्तबीज मां आदिशक्ति को युद्ध के लिए ललकारने लगा, तब मां आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा उग्र काली रक्तबीज का संहार करने के लिए सहचरीयों को उत्पन्न कर रक्तपान करते-करते रक्तबीज का वध कर दीं। उस समय आदिशक्ति योगनिद्रा में चली गईं और उग्र काली अपने से उत्पन्न सहचरीयों सहित देवताओं का भी भक्षण करने के लिए बढऩे लगीं, उस समय त्राहि-त्राहि मच गया। गणेश जी और कार्तिकेय जी की सुझाव पर शिव प्रिय मार्कंडेय जी ने शिव को समाधि से बाहर निकालने के लिए स्तुति की, तब शिवजी आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा उग्र काली को शांत करने के उनके मार्ग में भूमि पर लेट गयें थे। जब उग्र काली का पैर शिव जी के ह्दय पर पड़ा तब उनकी चेतना वापस होने लगी और भैरवी दामोदर संगम पर स्नान करने अपनी सहचरीयों संग चली गई। सहचरीयों संग अपनी रक्त पिपासा को शांत करने के माता ने अपना मस्तक काट तीन रूधीर बहा दीं एक अपने और दो सहचरीयों ने पान किया। यह वही स्थान है, जहां सती का सिर भाग स्थापित है। यहां भैरवी दामोदर संगम पर स्नान करने से श्रद्धालु जन को रोग और पाप से मुक्ति मिलती है और तांत्रिक साधनाओं के लिए उपयुक्त स्थान है। विष्णु अवतारी परशुराम जी ने यही से अपनी विद्या ग्रहण किया था। यहां सभी देवी-देवता माता के दर्शन के लिए उपस्थित रहते हैं। यह छिन्नमस्तिका देवी दस महाविद्यायो में से छठवीं महाविद्या धारण करने वाली, रोग व पाप का नाश करने वाली, काम रती का मर्दन करने वाली, स्त्रीयों के सतित्व की रक्षा करने वाली, दैत्य दानवों का संहार करने वाली, नग्न रुपा देवी दूसरे सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ के रूप में विराजमान छिन्नमस्तिका भवानी हैं। “छिन्नमस्तिका” का शाब्दिक अर्थ होता है वह देवी जिनका सिर कटा हुआ है।
जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
श्रीरामचरित मानस के बालकांड की यह चौपाई छिन्नमस्तिका दिब्य भवानी पर सटीक बैठती है। यह देवी हर मनोकामना को पूरी करती हैं।
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3- उग्रतारा शक्तिपीठ हिंगलाज भवानी –
बलूचिस्तान पाकिस्तान। यहां सती का ब्राह्मण भाग मस्तक है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक के रूप में भैरव भीमलोचन रहते हैं। यह शक्तिपीठ हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, क्योंकि इस शक्तिपीठ को मुस्लिम- पीर नानी के रूप में पूजते हैं। Click on the link गूगल ब्लाग पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
4- विशालाक्षी मणिकर्णिका शक्तिपीठ –
वाराणसी उत्तर प्रदेश। यहां सती के कान का कुंडल गिरा यहां शक्तिपीठ के रक्षक कालभैरव हैं। काशी शिव की नगरी के रूप में देखी जाती है। यहां शिवजी ने ब्रह्मा जी का पंचम अभिमानी मुख काटने के बाद तप किया इसलिए यह शिव की तपोभूमि भी है। काशी के काल भैरव एक तरह से काशी के कोतवाल के रूप में विराजमान हैं। यहाँ कोतवाली में कोतवाल की कुर्सी पर खुद विराजमान हो न्याय करते हैं।
यहां स्थित – चौथी विशालाक्षी शक्तिपीठ, को विस्तार से पढ़ने के लिए ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये।
5- त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ देवी तालाब –
जालंधर पंजाब। यहां सती का बायां वक्ष भाग स्थापित है। इस शक्तिपीठ को त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ के नाम से जाना जाता है। इस शक्तिपीठ का इतिहास शिव अंश दैत्यराज जलंधर पत्नी वृंदा जो वर्तमान समय तुलसी रूप औषधि के रूप में विराजमान हैं और विष्णु के शालिग्राम रूप से जूड़ा हुआ है। विष्णु रूप में शालिग्राम पत्थर जो गंडक नदी में नेपाल के गंडकी शक्तिपीठ के पास पाई जाती है।
6- दक्षिणेस्वरी काली रुपी कामाक्षीदेवी युगाद्या भवानी-
वर्धमान पश्चिम बंगाल – छठवीं शक्तिपीठ दक्षिणेस्वरी काली रुपी कामाक्षीदेवी पाताल लोक, युगाद्या शक्तिपीठ क्षीरग्राम वर्धमान बंगाल, इसी शक्तिपीठ मे सती के दाहिने पैर का अंगुठा जहां माता का तंत्र बसता है.. अहिरावण द्वारा पाताल लोक में स्थापित था, अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहरा कामाक्षीदेवी धर्म युद्ध में सीता और राम की लंका में सहयोगी बन युगाद्या शक्तिपीठ – क्षीरग्राम में भैरव क्षीरकंटक, हनुमानजी द्वारा स्थापित हुईं। पाताल लोक में अहिरावण द्वारा स्थापित कामाक्षीदेवी भद्रकाली ही सीता मे समाहित होकर सहस्त्ररावण का वध कि थीं।

7- कालिका शक्तिपीठ कालीघाट कोलकात्ता पश्चिम बंगाल
यहां सती के दाहिने पैर की अंगुठे को छोड़कर शेष चार उंगलियां स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक रूप में भैरव नकुलेश हैं। दस महाविद्यायो में से प्रथम महाविद्या धारण करने वाली महा काली यहीं विराजमान हैं। माता का यह कालिका रूप साक्षात तथा जाग्रत अवस्था में है। दैत्यों का विनाश करने के लिए माता ने यह रूप समय-समय पर धारण किया। इनका स्वरूप अत्यंत भयानक मुण्डमाल धारण किये खड्ग-खप्पर हाथ में उठाये हुये मां अपने भक्तों को अभय दान देती है। ये रक्तबीज तथा चण्ड व मुण्ड जैसे महादैत्यों का नाश करने वाली मां शिवप्रिया साक्षात चामुण्डा का रूप है।
विस्तृत जानकारी के लिए यहां ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये पढ़िए- सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट कोलकात्ता।
8- ह्दय शक्तिपीठ जय दुर्गा वैद्यनाथ धाम देवघर झारखंड
यहां सती का ह्दय भाग स्थापित है यहाँ भैरव रूप में बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। ह्रदय शक्तिपीठ जय दुर्गा देवी यह विश्व का एकमात्र ऐसी शक्तिपीठ है, जहां शक्तिपीठ के साथ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक नौवीं ज्योतिर्लिंग स्थापित है। अन्य 11 ज्योतिर्लिंग के पास इतना निकट कोई शक्तिपीठ नही है। ह्दय शक्तिपीठ के पास स्थापित ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान भारत देश में झारखण्ड राज्य के देवघर में स्थित है। यहां श्रावण मास में बाबा बैद्यनाथ धाम कि यात्रा स्वरूप विश्व के अनेक देशों से श्रद्धालु आते हैं और एशिया का सबसे बड़ा मेला लगता है।
9– शक्तिपीठ वैष्णो देवी
त्रीदेवीयों के रूप में वैष्णो देवी सिद्ध महामाया शक्तिपीठ भारत के कश्मीर में पहलगांव के समीप त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां सती के शरीर का कंठ या खोपड़ी गीरी थी। यहां महामाया वैष्णो देवी शक्तिपीठ के रक्षक भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं। जनकल्याण के लिए त्रिदेवीयों की अंश राजकुमारी त्रिकुटा त्रिकूट पर्वत पर तपस्या की थी। त्रेता युग से दैत्य दानवों का मर्दन कर जगत कल्याण के लिए माता पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में महामाया शक्तिपीठ मे स्थापित हैं, धर्म ग्रंथों के अनुसार विष्णु अंश श्रीरामचंद्र जी भी यहां आये हुए थे और देवी त्रिकुटा को शक्तिपीठ मे निवास स्थान दे कलयुग में कल्की अवतार लेने तक अपनी इन्तज़ार करने को कह जगत कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहने की आज्ञा दे अपने धाम को चले गए।
विस्तृत जानकारी के लिए यहां क्लिक किजिये पढ़िए- नौवीं शक्तिपीठ वैष्णो देवी।
10- विन्ध्यवासिनी विंध्याचल शक्तिपीठ –
विंध्याचल मैहर उत्तर प्रदेश। यहां सती का तर्जनी उंगली स्थापित है, यहां भैरव के रूप में कालभैरव शक्तिपीठ के रक्षक रूप में रहते हैं।
यक्षि-यक्षि तर्जनीभ्यां नमः। महायक्षि मध्यमाभ्यां नमः।।
यहां विंध्याचल की खुबसूरत पहाड़ी में विष्णु प्रिया योगमाया निवास करती है। जो कंश के हाथ से फिसल कर कंश वध की आकाशवाणी कर विंध्याचल की पहाड़ी में आकर शक्तिपीठ मे स्थापित हुईं। योगमाया के साक्षात निवास से विन्ध्यवासिनी शक्तिपीठ कि महिमा बढ़ जाती है। यहां का वातावरण दैवीय ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है और भक्तजनों की सभी मुरादें पूरी होती है।

11- गंडकी शक्तिपीठ गंडक नदी पोखरा नेपाल
यहां सती का गंड भाग स्थापित है यहाँ भैरव चक्रपाली शक्तिपीठ की रक्षा करते हैं। इस गंडकी चंडी शक्तिपीठ को मुक्ति नाथ मंदिर भी कहा जाता है। यहां सती के अंग को लेकर स्पष्ट नहीं क्योंकि गंडभाग, मस्तक, कनपटी अलग-अलग ग्रंथों में उल्लेखित है। हमारे विचार से गंड भाग स्थापित होने से नदी व शक्तिपीठ मे यह शब्द समाहित है। गंडकी नदी में शालिग्राम पत्थर मिलता है, जिसका इतिहास हमारी पांचवी शक्तिपीठ त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ देवी तालाब जालंधर से भी जूड़ा हुआ है। शिव अंश जलंधर का वध कराने के लिए विष्णु भगवान ने वृंदा के साथ छल किया था, जिस कारण वृंदा जो भगवान विष्णु की भक्त थी, ने अपने ही भगवान विष्णु को छल से पतिव्रत धर्म नष्ट करने और जलंधर के वध में सहायक बनने पर श्राप दे दिया- कि आप पत्थर हो जाओ। पतिव्रता वृंदा के श्राप से विष्णुजी शालिवान पत्थर हो गयें, वहीं वृंदा अपने शरीर को भष्म कर ली, भगवान विष्णु के वरदान से वृदा के भष्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ जो आदिकाल तक औषधि रूप में रहेंगी और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ वृंदा बनी तुलसी रूप में पूजी जाती हैं। पूरी जानकारी के लिए सर्च किजिये या उपरोक्त लिंक से – पांचवी शक्तिपीठ त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ देवी तालाब जालंधर, को पढ़िए।
12 – महाकाली शक्तिपीठ – उज्जैन, मध्य प्रदेश
यहां सती के होंठ का ऊपरी भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव रूप में महाकाल निवास करते हैं। यहीं दूसरी शक्तिपीठ हरसिद्धि देवी तालाब के किनारे स्थित है यहां सती के हाथ का केहुनी स्थापित है। यह माता दिन में गुजरात तो रात्रि काल में उज्जैन अपने शक्तिपीठ मे विश्राम करती हैं।
13- त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ – उदयपुर त्रिपुरा
यहां सती के दाहिने पैर से स्थापित शक्तिपीठ है, यहां शक्तिपीठ की रक्षा के लिए भैरव रूप में त्रिपुरेश रहते हैं। यह त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ त्रिपुरा में राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत की शिखर पर स्थित है।
14- अंबाजी शक्तिपीठ – गुजरात
यहां भी सती के ह्रदय भाग से स्थापित शक्तिपीठ है जो बाबा बैद्यनाथ धाम में स्थापित शक्तिपीठ से जुड़ा हुआ है, यहां भैरव रूप में भैरव शक्तिपीठ रक्षक के लिए निवास करते हैं।
15- सारदा शक्तिपीठ – शारदा पाकिस्तान
यहां सती का दाहिना हाथ स्थापित है, यहां भैरव चंद्रशेखर शक्तिपीठ के रक्षक के रूप में विराजमान हैं।
16- कंकालि शक्तिपीठ – मेरठ उत्तर प्रदेश
यहां सती के एक कान का कुंडल स्थापित है, यहां भैरव कपिलेश्वर शक्तिपीठ कि रक्षा करने के लिए रहते हैं।
17- चामुंडा देवी शक्तिपीठ – हिमाचल प्रदेश
यहां सती का मस्तक भाग स्थापित है, यहां भैरव रुद्रेश्वर शक्तिपीठ रक्षक के लिए रहते हैं।
18- ज्वालामुखी शक्तिपीठ – हिमाचल प्रदेश
यहां सती का जीभ भाग स्थापित है, यहां भैरव अनगेश्वर शक्तिपीठ कि रक्षा के लिए रहते हैं।
19- भीमशंकर शक्तिपीठ – महाराष्ट्र
यहां देवी सती का नाभि भाग स्थापित है, यहां भैरव रूप में भीमलोचन शक्तिपीठ कि रक्षा करते हैं।
20- तारा तारिणी शक्तिपीठ – ओडिशा
यहां देवी सती का स्तन भाग स्थापित है, यहां भैरव तारा तारिणी शक्तिपीठ के रक्षक हैं।
21- महलक्ष्मी शक्तिपीठ – कोल्हापुर महाराष्ट्र
देवी सती का नेत्र स्थापित है, यहां भैरव महेश शक्तिपीठ के रक्षक हैं।
22- ललिता देवी शक्तिपीठ – प्रयागराज उत्तर प्रदेश
यहां सती की दाहिने हाथ की उंगली स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव भैरवेश्वर भव हैं। त्रिवेणी संगम इलाहाबाद के नाम से भी यह स्थान जाना जाता है।
23- मनसा देवी शक्तिपीठ – हरिद्वार उत्तराखंड
यहां सती का हाथ स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव मांनस भैरव हैं। हरी की पौड़ी गंगा तट की पहाड़ी पर मां मनसा देवी मंदिर स्थित है और यही मनसा देवी मंदिर से थोड़ी दूरी पर समतल भूमि पर दक्ष प्रजापति द्वारा किया गया हवन कुंड है, यही भगवान शिव की गोद में भ्रमण अवस्था में माता सती की मुर्ति का स्थापित है। बताया जाता है दक्ष प्रजापति का महल यही स्थित था।
24- भ्रामरी नैना देवी शक्तिपीठ – नैनिताल उत्तराखंड
यहां सती की नेत्र स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव रूप में कालभैरव हैं।
25- शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ – सहारनपुर उत्तर प्रदेश
यहां सती एक आंख स्थापित है, यहां भैरव रक्तभैरव शक्तिपीठ कि रक्षा करते हैं।
26- कंकाली शक्तिपीठ – सोनभद्र उत्तर प्रदेश
यहां सती का कान स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव रूप में कपिलेश्वर करते हैं।
27- महाकाली शक्तिपीठ – पावागढ़ गुजरात
यहां सती के दाहिने हाथ की कलाई स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव काल भैरव करते हैं।
28 – श्रीशैलम शक्तिपीठ – आंद्र प्रदेश
यहां सती का गला भाग स्थापित है, यहां भैरव शिव शंकर शक्तिपीठ के रक्षक रूप में विराजमान हैं।
29 – मंगला गौरी शक्तिपीठ – गया बिहार
यहां सती का स्तन भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव मंगलनाथ करते हैं।
30 – पूर्णेश्वरी शक्तिपीठ -पूर्णिया बिहार
यहां सती का पैर भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव पूर्णेश करते हैं।
31- कांची कामकोटि शक्तिपीठ – तमिलनाडु
यहां सती का नाभि भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव कामेश्वर करते हैं।
32- कमाक्षी शक्तिपीठ – कांचीपुरम तमिलनाडु
यहां सती का पीठ भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव दुर्गा भैरव करते हैं।
33- अट्टहास शक्तिपीठ – बीरभूम पश्चिम बंगाल
यहां सती के मुख का निचला जबड़ा स्थापित है, यहां शक्तिपीठ की रक्षा भैरव भीमलोचन करते हैं।
34- कालिका शक्तिपीठ – दिल्ली
यहां माता सती के हाथ का अंगूठा स्थापित है, यहां शक्तिपीठ रक्षक के रूप में भैरव महाकाल विराजमान हैं।
35 – मानवेश्वरी शक्तिपीठ – जयपुर राजस्थान
यहां सती का कण्ठ भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव श्रृंगार करते हैं।
36- उज्जयिनी शक्तिपीठ – उज्जैन मध्य प्रदेश
यहां सती का हथेली भाग स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव कालभैरव हैं। यहाँ कालभैरव मंदिर विश्व का एक सुप्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है।
37- हरसिद्धि शक्तिपीठ – राजकोट गुजरात
यहां माता सती का कान भाग स्थापित है, यहां भैरव हरसिद्धेश्वर शक्तिपीठ के रक्षक हैं।
38- चंद्रहासिनी शक्तिपीठ – छत्तीसगढ़
यहां देवी की हथेली स्थापित है, यहां शक्तिपीठ रक्षक भैरव चंद्रहास निवास करते हैं।
39- मुक्तेश्वरी शक्तिपीठ – बैठाखल असम
यहां देवी सती का बायें पैर का अंगूठा स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक रूप में भैरव कपिलेश्वर निवास करते हैं।
40- किरीट शक्तिपीठ – लालबाग कोट पश्चिम बंगाल
यहां सती का शिरोमणी सिर का मुकुट स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के भैरव रूप संवत्र्त शक्तिपीठ का रक्षक हैं। यह स्थान पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में लाल बाग कोर्ट स्टेशन के करीब किरीट कोंडा गाव में हुगली नदी के किनारे स्थित है।
41- महामाया गुजरेश्वरी शक्तिपीठ नेपाल
यहां सती के घुटने “जानु” स्थापित है, यहां महशिरा महामाया शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव कपाली करते हैं। यह शक्तिपीठ नेपाल पशुपतिनाथ मंदिर के करीब है।
42- उमा महादेवी शक्तिपीठ – मिथिला नेपाल
यहां सती के शरीर का बायां स्कंध स्थापित है, यहां उमा महादेवी शक्तिपीठ भैरव महोदर निवास करते हुए शक्तिपीठ कि रक्षा करते हैं। यह स्थान भारत नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के करीब मिथिला में स्थित है।
43- दाक्षायणी शक्तिपीठ कैलाश मानसरोवर
तिब्बत स्थित शिव के निवास स्थान कैलाश मानसरोवर समीप मानसा के पास पाषाण शिला पर सती का दायां हाथ स्थापित है, यहां दाक्षायनी शक्तिपीठ के रक्षक भैरव अमर हैं। यह बहुत ही पवित्र और भगवान शिव पार्वती के निवास स्थान है।
44- इंद्राक्षी शक्तिपीठ श्रीलंका
यहां माता सती की पायल स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव राक्षसेश्वर करते हैं। यह स्थान श्रीलंका के त्रिंकोमाली में होने की संभवतः बताई गई है।
45- कालिका देवी शक्तिपीठ वीरभूमि पश्चिम बंगाल
यहां मां सती कि पैर की हड्डी स्थापित है, यहां भैरव योगेश हैं। यह स्थान वीरभूम जिले के नलहाटि रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है।
46- सावित्री देवी शक्तिपीठ कुरुक्षेत्र
यहां माता सती के पैर की एड़ी स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव स्थाणु हैं।
47 – शिवानी देवी शक्तिपीठ वक्षपीठ चित्रकूट
यहां देवी सती के शरीर का दाहिनी वक्ष स्थापित है, यहां शक्तिपीठ कि रक्षा भैरव चंड करते हैं। यह शक्तिपीठ चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर स्थित है।
48 – उमा वृंदावन शक्तिपीठ मथुरा
यहां सती के शरीर से गिरा गुच्छ बाल और चूड़ामणि स्थापित है, यहां शक्तिपीठ की रक्षा भैरव भूतेश करते हैं।
49 – गायत्री शक्तिपीठ अजमेर
यहां देवी सती का मणिबंध स्थापित है, यहां शक्तिपीठ के रक्षक भैरव सर्वानंद हैं। यह शक्तिपीठ अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबंध स्थान गायत्री पर्वत पर स्थापित दो मणिबंध से गायत्री शक्तिपीठ स्थापित है।
50 – विमला देवी शक्तिपीठ ओडिशा
यहां देवी सती के शरीर का नाभि भाग स्थापित है, इस शक्तिपीठ की रक्षा भैरव जगन्नाथ करते हैं। यह शक्तिपीठ ओडिशा के विराज के उत्कल में स्थित है।
51 – जयंती देवी शक्तिपीठ बांग्लादेश
यहां माता सती के शरीर की बाईं जंघा स्थापित है, यहां शक्तिपीठ की रक्षा भैरव क्रमदीश्वर करते हैं। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर में स्थापित है।

मां आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा देवी कि प्रेरणा से हम भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव आपके समक्ष 51 शक्तिपीठों का वर्णन किया जो 108 शक्तिपीठों में विशेष स्थान रखते हैं। इस 51 शक्तिपीठ लेखनी से अलग आपको कोई विशेष जागृत शक्तिपीठ ज्ञात हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताईयें जो निश्चित रूप से 108 शक्तिपीठों में से एक होगा उस शक्तिपीठ को आगे 108 शक्तिपीठ लेखनी में प्रथम स्थान पर रखते हुए विस्तार से जानकारी दूंगा। अब तक जो शक्तिपीठ लेखनी विस्तार से लिख चूका हूं उसका लिंक ऊपर से ब्लू कलर किया हूं क्लिक कर पढ़िए। शेष शक्तिपीठ लेखनी जल्द ही विस्तृत जानकारी के साथ पब्लिश कर लिंक इस लेखनी में लगा दूंगा। शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर जगत-जननी स्वरुपा नवदुर्गा देवी की प्रेरणा से हमारी लेखनी सर्च किजिये खोजिए पढ़िए आप सभी पर आदिशक्ति जगत जननी की कृपा सदैव बनी रहे इन्हीं शुभ मंगलकामनाओ के साथ इस लेखनी को यहीं विराम दे रहा हूं।






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