1-गणेश जी की आरती। 2-दुर्गा जी की आरती। 3-जय अंबे गौरी आरती। 4-लक्ष्मी जी की आरती। 5-शिवजी की आरती निचे क्रमशः फोटो के साथ लिखा गया है।
सुस्पष्ट आरती सदैव उपयोगी चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर सभी भक्त जन को समर्पित लेखनी भगवान चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव द्वारा संग्रहित। स्कन्दपुराण में लिखा गया है -मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:। सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।अर्थात मत्रहीन क्रियाहीन होने पर भी आरती कर लेने से मुझमें सारी पूर्णता आ जाती है। आरती करने का ही नही बल्कि आरती देखने मात्र से भी बहुत पुण्य अर्जित हो जाता है।
आरती कैसे करनी चाहिए:
आरती में पहले मूलमंत्र अर्थात जिस देवता का जिस मंत्र से पूजन किया गया हो उस मंत्र से तीन बार पुष्पांजलि अर्पित करनी चाहिए। जहां तक सम्भव हो ढोल, नगाड़े, शंख घडिय़ाल, घंटा आदि महावाद्यों के साथ जय जयकार के शब्द घोष के साथ शुभ आरती के पात्र में घृत या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती शुरू करनी चाहिए। आरती अगर एक से अधिक करनी हो फल प्राप्ति के उद्देश्य से तो सबसे पहले गणेश जी की आरती से आरती कि शुरुआत करनी चाहिए। तो आइये शुरू करते हैं आरती शिद्धी विनायक विघ्नहर्ता गणेश जी से।
गणेश जी की आरती:

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश……. ।।
एकदन्त दयावन्त, चार भुजाधारी।
माथे सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी।
जय गणेश जय गणेश……. ।।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डअन को भोग लगे सन्त करें सेवा।।
जय गणेश जय गणेश……. ।।
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
जय गणेश जय गणेश……. ।।
‘सूरश्याम’ शरण आये, सुफल कीजे सेवा।
हम सब तेरी शरण पड़े हैं पार लगा दो खेवा।।
जय गणेश जय गणेश……. ।।
दुर्गा जी की आरती:

जगजननी जय! जय!! माँ! जगजननी जय!जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि, भवभामिनि जय! जय ।।
तू ही सत्-चित् सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन सुन्दर पर – शिव सुर-भूपा।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी।
अमल अनन्त अगोचर अज आनन्दराशी।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
अविकारी अघहारी, सकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि हर सँहारकारी।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
तू विधिवधू, रमा तू, तू उमा, महामाया।
मूल प्रकृति विद्या तू, तू जननी, जाया।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
राम, कृष्ण तू ही, सीता, व्रजरानी राधा।
तू वाज्छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
दश विद्या, नवदुर्गा, नाना शस्त्रधरा।
अष्टमातृका, योगिनी, नव-नव रूप धरा।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
तू परधाम – निवासिनी, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणी, ताणडवलासिनि तू।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या तू शोभाऽ ऽधारा।
विवसन विकट – स्वरूपा, प्रलयमयी धारा।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
तू ही स्नेह – सुधामयि, तू अति गरल मना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना।
हजगजननी जय! जय…….. ।।
मूलाधार – निवासिनि इह – पर – सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले ! वेदत्रयी।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
हम अति दीन दुखी माँ विपत जाल घेरे।
है कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणाकर करुणामयि! चरण-शरण दीजै।।
जगजननी जय! जय…….. ।।
जय अंबे गौरी आरती:

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।।
माँग सिन्दूर विराजत, टीकौ मृगमद को।
उज्जवल से दोऊ नैना, चन्द्रवदन नीको।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी।
सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुःख हारी।।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योती।।
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।
चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे।।
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।
चौंसठ योगिनी गावत, नित्य करत भैरूं।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरू।।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता।।
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी।
मन वांछित फल पावत, सेवत नर-नारी।।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री माल केतु में राजत, कोटि रतन ज्योती।।
यह अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावैं।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावैं।।
लक्ष्मी जी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत हर विष्णु धाता।। टेक।।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तुम ही जग-माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ॐ जय… ।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।। ॐ जय… ।।
तू ही पाताल-वासिनी, तू ही है सुखदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि भवनिधि की त्राता।। ॐ जय… ।।
जिस घर थारो बासो, वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले, मन नही धड़काता।। ॐ जय… ।।
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान को वैभव सब तुमसे आता।। ॐ जय… ।।
शुभ गुण सुन्दर रक्तक्षीर निधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।। ॐ जय… ।।
आरती लक्ष्मीजी की जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ॐ जय… ।।
स्थिर चर जगत् बचावे कर्म प्रेम ल्याता।
पुत्र अमित मैया की शुभ दृष्टि चाहता।। ॐ जय… ।।
शिवजी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा हर जै शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा।। टेक।।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।। ॐ जय…
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज ते सोहे।
तीनों रूप निरखता, त्रिभुवन जन मोहे।। ॐ जय…
श्वेताम्बर पीताम्बर बाधाम्बर अंगे।
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे।। ॐ जय…
अक्षमाला, वनमाला, मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद चन्दा, भोले शुभकारी।। ॐ जय…
कर के मध्य कमंडल, चक्र त्रिशूल धर्ता।
जग करता जग हर्ता जग पालन करता।। ॐ जय…
लक्ष्मी वर सावित्री श्री पार्वती संगे।
अर्द्धांगी गायत्री सिर सोहे गंगे।। ॐ जय…
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये, ये तीनों एका।। ॐ जय…
त्रिगुण स्वामी जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे।। ॐ जय शिव ओंकारा…..!
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