संकष्टी चतुर्थी गणेश चौथ व्रत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है और इसे विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी गणेश चौथ व्रत मुख्य शिर्षक -
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा का समय
व्रत विधि
गणेश संकष्टी चतुर्थी पर ध्यान देने योग्य बातें
व्रत विधि और पूजन में ध्यान देने योग्य बातें
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
कथा का महत्व
गणेश जी की आरती
मंगलमूर्ति मोरया
गणेश वंदन और प्रार्थना
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
इस व्रत में माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करके संतान की समृद्धि और स्वास्थ्य की प्रार्थना की जाती है।
संकष्टी चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त: 17 जनवरी 2025 चंद्रोदय का समय रात 9 बजकर 9 मिनट पर।
संकष्टी चतुर्थी पूजा का समय: संध्या पूजन शाम 6 बजकर 25 मिनट से 7 बजकर 8 मिनट तक।
संकष्टी चतुर्थी गणेश चौथ व्रत विधि
- 1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- 2. घर के पूजा स्थल को साफ करके भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- 3. भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा, फूल, फल, मोदक और काली तिल से बने लड्डू लाई अर्पित करें।
- 4. ओम् गण गणपतए नमः गणेश मंत्रों का जाप करें और व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
- 5. संध्या समय चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।
गणेश संकष्टी चतुर्थी पर ध्यान देने योग्य बातें
आज के दिन राहुकाल प्रातः 10 बजकर 30 मिनट से 12 बजे तक रहेगा, इस दौरान शुभ कार्यों से बचना चाहिए।
चतुर्थी तिथि 17 जनवरी को प्रातः 4 बजकर 6 मिनट से प्रारंभ होकर 18 जनवरी को प्रातः 5 बजकर 30 मिनट तक रहेगी।
सकट चौथ व्रत के पालन से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और संतान की सुख-समृद्धि की कामना पूर्ण होती है। आईए व्रत की सम्पूर्ण विधि-विधान सहित व्रत कथा का यहां श्रवण करते हैं।
व्रत विधि और पूजन में ध्यान देने योग्य बातें
गणेश जी को दूर्वा, मोदक और लाल फूल अर्पित करें। संकट चतुर्थी की कथा का श्रवण करें। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण करें। व्रत और कथा का पालन करने से भगवान गणेश जी सभी विघ्नों का नाश करते हैं और जीवन को सुखमय बनाते हैं।
sankashti chaturthi ganesh image

संकष्टी चतुर्थी गणेश चौथ व्रत कथा
संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस व्रत में संकटों से मुक्ति पाने और सुख-समृद्धि के लिए गणपति की पूजा की जाती है। व्रत के साथ कथा सुनने का भी विशेष महत्व है।
व्रत कथा प्रारंभ
पुराने समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। वह बहुत धार्मिक था और नियमपूर्वक भगवान गणेश की पूजा करता था। साहूकार के घर में सुख-शांति और धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी।
एक दिन साहूकार के घर गणेश चतुर्थी के दिन पूजा का आयोजन हुआ। पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया गया। उसी समय एक गरीब ब्राह्मण वहां भिक्षा मांगने आया। साहूकार ने ब्राह्मण को प्रेमपूर्वक भोजन कराया और वस्त्र-दान किया।
ब्राह्मण ने साहूकार से कहा, “तुमने आज संकट चतुर्थी का व्रत और दान किया है। भगवान गणेश तुम्हारे सभी संकटों को दूर करेंगे। लेकिन तुम्हारे जीवन में एक परीक्षा आने वाली है।” साहूकार ने इसे भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार किया।
कुछ समय बाद साहूकार का व्यापार ठप हो गया और वह कर्ज में डूब गया। उसने अपनी सारी संपत्ति गंवा दी। साहूकार ने हार नहीं मानी और संकट चतुर्थी का व्रत जारी रखा।
गणेश जी की कृपा
एक दिन साहूकार को स्वप्न में भगवान गणेश ने दर्शन दिए। उन्होंने कहा, “तुम्हारे कर्मों की परीक्षा पूरी हो चुकी है। अब तुम्हारे जीवन में सुख-समृद्धि लौटेगी।”
साहूकार ने स्वप्न के अनुसार पुनः गणेश जी की पूजा की। कुछ ही दिनों में उसका व्यापार फिर से चल पड़ा और उसके जीवन में खुशहाली लौट आई।
संकष्टी चतुर्थी कथा का महत्व
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि संकट चतुर्थी व्रत भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा से करने पर जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूषक सवारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुओं का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
मंगलमूर्ति मोरया
देवों में श्रेष्ठ, गणपति हमारा।
हरते सब विघ्न, संकट मिटाए सारा॥
शिव पुत्र आदिदेव, संकट के नाशक।
रिद्धि-सिद्धि संग, सुख के दाता विशेषक॥
कर्पूर जले, दीपक दमके, सुगंधित धूप।
भक्त करें जयकार, मन में हो आनंद स्वरूप॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
गणेश वंदन और प्रार्थना
विघ्नहर्ता, शुभकर्ता, गजमुख नाम।
तुमसे ही होता है, साकार हर काम॥
तुमको प्रणाम करते, सभी भक्तगण।
हर लो कष्ट हमारे, दो सुख अनंत॥
इस आरती और प्रार्थना को पूरी श्रद्धा और विश्वास से गाकर भगवान गणेश की पूजा करें। आरती के बाद काली तील मिश्रित प्रसाद बांटें और सभी भक्तों के साथ भगवान की महिमा का गुणगान करें। संकष्टी चतुर्थी व्रत पुत्र के सुख-समृद्धि हेतू किया जाने वाला गणेश जी का व्रत है श्रद्धापूर्वक माताओं को यह व्रत करना चाहिए। यहां इस लेख में सम्पूर्ण विधि-विधान जानकारी दी गई है यह लेखनी आप माताओं के जीवन में सुख-समृद्धि व ढ़ेरों खुशियां ला ने में सहायतार्थ हो यही भगवान विघ्नहर्ता गणेश जी से प्रार्थना के साथ लेखनी को यहीं विराम देते हैं क्रमशः पढ़िए अपनी पसंदीदा लेख amitsrivastav.in साइड पर।