संकष्टी गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म में एक अत्यंत शुभ और पवित्र दिन है। यह व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने और जीवन में आने वाले सभी संकटों को समाप्त करने का प्रमुख साधन है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाए जाने वाला यह व्रत हर प्रकार की समस्याओं और विघ्नों को हरता है। इसे तिल चतुर्थी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन तिल का उपयोग और दान विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
यह व्रत केवल शारीरिक और सांसारिक कष्टों से मुक्ति ही नहीं दिलाता, बल्कि यह व्यक्ति को आध्यात्मिक उत्थान और भगवान गणेश की कृपा भी प्रदान करता है।
संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व
संकष्टी शब्द का अर्थ है संकटों का नाश करने वाला। भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, विवेक और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है, इस दिन अपने भक्तों के जीवन से कष्टों का नाश करते हैं। इस दिन पूजा, व्रत, और भगवान गणेश की कथा सुनने या पढ़ने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि व्रत तभी पूर्ण होता है जब व्रतधारी भगवान गणेश की कथा का श्रवण करतीं हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं।
तिल का महत्व
तिल का धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व है। तिल को पवित्र और ऊर्जावान माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी पर तिल के लड्डू, तिल का तेल, और तिल का दान विशेष पुण्यकारी होता है।

संकष्टी गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा
भगवान गणेश और उनकी बुद्धिमत्ता की कहानी
संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा भगवान गणेश की बुद्धिमत्ता और उनके माता-पिता के प्रति समर्पण को दर्शाती है। एक बार सभी देवता अनेक प्रकार के संकटों में फँस गए। उन्हें लगा कि इन समस्याओं का समाधान केवल भगवान शिव कर सकते हैं। वे सभी शिवजी के पास पहुँचे, जहाँ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेशजी भी उपस्थित थे।
देवताओं ने अपनी समस्याएँ शिवजी को बताईं। शिवजी ने कहा हमारे दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, वही आप देवताओं की मदद करेगा।
शिवजी की इस आज्ञा पालन में कार्तिकेय तुरंत अपने माता-पिता शिव-पार्वती से आज्ञा लेकर अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने पूरी ताकत और तेज़ी से पृथ्वी का चक्कर लगाना शुरू कर दिया।
गणेशजी ने देखा कि उनका वाहन चूहा है, जो धीमा और पृथ्वी की परिक्रमा करने में असमर्थ था। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता से एक अद्भुत उपाय निकाला।
गणेशजी अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती, की सात बार परिक्रमा की। प्रणाम किया और वहीं बैठ गए। जब भगवान गणेश जी से पूछा गया कि उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा क्यों नहीं की, तो गणेशजी ने उत्तर दिया- माता-पिता के चरणों में ही संपूर्ण सृष्टि का वास है। उनकी परिक्रमा करना ही पृथ्वी की परिक्रमा करने के समान है।
गणेशजी की इस चतुराई से भगवान शिव माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने गणेशजी को विजेता घोषित किया और उन्हें देवताओं की सहायता करने का अधिकार दिया। साथ ही शिवजी ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया- जो व्यक्ति चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा करेगा, उसके सभी संकट दूर होंगे और उसे भौतिक सुख और समृद्धि प्राप्त होगी।
जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटे तो देखा अनुज गणेश को देवताओं की सहायता के लिए नियुक्त कर दिया गया था। इस स्थिति को देखकर कार्तिकेय ने माता पार्वती पर पक्षपात का आरोप लगा स्त्री जाती को श्राप देते हुए तपस्या को चले गए, जहां उन्होंने अपना स्थान ग्रहण किया वह स्थान आज महोबा के कार्तिकेय मंदिर के नाम से जाना जाता है।
महोबा के कार्तिकेय मंदिर को लेकर ऐसी धार्मिक मान्यताएँ और कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें कहा जाता है कि यदि महिलाएँ, विशेष रूप से युवा विवाहित महिलाएँ, इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करती हैं या भगवान कार्तिकेय के दर्शन करती हैं, तो उन्हें सात जन्मों तक विधवा रहने या संतान-सुख से वंचित होने का श्राप मिलता है।
इस मान्यता का आधार-

भगवान कार्तिकेय की ब्रह्मचर्य तपस्या –
यह विश्वास है कि भगवान कार्तिकेय ने इस स्थान पर ब्रह्मचर्य और घोर तपस्या की थी। महिलाओं के दर्शन से उनकी तपस्या भंग होने का खतरा माना जाता था, इसलिए यह परंपरा स्थापित की गई।
परंपरा और सामाजिक नियम –
प्राचीन समय में समाज में महिलाओं को लेकर बनाए गए कुछ नियम और धार्मिक प्रतिबंध इन मान्यताओं के पीछे हैं। इसे भगवान के “असंतोष” या “क्रोध” का कारण बताया गया।
धार्मिक सत्यता और व्याख्या –
यह मान्यता मुख्य रूप से धार्मिक आस्था और परंपरागत मान्यताओं पर आधारित है। हालांकि, इसका कोई स्पष्ट धार्मिक ग्रंथीय आधार नहीं है।
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार –
इन मान्यताओं को अंधविश्वास और काल्पनिक श्राप का रूप माना जाता है।
धर्मशास्त्र –
किसी भी धार्मिक ग्रंथ में महिलाओं के दर्शन से संबंधित ऐसे श्राप का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है।
वास्तविकता और बदलाव
मान्यता के पीछे का उद्देश्य –
यह परंपरा भगवान कार्तिकेय के प्रति श्रद्धा और आदर बनाए रखने के लिए बनाई गई थी।
आधुनिक समय में संशय-
आज के युग में ऐसी मान्यताओं को अंधविश्वास और सामाजिक असमानता के रूप में देखा जाता है।
क्या करना चाहिए?
यदि आप इस मंदिर के दर्शन करने की इच्छुक हैं – मंदिर प्रशासन या पुजारियों से सही जानकारी प्राप्त करें। स्थानीय परंपराओं और आस्थाओं का सम्मान करें। अपने धार्मिक विश्वास और आधुनिक सोच के आधार पर निर्णय लें।
नोट: यह मान्यता पूरी तरह से धार्मिक परंपराओं पर आधारित है। इसे आस्था के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन इसे डर या अंधविश्वास का कारण नहीं बनाना चाहिए।
यहां स्पष्ट लिखा हुआ है – इस मंदिर में स्त्री प्रवेश वर्जित है, जो भी स्त्री इस मंदिर में देव सेनापति शिव पुत्र कार्तिकेय का दर्शन करेंगी वो सात जन्मों तक विधवा या पुत्र रहित जीवन व्यतीत करेंगी।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि
संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत अत्यंत सरल और प्रभावशाली है। इसे विधि-विधान से करने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
व्रत का प्रारंभ
प्रातः स्नान और संकल्प –
प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके साथ ही भगवान गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल की तैयारी –
घर के पूजा स्थान को स्वच्छ करें।भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पूजा सामग्री –
तिल के लड्डू, दूर्वा घास, लाल और पीले फूल, मोदक, दीपक, धूप, और अगरबत्ती (ध्यान दें कि बांस वाली अगरबत्ती का उपयोग न करें)
पूजा विधि –
भगवान गणेश जी की प्रतिमा पर फूल और दूर्वा चढ़ाएँ। तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएँ। गणेश चालीसा और गणेश कथा का पाठ करें। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दें। उनके बाद व्रत का समापन प्रसाद ग्रहण करें। अगले दिन भगवान गणेश की पूजा करके व्रत खोलें। भोजन ग्रहण करें।
संकष्टी गणेश चतुर्थी के लाभ
संकटों का नाश –
भगवान गणेश जी की कृपा से सभी कष्ट, दुख और बाधाएँ समाप्त होती हैं।
सुख-समृद्धि का आशीर्वाद –
व्रतधारी के जीवन में सुख, शांति, और धन-वैभव का आगमन होता है।
संतान-सुख –
इस व्रत को करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
रुके हुए कार्य पूरे होते हैं –
परिवार में रुके हुए मांगलिक कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं।
आध्यात्मिक शुद्धि –
व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और व्यक्ति को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।
तीनों तापों का नाश –
यह व्रत दैहिक (शारीरिक), दैविक (दैवीय), और भौतिक (सांसारिक) कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
आध्यात्मिक संदेश और जीवन का सार
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत केवल पूजा और उपवास तक सीमित नहीं है। यह व्रत माता-पिता के प्रति आदर, ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। भगवान गणेश की कथा हमें सिखाती है कि जीवन में बुद्धिमत्ता और श्रद्धा का कितना महत्व है।
जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को करता है, उसे भगवान गणेश का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल जीवन की कठिनाइयों को दूर करता है, बल्कि व्यक्ति को धर्म, कर्तव्य और आध्यात्मिकता के मार्ग पर भी अग्रसर करता है।
इस संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करें और उनके आशीर्वाद से जीवन के सभी संकटों का समाधान पाएँ।