सोशल मीडिया के लाभ और हानि: सपनों का आकाश या छल का सागर? Social Media 1 Wonderful महत्वपूर्ण गहन विश्लेषण

Amit Srivastav

गोदी मीडिया । मेरी अंतरात्मा की आवाज सुन लो, हे एफबी दोस्तों!

नाबालिग युवतियों का Social Media प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक और इंस्टाग्राम पर गुमराह होकर प्रेमी के साथ फरार होने की घटनाएँ आज हमारे समाज के लिए एक ऐसी त्रासदी बन चुकी हैं, जो हर माता-पिता के दिल को दहलाती है, हर परिवार की नींद उड़ाती है और हर समुदाय को गहरे आत्ममंथन के लिए मजबूर करती है। यह डिजिटल युग का वह काला साया है, जो हमारी नन्हीं बेटियों—हमारे घरों की रौनक, हमारे सपनों की मूरत—को झूठे प्रेम और चमकदार वादों के जाल में फँसाकर उनके भविष्य को अंधेरे में धकेल रहा है।

हर दिन, कहीं न कहीं से एक और दिल दहलाने वाली खबर आती है—एक मासूम लड़की, जो अपने परिवार की गोद छोड़कर, एक अनजान शख्स के साथ, अनजान रास्तों पर निकल पड़ती है। ये कहानियाँ केवल समाचारों की सुर्खियाँ नहीं, बल्कि टूटे हुए दिलों, बिखरे सपनों और छल के उस दर्द की चीखें हैं, जो समाज के हर कोने में गूँज रही हैं। लेकिन इस अंधेरे में भी आशा की एक किरण है—जागरूकता, साहस और सामूहिक प्रेम की ताकत, जो हमारी बेटियों को इस जाल से बचा सकती है।

यह लेख एक मार्गदर्शिका है, एक भावुक आह्वान है, जो हर पाठक के दिल को छूएगा और शेयर करने के लिए मजबूर जरुर करेगा, यह लेख हर किसी का आँखें खोलेगा और उन्हें अपनी बेटियों, बहनों और समुदाय को बचाने के लिए प्रेरित करेगा। आइए, हम इस दर्द को समझें, इस जाल को तोड़ें और एक ऐसी दुनिया बनाएँ, जहाँ हमारी बेटियाँ बिना डर के अपने सपनों को सितारों तक उड़ान दे सकें।

सोशल मीडिया आज एक ऐसी जादुई दुनिया है, जहाँ हर कोई अपने सपनों को पंख दे सकता है, अपनी आवाज़ को दुनिया तक पहुँचा सकता है और अनजान चेहरों से दोस्ती के रंग बुन सकता है। भारत, जहाँ 2025 तक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 90 करोड़ से अधिक होने की उम्मीद है (Statista, 2024), इस डिजिटल क्रांति का एक चमकता सितारा बन चुका है। हमारी नाबालिग बेटियाँ—वह कोमल कली, जो अभी जीवन की कठोर सच्चाइयों से अनजान है—इस दुनिया में सबसे अधिक उत्साह के साथ कदम रख रही हैं।

फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट—ये उनके लिए केवल ऐप्स नहीं, बल्कि एक ऐसी दुनिया हैं, जहाँ वे अपनी मुस्कान, अपनी बातें और अपने सपने साझा करती हैं। लेकिन इस चमकती दुनिया में एक काला साया छिपा है—झूठे प्रोफाइल्स, छलपूर्ण वादे और वह भावनात्मक जाल, जो हमारी मासूम बेटियों को अपने भंवर में खींच रहा है। हर दिन, पुलिस थानों में नई शिकायतें दर्ज होती हैं—एक 16 वर्षीय लड़की, जो इंस्टाग्राम पर मिले “प्रेमी” के साथ घर छोड़कर चली गई; एक 15 वर्षीय, जिसे फेसबुक पर शादी का झूठा वादा करके भगा लिया गया।

ये घटनाएँ केवल आँकड़े नहीं, बल्कि उन माँ-बाप की सिसकियाँ हैं, जो अपनी लाडली को खोने के दर्द में तड़प रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB, 2023) के अनुसार, नाबालिगों के अपहरण और लापता होने के मामलों में 15-18 आयु वर्ग की लड़कियाँ सबसे अधिक प्रभावित हैं, और इनमें से कई मामले सोशल मीडिया की काली छाया से शुरू होते हैं।

यह एक चेतावनी है, एक पुकार है कि हम अपनी बेटियों को इस Social Media के जाल से बचाएँ, वरना हमारा भविष्य, हमारी आशा, इस डिजिटल सागर में अद्भुत तरीके से डूब जाएगी और आपको पता भी नहीं चलेगा, लेकिन हम सब जागरुक मार्गदर्शी लेखकों के रहते निराशा की कोई जगह नहीं—यह समय है साहस का, प्रेम का और उस जागरूकता का, जो हमारी बेटियों को नई सुबह की ओर ले जाएगी।

गोदी मीडिया । मेरी अंतरात्मा की आवाज सुन लो, हे एफबी दोस्तों! सोशल मीडिया Social Media

दिल को झकझोरने वाली कहानियाँ: आशा और साहस की मिसाल – Social Media

हमारी बेटियों की कहानियाँ केवल दुख और छल की नहीं, बल्कि साहस, जागरूकता और विजय की भी हैं। ये कहानियाँ हमें दिखाती हैं कि चाहे अंधेरा कितना भी गहरा हो, एक छोटा सा दीया भी उसे चीर सकता है। आइए, कुछ ऐसी कहानियों से प्रेरणा लें, जो हमारे दिलों को छूएँगी और हमें बदलाव का रास्ता दिखाएँगी।


पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव की मीना, एक 16 वर्षीय लड़की, जिसके सपने आसमान को छूने के थे। इंस्टाग्राम पर एक अजनबी ने उससे संपर्क किया, उसे शहर में नौकरी और एक सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया। मीना का कोमल दिल उसकी मीठी बातों में बहने लगा। लेकिन कन्याश्री क्लब में साइबर सुरक्षा का प्रशिक्षण लेने वाली मीना ने अपनी बुद्धि और साहस से उस जाल को पहचान लिया।

उसने अजनबी की प्रोफाइल की जाँच की—कम दोस्त, नई प्रोफाइल, संदिग्ध तस्वीरें। उसने अपने शिक्षक और माता-पिता को बताया, जिन्होंने पुलिस को सूचना दी। जाँच में पता चला कि वह व्यक्ति एक मानव तस्करी रैकेट का हिस्सा था। मीना ने न केवल खुद को बचाया, बल्कि अपने गाँव की हर लड़की को सतर्क किया। आज मीना नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है, और उसका गाँव उसे अपनी शेरनी कहता है। मीना की कहानी हमें सिखाती है कि जागरूकता वह ताकत है, जो हर जाल को तोड़ सकती है।


दिल्ली की राधिका, एक 17 वर्षीय लड़की, जिसके सपने एक वैज्ञानिक बनने के थे। फेसबुक पर एक लड़के ने उससे दोस्ती की, उसे महँगे गिफ्ट्स भेजे और प्रेम भरे मैसेजों से उसका दिल जीतने की कोशिश की। लेकिन राधिका ने अपने स्कूल की साइबर सुरक्षा कार्यशाला में सीखा था कि ऑनलाइन दोस्ती जोखिम भरी हो सकती है। उसने अपने माता-पिता को बताया, जिन्होंने पुलिस की मदद ली।

जाँच में खुलासा हुआ कि वह व्यक्ति एक साइबर अपराधी था, जो नाबालिगों को फंसाने का रैकेट चला रहा था। राधिका की सूझबूझ ने न केवल उसे, बल्कि कई अन्य लड़कियों को भी बचाया। आज राधिका अपने स्कूल में साइबर सुरक्षा की ब्रांड एम्बेसडर है और अपनी सहेलियों को सिखाती है कि “सच्चा प्यार झूठे वादों में नहीं, बल्कि सम्मान और विश्वास में बसता है।”


बरेली, उत्तर प्रदेश के एक गाँव की कहानी और भी प्रेरक है। जब एक 15 वर्षीय लड़की फेसबुक पर मिले व्यक्ति के साथ भागने की कोशिश में पकड़ी गई, तो गाँव की महिलाएँ चुप नहीं रहीं। उन्होंने एकजुट होकर एक जागरूकता अभियान शुरू किया। नुक्कड़ नाटक, पोस्टर और कार्यशालाएँ आयोजित की गईं, जिसमें लड़कियों और उनके माता-पिता को साइबर सुरक्षा की जानकारी दी गई। इस अभियान ने न केवल उस गाँव को, बल्कि आसपास के दर्जनों गाँवों को भी सतर्क किया।

आज वह गाँव एक मिसाल है, जहाँ हर माँ अपनी बेटी को साइबर सुरक्षा का पहला पाठ पढ़ाती है। ये कहानियाँ हमें बताती हैं कि जब एक समुदाय एकजुट होता है, तो कोई भी जाल उसकी ताकत को नहीं तोड़ सकता।

क्यों डूब रही हैं हमारी बेटियाँ इस Social Media जाल में?

हमारी बेटियाँ—वह कोमल फूल, जो अभी खिलना शुरू ही हुआ है—इस Social Media डिजिटल जाल में क्यों फंस रही हैं? इस सवाल का जवाब हमारी सामाजिक, भावनात्मक और तकनीकी व्यवस्था की गहराइयों में छिपा है। आइए, इन कारणों को समझें, ताकि हम इस जाल की हर कड़ी को तोड़ सकें।


सबसे पहले, हमारी बेटियों का कोमल मन, जो किशोरावस्था के भावनात्मक ज्वार में बह रहा है, प्रेम, ध्यान और स्वीकृति की तलाश में है। यह वह उम्र है, जब एक मीठा शब्द, एक तारीफ, या एक झूठा वादा उनके दिल को आसानी से छू लेता है। अपराधी इस भेद्यता को भाँप लेते हैं। वे “ग्रूमिंग” की शैतानी तकनीकों का उपयोग करते हैं—पहले तारीफों की माला, फिर झूठे सपनों का जाल और अंत में भावनात्मक ब्लैकमेल। एक 16 वर्षीय लड़की, जो अपने परिवार में सुनवाई की कमी महसूस करती है, ऐसे जाल में आसानी से फंस जाती है, क्योंकि उसे लगता है कि कोई तो है, जो उसे समझता है।


दूसरा, हमारा समाज, जो अपनी परंपराओं और रूढ़ियों में बंधा है, प्रेम और भावनाओं पर खुलकर बात करने से कतराता है। हमारी बेटियाँ, जो अपने दिल की बात माँ-बाप से कहने में हिचकती हैं, अपनी भावनाओं को ऑनलाइन अजनबियों के साथ साझा करती हैं। यह खामोशी का बोझ उन्हें उस जाल की ओर धकेलता है, जहाँ कोई उनका इंतज़ार कर रहा होता है—नकली चेहरा, लेकिन मीठी ज़ुबान के साथ।


तीसरा, डिजिटल साक्षरता की कमी इस आग में घी डाल रही है। ग्रामीण भारत, जहाँ इंटरनेट का प्रसार तेज़ी से हुआ है, वहाँ माता-पिता और अभिभावकों को सोशल मीडिया के खतरों की जानकारी नहीं है। वे अपनी बेटी के स्मार्टफोन को एक खिलौना समझते हैं, न कि एक ऐसा हथियार, जो गलत हाथों में उनके परिवार को तोड़ सकता है। नतीजा? अपराधी बिना किसी रोक-टोक के हमारी बेटियों तक पहुँच जाते हैं।


चौथा, Social Media प्लेटफॉर्म्स की लापरवाही। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर फर्जी प्रोफाइल्स बनाना बच्चों का खेल है। एक अपराधी कुछ ही मिनटों में एक आकर्षक प्रोफाइल बनाकर, झूठी कहानियाँ गढ़कर और चुराई हुई तस्वीरें लगाकर हमारी बेटियों को बरगला सकता है। साइबर विशेषज्ञों (India Today, 2024) के अनुसार, इन प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी प्रोफाइल्स की निगरानी और अनुचित सामग्री को हटाने की प्रक्रिया अभी भी कमज़ोर है। अनुचित सामग्री—हिंसक, यौन या शोषणकारी—युवा दिमागों पर ज़हर की तरह असर डालती है और उन्हें गलत रास्ते पर ले जाती है।

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Social Media एक मार्गदर्शिका: हमारी बेटियों को बचाने का संकल्प

हमारी बेटियाँ अनमोल हैं। उनकी मुस्कान, उनके सपने और उनका भविष्य हमारी सबसे बड़ी पूँजी है। यह मार्गदर्शिका एक संकल्प है—हर माता-पिता, हर शिक्षक, हर समुदाय और हर नीति निर्माता के लिए, कि हम अपनी बेटियों को इस डिजिटल जाल से बचाएँगे और उन्हें एक सुरक्षित, सशक्त भविष्य देंगे। ये सुझाव भावनात्मक, व्यावहारिक और प्रेरणादायक हैं, ताकि आप आज से ही इस बदलाव का हिस्सा बन सकें।

1. परिवार: प्यार का वह आलिंगन, जो हर जाल को तोड़े

हमारी बेटियाँ सबसे पहले अपने परिवार की गोद में सुरक्षित होती हैं। लेकिन यह सुरक्षा केवल दीवारों से नहीं, बल्कि प्यार, विश्वास और संवाद से बनती है। माता-पिता, अपने बच्चों के साथ ऐसा रिश्ता बनाएँ, जहाँ वे अपनी हर बात—चाहे वह प्रेम का पहला अहसास हो, डर हो या कोई सपना—आपके साथ बिना डर के साझा कर सकें। सप्ताह में एक बार “फैमिली टॉक टाइम” रखें, जहाँ आप उनकी बात सुनें, उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें सिखाएँ कि सच्चा प्यार झूठे वादों में नहीं, बल्कि सम्मान और विश्वास में बसता है। उनकी सोशल मीडिया गतिविधियों पर नजर रखें, लेकिन उनकी निजता का सम्मान करते हुए।

पैरेंटल कंट्रोल ऐप्स जैसे Google Family Link या Qustodio का उपयोग करें, जो उनकी ऑनलाइन दुनिया को ट्रैक करते हैं। उन्हें मीना और राधिका की कहानियाँ सुनाएँ, ताकि वे समझें कि जागरूकता उनका सबसे बड़ा हथियार है। सिखाएँ कि कोई भी अजनबी, चाहे कितना ही मीठा बोले, उनकी निजी जानकारी (जैसे पता, फोन नंबर) का हकदार नहीं है। उन्हें फर्जी प्रोफाइल्स की पहचान करना सिखाएँ—कम दोस्त, नई प्रोफाइल, या संदिग्ध तस्वीरें। माता-पिता, आप उनकी पहली ढाल हैं—उन्हें वह ताकत दें, जो हर जाल को तोड़ दे।

2. स्कूल और समुदाय: जागरूकता का वह दीपक, जो अंधेरा मिटाए

हमारी बेटियाँ केवल परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समुदाय की जिम्मेदारी हैं। स्कूल और समुदाय इस जागरूकता के दीपक बन सकते हैं, जो इस डिजिटल अंधेरे को मिटाएँ। स्कूलों में साइबर सुरक्षा को अनिवार्य विषय बनाएँ। बच्चों को सिखाएँ कि वे सुरक्षित पासवर्ड बनाएँ, प्राइवेसी सेटिंग्स को समझें और साइबरबुलिंग या संदिग्ध व्यवहार को कैसे पहचानें। “साइबर सेफ्टी क्लब” बनाएँ, जहाँ छात्र रचनात्मक तरीकों से जागरूकता फैलाएँ—पोस्टर बनाएँ, छोटे वीडियो तैयार करें या नाटक प्रस्तुत करें।

समुदाय में नुक्कड़ नाटक, रैलियाँ और कार्यशालाएँ आयोजित करें, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ डिजिटल साक्षरता की कमी है। गैर-सरकारी संगठन, जैसे यूनीसेफ़ या कन्याश्री क्लब, इन प्रयासों को और मज़बूत करें। बरेली की महिलाओं की तरह, हर गाँव और मोहल्ले की माँ-बहनें एकजुट हों और अपनी बेटियों को सिखाएँ कि उनकी ताकत उनकी बुद्धि और साहस में है। समुदाय, आप वह ताकत हैं, जो हर बेटी को सितारों तक पहुँचा सकता है।

3. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स: जिम्मेदारी का वह वचन, जो भरोसा बनाए

फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स केवल तकनीकी मंच नहीं, बल्कि हमारी बेटियों की दुनिया का हिस्सा हैं। इनकी जिम्मेदारी है कि वे इस दुनिया को सुरक्षित बनाएँ। फर्जी प्रोफाइल्स की पहचान और हटाने के लिए AI-आधारित उपकरणों का उपयोग बढ़ाएँ। उम्र सत्यापन की प्रक्रिया को सख्त करें, ताकि नाबालिगों को गलत लोग निशाना न बना सकें। अनुचित सामग्री—हिंसक, यौन या शोषणकारी—को स्वचालित रूप से फ़िल्टर करने के लिए एल्गोरिदम को अपडेट करें।

नाबालिगों के लिए एक “सेफ मोड” लागू करें, जो उनकी स्क्रीन पर केवल उचित सामग्री दिखाए। इसके अलावा, #SafeOnlineIndia जैसे जागरूकता अभियानों को प्रायोजित करें, जिसमें छोटे वीडियो, मीम्स और इन्फोग्राफिक्स के जरिए युवाओं को शिक्षित किया जाए। सोशल मीडिया कंपनियाँ, यह आपका वचन है—हमारी बेटियों की सुरक्षा के लिए वह भरोसा बनाएँ, जो उन्हें बिना डर के इस डिजिटल आकाश में उड़ने दे।

4. सरकार और कानून: सुरक्षा का वह कवच, जो हर बेटी को बचाए

हमारी बेटियों की सुरक्षा केवल परिवार और समुदाय की नहीं, बल्कि सरकार और कानून की भी जिम्मेदारी है। साइबर अपराधों, खासकर नाबालिगों को लक्षित करने वाले अपराधों, के लिए कड़े दंड लागू करें। POCSO एक्ट (2012) जैसे कानूनों की जागरूकता बढ़ाएँ और उनकी त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करें। पुलिस को साइबर अपराधों की जाँच के लिए विशेष प्रशिक्षण और तकनीकी संसाधन दें। दिल्ली पुलिस का हालिया ऑपरेशन, जिसमें सीसीटीवी और मोबाइल ट्रैकिंग की मदद से एक नाबालिग को बचाया गया, एक प्रेरक उदाहरण है।

सरकार एक “डिजिटल सुरक्षा मिशन” शुरू करे, जिसमें टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया पर साइबर सुरक्षा के विज्ञापन प्रसारित हों। जैसे मोबाइल फोन से फोन करने पर कभी-कभी आ रहा है। स्कूलों में डिजिटल साक्षरता को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा बनाएँ। सरकार, आपका वह कवच हैं, जो हर बेटी को इस डिजिटल जंगल में सुरक्षित रख सकती है।

5. हमारी बेटियों का सशक्तिकरण: वह पंख, जो सितारों तक ले जाए

हमारी बेटियाँ केवल पीड़ित नहीं, बल्कि इस बदलाव की सबसे बड़ी ताकत हैं। उन्हें सशक्त बनाएँ, ताकि वे इस जाल को न केवल पहचानें, बल्कि इसे तोड़कर अपने सपनों को सितारों तक ले जाएँ। आत्मरक्षा, नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता सिखाएँ। स्कूलों और समुदायों में कार्यशालाएँ आयोजित करें, जहाँ वे अपनी ताकत को पहचानें। काउंसलिंग सेंटर बनाएँ, जहाँ वे अपनी भावनाओं और समस्याओं को साझा कर सकें।

यह खुलापन उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोकेगा। साइबर सुरक्षा और डिजिटल साक्षरता में उत्कृष्टता हासिल करने वाली लड़कियों को पुरस्कृत करें। उनकी कहानियाँ—जैसे मीना, राधिका और अनन्या की—मीडिया और स्कूलों में साझा करें, ताकि हर बेटी को लगे कि वह अकेली नहीं है। हमारी बेटियाँ वह चिंगारी हैं, जो इस अंधेरे को रौशनी में बदल सकती हैं।

हमारी बेटियाँ हमारा भविष्य हैं। उनकी हर मुस्कान, हर सपना, हर कदम हमारे लिए अनमोल है। यह डिजिटल जाल डरावना हो सकता है, लेकिन हमारा प्रेम, हमारा साहस और हमारी जागरूकता इससे कहीं बड़ा है। यह केवल एक समस्या नहीं, बल्कि एक अवसर है—हमारे समाज को मजबूत करने, हमारी बेटियों को सशक्त बनाने और डिजिटल दुनिया को सुरक्षित बनाने का।

आइए, मीना, राधिका और अनन्या की कहानियों से प्रेरणा लें। आइए, हम अपने गाँव, शहर और देश को एक ऐसी जगह बनाएँ, जहाँ हमारी बेटियाँ बिना डर के अपने सपनों को उड़ान दे सकें। यह एक लेख नहीं, बल्कि एक आंदोलन है—एक सुरक्षित, सशक्त और प्रेरणादायक भारत के लिए।

आपका पहला कदम क्या होगा?- आज ही अपनी बेटी से बात करें। उसे बताएँ कि वह अनमोल है और उसका भविष्य झूठे वादों से कहीं बड़ा है।
- अपने समुदाय में एक जागरूकता सत्र आयोजित करें। नुक्कड़ नाटक, पोस्टर या कार्यशाला शुरू करें।
- सोशल मीडिया पर #SafeOnlineIndia जैसे हैशटैग के साथ जागरूकता फैलाएँ। एक छोटा सा वीडियो या पोस्ट लाखों दिलों तक पहुँच सकता है।
- अपनी बेटी को वह पंख दें, जो उसे सितारों तक ले जाए। उसे सिखाएँ कि वह न केवल सुरक्षित रहे, बल्कि अपने सपनों को सच भी करे।

उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव की अनन्या, एक 15 वर्षीय लड़की, जिसके सपने आसमान से भी ऊँचे थे। इंस्टाग्राम पर एक शख्स ने उसे मॉडलिंग का झूठा ऑफर दिया और दिल्ली बुलाया। अनन्या का दिल डगमगाया, लेकिन उसके स्कूल की साइबर सुरक्षा कार्यशाला ने उसे सतर्क किया था। उसने अपने शिक्षक और माता-पिता को बताया। पुलिस की जाँच में पता चला कि वह व्यक्ति एक तस्करी रैकेट का हिस्सा था।

अनन्या ने न केवल खुद को बचाया, बल्कि अपने स्कूल में एक “साइबर सेफ्टी क्लब” शुरू किया, जो आज सैकड़ों छात्रों को जागरूक कर रहा है। अनन्या आज अपने गाँव की हीरो है। वह कहती है, “मेरे सपने सितारों से भी ऊँचे हैं, और कोई जाल मुझे नहीं रोक सकता!” अनन्या की उड़ान हर बेटी के लिए एक प्रेरणा है—एक ऐसी उड़ान, जो हमें दिखाती है कि जागरूकता और साहस के साथ हर सपना सच हो सकता है।

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हमारी बेटियों का भविष्य, हमारा वचन

हमारी बेटियाँ हमारी धड़कन हैं। उनकी हँसी, उनके सपने, उनकी ताकत हमारी सबसे बड़ी पूँजी है। यह डिजिटल जाल हमें डरा सकता है, लेकिन हमारा प्रेम, हमारी एकजुटता और हमारी जागरूकता हर अंधेरे को रौशनी में बदल सकती है। आइए, हम एक वचन लें—हम अपनी बेटियों को इस जाल से बचाएँगे, उन्हें सशक्त बनाएँगे और उनके सपनों को सितारों तक उड़ने देंगे। यह केवल एक लेख नहीं, बल्कि एक पुकार है, एक आंदोलन है, एक नई सुबह का वादा है।

आप इस वादे का हिस्सा हैं। आज से शुरू करें, क्योंकि हर छोटा कदम हमारी बेटियों को एक सुरक्षित, सशक्त और प्रेरणादायक भविष्य देगा। हमारी बेटियाँ अनमोल हैं—आइए, उनके लिए एक ऐसी दुनिया बनाएँ, जहाँ वे बिना डर के चमक सकें, सितारों से भी ऊपर। यह पोस्ट अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें। लेखक भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव गूगल टाप टेन वेबसाइट amitsrivastav.in। ब्लाग पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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7 मई 2025 को शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। धर्म युद्ध का इतिहास बनेगा ऑपरेशन सिंदूर, यह लेख इस सैन्य कार्रवाई के धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों, जैसे सिंदूर, रामायण, भगवद गीता और महाभारत से जुड़े संदर्भों, भारतीय मीडिया की … Read more

2 thoughts on “सोशल मीडिया के लाभ और हानि: सपनों का आकाश या छल का सागर? Social Media 1 Wonderful महत्वपूर्ण गहन विश्लेषण”

  1. बहुत अच्छी मार्गदर्शी लेखनी है सर मै सैकड़ों लोगों को शेयर की हूं और भी करूंगी आप वास्तव में बहुत कुछ सीखने वाला लिखते हैं आप जैसा कोई नहीं देखी जो लिखता हो। आपको दिल से प्यार भरा नमस्कार सर जी 🙏🙏❤️

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  2. बहुत अच्छा जानकारी दिए हैं सर जी आप सबको इस पर ध्यान देना चाहिए।

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