खट्टी-मीठी: योगी का फरमान-अध्यापक कम्युनिटी का हिस्सा न बने – क्या आंदोलन ऐसा भी होता है?

Amit Srivastav

क्या आंदोलन ऐसा भी होता है? एक गांव में चौपाल लगी थी। वहीं कुछ अध्यापकों ने दो गाय लाकर बांध दिए। लोग देखकर भौचक्का थे कि ये गांव के विद्यालय में पढ़ाने वाले गुरु जी, यहां गाय लाकर क्यो बांध रहे हैं? तब तक लोगों ने देखा, एक गाय को थोड़ा सा सूखा भूसा डाल, दूसरे को हरा-हरा चारा डाल रहे थे। दोनो गाय दूध देने वाली थी। चौपाल में आये गांव के लोग यह देख हैरान थे, कि एक व्यक्ति ने बोल पड़ा – गुरु जी ये आप लोग क्या कर रहे हैं? दोनो गाय दूधारू है तो एक को थोड़ा सा सूखा भूसा और दुसरे को जरुरत से ज्यादा हरा चारा दे दिए हैं! जबकि हरा चारा पाकर एक गाय खा रही है, दूसरी भूख से पीड़ित चारों की तरफ़ जाने के लिए उछाल मार रही है।
लोगों की फुसुरफू पर गुरु जी लोग कोई जबाव नहीं दे रहे थे। बल्कि हरा चारा खा रही गाय को पानी भी पिलाने लगे, वहीं दूसरी गाय हरे चारे सहित पानी की तरफ़ नज़र लगाएं लपक रही थी।
कुछ समय बाद लोग जब एक एक कर बोलने लगे तब एक मास्तर साहब ने हाथ जोड़कर विनती करते कहा, आप लोग इन गायों को देखते रहिए, ये गायें क्या करती हैं?
जिस गाय को हरा चारा मिला था। वो तो मस्त मजे से मुंह भरकर खा रही थी और जिसे थोड़ा सूखा भूसा मिला था, वो बार-बार चारे और पानी की तरफ़ लपकने की कोशिश करती किन्तु रस्सी में जकड़ी होने के कारण उसका थूथन भी वहां तक नही पहुंच पा रहा था, थक हार कर वो सूखा भूसा पाने वाली गाय एक तरफ़ हरे चारे की तरफ देखती फिर मास्टर साहब के तरफ़ बार बार देख रही थी। जिन्होंने उसे सूखा भूसा दे बांध रखा था। गांव के लोगों को गायों से बहुत प्यार होता है, क्योंकि? गाय को माता के समान माना जाता है। एक खांटी सनातनी व्यक्ति का सब्र का बांध टूट गया और लगा मास्टर साहब को उपदेश देने। एक को हरा चारा दूसरे को थोड़ी सूखा भूसा आप मास्टर साहब ये क्या कर रहे हैं? अगर आप को ऐसा ही करना था, तो हमारे गाय माता को एक पास नहीं बांधना चाहिए था, कम से कम दूर दूर होतीं तो वो बेचारी शायद भूखे पेट की वजह से थोड़ा सूखा भूसा भी खाई होती। किन्तु वो हरे चारों के चक्कर में अपने सूखे भूसे से पेट भी नहीं भर सकेंगी। गुस्से में सनातन धर्म रक्षक ने बोल पडा मास्टर साहब आप लोग राजनीति का हिस्सा न बने। कम्यूनिटी अध्यापकों के लिए अच्छी नही है।

खट्टी-मीठी: योगी का फरमान-अध्यापक कम्युनिटी का हिस्सा न बने - क्या आंदोलन ऐसा भी होता है?

मास्टर साहब ने उत्तर दिया – “बाबा जी, देखिएगा जिसको सूखा भूसा दिया गया है, वो भी साम को ७ लिटर ही दूध देगी और जिसको हरा चारा दिया गया है वो भी ७ लिटर ही दूध देगी।
अब तो चौपाल में आये पूरे गाँव के लोगों का सब्र का बांध टूट गया। एक साथ सभी गाँव वाले मास्टर साहब पर टूट पड़े। बोलने लगे – मास्टर हम जानते हैं, कि आप हमारे बच्चों के गुरू जी हो। आप लोग हमारे बच्चों को स्कूल में पढ़ाते हो। परन्तु आप जो भी करो, कहो हम मान तो नही लेगें। हम पक्का सनातनी जनहितैषी हैं। जिस गाय को थोड़ा सूखा भूसा डाला वो ७ लिटर दूध कैसे देगी?
मास्टर साहब ने कहा – देगी। इसलिए देगी कि थोड़ा सूखा भूसा जिसे दिया उसका नाम संविदा है। दूसरी जो चारा दिया उसका नाम सरकारी है, संविदा सूखा भूसा से ही ७ लिटर क्या अधिक ही देगी, मास्टर साहब ने जबाव दिया।
पंचों से रहा नही गया, उनका गुस्सा और ज्यादा फूट पड़ा – पूछा, – नाम अलग-अलग होने से ये गाय थोड़ा सा सूखा भूसा खाकर ७ लिटर भी दूध कैसे दे सकती है? हम गांव वालों को बेवकूफ़ समझ रहे हो क्या मास्टर?
मास्टर साहब को इसी क्षण का इंतजार था, मास्टर साहब खड़े हुए, दोनो हाथ जोड़ गांव की चौपाल के तरफ़ मुखातिब हो अपनी विनती सुनाई।
जिस स्कूल में आप सब के बच्चे पढ़ते हैं उसी स्कूल के हम गुरुओं को सरकार एक समान कार्य बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ आये दिन गैर शैक्षणिक कार्य बीएलओ ड्यूटी, जनगणना, बालगणना, चुनाव ड्यूटी आदि कार्यों को कराती है। स्थाई सरकारी अध्यापकों से कही अधिक कार्य ली जाती है, फिर भी समान कार्य का समान वेतनमान नही देती की ये अनुदेशक नाम से है-तो आठ हजार, ये शिक्षा मित्र नाम से है- तो दस हजार, ये सरकारी है तो लगभग ७० हजार। जिम्मेदारी ज्यादातर संविदा कर्मियों को निभानी पड़तीं है, सभी कार्य संविदा कर्मी से सरकार कराती है, लेकिन वेतन बढ़ाने के नाम पर अयोग्य कह पल्ला झाड़ लेती है। तो क्या अलग-अलग नाम से अध्यापक ही तो सब है, संविदा शिक्षक, अतिथि शिक्षक, अनुदेशक आदि अलग-अलग सिर्फ नाम ही तो दिया गया है। कार्यों में योगदान तो सब बराबर ही देते हैं, बल्कि संविदा वाले ज्यादा ही देते हैं। जब संविदा कर्मी अपनी वेतन वृद्धि की मांग करने सरकार के चौखट पर जाते हैं, तो राजनीति का हिस्सा न बने, कम्युनिटी न बने- शिक्षक ये वो लोग कहते हैं, जो हम गुरुजनों से ही शिक्षा ग्रहण कर उस योग्य बने हैं। फिर हम गुरुओं का सम्मान वो नही करेगें, तो बाकी आम जन क्या और कैसे करेगें? आप ही बताइए बाबा जी। शिक्षक अपनी समस्या अपनी परेशानी सरकार के समक्ष रखते हैं, कि इस महगाई के युग में इतना कम में खर्च नहीं चल पा रहा है, हमे समान कार्य का समान वेतन मान दे दिया जाए। तो हमारी मांग को सुनने और मानने के बदले हमारी आवाज को दबाकर छल कपट का सहारा ले किनारे कर देते हैं। तो फिर एक समानता का अधिकार कहा है, बड़ी बड़ी बातें करने वाली सरकार की। जब वहीं नेता सत्ता से बाहर रहते हैं, तो हम संविदा कर्मियों कि भारी संख्या देख हम सबका मंच संभालने सत्ता पक्ष पर हमला बोलने बिन बुलाये चले आते हैं और जब सत्ता पर आसीन हो जाते हैं, तो हमारी समस्याओं का अनदेखी करने लगते हैं। यह कहां का न्याय है? इस बार 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के अवसर पर संविदा शिक्षक लखनऊ पहुंचे, की शिक्षक समारोह में संविदा शिक्षकों की समस्याओं को बाबा जी सुनकर समाधान करेगें, जो सत्ता पर आसीन हो आखें बंद किए बैठे हैं। हर बार शिक्षक दिवस समारोह का आयोजन राजधानी में आयोजित होती थी। इस बार राजधानी को छोड़कर अचानक अपने मठ पर शिक्षक समारोह का आयोजन करने बाबा जी चले गए। क्या ऐसा करना चाहिए? लोगों ने एक स्वर में कहा यह तो बहुत बड़ा अन्याय है, आप गुरुओं के साथ। खैर आप लोग ऐसे ही शालिनता से अपनी मांग मांगते रहिए, जब बाबा जी नही देगें तो आने वाले चुनाव में सबक सिखाया ही जाएगा। अभी लोकसभा में विपक्ष की बढ़ी बढ़त से समझ नही आया, जिसमें विपक्षी दलों से प्रधानमंत्री का कोई खास चेहरा नहीं दिख रहा था। प्रदेश सरकार के लिए तो मुख्यमंत्री का चेहरा सामने है, सत्ता का परिवर्तन किया ही जाएगा। फिर जब बाबा जी आप लोगों का मंच संभालने जायेगें तो वहां से वैसे भगाना जैसे समझ ही सकते हो – उन शब्दों को। मंचों से भाषण में हम लोगों ने तो सुना था देश के प्रधानमंत्री से मास्टर साहब लोगों के खिलाफ कोर्ट का फैसला आया तब कह रहे थे आप शिक्षा मित्रों को ससम्मान आपका अधिकार दूंगा! क्या अभी तक नही मिला समान कार्य का समान वेतन? गांव के लोगों का एक मत में आवाज आई एक समान कार्य का समान वेतनमान देना ही चाहिए। अगर बाबा जी नही देते हैं तो बाबा जी को आने वाले चुनाव में अच्छा से सबक सिखाया जाएगा, सत्ता से बेदखल किया जाएगा। पंचों ने कहा आप संविदा कर्मियों कि संख्या ज्यादा ही है, एकता स्थापित किजिए! हर गांव में 25 प्रतिशत मतदान तो आप संविदा कर्मियों का ही है। फिर हम लोग भी आप मास्टर साहब सहित संविदा कर्मियों का साथ देगें और बाबा जी को सत्ता से बाहर करेगें।
मास्टर साहब और गांव के पंचों में बातचीत चल ही रही थी, कि उधर सूखा भूसा पाई गाय ने अपनी रस्सी तोड़ हरा चारा खाने में जा जूटी। लोगों ने देखा और कहा आप मास्टर साहब लोग वास्तव में सरकार द्वारा प्रताड़ित हो और इसका भुक्तभोगी आने वाले विधानसभा चुनाव में बाबा जी को होना ही होगा सत्ता से बेदखल होकर।

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खट्टी-मीठी: योगी का फरमान-अध्यापक कम्युनिटी का हिस्सा न बने - क्या आंदोलन ऐसा भी होता है?

बाबा जी जो आप लोगों का मंच संभाला करते थे। सत्ता में आने के बाद आप लोगों के खिलाफ फैसला करवा कर 40 हजार से 10 हजार पर सिमट दिए और 2017 से आप लोगों को उसी दस हजार पर रखे हुए हैं। यह तो हम सबको पता ही नहीं था। आये दिन सुनने को आया। सभी पंचों ने एक दूसरे को देखते हुए कहा वास्तव में मास्तर साहब कि बातो से लगता है, यह बाबा की सरकार इन मास्टर साहब सहित संविदा कर्मियों के साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रही है। जब समान कार्य लिया जाता है, तो समान वेतन देना ही चाहिए। एक ही कार्य का दो चार तरह का वेतनमान आखिर क्यों दे रही सरकार? यह तो द्वेषपूर्ण रवैया है। इसका हम सब मिलकर चुनाव में विरोध करेंगे और सत्ता परिवर्तन करेगें।
यह बात जब मीडिया में गयी मीडिया बंधुओं को आश्चर्य हुआ, एक दूसरे से पूछने लगे – आंदोलन ऐसा भी होता है क्या ?

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2 thoughts on “खट्टी-मीठी: योगी का फरमान-अध्यापक कम्युनिटी का हिस्सा न बने – क्या आंदोलन ऐसा भी होता है?”

  1. आप का ये लेख एक पक्षीय है। दूसरी गाय स्वयं ने ही सूखा चारा खा कर 7 लीटर दूध देना स्वीकार किया। अपनी कम क्षमताओं को जानते हुए भी खूंटे से बधने जबरन आयी। श्रीमान, ग्वाले ने तो दया दिखाई कि *अपनी क्षमता साबित करो तो हरियाली खाने को दूंगा* और कुछ ने साबित भी किया। ऐसी कई गायों को मैं भी सालों से जानता हूं जिन्होंने साबित किया और हरियाली खा रहें हैं। अब क्या चाहते हैं, मरियल को भी 7 लीटर दूध वाला बनाना।

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    • जब आप कम वेतनमान वाले को मरियल समझ रहे हैं तब तो आप सरकार से कहिए इन शिक्षकों से देश का भविष्य खराब हो गया है। इनके द्वारा पढाये गए बच्चों को नौकरी से बाहर करें और अयोग्य से आये दिन कराये जा रहे तमाम कार्य को निरस्त कर योग लोगों से करा ले। समान काम का समान वेतन देने के नाम पर अयोग्य न देते हुए सपूर्ण कार्य करने के लिए योग है संविदा कर्मी। धन्य है आपका विचार लगता है अंधभक्त हैं आप कमेंट करने वाले।

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