शिक्षा: में सुधार की आवश्यकता, शिक्षा का अधिकार: मातृभाषा में शिक्षा: समानता, सुलभता की दिशा में सामंतवादी, पूंजीवादी, दृष्टिकोण का प्रभाव

Amit Srivastav

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वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता, शिक्षा का अधिकार, मातृभाषा में शिक्षा का महत्व विषय पर एक लेख तैयार करने के लिए हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव कुछ मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। ये बिंदु शिक्षा प्रणाली के इतिहास, वर्तमान स्थिति, और आवश्यक सुधारों पर आधारित होंगे।

  • 1. प्रस्तावना: भारतीय शिक्षा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
  • 2. वर्तमान शिक्षा प्रणाली और इसकी चुनौतियाँ: अंकों के पीछे भागती प्रणाली
  • 3. सामंतवादी सोच का प्रभाव: शिक्षा में असमानता का बढ़ना
  • 4. मातृभाषा में शिक्षा: नैतिक और बौद्धिक विकास
  • 5. बाजार आधारित शिक्षा: पूंजीवादी दृष्टिकोण का प्रभाव
  • 6. शिक्षा में सुधार की आवश्यकता: समानता और सुलभता की दिशा में
  • 7. निष्कर्ष: समग्र विकास के लिए शिक्षा प्रणाली का पुनर्गठन

भारत की शिक्षा प्रणाली का आधार प्राचीन काल में गुरुकुल व्यवस्था पर था, जिसमें छात्रों को न केवल शैक्षिक ज्ञान दिया जाता था, बल्कि नैतिकता, संस्कृति, और जीवन के अन्य पहलुओं की भी शिक्षा दी जाती थी। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करना था, न कि केवल उसे एक पेशे के लिए तैयार करना। धीरे-धीरे, औपनिवेशिक शासन के दौरान, मैकाले की नीति के तहत शिक्षा का स्वरूप बदल गया, और अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने जड़ें जमा लीं। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश प्रशासन के लिए क्लर्क और अधीनस्थ तैयार करना था।

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आजादी के बाद भी इस शिक्षा प्रणाली में बड़े स्तर पर बदलाव नहीं किए गए। कुछ सुधार किए गए, लेकिन मूल रूप से हमारी शिक्षा प्रणाली मैकाले की ही सोच पर आधारित रही। आज के परिप्रेक्ष्य में, यह प्रणाली बाजार-केन्द्रित होती जा रही है, और इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को ‘नंबर’ प्राप्त करने की होड़ में शामिल करना और उनके करियर को किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित करना हो गया है।

शिक्षा: में सुधार की आवश्यकता, शिक्षा का अधिकार: मातृभाषा में शिक्षा: समानता, सुलभता की दिशा में सामंतवादी, पूंजीवादी, दृष्टिकोण का प्रभाव

आज की शिक्षा प्रणाली अंक आधारित हो गई है, जिसमें छात्रों के ज्ञान और क्षमता का आकलन उनकी परीक्षा में प्राप्त अंकों से किया जाता है। परिणामस्वरूप, छात्रों का ध्यान केवल अंकों को बढ़ाने पर केंद्रित होता है, और उनके वास्तविक ज्ञान या कौशल का विकास गौण हो जाता है। शिक्षकों और अभिभावकों का भी रुझान इसी दिशा में होता है, जहाँ वे छात्रों को अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं।
इस प्रणाली में समस्या यह है कि छात्रों का वास्तविक ज्ञान और सृजनात्मकता समाप्त हो जाती है। उन्हें केवल रटने और एक ही तरीके से सोचने की आदत पड़ जाती है। यही कारण है कि इस प्रणाली के तहत हमारे समाज में शिक्षित लोग हैं, परंतु उनमें से कुछ ही जीवन की समस्याओं को हल करने में सक्षम होते हैं।

अंक आधारित शिक्षा प्रणाली

आज की शिक्षा प्रणाली में ज्ञान और समझ से अधिक महत्व अंकों को दिया जा रहा है। शिक्षक, अभिभावक और समाज का ध्यान छात्रों के चरित्र निर्माण और कौशल विकास से हटकर उनके अंकों पर केंद्रित हो गया है। नई शिक्षा नीति (2020) कौशल आधारित शिक्षा पर जोर देती है, लेकिन समाज में इसे लागू करने की मानसिकता नहीं दिखती। छात्रों पर अंक हासिल करने का दबाव उन्हें सीखने के अनुभव से दूर कर देता है और उन्हें ज्ञान के बजाय अंकों का गुलाम बना देता है।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सामंतवादी सोच का असर आज भी साफ दिखता है। गरीब और पिछड़े वर्गों के बच्चों के लिए गुणवत्ता वाली शिक्षा का अभाव है। अधिकतर सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है, और यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में और भी गंभीर हो जाती है। दूसरी ओर, धनाढ्य वर्ग के पास निजी स्कूलों में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का विकल्प होता है।
इस असमानता के चलते, गरीब तबके के बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रह जाते हैं। अमीरों के पास शिक्षा के लिए बेहतर संसाधन उपलब्ध हैं, जो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करते हैं। यह स्थिति एक प्रकार से सामंती सोच को पुनर्जीवित करती है, जिसमें समाज के उच्च वर्ग के पास शक्ति और संसाधनों का एकाधिकार होता है।

भारत में आज भी समाज में सामंतवादी सोच का प्रभाव गहराई से समाया हुआ है। कुछ संपन्न और प्रभावशाली वर्ग शिक्षा को अपनी शक्ति और प्रभुत्व बनाए रखने का माध्यम मानते हैं। शिक्षा प्रणाली में निजीकरण और अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व सामंतवादी सोच का प्रतीक है, जो केवल संपन्न लोगों के लिए ही शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराती है। इस प्रकार के लोग खुद को सामाजिक और शैक्षिक रूप से श्रेष्ठ मानते हैं और आरक्षण जैसी नीतियों का विरोध करते हैं। इस सोच के कारण समाज के कमजोर तबकों के पास शिक्षा का अवसर नहीं पहुँच पाता।

शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाए। रिसर्च से यह साबित हुआ है कि बच्चों में नैतिक और अनुशासनात्मक गुण अधिक विकसित होते हैं जब उन्हें प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाती है। मातृभाषा में शिक्षा से बच्चों को अपने आसपास की दुनिया और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव का अनुभव होता है, जो उनके संपूर्ण विकास में सहायक होता है।

इसके विपरीत, जब बच्चों को एक विदेशी भाषा में पढ़ाया जाता है, तो उन्हें शुरूआती दौर में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वे केवल शब्दों को रटने तक सीमित रहते हैं और वास्तविक ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। इसके अलावा, मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चों में आत्मसम्मान का विकास भी होता है, क्योंकि वे स्वयं को अपने परिवेश से जोड़ पाते हैं।

आज की शिक्षा प्रणाली में पूंजीवाद का भी व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है। शिक्षा अब एक सेवा या सुविधा के रूप में देखी जाती है, और निजी शिक्षण संस्थान इसे लाभ का एक माध्यम मानते हैं। परिणामस्वरूप, गुणवत्ता वाली शिक्षा महंगी हो गई है, जो केवल कुछ विशेष वर्गों के लिए सुलभ है। इस तरह की शिक्षा व्यवस्था का परिणाम यह है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल धनोपार्जन तक सीमित रह गया है।

प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न कोर्सेज की अधिकता और महंगे शिक्षण शुल्क के कारण कई योग्य छात्र उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इसके अलावा, इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों पर करियर के नाम पर अनुचित दबाव बनाया जाता है। विद्यार्थी केवल उसी क्षेत्र में पढ़ाई करने के लिए मजबूर होते हैं, जहाँ नौकरी की संभावनाएँ अधिक होती हैं, और उनकी सृजनात्मकता और रुचियों को दबा दिया जाता है।

शिक्षा में सुधार की बात की जाए तो सबसे पहले आवश्यकता है कि शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में देखा जाए, और सभी बच्चों को समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाए। इसके लिए सरकारी शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना जरूरी है। सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता सुधारने के लिए पर्याप्त संसाधन और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि बच्चे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहें और उनका नैतिक व बौद्धिक विकास हो सके। इसी के साथ, छात्रों के लिए उनकी रुचि और योग्यता के आधार पर करियर का चयन करने का अवसर होना चाहिए। यह जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली केवल अंकों के आधार पर ही नहीं, बल्कि छात्रों के वास्तविक ज्ञान और कौशल पर आधारित हो।

साथ ही, शिक्षा में सरकारी निवेश को बढ़ाना आवश्यक है ताकि प्रत्येक छात्र को गुणवत्ता वाली शिक्षा सुलभ हो सके। अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों में सरकारी शिक्षा प्रणाली बहुत मजबूत है, जिससे वहां के बच्चे समानता और गुणवत्ता के साथ शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। भारत में भी सरकारी शिक्षा प्रणाली को इसी प्रकार मजबूत किया जाना चाहिए।

शिक्षा का निजीकरण और आर्थिक असमानता

शिक्षा का निजीकरण एक बड़ी समस्या बन गया है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में जहां सरकारी शिक्षा का ढांचा मजबूत है, वहीं भारत में शिक्षा का निजीकरण बढ़ता जा रहा है। प्राइवेट स्कूल और कॉलेज एक व्यापार बन गए हैं, जिसमें उच्च शुल्क के चलते केवल धनी वर्ग ही लाभ उठा सकते हैं। निजीकरण के कारण 95% आबादी के पास शिक्षा प्राप्त करने के सीमित विकल्प हैं। यह असमानता समाज में एक नया सामंतवादी वर्ग पैदा कर रही है, जो शिक्षा के माध्यम से अन्य वर्गों पर प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार आवश्यक है ताकि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य, अर्थात् संपूर्ण विकास, पूरा हो सके। आज शिक्षा केवल रोजगार प्राप्त करने का माध्यम बनकर रह गई है, जबकि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का समग्र विकास करना होना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा केवल अमीरों के लिए न हो, बल्कि प्रत्येक बच्चे के लिए सुलभ हो, चाहे वह किसी भी आर्थिक या सामाजिक वर्ग से संबंधित हो।
शिक्षा को बाजार और सामंती सोच से मुक्त करने के लिए हमें सरकारी शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना होगा और मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित करना होगा। इसके साथ ही, छात्रों की सृजनात्मकता और रुचि को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें अपने करियर का चुनाव करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

समाप्ति विचार: शिक्षा वह माध्यम है जिससे किसी भी देश का भविष्य निर्धारित होता है। यह हर व्यक्ति का अधिकार है, और इसका उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन तक सीमित नहीं होना चाहिए। आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में शिक्षा को सृजनात्मकता, समता, और नैतिकता का आधार बनाना ही हमारी शिक्षा प्रणाली की सच्ची सफलता होगी।

शिक्षा: में सुधार की आवश्यकता, शिक्षा का अधिकार: मातृभाषा में शिक्षा: समानता, सुलभता की दिशा में सामंतवादी, पूंजीवादी, दृष्टिकोण का प्रभाव

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  • https://sarkariyojanatak.com/education-problem-in-india/
  • https://sarkariyojanatak.com/up-kaushal-vikas-mission-2024-register-now-and-get-employment/

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