गोवर्धन पूजा, भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा विधि-विधान शुभ मुहूर्त सहित एक समग्र विश्लेषण

Amit Srivastav

हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा, भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा विशेष महत्व रखता है, खासकर दीपावली के बाद के दिनों में। ये त्योहार न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि परिवार और समाज में भाईचारे और एकता का प्रतीक भी हैं। इस लेख में हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव इन तीनों पर्वों का महत्व, पूजा विधि-विधान, शुभ मुहूर्त और उनसे जुड़ी कथाओं का विश्लेषण करेंगे।

गोवर्धन पूजा कब है?

गोवर्धन पूजा के लिए गोवर्धन को गाय गोबर से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को बनाई जाती है, जो दीपावली के अगले दिन आती है। शास्त्र संमत प्रतिपदा को गोधन बनाने और दूईज में कूटने का रिवाज़ है। इस साल अमावस्या 31 अक्टूबर को शाम 03 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर 01 नवम्बर 2024 शाम 06 बजकर 16 मिनट तक रह रहा है। 01 नवम्बर रात में 06:17 से प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ हो रही है, रात्रि काल में गोवर्धन बनाने का प्रथा नही है। इसलिए शास्त्र अनुसार 02 नवम्बर को गोवर्धन बनाया जाएगा और 02 नवम्बर शनिवार को रात में दूतिया तिथि हो रही है तो रात काल में कूटने का रिवाज़ नही है और 03 नवम्बर को रविवार है। रविवार और मंगलवार सूर्य उदय पर गोवर्धन को कूटा नही जा सकता। इसलिए अग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 03 नवम्बर को सूर्य उदय से पहले गोवर्धन कूट पूजा सम्पन्न होगी। भैयादूज और भगवान श्री चित्रगुप्त पूजा 03 नवम्बर रविवार को हो सकता है। इस बार गोवर्धन पूजा को भी लेकर अलग-अलग मत है।

गोवर्धन पूजा विधि

  • गोवर्धन पूजा में भगवान श्रीकृष्ण और पर्वत गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसका उद्देश्य प्रकृति की शक्ति, कृषि और जल संरक्षण के प्रति आदर प्रकट करना है।
  • प्रथम चरण: गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाने के लिए गोबर या कहीं-कहीं मिट्टी का छोटा सा पहाड़ बनाया जाता है, जिसे गोवर्धन मानकर पूजा की जाती है।
  • पूजा सामग्री: फूल, धूप, दीपक, जल, दूध, मिठाई, और तुलसी पत्ते।
  • पूजा विधि: भगवान कृष्ण और गोवर्धन की मूर्ति को स्नान कराकर उन्हें सुंदर वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। कहीं-कहीं फूल आम के पल्लो को भी वस्त्र के स्थान पर अर्पित किया जाता है।
  • इसके बाद गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा की जाती है और भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात कूटा जाता है। पहले के समय में कूटने में पहरूआ “मूसर” का प्रयोग किया जाता था किन्तु अब घरों में धान कुटाई के लिए ओखल-मूसर कहीं उपलब्ध नहीं रहता इसलिए डंडे का प्रयोग किया जाता है।
  • अन्नकूट प्रसाद: पूजा के बाद अन्नकूट प्रसाद का वितरण किया जाता है जिसमें विभिन्न प्रकार के अन्न और सब्जियों का मिश्रण होता है।

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः काल से लेकर दोपहर तक रहता है। इस बार रविवार के वजह से 03 नवम्बर दिन रविवार पूजा के लिए सुबह सूर्य उदय से पहले का समय सर्वश्रेष्ठ रहेगा। हालांकि, स्थानीय पंडितों या पंचांग के अनुसार मुहूर्त का समय भिन्न हो सकता है।

भैया दूज कब है?

गोवर्धन पूजा, भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा विधि-विधान शुभ मुहूर्त सहित एक समग्र विश्लेषण

भैया दूज भाई-बहन के रिश्ते का पर्व है, जो गोवर्धन बनने के अगले दिन, कूटने के दिन मनाया जाता है। इस साल भैया दूज [तिथि दूतिया 02 नवम्बर रात से शुरू हो रहा है] 03 नवम्बर को भैयादूज चित्रगुप्त पूजा मनाया जाएगा। कहीं-कहीं जो धर्म शास्त्रों का ध्यान नही रखेंगे 01 नवम्बर के शाम को गोवर्धन बनाकर अगले दिन 02 नवम्बर शनिवार को प्रतिपदा तिथि में ही भैयादूज मना लेगें। क्योंकि शनिवार रात में दूईज हो रहा है और अगले दिन 03 नवम्बर को रविवार है।

भैया दूज की पूजा विधि और कथा

भैया दूज का त्योहार भाई-बहन के प्रेम और आशीर्वाद का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक करके उसकी लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती है।


पूजा विधि: भाई को तिलक लगाने के लिए चंदन, रोली, अक्षत और दीपक का प्रयोग किया जाता है।
भाई को मिठाई और भोजन कराया जाता है, जिसमें बहन की ओर से विशेष पकवान भी होते हैं।


भैया दूज की कहानी: पौराणिक कथा के अनुसार यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर आए थे। यमुनाजी ने उनका स्वागत कर तिलक किया और भोजन कराया। यमराज ने प्रसन्न होकर अपनी बहन को वरदान दिया कि जो भाई इस दिन अपनी बहन से तिलक करवाएगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इसी कारण इस दिन का नाम ‘यम द्वितीया’ या ‘भैया दूज’ पड़ा।

भैया दूज की हार्दिक शुभकामनाएं

भैया दूज पर आप सभी पाठकों प्रियजनों को भैयादूज भगवान चित्रगुप्त वंशजों को कलम दवात पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव की तरफ़ से।
आप सभी बहन बेटियां भैया दूज के इस पावन पर्व पर भाई-बहन के रिश्ते में और मिठास भरें, भाई की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करें।
भैया दूज की ढेर सारी शुभकामनाएं! आपका जीवन खुशियों और सफलता से भरा रहे। आप सबका प्रिय लेखक भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव।

गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं

गोवर्धन पूजा के इस अवसर पर आप भी शुभकामनाएं साझा कर सकते हैं।
गोवर्धन पूजा के इस पर्व पर भगवान श्रीकृष्ण आपके जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का वरदान दें।
गोवर्धन पूजा की शुभकामनाएं! आपकी मेहनत को उन्नति का वरदान मिले।

Click on the link जानिए- क्यों कायस्थ दीपावली से यमदुतिया “भैयादूज” तक नही करते कलम का प्रयोग। विस्तृत जानकारी के लिए यहां ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये।

गोवर्धन पूजा, भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा विधि-विधान शुभ मुहूर्त सहित एक समग्र विश्लेषण

चित्रगुप्त पूजा कायस्थ समाज द्वारा विशेष रूप से की जाती है। चित्रगुप्त जी को धर्म और कर्म के लेखा-जोखा रखने वाला देवता माना जाता है।

पूजा विधि

  • 1. चित्रगुप्त जी की प्रतिमा: पूजा स्थल पर चित्रगुप्त भगवान की मूर्ति या तस्वीर स्थापित की जाती है।
  • 2. पूजा सामग्री: कलम, दवात, कागज, फूल, धूप, मिठाई आदि।
  • 3. पूजन विधि: लेखनी और दवात की पूजा कर चित्रगुप्त जी का ध्यान करते हैं।

इसके बाद भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज की आरती की जाती है और अपने पाप-पुण्य का लेखा-जोखा लिखने का संकल्प लिया जाता है।

चित्रगुप्त के वंशज

चित्रगुप्त जी को कायस्थ जाति का पितामह माना जाता है। उनके वंशज चित्रांश कायस्थ कहलाते हैं, और इनमें से कुछ प्रमुख वंश हैं – श्रीवास्तव, सक्सेना, माथुर, निगम, भटनागर विस्तृत वर्णन नीचे ऐतिहासिक इतिहास में कर रहे हैं। चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर कायस्थ समाज अपने कुल देवता भगवान चित्रगुप्त जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है और अपने कर्मों के प्रति जागरूकता बढ़ाता है।

चित्रगुप्त वंश –

चित्रगुप्त जी के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं। चित्रगुप्त जी यमलोक के न्यायाधीश हैं। गरूड़ पुराण में यमलोक के निकट ही चित्रलोक की स्थिति बताई गई है। जो चित्रगुप्त जी का स्थान है। श्रृष्टि में उत्पन्न सभी के कर्म फल के अनुसार न्याय डंड निर्धारित करने सभी को कर्म केअनुसार अगला योनी देने कहने का तात्पर्य ब्रह्मा जी द्वारा श्रृष्टि के विकास में योगदान, सम्पूर्ण लेखा-जोखा रखने का कार्य ब्रह्मा जी के काया से उत्पन्न भगवान चित्रगुप्त जी का है। ब्रह्माजी की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है। कायस्थ समाज के लोग ब्राह्मण वर्ग से भी श्रेष्ठ होते हैं। कायस्थ समाज के लोग भाईदूज के दिन श्री चित्रगुप्त जयंति मनाते हैं। भाईदूज के दिन कायस्थ कलम-दवात पूजा करते हैं जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है। यह वह दिन है, जब भगवान श्री चित्रगुप्त का उद्भव ब्रह्माजी के काया से हुआ था। चित्रगुप्त भगवान एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार श्रृष्टि में सभी के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा व कर्म के अनुसार डंड फल निर्धारित करने वाले चित्रगुप्त जी ही हैं।

आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं अंत समय मे सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय चित्रगुप्त के बताए आंकड़ों के अनुसार यमराज करते हैं। विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इसे ही कई हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया है। जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम लेखापाल हैं। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नर्क का निर्णय लेने का अधिकार यमराज के पास है। अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क मेंं जाएगा ? इसका निर्धारण धर्मराज- यमराज, चित्रगुप्त जी के द्वारा दिये गये आंकड़ों के आधार पर ही करते हैं। चित्रगुप्त जी भारत-आर्यावर्त के कायस्थ कुल के इष्ट देवता हैं। वेद-पुराणों के अनुसार चित्रगुप्त को कायस्थों का इष्टदेव बताया जाता है। मंत्र- ॐ यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय वै नमः।

अस्त्र– लेखनी एवं तलवार। जीवन साथी– नंदनी,शोभावती।
विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा की कई विभिन्न संताने थीं, जिनमें ऋषि वशिष्ठ, नारद और अत्री जो उनके मन से पैदा हुए, और उनके शरीर से पैदा हुए कई पुत्र, जैसे धर्म, भ्रम, वासना, मृत्यु और भरत सर्व वीदित हैं लेकिन चित्रगुप्त के जन्म अवतरण की कहानी भगवान ब्रह्मा जी के अन्य सन्तानों से कुछ भिन्न हैंं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के पहले तेरह पुत्र ऋषि हुए और चौदहवे पुत्र श्री चित्रगुप्त जी देव हुए। भगवान चित्रगुप्त जी के विषय में स्वामी विवेकानंद जी कहते है कि मैं उस भगवान चित्रगुप्त की संतान हूँ जिनको पूजे बिना ब्राह्मणों की मुक्ति नही हो सकती। ब्राह्मण ऋषि पुत्र है और कायस्थ देव पुत्र। श्रीरामचन्द्र के राज्याभिषेक में चित्रगुप्त जी को निमंत्रण पत्र न भेजने की भूल हुई थी तब चित्रगुप्त जी भगवान राम की महिमा जान अपनी कलम को राज्याभिषेक दीपावली की रात को रख दिया श्रृष्टि का संचालन प्रभावित होते देख भगवान राजा रामचंद्र जी अपने गुरुजनों सहित आवाह्न किया ब्राह्मण से ऊंचा स्थान देते हुए ब्राह्मणों से भी दान लेने का अधिकार दिया। ग्रंथों में चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान राजा के नाम से सम्बोधित किया गया है। ब्रह्मदेव के सत्रह मानस पुत्र होने के कारण वश चित्रगुप्त जी ब्राह्मण माने जाते हैं इनकी दो शादिया हुई।

पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/नंदनी जो ब्राह्मण कन्या थी, इनसे चार पुत्र हुए जो भानू- श्रीवास्तव, विभानू-सूरजध्वज, विश्वभानू- निगम और वीर्यभानू-कुलश्रेष्ठ कहलाए।

दूसरी पत्नी एरावती/शोभावति ऋषि कन्या थी, इनसे आठ पुत्र हुए जो चारु- माथुर, चितचारु-कर्ण, मतिभान- सक्सेना, सुचारु- गौड़, चारुण- अष्ठाना, हिमवान- अम्बष्ट, चित्र- भटनागर और अतिन्द्रिय-वाल्मीकि कहलाए। चित्रगुप्त जी के बारह पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की बारह कन्याओं से हुआ, जिससे कि कायस्थ वंशजों का ननिहाल नागलोक माना जाता है। “विस्तृत जानकारी के लिए गूगल पर हमारी लेखनी सर्च किजिये- कायस्थों का ननिहाल नागलोक” माता नंदनी के चार पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा शोभावति के आठ पुत्र गौड़ देश के आस-पास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्यभारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। कायस्थों को मूलत: बारह उपवर्गों में विभाजित किया गया है। जिनका वर्णन इस ऐतिहासिक इतिहास में ऊपर कर चुका हूँ।

गोवर्धन पूजा, भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण पर्व हैं। ये त्योहार न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये पर्व हमारे जीवन में प्रेम, कर्तव्य और आशीर्वाद की भावना को बनाए रखते हैं।

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