उत्तर प्रदेश/देवरिया। आम और लीची के फलों को झड़ने से कैसे बचाएं कीट, रोग और देखभाल के उपाय। कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. रजनीश श्रीवास्तव की सलाह के साथ जानें प्रभावी छिड़काव और प्रबंधन के तरीके।
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बसंत का आगमन और किसानों की उम्मीदें – आम और लीची के फलों को झड़ने से कैसे बचाएं
भारत में बसंत ऋतु का आगमन प्रकृति के लिए एक नई शुरुआत लेकर आता है। इस मौसम में आम और लीची के पेड़ों पर मंजरी (बौर) दिखाई देने लगती है, जो किसानों के चेहरों पर खुशी की लहर ले आती है। मंजरी का खिलना एक संकेत होता है कि जल्द ही पेड़ फलों से लद जाएंगे। लेकिन यह खुशी तब मायूसी में बदल जाती है, जब सही देखभाल के अभाव में फूल और फल झड़ने लगते हैं।

आम और लीची की फसल में फल झड़ने की समस्या इतनी गंभीर है कि कई बार बौर आने के बावजूद पेड़ों पर फल न के बराबर रह जाते हैं। यह न केवल किसानों की मेहनत पर पानी फेरता है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। इस समस्या से निपटने के लिए सही जानकारी और तकनीक का उपयोग जरूरी है।
कृषि विज्ञान केंद्र, देवरिया के उद्यान विशेषज्ञ डॉ. रजनीश श्रीवास्तव ने इस बारे में विस्तृत जानकारी दी है। उनके अनुसार, कीटों, रोगों और देखभाल में कमी फल झड़ने के प्रमुख कारण हैं। आम और लीची के फूलों और फलों को झड़ने से बचाने के लिए प्रभावी उपायों, कीटनाशकों और रोग प्रबंधन की तकनीकों पर चर्चा करेंगे। यह न केवल किसानों के लिए उपयोगी होगा, बल्कि बागवानी में रुचि रखने वालों के लिए भी ज्ञानवर्धक साबित होगा।
आम और लीची में फल झड़ने के कारण
आम और लीची के पेड़ों में फल झड़ने की समस्या बहुआयामी है। इसे समझने के लिए हमें इसके प्रमुख कारणों पर नजर डालनी होगी।
कीटों का प्रकोप– बसंत के साथ ही रस चूसने वाले कीट जैसे भुनगा (हॉपर), गुझिया (मिली बग) और पुष्प गुच्छ मिज सक्रिय हो जाते हैं। ये कीट पेड़ों की कोमल पत्तियों, फूलों और अविकसित फलों का रस चूसते हैं, जिससे प्रभावित हिस्से सूखकर गिर जाते हैं। भुनगा और गुझिया के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, पुष्प गुच्छ मिज के हमले से बौर पर काले धब्बे बन जाते हैं और वे टेढ़े-मेढ़े होकर बेकार हो जाते हैं।
ये कीट रस चूसने के साथ-साथ एक मीठा द्रव भी छोड़ते हैं, जिससे पत्तियां चिपचिपी हो जाती हैं और उन पर काली फफूंदी (सूटी मोल्ड) लग जाती है। यह फफूंदी प्रकाश संश्लेषण को बाधित करती है, जिससे पेड़ की सेहत और फल उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है।
रोगों का प्रभाव- खर्रा (पाउडरी मिल्ड्यू), एन्थ्रोकनोज और काली फफूंदी जैसे रोग भी फल झड़ने के लिए जिम्मेदार हैं। खर्रा रोग में फूलों, अविकसित फलों और कोमल पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है, जो धीरे-धीरे उन्हें नष्ट कर देता है। एन्थ्रोकनोज और काली फफूंदी के कारण प्रभावित हिस्से सूखकर गिर जाते हैं। ये रोग नमी और अनुचित देखभाल के कारण तेजी से फैलते हैं।
प्राकृतिक कारण- पानी की कमी, पोषक तत्वों का असंतुलन और अनियमित मौसम भी फल झड़ने का कारण बन सकता है। खासकर फल बढ़ने की अवस्था में नमी की कमी होने पर पेड़ फलों को पोषण देने में असमर्थ हो जाता है।
कीटों से बचाव के उपाय – कीटों के प्रकोप को नियंत्रित करना फल झड़ने से बचाव का पहला कदम है। डॉ. रजनीश श्रीवास्तव ने इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं।
इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव- भुनगा, गुझिया और पुष्प गुच्छ मिज जैसे कीटों के लिए इमिडाक्लोप्रिड नामक कीटनाशक प्रभावी है। इसकी 0.3 से 0.4 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह कीटों के शिशु और प्रौढ़ दोनों को नष्ट करता है।
थायोमिथॉक्सम का प्रयोग– यदि कीटों का प्रकोप कम न हो, तो 15 से 20 दिन बाद थायोमिथॉक्सम की 0.3 से 0.4 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर दोबारा छिड़काव करें। यह रस चूसने वाले कीटों को जड़ से खत्म करने में मदद करता है।
सही समय पर छिड़काव- कीटनाशकों का छिड़काव बौर निकलते समय या दाने बनने की शुरुआत में करें। जब फूल खिले हों, तो छिड़काव से बचें, क्योंकि इससे परागण प्रभावित हो सकता है।
रोगों से बचाव की तकनीकें – रोगों का प्रबंधन भी उतना ही जरूरी है जितना कीटों का नियंत्रण। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं। खर्रा, एन्थ्रोकनोज और काली फफूंदी से बचाव के लिए घुलनशील सल्फर की 2 से 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह फफूंदनाशक रोगों को फैलने से रोकता है।
डाइनोकैप या कार्बेन्डाजिम- यदि रोग का प्रभाव बना रहे, तो दूसरा छिड़काव डाइनोकैप (कैराथेन) की 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर करें। ये रसायन रोगग्रस्त हिस्सों को ठीक करने में सहायक हैं।
संयुक्त छिड़काव- समय और धन की बचत के लिए कीटनाशक और फफूंदनाशक को संस्तुत मात्रा में मिलाकर एक साथ छिड़काव किया जा सकता है। इस घोल में चिपकने वाला पदार्थ (जैसे साबुन का घोल) मिलाना न भूलें, ताकि दवा पत्तियों पर अच्छे से टिक सके।
फल झड़ने से बचाने के अतिरिक्त उपाय – फूलों और फलों को झड़ने से रोकने के लिए रसायनों के साथ-साथ कुछ अन्य उपाय भी जरूरी हैं।
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नैप्थलीन एसिटिक एसिड (एनएए)- जब फल मटर के दाने के आकार के हो जाएं, तो नैप्थलीन एसिटिक एसिड की 20 पीपीएम या प्लानोफिक्स की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह हार्मोन फलों को पेड़ से जोड़े रखने में मदद करता है।
पोषक तत्वों का छिड़काव- फल बढ़ने की अवस्था में पोटेशियम नाइट्रेट (एनपीके 13:0:45) का 10% घोल और सूक्ष्म तत्वों (बोरान, कॉपर, जिंक, आयरन) का 5% मिश्रण छिड़कने से फलों की वृद्धि बेहतर होती है। ये तत्व फलों को स्वस्थ और मजबूत बनाते हैं।
नमी का प्रबंधन- फल बढ़ने से लेकर परिपक्व होने तक मिट्टी में नमी बनाए रखें। सूखे की स्थिति में सिंचाई करें, ताकि पेड़ फलों को पोषण दे सके। सलाह डॉ. रजनीश श्रीवास्तव का कहना है कि इन उपायों को अपनाने से पहले स्थानीय मौसम और मिट्टी की स्थिति को ध्यान में रखें। रसायनों की मात्रा और छिड़काव का समय सही होना चाहिए। इसके अलावा, अधिक जानकारी के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्र, देवरिया से संपर्क कर सकते हैं। वहां विशेषज्ञों की टीम आपकी समस्याओं का समाधान करने के लिए तैयार है।

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