योगी सरकार का फैसला और विवाद की शुरुआत- उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने शिक्षा में सुधार के उद्देश्य से एक बड़ा कदम उठाने की घोषणा की है। सरकार का मानना है कि छात्र संख्या में कमी और स्कूलों के खराब प्रदर्शन को देखते हुए 50 से कम छात्रों वाले लगभग 27,000 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों को अन्य स्कूलों में मर्ज करना उचित होगा। यह फैसला कई जिलों में किए गए सर्वेक्षणों और समीक्षा बैठकों के आधार पर लिया गया है। हालांकि, इस फैसले का बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारी विरोध किया है और दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार मे सरकारी शिक्षा व्यवस्था में किये गये सुधार का हवाला दे – उत्तर प्रदेश योगी सरकार को एक नाकाम सरकार सावित करने योग्य हवाला भी दिया है। जानिए क्या है शिक्षा योजना से जूड़ा पूरा मामला इस खबर में।
सरकार का तर्क: खर्च में कटौती और बेहतर शिक्षा का प्रयास
योगी सरकार का तर्क है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों पर खर्च काफी अधिक है और इससे शिक्षा बजट पर भारी दबाव पड़ता है। मिड डे मील, स्कूल का रखरखाव, शिक्षकों की सैलरी, ड्रेस और अन्य सुविधाओं पर सरकार काफी धनराशि खर्च कर रही है, परंतु इन स्कूलों में छात्रों की संख्या नहीं बढ़ रही। ऐसे में सरकार का मानना है कि इन स्कूलों का मर्जर करके अधिक छात्र संख्या वाले स्कूलों में पढ़ाई का स्तर बेहतर किया जा सकता है। इसके साथ ही सरकार का उद्देश्य है कि बच्चों को अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: गरीब छात्रों के हितों पर संकट
मायावती का विरोध – शिक्षा से वंचित होंगे गरीब छात्र
बसपा प्रमुख मायावती ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा की सुलभता सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि – उचित सुधार करने के बजाय सरकार विद्यालयों का विलय कर रही है। इससे गरीब बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना और भी कठिन हो जाएगा। मायावती के अनुसार, सरकार को स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना चाहिए, न कि उन्हें बंद करना।
अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल का हवाला
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर यूपी सरकार के इस फैसले पर निशाना साधते हुए दिल्ली के शिक्षा मॉडल की तारीफ की। उन्होंने बताया कि किस तरह उनकी सरकार ने सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाया है। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में हमारी सरकार ने सरकारी स्कूलों को विश्वस्तरीय बनाने का काम किया है, और देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने सरकारी स्कूलों को बंद कर निजी स्कूलों का बढ़ावा देने और आम जन को शिक्षा से वंचित कराने के लिए कमद उठा लिया है। अब धीरे धीरे भाजपा अपनी काली करतूतों को जनता के सामने परोस अपने असली चेहरा को दिखाना शुरू कर रही है।
प्रश्न और चुनौतियां: ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों का भविष्य
ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे गांव हैं जहां एक ही सरकारी स्कूल है और छात्र संख्या 50 से कम है। इन स्कूलों को बंद कर देने से इन बच्चों को दूर के गांवों में पढ़ने जाना होगा, जो कि उनके अभिभावकों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत यह सुनिश्चित किया गया था कि हर 1 किलोमीटर के दायरे में एक प्राथमिक स्कूल और 3 किलोमीटर के दायरे में एक उच्च प्राथमिक स्कूल हो। यदि मर्जर का यह निर्णय लागू हुआ, तो यह नियम का उल्लंघन होगा और शिक्षा की सुलभता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
सरकार के प्रयास: क्या हैं वास्तविकता?

मिड डे मील योजना और फिर भी छात्रों की कमी
योगी सरकार का मानना है कि मिड डे मील जैसी योजनाओं के बावजूद 27,931 स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम है। सरकार द्वारा बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए मिड डे मील और अन्य प्रयास किए गए हैं, लेकिन छात्रों की संख्या बढ़ने में सफलता नहीं मिली। इसका एक कारण यह है कि इन क्षेत्रों में निजी स्कूलों का प्रभाव बढ़ रहा है और लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा की आशा में निजी स्कूलों में भेजने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
योजना और कार्यान्वयन: शिक्षकों और छात्रों की स्थिति पर प्रभाव
इस मर्जर योजना का सबसे बड़ा प्रभाव उन शिक्षकों और छात्रों पर पड़ेगा जो इन स्कूलों में जुड़े हुए हैं। लगभग 25,000 से अधिक शिक्षक इस निर्णय से प्रभावित होंगे और 13.5 लाख से अधिक छात्र इससे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे। गांव के गरीब परिवारों के बच्चों को निशुल्क प्राथमिक शिक्षा से वंचित भी होना पड़ेगा, क्योंकि? अभिभावकों के पास आर्थिक संकट प्राइवेट विद्यालयों में पढ़ाने के लिए एक तरफ समस्या उत्पन्न करेंगी तो दूसरी ओर छोटे छोटे बच्चों को दूर भेजना भी नामुमकिन होगा। अब देखना यह है कि क्या सरकार की यह योजना उनकी शिक्षा और भविष्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकेगी, या फिर इसके कारण बच्चों को पढ़ाई में और भी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। निष्कर्ष यही सामने आयेगा की गरीब परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित होंगे। क्योंकि गांव के विद्यालयों के लिए शिक्षक गांवों में जाकर बच्चों को स्कूल लातें हैं फिर भी बच्चे कोई न कोई बहानेबाजी से खेलने भाग जाते हैं। वहीं गांव के उन गरीब बच्चों के अभिभावक मजदूरी के लिए दूर दराज जातें हैं जिससे परिवार का दबाव बच्चों पर नही होता है।
पिछली सरकारों और वर्तमान भाजपा सरकार में शिक्षा के प्रति अपनाई गई रवैया
पिछली सरकारों ने गांव गांव विद्यालयों को खोलने की योजना बना लगभग गांवों में प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना की गई, ताकि गांव के बच्चों को निःशुल्क सुविधाजनक शिक्षा मुहैया कराने की योजना सफल हो। इसी क्रम में राजकीय आश्रम पद्धति इंटर मिडिएट कालेज उन आदिवासी क्षेत्रों में स्थापित किए गए, जहां पहले आदिवासियों की संख्या अधिक थी। फिर धीरे धीरे इसे बढ़ावा दिया गया। राजीव गांधी ने 1984 में भारत के सभी जिलों को जवाहर नवोदय विद्यालय नाम से एक एक सीबीएसई पैटर्न पर विद्यालय मुहैया करा, जिले के गरीब होनहार बच्चों को उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सार्थक कदम बढ़ाया। वर्ष 2004 में बालिकाओं के शिक्षा पर ध्यान देते हुए कस्तुरवा गांधी नाम से जगह-जगह विद्यालय खोले गए, जो सब इंटर मिडिएट कालेज आवासीय विद्यालयों के रूप में स्थापित किया गया। मानसिक परिक्षण के आधार पर इन आवासीय निशुल्क विद्यालयों में नामांकन दे कर, गरीब परिवारों के बच्चों की पढ़ाई पर आने वाले खर्च से अभिभावकों को मुक्त किया गया।
वर्तमान की भाजपा सरकार 2014 से शिक्षा क्षेत्र में निजीकरण का बढ़ावा देते हुए अब विद्यालयों को धीरे धीरे बंद करने की फिराक में लग रही है। इसका दुष्प्रभाव गांव के गरीब परिवारों पर पड़ना स्वभाविक है, क्योंकि गरीब परिवारों के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सहित उत्तम शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा। सरकार के आवासीय विद्यालयों में उन गांव के प्राइमरी स्कूलों से बच्चों का चयन होता है, जो गरीब परिवारों के बच्चे होनहार होते हैं। गांव शहरों में गरीबी के कारण बच्चे अच्छी उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते। जवाहर नवोदय विद्यालयों का नाम बदल कर सैनिक स्कूल किए जाने का भाजपा सरकार ने प्रोपेगेंडा रचीं, जो विरोध के कारण सफलता हासिल नहीं हुआ। फिर जवाहर नवोदय विद्यालय नाम बदलकर पीएम नवोदय विद्यालय किया गया, आखिर ऐसा करने से सरकार शिक्षा में क्या उपलब्धि हासिल करा रही है? सोचने का विषय है। आवासीय विद्यालयों पर महंगाई को ध्यान में रखते हुए बजट में बढ़ोतरी करने के जगह कटौती हो रही है। जिससे गरीब छात्रों को समुचित सुविधा मुहैया कराने में विद्यालय प्रशासन को समस्या आ रही है। कुछ महिनों पहले हमने राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों की बिगड़ती स्थिति पर लेखनी प्रकाशित किया था, जिसके एक माह के अंदर ही खामियाजा सैकड़ों बच्चों को भुगतान पड़ा और वो भी योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद के पास देवरिया जिले में देखने को विश्व स्तर पर मिला। उस लेखनी का गूगल और अखबार के संपादकीय में शिर्षक है –
योगी सरकार की नाकामी- आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था हुई ध्वस्त। विस्तृत जानकारी के के लिए शिर्षक गूगल पर सर्च किजिये या इस ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये पढ़िए।
निष्कर्ष: सुधार या समस्या?
योगी सरकार का यह फैसला एक तरफ शिक्षा व्यवस्था में सुधार का झूठा दावा करता है, तो दूसरी ओर गरीब और ग्रामीण बच्चों के लिए नई समस्याएं खड़ी करता दिख रहा है। मायावती और केजरीवाल जैसे विपक्षी नेता सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि 13 या 14 नवंबर को होने वाली अगली बैठक में क्या निर्णय लिया जाता है और कैसे इन विवादित मुद्दों का समाधान निकाला जाता है।
- Education and Sarkar yojna new update in Hindi Sarkar Yojna Tak