Muslim reservation : EWS कोटे में भी मुसलमानों को मिलता है आरक्षण – आठ लाख सालाना कमाने वाले को भी मिलता है आरक्षण

Amit Srivastav

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भारत मे ईडब्ल्यूएस गरीबी आरक्षण जहां बेरोजगारों और गरीबों कि बड़ी फौज खड़ी है और आय का कोई स्रोत नहीं, यहां मिलता है आठ लाख तक सलाना इन्कम करने वाले को ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत गरीबी आरक्षण। वास्तव में गरीबों के साथ है यह एक मजाक।

Muslim reservation

आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सभी राजनीतिक दल अपने फायदे में बोलना पसंद करते हैं। वह अपने तरीके से राजनीतिक गोटियां सेट करके जनता को अपने पक्ष में करना चाहते हैं।‌
चाहे ममता बनर्जी हो या कांग्रेस पार्टी या भारतीय जनता पार्टी।
संविधान के अनुसार एससी, एसटी, ओबीसी को आरक्षण मिलने का निर्धारित समय सीमा तय है। लेकिन वोट कि राजनीति में इस जातीय आरक्षण व्यवस्था को आबाद रखा जा रहा है। आये दिन इसमे अपने फायदे के अनुसार थोड़ा संशोधन भी किया जा रहा है। इस आरक्षण में शामिल होने की कई शर्ते हैं। इसके साथ ही धर्म के आधार पर किसी तरह का आरक्षण नहीं दिया जाता है। तो आइए जानिए निस्पक्ष कलम के साथ भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज संपादक अमित श्रीवास्तव की लेखनी से।
ईडब्ल्यूएस कोटा में आर्थिक आधार पर आरक्षण लेकिन सभी धर्म के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को फायदा
आर्थिक आधार पर आरक्षण ईडब्ल्यूएस कोटे से सभी धर्म के लोगों को आरक्षण दिया जाता है जो अनरिजर्व्ड कैटेगरी में आते हैं।
असल में आर्थिक आधार पर यहां आरक्षण दिया जा रहा है। इसलिए इसे धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह ईडब्ल्यूएस आर्थिक आधार पर आरक्षण है। ‌
इसलिए इस कोटे में आर्थिक रूप से कमजोर हिंदू मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, पारसी, इसाई सभी आ जाते हैं।
‌लेकिन इस बात पर भी गौर करना चाहिए की आर्थिक रूप से कमजोर का जो नियम बना है उसमें ₹800000 सालाना रखा गया है। जो की एक हास्यास्पद स्थित है क्योंकि ₹800000 सालाना इन्कम करने वाला गरीब कैसे हो सकता है।

आर्थिक आधार पर आरक्षण की एक समीक्षा

Muslim reservation : EWS कोटे में भी मुसलमानों को मिलता है आरक्षण - आठ लाख सालाना कमाने वाले को भी मिलता है आरक्षण

आर्थिक आधार पर आरक्षण की एक शर्त यह है कि ₹800000 सालाना तक इन्कम परिवार की होनी चाहिए। अब आप ही बताइए कि ₹200 हर दिन कमाने वाला परिवार क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण हासिल कर पाएगा क्योंकि उसे उन लोगों के साथ कंपटीशन करना पड़ेगा जो ₹2000 हर दिन कमाते हैं। ‌
₹2000 या साल महीने के 67000 या साल के ₹800000 कमाने वाला प्राइवेट इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चों को पढ़ा सकता है, अच्छा भोजन और रोजी-रोटी जुटाना उसके लिए आसान है। यानी की आर्थिक रूप से वह कमजोर भी माना जाएगा और सारी सुख सुविधाएं हासिल कर भी लेगा।
लेकिन मजदूरी करने वाला आर्थिक रूप से कमजोर किसी जीविका से जुड़ा जनरल केटेगरी का परिवार जिसकी आमदनी रोज की 200 और 400 रुपये क्या वह हर दिन ₹2000 कमाने वाले जनरल कैटेगरी के आर्थिक संपन्न से कंपटीशन कर पाएगा।‌
200 से 400 Rs  हर दिन कमाने वाले या बेरोजगार के पास अच्छी प्राइवेट स्कूल की शिक्षा हासिल करने के लिए फीस नहीं है। महंगाई और बेरोजगारी ने उसका कमर तोड़ दिया है।  पोषक तत्व वाला भोजन जुटाने के लिए उचित आमदनी नहीं है। दाल या सब्जी की व्यवस्था कर खा पाना बहुत मुश्किल हो रहा है।
ना ही किसी तरह की अच्छी स्वास्थ्य योजना उनके पास है।   हर दिन ₹300 से ₹400 कमाने वाले या बेरोजगार गरीब को अच्छी शिक्षा, अच्छा भोजन जब तक नहीं मिलेगा, तब तक वह कैसे आर्थिक आधार के इस आरक्षण में वह फायदा उठा पाएगा।
सरकारी विद्यालयों की हालत यह है कि वहां पर पढ़ाई का स्तर प्राइवेट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से गई गुजरी है। जबकि सरकारी अस्पतालों की हालत बद से बदत्तर है, प्राइवेट हॉस्पिटल महंगे हैं।
कोरोना के दौरान लोगों की आमदनी घटी जो आज तक भी नहीं बढ़ पाई, इसका कारण सरकार की गलत आर्थिक नीति है। अमीर और अमीर होता चला गया गरीब और गरीब होता चला गया। ‌मध्यम वर्गीय परिवार की स्थिति दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। आर्थिक आधार पर आरक्षण केवल झुनझुना साबित होकर रह गया है। ‌
जनरल कैटेगरी के आर्थिक आधार पर आरक्षण का फायदा तो 8 Lakh सालाना इन्कम वाले ही उठा पाएंगे। क्योंकि उनके पास महंगी अच्छी शिक्षा और अच्छा भोजन है। ‌‌यह एक बड़ा सवाल है? आर्थिक आधार पर आरक्षण की 8 लाख की सीमा जनरल के गरीब लोगों के साथ भद्दा मजाक है। ‌

Muslim reservation : EWS कोटे में भी मुसलमानों को मिलता है आरक्षण - आठ लाख सालाना कमाने वाले को भी मिलता है आरक्षण

शिक्षा, रोजी-रोटी और आरक्षण

आठ लाख रुपए सलाना तक कमाने वाले सभी धर्म के लोग जिन्हें आर्थिक रूप से कमजोर माना गया है। आरक्षण दिया जा रहा है, जिसे ईडब्ल्यूएस आरक्षण कहा जाता है। EWS जिसका फुल फॉर्म‌ Economically Weaker Section (इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन) है।‌ यह आरक्षण जनरल कैटेगरी के लिए है। सरकार ने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण शुरू किया है। जबकि EWS रिजर्वेशन को राजनीतिक लाभ दिलाने के लिए
सत्ता पक्ष के लिए पत्रकारिता करने वाली मीडिया इसे गरीबों के लिए आरक्षण या आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की आरक्षण या सवर्ण के लिए आरक्षण जैसे शब्दों का इस्तेमाल करती है। 
EWS reservation में हिंदू, मुस्लिम, सिख ईसाई सभी को आरक्षण मिल रहा है। ‌क्योंकि इनमें से बहुत से वर्ग जनरल कटेगरी में आते हैं। ‌या दूसरे शब्दों में जिन्हें ओबीसी, एससी, एसटी के आधार पर आरक्षण प्राप्त नहीं है या जिसे कह सकते हैं कि अनरिजर्व्ड कैंडिडेट है।
लेकिन अधिकतम 8 लाख सालाना तक  इनकम वाले जनरल वर्ग के कैंडिडेट इस आरक्षण का लाभ ले सकते हैं। ‌इसे दूसरे शब्दों में काहे की जनरल वर्ग के हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जिनकी सालाना इन्कम ₹800000 तक है, वे इस आरक्षण का लाभ ले सकते हैं। ‌
आर्थिक आधार पर यह आरक्षण जनरल कैटेगरी की 50% सीट के अंदर ही 10% सीटों पर ईडब्ल्यूएस आरक्षण दिया जा रहा है।
इस बात को दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि आरक्षण सीमा के 50% के अतिरिक्त अनरिजर्व्ड के 50% में ही 10% आर्थिक रूप से गरीब लोगों को आरक्षण दिया जा रहा है।
मजेदार बात है कि इसमें सालाना आय ₹800000 रखी गई है। ‌क्योंकि यह आरक्षण आर्थिक आधार पर है, धर्म के आधार पर नहीं है। इस आर्थिक आरक्षण में ₹800000 सालाना इन्कम रखी गई है। जिसमें अधिकतर 67000 Rs महीना कमाने वाले मध्यमवर्गी लोग इस दायरे में आते हैं। जबकि 200 ₹300 प्रतिदिन कमाने वाला गरीब तबका भी इस आर्थिक आधार के रिजर्वेशन के दायरे में आता है लेकिन क्या उसे फायदा मिल पाएगा यह सबसे बड़ा सवाल है।
आर्थिक कोटे के आधार पर जो आरक्षण दिया जाता है, उसमें हिंदू मुस्लिम, जैन, सिख इसाई सभी को आरक्षण मिलता है। असल में आर्थिक आधार पर आरक्षण गरीब सवर्णो या जनरल वर्ग का आरक्षण बताया जाता है लेकिन यह 8 लाख तक की कमाई वाले खाते पीते लोगों के लिए भी आरक्षण है।
800000 कमाई वाला कहां से गरीब है
पहला सवाल ₹800000 सालाना कमाने वाला गरीब कैसे हैं? आर्थिक आधार पर उसे आरक्षण का लाभ क्यों दिया जा रहा है? अगर कोई ₹800000 सालाना कमाता है तो हर दिन ₹2000 कमाता है। उसके पास संसाधन है वह अच्छी शिक्षा प्राप्त करके बिना आरक्षण के नौकरी हासिल कर सकता है। ‌ लेकिन उसे ईडब्ल्यूएस कोटा में शामिल कर दिया गया है, तो उनका क्या होगा जो जनरल के कोटे में आते हैं? और जिनकी कमाई हर दिन की 200 से 300 रुपए या निहायत बेरोजगार हैं। क्या आठ लाख रुपए सालाना कमाने वाले से अच्छी शिक्षा और संसाधन में अत्यंत गरीब लोग मुकाबला कर पाएंगे? जनरल कैटेगरी में हर धर्म के लोग बहुत गरीब हैं उनका आर्थिक रूप से आरक्षण के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।‌ शिक्षा के बल पर कोई समाज आगे बढ़ता है सरकारी शिक्षा की हालत इतनी बदत्तर है कि यहां शिक्षा ग्रहण करने वाला प्राइवेट स्कूल की शिक्षा जो बहुत महंगी है उससे पीछे जाता है। ऐसे में आर्थिक आधार में आरक्षण की जो नियम है ₹800000 सालाना वह सही नहीं है। ‌
असल में सरकार आर्थिक रूप से आरक्षण देकर सभी को लॉलीपॉप दे दिया है ताकि उनके वोट बैंक बनते रहे। 80 करोड़ जनता को मुफ्त में अनाज दिया जा रहा है, इसके साथ ही अच्छी शिक्षा और अच्छा स्वास्थ्य धरातल से गायब है। महंगाई और बेरोजगारी का आलम सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी है। इस पर डिबेट और बहस नहीं होती है।

जाति आधारित जनगणना और आर्थिक सर्वे भारत के लिए है बहुत जरूरी

देश में 15000 रुपए महीना कमाने वालों की संख्या 46% है। लगभग ₹800000 सालाना कमाने वालों की संख्या इस देश में 6 करोड़ है। ‌ इसमें जनरल कैटेगरी के कितने हैं, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन आर्थिक आधार पर और जाति आधार पर जनगणना की बात इसीलिए उठाई जाती है ताकि सही नियम कानून देश में बनाया जा सके। हालांकि भाजपा इस बात से इंकार करती रही है कि इस तरह के मुद्दे भारत को तोड़ने वाले हैं जबकि भारत की आर्थिक और जाति जनगणना कराना बहुत जरूरी है।

गोदी मीडिया जातिगत जनगणना और आर्थिक सर्वे का क्यों करती है विरोध जिस देश में 8 लाख से अधिक सालाना कमाने वाले की संख्या एक आंकड़े के अनुसार केवल लगभग 6 करोड़ हो। ये 6 करोड लोग अच्छी प्राइवेट अंग्रेजी शिक्षा और अच्छा प्राइवेट हॉस्पिटल का लाभ उठा सकते हैं और पोषण वाला भोजन हासिल करने में सक्षम है। ‌ इनमें से अधिकांश लोग गोदी मीडिया, बड़े व्यापारी और बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोग हैं। यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चों का मुकाबला 99% भारत के अल्प आय वर्ग और गरीब बच्चों के साथ हो। ‌अगर यह 99% भारत के परिवार के बच्चे अच्छी शिक्षा हासिल कर लेंगे तो इन 6 करोड लोगों को तगड़ा कंपटीशन दे देंगे। इसलिए ये अमीर वर्ग कभी नहीं चाहेंगे कि जातिगत गणना और आर्थिक सर्वे हो।

जातिगत गणना और आर्थिक सर्वे न होने के कारण कई तरह की योजनाएं सही तरीके से प्रभावशाली नहीं बन पाती है। मीडिया में गलत तरीके से दिखाकर आर्थिक संपन्न समाज के हित में बात की जाती है और कमजोर तबके के जो कामगार है, किसान है, पूजा पाठ करने वाले, ग्रुप सी और डी लेवल के सरकारी नौकरी करने वाले, प्राइवेट क्षेत्र में कम सैलरी पर काम करने वाले, के विरोध में बातें गोदी मीडिया करती है। यह आज से नहीं पूंजीवादी व्यवस्था अंग्रेजों की देन है। इसी पर हर सप्ताह काम करती है लेकिन भारत की राजनीति में 2024 आर्थिक गणना और आर्थिक सर्वे की बात एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। ‌यानी हमारी राजनीतिक धर्म पुष्टिकरण से आगे चली गई है। आइए इसका स्वागत करें। भारत के विकास में अपना योगदान दे।

आर्थिक आधार पर आरक्षण

800000 सालाना यानी की 67000 Rs लगभग हर महीने कमाने वाला गरीब कैसे हुआ और आर्थिक आधार आरक्षण का लाभ उठा कर कहीं दूसरे का हक तो नहीं मार रहा है? जबकि देश में ₹15000 महीना कमाने वालों की संख्या बहुत अधिक है ऐसे में आर्थिक आधार पर उनके लिए आरक्षण झुनझुना ही साबित हो रहा है। क्योंकि आठ लाख सलाना कमाने वाले से एक लाख अस्सी हजार सलाना कमाने वाले अच्छी शिक्षा और अच्छे संसाधन में बराबरी नहीं कर सकता है। ‌

आरक्षण का उद्देश्य

डाक्टर भीम राव अंबेडकर द्वारा पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था कराई इस उद्देश्य से कि पिछड़ा वर्ग समाज में कुछ ऊपर उठ सके। उनकी यह सोच बहुत ही सराहनीय है किन्तु हुआ उनके सोच से विपरीत। अब आप सोच कर हैरान हो रहे होगें तो इसका खुलासा थोड़े शब्दों में से कर दे रहा हूं। भीम राव अंबेडकर दलित वर्ग से आर्थिक रूप से ऊपर उठ चुके एक शिक्षित योग्य व्यक्ति थे। उस समय जमींदारी प्रथा थी ज्यादातर जमीन जमींदारों के हाथ में था और उस जमीन में मजदूरी कर दलित वर्ग अपना जीवन यापन करता था। जमींदारों द्वारा दिए गए पारिश्रमिक में ही गरीब वर्ग अपना सब व्यवस्था करता था। उस गरीब वर्ग को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए जमींदारों से जमीन दिलाने की मांग की गई लेकिन उस समय जमीदार वर्ग ही राजनीति कर रहा था तो उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया। उस समय सरकारी नौकरी का महत्व नही था जमींदारों के यहां से नौकरी में जाना नही चाहता था तो सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था समय के साथ निर्धारित किया गया। धीरे-धीरे आरक्षण को राजनीतिक दलों ने जाती आधार पर बढ़ाते गये और आज यह जाती आधारित आरक्षण डाक्टर भीमराव अंबेडकर के सपनों को साकार नही होने दिया न होने देगा। क्योंकि उन्होंने गरीबों को आर्थिक रूप से मजबूत करने का सपना देखा था और यहां वोट बैंक की राजनीतिक लाभ मे जातीय आरक्षण के द्वारा बढ़ चुके लोगों को बढ़ाया और दबे-कुचले लोगों को दबाये रखा गया है। अगर यह आरक्षण उस समय सिर्फ उनके मंशा के मुताबिक गरीब लोगों को दिया गया होता तो आज देश में समानता चारों तरफ देखने को मिलती। उस समय और आज के समय का आकलन किया जाए तो जितने प्रतिशत लोग उस समय गरीब थे उससे कम वर्तमान में नही हैं। मतलब स्थिति ज्यों का त्यों बना हुआ है। आरक्षण व्यवस्था लाकर जमींदारी प्रथा तोड़ी गई थोड़ी बहुत जमीन हर किसी को उपलब्ध हुआ। जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ जमीनें कम पड़ती जा रही है और कृषि कार्य में असफल लोग नौकरीपेशा के तरफ़ अग्रसर हो गये हैं ऐसे में नौकरियों की मांग बढ़ना स्वभाविक है। इसका लाभ राजनीतिक पार्टियों द्वारा आरक्षण के मुद्दे पर भी लिया जा रहा है।

शिक्षक और बड़े अधिकारीयों के रूप मे आरक्षण से नियुक्ति देश का भविष्य चौपट

जी हां शिक्षा ही देश का भविष्य उज्जवल बनाता है जिस देश में उचित समुचित शिक्षा न मिले उस देश का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के माध्यम से देश के बच्चों का भविष्य उज्जवल किया जा सकता है। किन्तु भारत में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के जगह गिराने का सरकारों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है। माता-पिता के बाद शिक्षक का दायित्व होता है बच्चों को उचित मार्गदर्शन कराना किन्तु मार्गदर्शी शिक्षक ही गुरु के रूप मे मार्गदर्शन करा सकता है। तो इसके लिए निहायत जरूरी है सर्वगुण सम्पन्न शिक्षक का होना। और अपने अच्छे गुणों से बच्चों को शिक्षित करना गुरु तुल्य शिक्षक का धर्म है। तमाम डिग्री डिप्लोमा सहित आरक्षण के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति कर दी जाती है किन्तु शिक्षक अपने गुरु धर्म का निर्वाह नही करते। जिसका खामियाजा आम जन को आये दिन भुगतान पड़ता है। आनलाईन दस्तावेज के जमाने में जो कम्प्यूटर आपरेटर रखे गए हैं आखिर किसी गुरु से ही शिक्षा ग्रहण कर आया है जब गुरु ने उस आपरेटर को सही मात्रा का ज्ञान नही दिया तभी तो वो आपरेटर अपनी लेखनी में तमाम गलतियों को समाहित कर देता है। जो आम जन के लिए फिर सुधार कराना एक समस्या बन जाती है। पूरी योग्यता नही बल्कि आरक्षण व्यवस्था से शिक्षक व बड़े अधिकारी देश के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं।

आर्टिकल निष्कर्ष

आर्थिक आधार पर आरक्षण गरीब जनरल कैटेगरी का उतना भला नहीं कर सकता, जितना इसी वर्ग के आठ लाख रुपए सालाना कमाने वाले का भला कर रहा है। ‌कहने का मतलब है कि गरीबों का आर्थिक आधार पर आरक्षण की सालाना इन्कम आठ लाख एक तरह से गरीबों के साथ मजाक ही है। ‌ जनरल कैंडिडेट में गरीबों के लिए दिया जाने वाला यह आरक्षण महज़ लॉलीपॉप है। ‌

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