राजनीतिक पक्षपात और संवैधानिक तटस्थता पर सवाल: मणिपुर और पश्चिम बंगाल की घटना पर- समीक्षात्मक विश्लेषण

Amit Srivastav

देश में महिलाओं को लेकर हाल ही में घटित दो बड़ी घटनाओं ने भारतीय राजनीति और संवैधानिक व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मणिपुर और पश्चिमी बंगाल “कोलकात्ता” की घटनाओं के प्रति राजनीतिक दलों की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाओं ने न केवल उनकी पक्षपात पूर्ण प्रवृत्तियों को उजागर किया है, बल्कि संवैधानिक तटस्थता और नैतिकता पर भी सवाल खड़े किए हैं। इस कंटेंट में हम भगवान चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज “निस्पक्ष संपादक” – अमित श्रीवास्तव मणिपुर और पश्चिम बंगाल कोलकात्ता की महिलाओं के साथ हुए कुकृत्य के बाद राजनीतिक द्वंद्व युद्ध की गहराई से पड़ताल करेगें और उन मुद्दों को उठायेंगे, जिन पर मौन साधना हम निस्पक्ष लेखकों के लिए अब और संभव नहीं है। मीडिया को निस्पक्ष भूमिका में अपनी कर्तव्य निभाने चाहिए लेकिन लाभ देने दिलाने वालों का पक्षधर बन गोदी मीडिया भी इन दोनों घटनाओं पर सही दायित्व निभाने में नाकाम साबित हुई हैं।

मणिपुर की घटना पर मौन क्यूँ?

मणिपुर में महिलाओं के साथ खुलेआम की गई बर्बरता पर जिस तरह से केंद्र सरकार और शीर्ष संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों ने मौन साधा, वह उनकी नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है। महिलाओं के अधिकारों व हितों सहित सम्मान की बात करने वाले नेता और अधिकारी उस समय कहां थे, क्यों मणिपुर में तत्काल प्रभाव से राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया गया? क्या इस पर कोई संवैधानिक संकट नहीं था? यह एक गंभीर सवाल है, जिसका जवाब जनता के बीच भारत देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मणिपुर के मुख्यमंत्री सहित सभी सत्ता व विपक्ष को स्पष्ट रूप से देना चाहिए।

पश्चिम बंगाल की घटना पर मुखरता

राजनीतिक पक्षपात और संवैधानिक तटस्थता पर सवाल: मणिपुर और पश्चिम बंगाल की घटना पर- समीक्षात्मक विश्लेषण

दूसरी ओर, जब अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल में एक चिकित्सिका के साथ जघन्य कृत हुआ, तब अचानक वही नेता और अधिकारी जो मणिपुर की घटना पर मौन थे, मुखर हो गए। राष्ट्रपति का यह बयान कि वह इस घटना से भयभीत डरी हुई हैं, ने इस विरोधाभास को और भी उजागर कर दिया है। राष्ट्रपति का यह बयान, यह स्थिति स्पष्ट करती है कि संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों से तटस्थता और निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती है। भारत के राष्ट्रपति की कार्यो और बयान बाजी से निस्पक्षता की यह उम्मीद टूटती दिखाई दे रही है। राष्ट्रपति के बयान से स्पष्ट हो रहा है कि अपनी कर्तव्यों का पालन सही तरीके से नहीं कर रही हैं, शायद किसी न किसी के द्वारा दिए गए वक्तव्य को मीडिया द्वारा जनमानस तक प्रकाशित करा, मणिपुर की घटना को नजरअंदाज कर पश्चिम बंगाल की घटना पर राजनीतिक दल में सत्ता पक्ष का साथ देते हुए अपने अधिकार व कार्य का संचालन सही तरीके से नहीं कर पा रही हैं।

न्यायपालिका की भूमिका

मणिपुर में हुई घटनाओं पर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की निष्क्रियता ने कई सवाल खड़े किए हैं। जब पश्चिम बंगाल की अमानवीय कृत घटना पर तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सकती है, तो मणिपुर की बर्बरतापूर्ण देश को शर्मिदा करने वाली घटना पर क्यों नहीं इस तरह की प्रतिक्रिया दिया गया?पश्चिम बंगाल की चिकित्सिका वाली घटना पर उच्चतम न्यायालय के जिस न्यायाधीश ने कहा कि मैंने अपने 30 साल की नौकरी में पश्चिम बंगाल जैसी घटना नहीं देखी थी। उस न्यायाधीश से प्रश्न है –  क्या भाजपा सरकार वाली मणिपुर घटना इस घटना से छोटी थी अगर नही तो मणिपुर वाली अमानवीय घटना जहां महिलाओं को नंगे खुलेआम घुमाया गया उन महिलाओं के साथ कुकृत्य हुआ, बीडीओ बना शोषण मीडिया पर वायरल हुआ हजारों लोग प्रभावित हुए करोड़ों की सरकारी व निजी संपत्ति नष्ट हुई। उस घटना पर इस तरह की प्रतिक्रिया क्यो नही आई? हजारों महिलाओं की आवाज भी गोदी मीडिया ने दबा दिया जनता तक सच को पहुंचाने से गुरेज किया गया। वहां न्यायपालिका मौन क्यो है? वहां उन पीड़ित महिलाओं की इस तरह की जांच कराकर कार्यवाई क्यो नही किया गया? लोकपालिका और न्यायपालिका की नैतिकता और तटस्थता के इस प्रश्न पर विचार-विमर्श करना अति आवश्यक है।

संसदीय दलों की दोहरी नीतियां

इस पूरे प्रकरण में भारतीय जनता पार्टी की दोहरी नीति भी स्पष्ट रूप से सामने आई है। एक ओर जहां पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रही है, वहीं मणिपुर की घटना पर भारतीय जनता पार्टी की निष्क्रियता ने अपनी विश्वसनीयता पर खुद सवाल खड़े किए हैं। इन दोनों घटनाओं कि तुलनात्मक विरोधाभास बताता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता संवैधानिक मुद्दों का उपयोग केवल राजनीतिक लाभ लेने के लिए कर रहे हैं, न कि वास्तविक न्याय के लिए।

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संवैधानिक तटस्थता का महत्व

यह समय है कि संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों और न्यायपालिका को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझनी चाहिए। देश की जनता उनसे निष्पक्षता और तटस्थता की उम्मीद करती है। किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए “संवैधानिक संकट” होना आवश्यक है, न कि मात्र “विधि-व्यवस्था” की बिगड़ी हुई स्थिति। यदि राष्ट्रपति पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहती हैं, तो उन्हें पहले संवैधानिक सलाहकार से परामर्श करना चाहिए।

मणिपुर और कोलकाता मामले का समीक्षात्मक निष्कर्ष:

यह दोनों घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भारत देश में संवैधानिक पदों पर आसीन और राजनीतिक दलों की निष्पक्षता और नैतिकता पर सवाल उठने लगे हैं। इस समय इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए और उचित कदम उठाया जाना चाहिए। जिससे दोनों घटनाओं में महिलाओं को न्याय मिल सके और जनता का संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास बना रहे।
भारतीय राजनीति और संवैधानिक संस्थाओं के वर्तमान परिदृश्य में तटस्थता और निष्पक्षता का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। मणिपुर और पश्चिम बंगाल की घटनाओं के प्रति राजनीतिक दलों और संवैधानिक पदाधिकारियों की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाओं ने इस परिदृश्य को उजागर किया है कि संवैधानिक मूल्यों और नैतिकता को अक्सर राजनीतिक हितों के लिए ताक पर रखा जा रहा है। मणिपुर की घटना पर केंद्र सरकार और न्यायपालिका की मौनता, और पश्चिम बंगाल की घटना पर उनकी सक्रियता, स्पष्ट रूप से दोहरी नीतियों की ओर संकेत करती है।
संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का दायित्व है कि वे अपने कार्यों में निष्पक्षता और तटस्थता बनाए रखें। लोकतंत्र में न्यायपालिका और कार्यपालिका से जनता की उम्मीदें बहुत बड़ी होती हैं, और उन्हें इस जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना चाहिए। यह आवश्यक है कि संवैधानिक पदाधिकारी और राजनीतिक दल केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि देश के संविधान और नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए कार्य करें। इस परिप्रेक्ष्य में, सभी संबद्ध संस्थाओं और व्यक्तियों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ निभाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।

click on the link “चिटफंड बैकिंग और सरकार” 2014 तक जो तमाम प्राइवेट बैंकों ने अपना पैर पसार लाखों लोगों को रोजगार दिया था जिसके कारण नेशनल बैंकों में लोगों का तांता नही लगता था उन सब चिटफंड बैंकों में जमा पूंजी पर सरकार मेहरबान 10 सालों बाद भी निवेशकों का जमा पूंजी अभी मिलने की उम्मीद नहीं जानिए पूरा मामला इस आर्टिकल में।

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