बटेंगे तो कटेंगे: नारा देकर आखिरकार किस प्रकार की राजनीति भाजपा करना चाह रही है? एक समग्र विश्लेषण

Amit Srivastav

भारतीय राजनीति में पिछले कुछ सालों से एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। जिस तरह से राजनीतिक दलों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया है। उससे स्पष्ट होता है कि सत्ता प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के लिए क्या रणनीति अपनाई जा रही है? विशेष रूप से भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) ने चुनावी लाभ के लिए जिस तरह की रणनीति अपनाई हैं, उसमे “डर” और “ध्रुवीकरण” प्रमुख हथियार है। इस संदर्भ में, “बटेंगे तो कटेंगे” का नारा और आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा की नीति, एक गहरी राजनीतिक योजना का हिस्सा प्रतीक होती है।
इन दिनों राजनीति बहुत बदल गई है। “लेटरल एंट्री” मामले में किरकिरी होने पर भाजपा सरकार बैक फुट पर आ गई है। इधर उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षकों की भर्ती के मामले में हाई कोर्ट के ताजा आदेश से स्पष्ट हो गया है की भर्ती में आरक्षण के मानकों का सीधा-सीधा उल्लंघन हुआ है। खबरों के मुताबिक बीजेपी समर्थकों द्वारा पिछले लगातार कई महीनो से आरक्षण को लेकर कई तरह के पोस्ट फॉरवर्ड किए जा रहे हैं। जिसका असर ओबीसी और आरक्षित वर्ग के समुदाय पर भी पड़ा है। आरक्षण के खिलाफ इस तरह के ब्यान बाजी और पोस्ट के जरिए- आरक्षित वर्ग ओबीसी, एससी, एसटी  के बीच आरक्षण छीने जाने का भय बनता जा रहा है। इधर लेटरल एंट्री यानी बाग डोर से एंट्री करने के विज्ञापन को लेकर भी बवाल हो गया। ऐसे में ओबीसी और एससी, एसटी का एक बड़ा वर्ग भाजपा से नाराज हो गया है। केंद्र सरकार की नीति और उत्तर प्रदेश 69000 शिक्षक भर्ती, हाईकोर्ट के ताजा मामलें में यह सामने आया कि आरक्षण की सीटों में जनरल कैंडिडेट को भर दिया गया है। ‌इस भर्ती में आरक्षण से संबंधित नियमों का पालन नहीं किया गया है। इसे पूरा करने के लिए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ सरकार को आदेश दिया है।
इन सब घटनाओं के चलते यह बात सामने आ गई कि, जो वर्ग पिछले 10 साल से भाजपा के साथ जुड़ा रहा और भाजपा को सपोर्ट करता रहा है। हिंदुत्व के नाम पर वह वर्ग अब भाजपा से दूर जा रहा है।
ऐसे में भाजपा अपनी हार के डर से एक नया “शगूफा” छोड़ दिया है। बांग्लादेश की ताजा तरीन हालात पर मीडिया का एक वर्ग वहां हिंदुओं पर हो रहे, अत्याचार की खबरों को भारत में बीजेपी को फायदे के लिए बढ़ाचडा कर दिखाये जाने वाली प्रोपेगेंडा पत्रकारिता को आगे बढ़ा रहा है। ‌
इन सब बातों से, मामला सामने आया कि चुनाव का सामना अब भाजपा कैसे करे। तो उसने एक नए प्रोपेगेंडा को रच दिया। “हिंदू बटेगा तो कटेगा” इस डर के माहौल से हिंदुओं को एकजुट करने की कवायत शुरू हो गई है। ‌
आरक्षण के खिलाफ भाजपा की गलत ब्यान बाजी और उसके कारनामों के कारण आरक्षित वर्ग का ओबीसी, एससी, एसटी समाज भाजपा से दूर होता चला जा रहा है। ऐसे में भाजपा के लिए हिंदुत्व का एजेंडा वोट बैंक की राजनीति में फीका पड़ रहा है।

आरक्षण विरोध और भाजपा का रुख:

आरक्षण, भारतीय समाज में एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है, आरक्षण समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए लागू किया गया था, उसका फायदा समाज के पिछले और वंचित वर्गों के बजाय जाती आरक्षण के नाम पर समाज में ऊपर उठ चुके लोगों को मिलता चला आ रहा है और वहीं ऊपर उठ चुके लोगों द्वारा अपने जाती का हक छिने जाने की बात कह बदलाव को होने देना नही चाहते और जब उनके सामने जाती आरक्षण से नौकरी पाने की बात कही जाती है तो वैसे मिर्ची लगती है जिसे बता पाना संभव नहीं है। आरक्षण के उद्देश्य को मूर्त रूप देने के लिए जाती के साथ आय सीमा निर्धारित की जाती तो वास्तव में गरीबों को आरक्षण का लाभ मिलता। सामान्य कोटे में गरीबी आरक्षण पर आय सीमा आठ लाख सालाना देकर भाजपा एक सामान्य वर्ग के गरीबों का मजाक उड़ाने का काम कि है। जब परिवार का सलाना आय आठ लाख तक है तो वह गरीबी आरक्षण कोटे में आयेगा, फिर “निर्धन” बिना आय के स्रोत वाले जिनकी आय 36 या 42 हजार राजस्व विभाग देता है वो क्या 8 लाख सलाना आय वर्ग के बच्चों के साथ प्रतिस्पर्धा कर गरीबी आरक्षण का लाभ उठा पायेंगे, विचारणीय प्रश्न है। फिलहाल 69000 शिक्षक भर्ती मामले में कोर्ट आरक्षण व्यवस्था के हिसाब से नियुक्ति पत्र देने की फरमान जारी किया है। कोर्ट का कहना है कि “सामान्य कोटा” (ओपन सीट) में ज्यादे मेरिट से चयन हो फिर जो आरक्षित सीटें बचती है, उसमें आरक्षण का लाभ दिया जाए। यह एक हास्यास्पद स्थिति है। यह आदेश यह संकेत दे रहा है कि सामान्य वर्ग के आवेदकों के लिए शेष बचा सामान्य ओपन सीट भी नही है। ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों में भाजपा के प्रति आक्रोश है तो वही सामान्य वर्ग को कोर्ट के प्रति असंतोष है। किसी भी आरक्षित पद पर उन्हीं का चयन हो पाता है जो वास्तव में आरक्षण के योग्य नहीं हैं। आरक्षण का उद्देश्य गरीबों को लाभ देना है जबकि आरक्षण का लाभ किसी भी जाति के अमीरों को ही मिलता दिखाई दे रहा है। इस तरह भारत में आरक्षण के मूल उद्देश्य गरीबों का उत्थान कभी सफल अभियान के रूप में संभव नहीं है।

पक्ष-विपक्ष और मीडिया की राजनीति:

ऐसे में बांग्लादेश की घटना को मीडिया का एक वर्ग वहां पर पाकिस्तान और चीन का हाथ बता रहा था, तो वहीं मीडिया का एक वर्ग, दूसरी भाषा बोल रहा है। आखिरकार यह परिवर्तन कैसे आया। ‌इधर चुनाव का समय आ गया है। मीडिया का एक वर्ग “डर” के माहौल का प्रोपेगेंडा बनाना शुरू कर दिया है। तो ‌एक वर्ग हकीकत को समाज के सामने सार्वजनिक करने में लगा हुआ है। आपको बता दे जहां एससी, एसटी, ओबीसी के आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष भारी पड़ रही है, वही सत्ता पक्ष इस मुद्दे पर हारती हुई नजर आ रही है। ‌
मीडिया का एक वर्ग बांग्लादेश की घटनाओं में हिंदुओं के ऊपर हो रहे हिंसा को आधार बनाकर यहां पर भावनात्मक खबरें प्रसारित करना शुरू कर दिया है। ताकि भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया जा सके। वही हवाला योगी आदित्यनाथ ने देते हुए कहा है कि “बटेंगे तो कटेंगे” योगी के कहने का तात्पर्य यह है कि बांग्लादेश में हिन्दू एकता नही रही। जिसका खामियाजा बांग्लादेश में हिन्दुओं को भोगना पड़ा है। जबकि विपक्ष अपने मुद्दों के साथ बहुत तगड़े से प्रहार करके सत्ता पक्ष को कई मामले में पीछे करते हुए हिंदुस्तान की तरक्की की बात को सामने रखा है। ‌आरक्षण के विरोध में खड़े लोगों को जवाब देते हुए विपक्ष ने एक ऐसा माहौल बनाया जिसका फायदा अब विपक्ष को मिलने जा रहा है। इसकी तोड़ निकालने के लिए और भाजपा को वोट बैंक का फायदा हो जाए, इसके लिए मीडिया का एक वर्ग इस बात को प्रमुखता से आगे बढ़ाने लगा कि “हिंदू बटेगा तो कटेगा” इस तर्ज और नारे पर चटकदार मसाले छिड़कना भाजपा को फायदा पहुंचाना है। पक्षपाती मीडिया अपनी रिपोर्ट बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति पर बढ़ा चढ़ाकर दिखा रहा है। ‌
इस डर के माहौल को जीत में बदलने के लिए भाजपा और मीडिया का एक वर्ग बहुत तेजी से सक्रीय हो गया है। ‌
अब देखना है कि जनता इन सब मुद्दों को किन बातों में लेती है और चुनाव के इस माहौल की चाल को कैसे वह समझ पाती है। ‌वैसे देखा जाए तो जब भी कोई चुनाव आता है तो इस तरह के बेवजह के एजेंडे ध्रुवीकरण के लिए सत्ता पक्ष की तरफ से और विपक्ष की तरफ से उछाल दिए जाते हैं।

ध्रुवीकरण की राजनीति: “बटेंगे तो कटेंगे” का नारा:

बटेंगे तो कटेंगे: नारा देकर आखिरकार किस प्रकार की राजनीति भाजपा करना चाह रही है? एक समग्र विश्लेषण

भाजपा ने जब देखा कि आरक्षण की मुद्दे पर उनकी नीति से एक बड़ा वोट बैंक उससे खिसक रहा है तो उसने एक नया नारा उठा दिया “बटेंगे तो कटेंगे” इस नारे का मुख्य उद्देश्य हिंदुओं के बीच एकता की भावना पैदा करना है ताकि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो सके। इसके तहत बांग्लादेश की स्थिति को लेकर मीडिया का एक हिस्सा सक्रीय हो गया है, जो वहां के हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की खबरों को प्रमुखता से बढ़ा चढ़ाकर दिखा रहा है। यह एक सोची समझी साजिश है। इसके तहत भाजपा हिंदू समुदाय में एक “डर” पैदा कर एकजुट करना चाहती है।

विश्लेषणात्मक लेखनी का निष्कर्ष:

आगे देखना दिलचस्प होगा की जनता इन मुद्दों को किस नजरिया से देखती है। क्या भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति डर का माहौल जनता को प्रभावित करेगा या फिर विपक्षी दल अपने मुद्दों के साथ जनता का विश्वास जीतने में कामयाब हो पाएंगे। इस सवाल का जवाब चुनाव परिणाम के माध्यम से ही समझ आएगा।
“बटेंगे तो कटेंगे” का नारा बीजेपी की राजनीति का एक हिस्सा है। इसका उद्देश्य हिंदू वोट बैंक को एक जूट करना है, लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर उनकी नीति और लेटरल एंट्री विवाद ने भाजपा के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। ओबीसी, एससी, एसटी और सामान्य वर्ग आरक्षण व्यवस्था भाजपा के लिए एक बड़ी समस्या बन गयी है। सरकार के फैसले से लेकर सरकार की वर्तमान राजनीति उसकी चुनौतियां और आगामी चुनाव में उसकी रणनीति को विस्तार से प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है कि यह विश्लेषणात्मक लेखनी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।

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