भारत की समृद्ध संस्कृति और इतिहास में ऐसी कई वीरांगनाओं की कहानियाँ दर्ज हैं, जिन्होंने अपनी बहादुरी और नेतृत्व से अमिट छाप छोड़ी है। ऐसी ही एक महान योद्धा रानी दुर्गावती की शौर्य गाथा का मंचन हाल ही में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज के प्रेक्षा गृह में किया गया।
कार्यक्रम का आयोजन और आरंभ इस प्रभावशाली नाट्य प्रस्तुति का आयोजन सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी), नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ ने मिलकर किया। नाटक की प्रस्तुति ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत की गई। दीप प्रज्ज्वलन के साथ इस कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. विनोद नारायण इंदुरकर (अध्यक्ष, सीसीआरटी) और अन्य गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में हुआ।
रानी दुर्गावती की संघर्ष गाथा नाटक में रानी दुर्गावती के संघर्ष और बहादुरी की कहानी जीवंत हो उठी। यह महान वीरांगना गोंड साम्राज्य की रानी थीं, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर के साथ युद्ध में अद्वितीय शौर्य दिखाया। उनके जीवन में एक दुखद क्षण तब आया जब उनके पति की मृत्यु हो गई। सती होने के बजाय उन्होंने राजगद्दी संभालते हुए देश सेवा के लिए संघर्ष किया। अकबर से युद्ध के दौरान उन्होंने वीरगति प्राप्त की, लेकिन उनके साहस ने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया।
500वीं जयंती पर श्रद्धांजलि रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती के उपलक्ष्य में यह नाटक प्रस्तुत किया गया। नाटक के लेखक जलेशा सिदार्थ और निर्देशक डॉ. विनोद नारायण इंदुरकर ने इसे एक भावभीनी श्रद्धांजलि के रूप में पेश किया। उन्होंने ने बोला, “यह नाटक उनकी अदम्य भावना का प्रमाण है, पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।”

दर्शकों की प्रतिक्रिया रानी दुर्गावती के संघर्ष को मंच पर देखकर दर्शकों की आँखें नम हो गईं। इस प्रभावशाली प्रस्तुति ने सभी को भावविभोर कर दिया और इतिहास की इस गौरवशाली गाथा को एक बार फिर से जीवित कर दिया।
कार्यक्रम का समापन कार्यक्रम के अंत में सीसीआरटी के अध्यक्ष ने सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए।
रानी दुर्गावती 16वीं शताब्दी की एक अद्वितीय वीरांगना और बहादुर योद्धा थीं, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा के लिए अद्वितीय साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया। वह गोंडवाना (वर्तमान मध्य प्रदेश) के गोंड साम्राज्य की रानी थीं और अपनी वीरता, रणनीति और देशभक्ति के लिए इतिहास में अमर हैं।
प्रारंभिक जीवन:
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर किले (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता चंदेल वंश के राजा सल्हा सिंह थे। बचपन से ही उन्होंने युद्ध कौशल, घुड़सवारी और हथियारों का प्रशिक्षण लिया। दुर्गावती की शादी 1542 में गोंडवाना के राजा दलपत शाह से हुई, जो गोंड वंश के राजा संग्राम शाह के पुत्र थे।
रानी के शासन का प्रारंभ:
1548 में राजा दलपत शाह की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने पुत्र वीर नारायण के लिए राज्य का कार्यभार संभाला। रानी ने बहादुरी और सूझबूझ से शासन किया और गोंडवाना को समृद्ध और सुरक्षित रखा। उन्होंने अपने राज्य के विकास और किसानों के कल्याण के लिए कई नीतियां लागू कीं। उनकी प्रशासनिक क्षमता और न्यायप्रियता के कारण प्रजा में उनका सम्मान था।
अकबर के खिलाफ संघर्ष:

रानी दुर्गावती का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खां के खिलाफ था। मुगलों ने गोंडवाना पर आक्रमण किया, क्योंकि अकबर अपनी साम्राज्यवादी नीति के तहत गोंड राज्य पर कब्जा करना चाहता था। रानी ने मुगलों का बहादुरी से सामना किया और युद्ध के मैदान में डटकर लड़ीं।
वीरगति:
अकबर की विशाल सेना के मुकाबले रानी दुर्गावती की सेना छोटी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 24 जून 1564 को नरई नाला की लड़ाई में, जब वह घोर संघर्ष कर रही थीं और युद्ध में हार सुनिश्चित लग रही थी, रानी दुर्गावती ने दुश्मन के हाथों कैद होने के बजाय अपनी तलवार से स्वयं को वीरगति प्रदान कर दी। उन्होंने अपने सम्मान और स्वतंत्रता के लिए मृत्यु को गले लगाया, जिससे उनका नाम इतिहास में अमर हो गया।
विरासत:
रानी दुर्गावती की बहादुरी और शौर्य की गाथा भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई है। उन्हें न केवल एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है, बल्कि एक कुशल प्रशासक और प्रेरणादायक नेता के रूप में भी जाना जाता है। उनके बलिदान को सम्मानित करने के लिए मध्य प्रदेश में उनके नाम पर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।
उनकी जीवन गाथा आने वाली पीढ़ियों को साहस, स्वाभिमान और देशभक्ति का संदेश देती रहेगी।
Bahut acha jaankari di gyi hai