जब शहर बड़ा होता-कविता

Amit Srivastav

जब शहर बड़ा होता है
यह बात दिल में होती है
लंबी सड़क के ऊंचे मकान
खेत गायब होता खलियान
कहता मन मैं तोता होता
जब शहर बड़ा होता है।
लंबी गाड़ी बढ़ता पॉल्यूशन
चारों तरफ लोग होते
फिर भी होता ना टेंशन
कोई बिगड़ता और कोई कहता
स्मार्ट बनता शहर
चालाक बनता शहर
गड्ढे कूड़े होते हैं
भागम भाग सुबह का होता
जब शहर बड़ा होता
सारी सुख सुविधा जमा होता
कोई एसी में कोई देसी में
कोई ऑफिस में कोई बस में
बितता उसका समय
शहर के ट्रैफिक जाम में
पॉल्यूशन वाली हवा उसकी होती खुराक
फिर वह कहता, कहां गए खेत और खलियान।

जब शहर बड़ा होता-कविता

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बकवास कविता
(अभिषेक कांत पांडेय)

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