जब शहर बड़ा होता है
यह बात दिल में होती है
लंबी सड़क के ऊंचे मकान
खेत गायब होता खलियान
कहता मन मैं तोता होता
जब शहर बड़ा होता है।
लंबी गाड़ी बढ़ता पॉल्यूशन
चारों तरफ लोग होते
फिर भी होता ना टेंशन
कोई बिगड़ता और कोई कहता
स्मार्ट बनता शहर
चालाक बनता शहर
गड्ढे कूड़े होते हैं
भागम भाग सुबह का होता
जब शहर बड़ा होता
सारी सुख सुविधा जमा होता
कोई एसी में कोई देसी में
कोई ऑफिस में कोई बस में
बितता उसका समय
शहर के ट्रैफिक जाम में
पॉल्यूशन वाली हवा उसकी होती खुराक
फिर वह कहता, कहां गए खेत और खलियान।

बकवास कविता
(अभिषेक कांत पांडेय)
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