सामंतवादी जमींदार
सामंतवादी मीडिया
सामंतवादी जमींदार कल जमीन छीनना चाहते थे
आज सामंतवादी मीडिया आपका हक…
अच्छा यह सामंतवादी जमींदार
और सामंतवादी पूॅंजीपति मीडिया…
कुछ कड़ी ..
समझ में आया भाई !
और एक बात और…
आजादी के बाद पूॅंजीपति
वहीं राजनीतिक गठजोड़ और पूॅंजीपतियों का…
हाॅं भाई हाॅं, आपकी बात भी इसमें जोड़ देता हूॅं।
सामंतवादी पूॅंजीपति मीडिया इसमें में शामिल है,
छोड़ो भाई, हमें इन सब बातों से क्या लेना देना!
और बड़कू कह रहा था कि टैक्स बढ़ गया है
सरकार है टैक्स तो लेगी न,
लेकिन आम आदमी….
उसे तो सपने दिखाए थे।
अच्छा वही ‘अच्छे दिन वाला’
छोड़ो यह बात लेकिन कुछ ‘अर्धसत्य’ है
‘हाॅं’ जो लोग कुछ बोलते नहीं है,
आखिर वो लोग बोलते क्यों नहीं है।
दरअसल उनकी मजबूरी है।
पर तो 2014 से पहले बहुत बड़े लेखक –
पत्रकार बना फिरते थे।
तब खूब बोलते थे-
अब नहीं बोलते हैं, समझा करो उनकी मजबूरी
‘अच्छा’ फिर हम सब का क्या होगा
अपनी लड़ाई खुद लड़ो….।
सामंतवादी व्यवस्था क्या है?
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(मेरी बकवास कविता)
अभिषेक कान्त पाण्डेय
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