उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा पेश की गई नई डिजिटल मीडिया नीति ने राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक चर्चा को एक नए स्तर पर ला दिया है। इस नीति के तहत सोशल मीडिया पर सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों का प्रचार करने वालों को मोटी रकम कमाने का मौका दिया जा रहा है। जहां इसे एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है, वहीं कई लोग इसे लोकतंत्र, स्वतंत्रता और नैतिकता के खिलाफ एक गंभीर खतरे के रूप में देख रहे हैं। इस लेख में, हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव इस नीति के विभिन्न पहलुओं, इसके संभावित परिणामों और इसके खिलाफ उठाई जा रही चिंताओं पर गहनता से विचार करेंगे।
लोकतंत्र का उपहास: सरकार की गुणगान का इनाम:
इस नई पॉलिसी के तहत, एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सरकार की नीतियों का प्रचार करने वाले लोगों को 2 लाख से लेकर 8 लाख रुपये तक का भुगतान किया जाएगा। इस कदम से यह स्पष्ट होता है कि सरकार अपने कामकाज की समीक्षा की बजाय प्रचार पर अधिक ध्यान दे रही है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या सरकार वास्तव में अपने कार्यों के प्रति गंभीर है, या सिर्फ जनता की आँखों में धूल झोंकने के प्रयास में लगी हुई है।
प्रस्तावित डिजिटल मीडिया नीति का विश्लेषण:
योगी सरकार की डिजिटल मीडिया नीति का मुख्य उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब के जरिए सरकारी योजनाओं और उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करना है। इसके तहत, जिन सोशल मीडिया प्रभावशाली व्यक्तियों (इन्फ्लुएंसर्स) के पास अधिक फॉलोवर्स और व्यूज हैं, उन्हें सरकार द्वारा मोटी रकम कमाने का अवसर दिया जाएगा।
इस नीति के तहत चार श्रेणियों में प्रभावशाली व्यक्तियों को बांटा गया है, और इसके अनुसार, उन्हें 2 लाख से लेकर 8 लाख रुपये तक की मासिक आय प्राप्त हो सकती है। इसके अलावा, यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म्स पर वीडियो, शॉर्ट्स और पॉडकास्ट के माध्यम से भी उन्हें भुगतान किया जाएगा।
नीति का उद्देश्य और सरकार की दृष्टि:
योगी सरकार का दावा है कि यह नीति प्रदेश की योजनाओं और उपलब्धियों को जनता तक पहुँचाने में सहायक होगी। इस दृष्टिकोण से, सरकार यह मानती है कि जब प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा सोशल मीडिया पर सकारात्मक संदेश फैलाया जाएगा, तो जनता में इन योजनाओं और उपलब्धियों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
इस नीति के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि यह न केवल सरकारी योजनाओं की पहुंच को बढ़ाएगी, बल्कि प्रदेश में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में नए अवसर भी पैदा करेगी।
नीति के खिलाफ विपक्ष और आलोचकों की प्रतिक्रिया:
हालांकि, इस नीति के खिलाफ विपक्ष ने तीखा विरोध जताया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस नीति को लोकतंत्र और स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हुए योगी सरकार पर निशाना साधा है। उनके अनुसार, यह नीति सरकार की आलोचना करने वाली आवाजों को दबाने का एक साधन है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरा हो सकता है।
प्रियंका गांधी ने इस नीति के संदर्भ में व्यंग्य करते हुए लिखा, “तुम दिन को कहो रात तो रात, वरना हवालात।” उन्होंने इसके माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार केवल वही सुनना चाहती है जो वह चाहती है, और जो लोग इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें दबाने की कोशिश की जाती है।
सिर्फ प्रियंका गांधी ही नहीं, बल्कि ध्रुव राठी जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों ने भी इस नीति की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे ‘कानूनी रिश्वत’ का नाम दिया है और कहा है कि सरकार करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग कर रही है।
नैतिक और लोकतांत्रिक चिंताएँ:

इस नीति के संदर्भ में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या यह नीति नैतिकता के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप है?
लोकतंत्र और स्वतंत्रता:
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता दे। लेकिन जब सरकार स्वयं ही पैसे के माध्यम से अपने प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर प्रभावशाली व्यक्तियों का उपयोग करती है, तो यह स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है।
निष्पक्षता और पत्रकारिता:
पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य सच्चाई और निष्पक्षता को बनाए रखना होता है। लेकिन इस नीति के तहत, यदि पत्रकार और लेखक सरकार के पक्ष में प्रचार करने के लिए भुगतान प्राप्त करते हैं, तो इससे निष्पक्षता का उल्लंघन हो सकता है।
घूसखोरी का मामला:
ध्रुव राठी द्वारा इस नीति को ‘कानूनी रिश्वत’ कहा गया है, और यह दावा किया गया है कि इससे पत्रकारिता के मूल्यों का ह्रास हो सकता है। जब सरकार अपने प्रचार के लिए भुगतान करती है, तो यह स्पष्ट रूप से पत्रकारिता के उस उद्देश्य के खिलाफ है, जो जनता को सच्ची और निष्पक्ष जानकारी देने का होता है।
विपक्षी दलों और जनता की प्रतिक्रिया:
इस नीति के खिलाफ विपक्ष ने जोरदार विरोध जताया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र और स्वतंत्रता के खिलाफ एक खतरनाक कदम बताया है।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया:
प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस नीति को लेकर योगी सरकार की कड़ी आलोचना की है। उनके अनुसार, यह नीति सरकार की आलोचना करने वाली आवाजों को दबाने का एक माध्यम है।
समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल:
समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने भी इस नीति के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है। उनके अनुसार, यह नीति सरकार की नाकामी को छिपाने का एक प्रयास है, और इसके जरिए वह अपनी नीतियों को जनता के बीच सही साबित करने का प्रयास कर रही है।
जनता की प्रतिक्रिया:
हालांकि कुछ लोग इसे एक अवसर के रूप में देख सकते हैं, लेकिन अधिकांश जनता ने इस नीति की कड़ी आलोचना की है। सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ और ‘नैतिकता के खिलाफ’ बताया है।
सरकार की योजना और इसके दीर्घकालिक परिणाम:

योगी सरकार की यह नीति, जहां कुछ लोगों के लिए आर्थिक अवसर प्रदान कर सकती है, वहीं इसके दीर्घकालिक परिणाम भी गंभीर हो सकते हैं।
लोकतंत्र का क्षरण:
यदि इस नीति का गलत तरीके से उपयोग किया जाता है, तो इससे लोकतंत्र को गंभीर नुकसान हो सकता है। सरकार की आलोचना करने वाली आवाजों को दबाने का प्रयास लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ है।
नैतिकता का ह्रास:
जब पत्रकार और लेखक सरकार के पक्ष में प्रचार करने के लिए भुगतान प्राप्त करते हैं, तो इससे पत्रकारिता की निष्पक्षता और सच्चाई को खतरा हो सकता है।
सामाजिक विभाजन:
इस नीति के जरिए सरकार अपने पक्ष में प्रचार करने वालों को पुरस्कृत कर सकती है, जिससे समाज में विभाजन हो सकता है। इससे एक तरफ सरकार समर्थक लोग होंगे, जबकि दूसरी तरफ विपक्षी और आलोचक होंगे।
योगी सरकार की सरकारी योजना नीति का निष्कर्ष:
योगी सरकार की डिजिटल मीडिया नीति एक विवादास्पद निर्णय है, जिसने न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और नैतिक बहस को भी जन्म दिया है। जहां यह नीति कुछ लोगों के लिए आर्थिक अवसर प्रदान कर सकती है, वहीं इसके दीर्घकालिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
इस नीति के खिलाफ उठाई जा रही चिंताएं उचित हैं, और इसे लोकतंत्र, नैतिकता और पत्रकारिता के मूल्यों के संदर्भ में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। सरकार को इस नीति के प्रभावों का मूल्यांकन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे लोकतंत्र और स्वतंत्रता को कोई नुकसान न हो।
आखिरकार, एक स्वस्थ लोकतंत्र में जनता की आवाज़ महत्वपूर्ण होती है, और इसे दबाने का कोई भी प्रयास लोकतंत्र के खिलाफ माना जाना चाहिए।