अडानी: पर रिश्वतखोरी के आरोप और विश्वव्यापी छवि पर असर एक समग्र विश्लेषण

Amit Srivastav

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अडानी: पर रिश्वतखोरी के आरोप और विश्वव्यापी छवि पर असर एक समग्र विश्लेषण

Writer A. Kant Pandey : दुनिया के व्यापार जगत में भारतीय उद्योगपति गौतम शान्तिलाल अडानी का नाम विवादों में घिरा हुआ है। अमेरिकी न्याय प्रणाली ने अडानी समूह पर रिश्वतखोरी का गंभीर आरोप लगाया है। आरोप है कि अमेरिकी निवेशकों का पैसा भारत के अधिकारियों और राजनेताओं को रिश्वत देने में इस्तेमाल हुआ। यह मामला भारत की छवि और प्रशासनिक पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

सरकारी योजनाओं और समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगते रहे हैं कि वे अडानी समूह को बड़े पैमाने पर सरकारी लाभ और परियोजनाएं देते हैं।
LIC और NPS का पैसा सरकारी कर्मचारियों की पेंशन निधि (NPS) और आम जनता की जमा पूंजी (LIC) अडानी की कंपनियों में निवेशित है। इस निवेश पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट देखी गई है।

शेयर बाजार की गिरावट और सरकारी निवेश पर चिंता

अमेरिकी कार्रवाई के बाद अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट आई, जिससे LIC और NPS के निवेशकों को नुकसान हुआ है। सवाल यह है कि सरकार ने अडानी समूह में इतना बड़ा निवेश क्यों किया? जब बाजार में जोखिम पहले से स्पष्ट था।

अडानी: पर रिश्वतखोरी के आरोप और विश्वव्यापी छवि पर असर एक समग्र विश्लेषण

भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा, जिसे गोदी मीडिया कहा जाता है, अडानी के वास्तविक मामले पर चुप्पी साधे हुए है।भ्रष्टाचार के आरोपों को कवर करने की बजाय इसे “विदेशी साजिश” के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल

अमेरिकी कार्रवाई के बावजूद, भारत में अब तक अडानी पर कोई ठोस जांच शुरू नहीं हुई है। विपक्षी नेताओं पर ईडी और सीबीआई की त्वरित कार्रवाई के विपरीत, अडानी के मामले में सरकार की चुप्पी सवाल खड़े करती है। आरोप है कि अडानी ने महंगी बिजली परियोजनाओं सोलर सिस्टम के लिए कई राज्यों में अधिकारियों और नेताओं को रिश्वत दी। आइए कुछ मुख्य बिंदुओं पर विश्लेषणात्मक जानकारी आप पाठकों को हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव निस्पक्ष सुस्पष्ट पूर्ण सत्यता के साथ अपनी कर्म-धर्म लेखनी से दे रहे हैं।

अडानी विवाद: भारत के व्यापार और लोकतंत्र पर सवाल

  • अमेरिका में अडानी पर रिश्वतखोरी के आरोप
  • अमेरिकी अदालत में अडानी समूह पर रिश्वतखोरी का मामला दर्ज, वैश्विक व्यापारिक नैतिकता पर सवाल।
  • अडानी और मोदी सरकार के बीच कथित संबंध
  • सरकार द्वारा अडानी को दी जा रही योजनाओं और सुविधाओं पर उठ रहे सवाल।
  • LIC और NPS निवेश का जोखिम
  • सरकारी योजनाओं का पैसा अडानी समूह में लगाने से निवेशकों की चिंता बढ़ी।
  • गोदी मीडिया और अडानी विवाद
  • मीडिया का अडानी विवाद पर चुप्पी साधना या इसे विदेशी साजिश बताना।
  • अडानी विवाद और भारतीय शेयर बाजार में गिरावट
  • अमेरिकी कार्रवाई के बाद अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट का असर।
  • विपक्ष पर कार्रवाई, लेकिन अडानी पर जांच क्यों नहीं?
  • विपक्षी नेताओं पर सख्ती, लेकिन अडानी पर सरकार की चुप्पी।
  • अडानी विवाद से भारत की वैश्विक छवि पर असर
  • रिश्वतखोरी के आरोपों से भारत की प्रशासनिक और व्यापारिक छवि कमजोर।
  • अडानी विवाद पर जनता के सवाल
  • जनता के पैसे का इस्तेमाल अडानी के हित में क्यों किया जा रहा है?
  • पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग
  • क्या सरकार अडानी मामले में निष्पक्ष जांच करवाएगी?
  • क्या अडानी विवाद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर खतरा है?
  • पूंजीपतियों के लिए काम करती व्यवस्था पर जनता का भरोसा कमजोर।

दुनिया के व्यापार जगत में अडानी का नाम एक कलंक के रूप में स्थापित हो रहा है। दुनिया के व्यापार जगत में भारत के इस व्यापारी पर आरोप रिश्वत देने का लगा है।‌ लिखने के लिए सबसे ज्यादा जानते क्या होना चाहिए।‌ वैसे भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की अधिकांश फायदे वाली योजनाओं को अडानी तक देने से चूकते नहीं है। ‌कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि भारत में केवल एक ही उद्योगपति अडानी ही है, जिस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत ही प्रसन्न रहते हैं। जाहिर सी बात है कि उनकी प्रसन्नता का पुरस्कार अडानी की कंपनियों को फायदा दिला कर ही मिलता है। भारत ‌की सरकारी मशीनरी भी अडानी जैसे उद्योगपति के लिए काम करती हुई नजर आती है। ‌देश हित में केवल मुहावरा बन कर रह गया है – उद्यमी आगे आवें सरकार हर संभव सहायता मुहैया कराएगी, असल में अडानी के हित में जो भी काम होता है, वह सरकार द्वारा तुरंत किया जाता है। ‌ दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका की अदालती व्यवस्था ने भारत के उभरते हुए बिजनेसमैन अडानी के खिलाफ रिश्वतखोरी का मामला दर्ज किया है। इस पूरे मामले में भारत सरकार चुप्पी साधे हुई है। भारतीय मीडिया में अडानी को बचाने के लिए कई तरह के प्रोपेगेंडा रचा जा रहा है। जबकि कायदे से देखा जाए तो भारत की छवि धूमिल हो रही है, ऐसे में इस मामले में आरोपित अधिकारी और व्यापारियों पर भारत सरकार द्वारा जांच होना चाहिए। ‌


वैसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सारी योजनाओं को अडानी तक सौपने से परहेज नहीं करते हैं। गोदी मीडिया को छोड़कर, निष्पक्ष मीडिया में ऐसी खबरें लगातार आ रही है। ‌उधर अमेरिका में अडानी पर शिकंजा कसने के लिए एफआईआर दर्ज हो गई है लेकिन मजेदार बात यह है कि भारत सरकार द्वारा अडानी पर किसी तरह की जांच की खबरें अभी तक आ नहीं रही है। वहीं राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं पर सीबीआई और ईडी का डंडा चलाने में थोड़ा भी गुरेज नहीं करते हैं। यह सारा खेल जनता जानती है। ‌

अमेरिकी सरकार द्वारा अडानी पर उठाए गए कानूनी कार्रवाई के चलते शेयर मार्केट में हाहाकर मच गया। सरकारी कर्मचारियों के एनपीएस का पैसा अडानी के कंपनियों में लगा हुआ है और इस खबर के आने के बाद से धड़ाधड़ अडानी के शेयर गिर गए। इस कारण से सरकारी कर्मचारियों की चिंता जायज है कि उनके पैसे अडानी के कंपनियों में लगे हैं। ‌वहीं यह बात भी बता दे कि आम आदमियों की जमा पूंजी का पैसा एलआईसी ने अडानी के कंपनियों में लगाया है। ‌स्वाभाविक है कि बाजार की स्थिति में उतार-चढ़ाव के चलते अडानी की कंपनियों में लगाया गया पैसा डूब रहा है।

सवाल उठता है कि बडी-बडी मीडिया में इस तरह की खबरें क्यों नहीं छापी जाती है? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर चर्चा इन तरह की खबरों पर क्यों नहीं होती है? आम जनता का पैसा आखिरकार अडानी जैसे लोगों की कंपनियों में सरकार क्यों लगती है। बिजनेसमैन अडानी का नाम नरेंद्र मोदी के साथ क्यों जोड़ा जाता है?

चुनाव के समय नरेंद्र मोदी का यह बयान क्या चुनाव पलटने के लिए काफी होता है, कि कांग्रेस को टेम्पो भर भर के रुपये अदानी द्वारा दिया गया है। ‌बहरहाल सवाल यह भी उठता है कि आम लोगों और सरकारी कर्मचारियों का एनपीएस का पैसा एलआईसी के जरिए अडानी के शेयर मार्केट में लगा हुआ है। आखिर अदानी के अधिकांश कंपनियों में ही क्यों निवेश किया गया है? आज के वक्त में अडानी की स्थिति पूरे विश्व में एक करप्ट बिजनेसमैन के रूप में बन चुकी है। ‌

अदानी मामले पर चर्चा कराने की माॅंग विपक्ष की ओर से संसद में बार-बार उठाई जा है लेकिन नरेंद्र मोदी इस पर चुप्पी साधे हुए है।
बिजनेसमैन अडानी के व्यापार में LIC का पैसा शेयर मार्केट के जरिए क्यों लगाया गया है? इस बात का मतलब साफ है कि कहीं ना कहीं सरकार अडानी पर मेहरबान है लेकिन इस मेहरबानी के कारण जब अडानी पर घूसखोरी का मामला अमेरिका में दर्द हुआ है तो पूरे अडानी ग्रुप के शेर धड़ाधड़ नीचे गिरने लगे हैं, जिस कारण से लाइफ इंश्योरेंस कंपनी ऑफ़ इंडिया का पैसा अडानी के कंपनियों में शेयर के माध्यम से लगा हुआ है।‌ आम आदमी और सरकारी कर्मचारियों का यह इन्वेस्टमेंट बाजार जोखिम के चलते डाउन होता चला जा रहा है। ‌

अगर इस तरह के सवाल कोई नागरिक पूछता है कि आखिरकार बिजनेसमैन अदानी पर नरेंद्र मोदी सरकार इतना मेहरबान क्यों है? तो इसका जवाब आपको गोदी मीडिया में सुनने को नहीं मिलेगा। ‌पूंजीपतियों की मीडिया में पूंजी पत्तियों के खिलाफ अगर कोई मामला कहीं भी दर्द होता है तो उसके बचाव में मीडिया तंत्र सामने आ जाते हैं। मीडिया तंत्र ही नहीं बल्कि सरकार भी उसके बचाव में आ जाती है। यह सब आप इन दिनों भारतीय मीडिया और सरकारों के ब्यान में देख रहे हैं। अडानी के इस मामले को कई एंगल से मीडिया परोस कर आपको बस इतना बताना चाहती है कि यह विदेशी साजिश है। ‌घूसखोरी-भ्रष्टाचार के नाम बनी प्रशासनिक व्यवस्था से सवाल करना अभिमानी सा लगने लगा है। ‌
गोदी मीडिया इस मामले में अब तो और भी कुछ बोलने से अपने आप को अलग करती नजर आ रही है लेकिन अपने पूंजी पति मालिक को बचाने के लिए यह मीडिया आपके सामने प्रोपेगेंडा यानी दुष्प्रचार भी करने लगी है।

गोदी मीडिया के बारे में अधिक जानकारी आप चाहते हैं तो यहां क्लिक करके पढ़े।

एक करप्ट बिजनेसमैन का उदाहरण अडानी बन गये हैं। आरोप है कि अमेरिकी इन्वेस्टर का पैसा अदानी ने भारत के अधिकारियों को घूस देने में लगा दिया है।
अडानी ने US investors का पैसा भारत के अधिकारियों को घूस देने में लगाया वहाँ का क़ानून सख़्त है, उन्होंने अडानी और उसके गुर्गों को दोषी ठहराया लेकिन भारत में कोई accountability नही है, न ही कोई check & balance, आरोप है किअडानी ने ये घूस भारत के Official’s और CM तक को विभिन्न राज्यों में दी, ताकि महँगी बिजली बेच सकें और जनता से वसूली की जा सके और वही जनता लिख रही है। Stand with Adani जबकि अडानी उनके साथ नही है। यहाँ हर चीज़ का जश्न मनाते हैं, आबादी ही इतनी है और ऊपर से अनपढ़ और जो थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा मध्यम वर्गी तबक़ा है, वो इतना है नही, कि कुछ बोल पाए। इसलिए बस Basics के लिए जूझ रहे हैं।
क्या हिम्मत है भारत में किसी की भी- अडानी पर जाँच हो कि घूस किसको क्यों दी जा रही थी? बस इतना सोचिये और फिर देखिए सिस्टम आम जनमानस का है ही नही। सिस्टम केवल सत्ता और पूँजीपतियों का है, वरना आपकी एक लोन की किश्त जमा न हो तो आप Defaulter हो जाते हैं और तो और Civil Score तुरंत Affect हो जाता है।

अडानी पर लगे आरोप भारत के व्यापारिक और प्रशासनिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सरकार को इस मामले में निष्पक्ष जांच करनी चाहिए। जब तक जनता के सवालों के जवाब नहीं मिलते, यह मुद्दा न केवल भारत की छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि नागरिकों के विश्वास को भी कमजोर करेगा।

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लेखक : ए. कांत पांडेय

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