इस्लाम में मौलानाओं की भूमिका: एक विश्लेषण

Amit Srivastav

इस्लाम में मौलानाओं की भूमिका: एक विश्लेषण

ज्यादातर मुसलमान इस्लाम को अपने स्तर पर समझते ही नहीं। वे सिर्फ मौलानाओं के कहने पर अल्लाह और नबी को मानते हैं और इस्लाम को सच समझते हैं। यह सवाल उठाता है कि क्या अधिकांश मुस्लिम वास्तव में अपने धर्म को समझते हैं या केवल वही मानते हैं जो उन्हें बताया गया है। जानिए आज इस विषय पर भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंश कि कलम गहराई से चर्चा कर रही है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों की धार्मिक समझ और मौलानाओं की भूमिका पर आधारित इस विस्तृत समीक्षा प्रस्तुति में प्रमुख रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा की गई है।

  • धार्मिक समझ की कमी
  • अल्लाह और नबी को देखने का प्रश्न अनुयायियों की आस्था का आधार मौलानाओं की व्याख्या है, न कि स्वयं का अध्ययन।
  • कुरान और हदीस की जानकारी अधिकांश मुसलमान कुरान और हदीस की गहराई से समझ नहीं रखते।
  • मौलानाओं की बपौती
  • मुसलमान मौलवियों की बताई बातों को अंतिम सत्य मानते हैं। धार्मिक कार्य और रीति-रिवाज मौलानाओं के निर्देशों पर आधारित होते हैं।
  • इस्लामिक इतिहास और विवादास्पद दावे
  • लेख में प्रचेता, दैत्य गुरु शुक्राचार्य और मक्का-मदीना की पौराणिक व्याख्या दी गई है। यह धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं पर आधारित है इसे ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सकता है।
  • मुसलमानों की वर्तमान स्थिति
  • मुसलमान दुनिया में शिक्षा और विकास के मामले में पिछड़े हैं।आत्मचिंतन और ज्ञान की दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • आत्ममंथन का आह्वान
  • विश्वास को तर्क और ज्ञान से परखने की सलाह दी गई है।मौलानाओं की भूमिका को सीमित कर आत्मज्ञान का मार्ग अपनाने पर जोर।

क्या किसी ने अल्लाह को देखा है?

जवाब: नहीं।
मुसलमान यह मानते हैं कि अल्लाह का अस्तित्व है, लेकिन उन्होंने कभी अल्लाह को देखा नहीं है।

क्या किसी ने नबी (मुहम्मद) को देखा है?

जवाब: नहीं।
आज के मुसलमानों ने नबी को भी नहीं देखा है। नबी का जीवन भी इन्हें सिर्फ मौलानाओं की बातों से ही पता है।

क्या कुरान को समझते हैं?

जवाब: नहीं।
अधिकांश मुसलमान कुरान की अरबी भाषा को नहीं समझते। यहां तक कि बड़े से बड़ा आलिम भी आयतों के मतलब पर सहमत नहीं हो पाता। कुरान को सही मायने में समझने के लिए तर्क और व्याख्या की जरूरत है, जो आम मुसलमानों के पास नहीं है।

क्या हदीस पढ़ी है?

जवाब: नहीं।
हदीस, जो इस्लामिक परंपराओं और नबी के कथनों का संग्रह है, अधिकांश मुसलमानों के लिए एक अनजानी किताब है।

क्या तफसीर – कुरान की व्याख्या पढ़ी है?

जवाब: नहीं।
तफसीर पढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि हदीस तक का ज्ञान अधूरा है।

क्या इस्लामिक इतिहास पढ़ा है?

जवाब: नहीं।
मुसलमानों को इस्लामिक तारीखी किताबों का नाम तक नहीं पता होता। इतिहास और परंपरा के बिना धर्म की समझ अधूरी है।

इस्लाम और मौलानाओं की भूमिका

इस्लाम मौलानाओं की बपौती बन चुका है। मुसलमान वही मानते हैं जो मौलवी और मुफ्ती बताते हैं। उनकी इजाजत के बिना कोई भी धार्मिक कर्मकांड नहीं होता।
रोज़ा: मौलानाओं के हिसाब से।
ईद: मौलानाओं की अनुमति से।
नमाज़ का समय: मौलानाओं द्वारा तय।
मौत के बाद की क्रियाएं भी इन्हीं मौलानाओं के निर्देशों पर आधारित होती हैं। यहां तक कि विभिन्न फिरकों के मौलाना भी एक-दूसरे की बातों को नहीं मानते। हर मुसलमान अपने फिरके के मौलाना की बात को ही अंतिम सत्य मानता है, चाहे वह हदीस और कुरान से ही क्यों न टकरा जाए।

मुसलमानों का असली ईमान किस पर है?

अल्लाह और नबी पर? नहीं।
कुरान और हदीस पर? नहीं।
फिरके के मौलानाओं पर? हां।
मुसलमानों का विश्वास अल्लाह या नबी से ज्यादा अपने मौलानाओं पर है। ये मौलाना ही उन्हें इस्लाम का मतलब बताते हैं और बदले में अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं।

मुसलमानों की स्थिति: आत्ममंथन की जरूरत

आज मुसलमान दुनिया में सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं। Unesco के अनुसार मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा की दर अन्य धर्मों की महिलाओं से कम है। दुनिया में तरक्की में उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है। तबाही और विनाश में नंबर वन। मुसलमानों को यह सोचना चाहिए कि उनका धर्म, जो सबसे “सच्चा” माना जाता है, क्या वास्तव में उन्हें सच्चाई के करीब ले जा रहा है? क्या मौलानाओं के बिना उनका धर्म समझ में आ भी सकता है?

इस्लाम में मौलानाओं की भूमिका: एक विश्लेषण

श्रृष्टि में आज भी उत्पत्ति के पीछे नारी की ही अहम भूमिका है और सर्वप्रथम एक नारी ही ब्रह्मा विष्णु और शिव को उत्पन्न कि जिसे हम सब आदिशक्ति श्री दुर्गा जगत-जननी ब्रह्माणि आदि नामों से जानने हैं। ब्रह्मा जी को श्रृष्टि निर्माण का दायित्व विष्णुजी को पालन कर्ता और भगवान शिव को संहार कर्ता कि भूमिका में आदिशक्ति ने दायित्व सौंपा। ब्रह्माजी ने अपनी रचना से पुरूष तत्व का निर्माण किया जिसमें ज्यादातर ऋषि मुनि हुए और उन्हीं की काया से उत्पन्न भगवान श्री चित्रगुप्त जी देव हुए जो श्रृष्टि का लेखा-जोखा रखने वाले देवता हैं और मृत्यु के समय चित्र के रूप में दृष्टि पटल पर कर्मो को रख, कर्म के अनुसार दंड और अगला जन्म निर्धारित करते हैं। इस पृथ्वी पर कोई इस्लामी हो, हिन्दू हो, बौद्धिक हो या किसी भी कबिले का हो अंत समय में सबके कर्म के अनुसार फल देने वाला मालिक एक ही है। हम उसी भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंश-अमित श्रीवास्तव आज यह बता दें रहे हैं कि इन्हीं को कोई किसी रूप में मानता तो कोई किसी रूप में किन्तु मूल रूप से ब्रह्मा ही रचना कर्ता, विष्णु पालन कर्ता शिव संहार कर्ता, कर्म का फल डंड निर्धारित करने वाले भगवान चित्रगुप्त और आदि शक्ति सर्वोपरि हैं। आइए जानते हैं शिया मुसलमानों के पूर्वजों का इतिहास, सूनी मुसलमानों के पूर्वजों का उल्लेख कहीं नही मिलेगा क्योंकि ये वो हिन्द हैं जिन्होंने शिया मुस्लमान जैसे बाबर, हुमायूं, औरंगजेब, अलाउद्दीन खिलजी आदि शासकों के काल में धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बने हैं। मक्का-मदिना सऊदी अरब के बाहरी देशों के जो मुस्लिम अपने पूर्वजों को जानने हैं कमेंट बॉक्स में हमें बताएं। साथ ही यह भी बताएं कि हम शिया मुस्लिम प्रचेता के वंश हैं या सूनीं मुस्लिम इनके वंश हैं।
ब्रह्मा के वंश में ही एक थे प्रचेता उन्होंने सौ पुत्रों को उत्पन्न किया किन्तु प्रचेता के सैकड़ों पुत्र यज्ञ हवन-पूजन में रूचि नहीं रखते थे और ऋषि मुनियों के यज्ञ हवन-पूजन को नष्ट-भ्रष्ट करते थे। देवताओं ने योजनाबद्ध तरीके से प्रचेता के सैकड़ों पुत्रों को रेगिस्तान यानी सऊदी अरब मक्का-मदिना में स्थान दिया। जिस प्रकार देवताओं को स्वर्ग लोक दैत्य-दानवों को पाताल लोक यज्ञ हवन-पूजन करने वाले मनुष्यों को सामान्य पृथ्वी वैसे ही प्रचेता के वंश को मक्का-मदिना रेगिस्तान मिला। उन सब में दैत्य प्रवृति थी इसलिए देवताओं के गुरु बृहस्पति के बड़े भाई दैत्य गुरु शुक्राचार्य प्रचेता के पुत्रों के गुरु हुए। दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने ही भगवान शिव को प्रसन्न कर आत्म शिव लिंग प्राप्त किया जो मक्का-मदिना में अपने शिष्यों कि रक्षा के लिए स्थापित किया।

इस्लाम में मौलानाओं की भूमिका: एक विश्लेषण

मक्का-मदिना में काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल माना जाता है जो दैत्य गुरु शुक्राचार्य द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न कर प्राप्त व स्थापित आत्मलिंग है। मक्का-मदिना में हज करने जाने वाले हाजी भगवान शिव की पूजा करते हैं न तो वहां कोई अल्लाह है न नवी। काबा के नाम से भगवान शिव ही इस्लाम के इस पवित्र स्थान पर विराजमान हैं। भगवान शिव ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को प्रचेता के वंशजों की रक्षा के लिए आत्मलिंग देकर यह भी कहा कि जब सनातनी पवित्रता के साथ गंगा जल हमे अर्पित कर देगा उस दिन से इस्लाम यानी ब्रह्मा के वंश से प्रचेता के वंशों का सफाया होना शुरू हो जायेगा। आज मक्का-मदिना में कोई सनातनी गंगा जल लेकर नही जा पाता क्योंकि? उस स्थान से आवाज आनी शुरू हो जाती है, कि गंगा जल आ रहा है और इस्लाम के सिपाहियों का पहरा शक्त हो जाता है। वह इस्लाम कबिले वाले दैत्य गुरु शुक्राचार्य को भी पूजते हैं। वही शिया मुस्लिम कहे जाते हैं बाकी देशों में जो उनके आतंक से धर्म परिवर्तन कर उनके मजहब काबिले को स्वीकार किया आज विश्व भर में फैला हुआ है और वह सब सूनीं मुस्लिम मतलब उनके फतवा आदेश को सुनकर जो मुस्लिम बन गया वही संख्या विश्व भर में ज्यादा है। प्रचेता के वंश जो शिया मुस्लिम हैं वो सुनीं मुसलमानों मतलब बाहरी देशों के मुसलमानों को अपना भाई नही मानते, जबकि हिन्दू किसी भी देश का हो किसी भी देश के हिन्दू को अपना भाई मानता है। जब अन्य देशों के सूनीं मुसलमानों को मक्का-मदिना क्षेत्र के शिया मुसलमान अपना भाई नही मानते तो खुद ही अपने मूल स्वरूप पर विचार करने की कोशिश करनी चाहिए और अपने मूल धर्म में वापसी करनी चाहिए।

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इस्लाम की सच्चाई पर विश्वास रखने वाले मुसलमानों को आत्मचिंतन करना चाहिए। क्या वे अल्लाह और नबी को मानते हैं या सिर्फ मौलानाओं की बातों पर भरोसा करते हैं?क्या उनके पास अपने विश्वास का कोई ठोस सबूत है, या यह केवल एक परंपरा है? मुसलमानों को ज्ञान और तर्क से अपने धर्म को समझने की जरूरत है। मौलानाओं की बपौती से बाहर निकलकर आत्मज्ञान के मार्ग पर चलें। इसी से वे जान पाएंगे कि क्या इस्लाम सच्चा है या यह केवल अंधविश्वास पर आधारित परंपरा है।
यह लेख इस्लाम धर्म और मौलानाओं की भूमिका की समीक्षा करते हुए आत्मचिंतन और धार्मिक शिक्षा की आवश्यकता पर बल देता है। हालांकि, इसमें कुछ तर्क हिन्दू धर्म ग्रंथों पौराणिक कथाओं से हैं जो इस्लामिक पक्ष पक्षपाती मान सकते हैं क्योंकि उन्हें सनातन धर्म ग्रंथों से कोई वास्ता नहीं रहता। हमारे इस लेख पर इस्लाम धर्म के अनुयायियों को गहन अध्ययन मंथन करना चाहिए। इस्लाम को मानने वाले सूनी मुसलमानों को ऐतिहासिक और तथ्यात्मक रूप से पुनः अपने पूर्वजों को जांचने की जरूरत है।

अंत में आवश्यक सूचना: यह लेख लेखक ब्रह्मा जी के काया से उत्पन्न भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव द्वारा केवल विचार-विमर्श और मंथन के उद्देश्य से तैयार किया गया है। किसी भी धार्मिक समूह की भावनाओं को आहत करना इस लेखनी का उद्देश्य नहीं है।

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