Godi meadia हम पत्रकारिता को पूरा सम्मान देते हैं। लेकिन 2014 के बाद मीडिया का एक ऐसा वर्ग उभर कर इस देश के सामने आया जिसे गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है। सत्ता पक्ष की हिमायती गोदी मीडिया आखिरकार पहली बार 2014 में फिर उसके बाद दूसरी बार 2019 में और फिर उसके बाद 2024 आधा अधूरा सच और सत्ता के पक्ष में बातें बताकर जनता को खूब गुमराह किया है। इन सब पर विश्लेषण करता हुआ वरिष्ठ पत्रकार Amit Shrivastava और मीडिया विशेषज्ञ A. K Pandey का यह पर्दाफाश करता लेख ‘गोदी मीडिया और वर्तमान सत्ता’।
गोदी मीडिया पत्रकारिता जगत को बदनाम कर रही है। हमारा मानना है कि कुछ गोदी मीडिया टाइप के मीडिया संस्थान और उनके पत्रकार और संपादक इस पूरी पत्रकारिता बिरादरी को बदनाम कर रही हैं। आधी अधूरी जानकारी और जानकारी को एडिट करके एक पक्ष के लिए एजेंडा तय कर रही है ताकि वह राजनीतिक दल हर बार सत्ता का स्वाद चख सके। जनता उनकी खबरों से अब बोर हो चुकी है। जनता के सीधे मुद्दे इन मीडिया में उठाएं नहीं जाते हैं, ऐसा क्यों? क्या गोदी मीडिया पूंजीपतियों के उंगलियों पर नाचती है।
इस तरह के उठने वाले सारे सवालों का जवाब इस लेख में हम देने जा रहे हैं। जैसे-जैसे गोदी मीडिया की सच्चाई सामने आ रही है, लोगों का विश्वास गोदी मीडिया से उठ रहा है। सत्ता पक्ष का एजेंडा चलाने वाली गोदी मीडिया पर आम जनता भी सवाल उठा रही है। गोदी मीडिया बनाम सच्ची पत्रकारिता।
सरकार की महिमामंडन करती है – गोदी मीडिया
पूंजीपतियों के हाथ कठपुतली बनी गोदी मीडिया

ऐसे में Godi meadia की कान खींचाई करना जरूरी हो गया है। पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली बनी गोदी टीवी मीडिया और गोदी अखबार मीडिया के अलावा गोदी मीडिया की तरह विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञ लोकतंत्र के चौथे खंभे को बदनाम कर रहे हैं।
मुख्यधारा की मीडिया के संपादक और पत्रकार मीडिया संस्थानों के पूंजीपतियों के इशारे पर खबरें परोसती हैं और गोदी मीडिया को चलने वाले पूंजीपतियों की नकेल सत्ता पक्ष से बंधी हुई है। गोदी मीडिया की रिपोर्टर्स और उनकी खबरों से यही उजागर होता है।
सच्ची और निर्भीक पत्रकारिता अभी भी जीवित है
लेकिन पत्रकारिता का दूसरा स्वरूप भी जीवित है जो अलग-अलग वेबसाइट पर और यूट्यूब पर छोटे बड़े पत्रकार जो गोदी मीडिया के हिस्सा नहीं है, वह लगातार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को बचाने की कवायद में पिछले 10 साल से लगे हुए हैं। ऐसे सच्चे और निर्भीक पत्रकारों को गोदी मीडिया अपने न्यूज़ चैनलों में कोई भी काम नहीं देती है क्योंकि वे गोदी मीडिया की तरह पत्रकारिता नहीं कर सकते हैं ऐसे सच्चे और निर्भीक पत्रकार जो सत्ता से साहसिक सवाल बिना डरे पूछने का दम खम रखते हैं, उन्हें मुखधारा की मीडिया से गुपचुप तरीके से हटा दिया गया है।
सच्ची और निर्भीक पत्रकारिता बनाम गोदी मीडिया

अब हमारी जिम्मेदारी है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सच्ची और निर्भीक पत्रकारिता सांस ले सके और जनता के प्रश्नों का जवाब हर किसी से पूछ सके, ऐसी मीडिया का होना बहुत जरूरी है। हम अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं इसलिए आपके समक्ष इस तरह की रिपोर्टिंग लाने का साहस कर रहे हैं। आप इस लेख को खूब शेयर कीजिए।
आज की गोदी मीडिया अपने कर्तव्य और दायित्वों से मुंह मोड़ रही है। ऐसे में निष्पक्ष निर्भीक पत्रकार गोदी मीडिया का बहिष्कार करते हैं और निष्पक्ष पत्रकारिता की आवाज अपने कलम से बुलंद कर रहे हैं। आइए जाने गोदी मीडिया के बारे में उसकी किस तरीके से की जा रही है कान खींचाई, अब सामने आ चुका है गोदी मीडिया का सच!
गोदी मीडिया लोकतंत्र के लिए खतरा
मीडिया संस्थानों के पूंजीपति यानी मालिकों के इशारे पर संपादक व पत्रकार गोदी मीडिया बनकर रह गई है। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, जहां विपक्ष की खबरों को और विपक्ष की बातों को कम महत्व दिया जाता है। वही सत्ता पक्ष की महिमा का बखान करने के लिए प्राइम टाइम में बाकायदा प्रायोजित डिबेट्स मुद्दों पर कराए जाते हैं, मीडिया के इन खबरों और प्रोग्राम में सत्ता पक्ष को जनता के सामने हीरो बनाया जाता है। समाचार के सूचनाओं को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है तर्क की तराजू में उसे बिना सोचे समझे प्रस्तुत करके आधी बात बताई जाती है, जिससे की जनता गुमराह हो जाती है।
जानिए कैसे गोदी मीडिया डिबेट में सत्ता पक्ष को फायदा पहुंचता है
ऊपर से संदेश आता है कि आज डिबेट्स इस विषय पर होगा फिर संपादक रिपोर्टर और रिसर्चर इस डिबेट का आयोजन करने के लिए की जान से जुड़ जाते हैं। क्योंकि यह आदेश पूंजीपतियों और सत्ता पक्ष की तरफ से आता है। ऐसे बहुत से डिबेट जिसमें धर्म के ध्रुवीकरण का तड़का लगाया जाता है। धर्म की बातें की जाती है ताकि वोटो का ध्रुवीकरण किया जा सके, मीडिया डिबेट में धार्मिक जज्बाती मुद्दों के तीर चलाए जाते हैं ताकि सत्ता पक्ष को बड़ी तादाद में वोट बैंक के रूप में लाभ मिल सके।
एंकर चिल्ला चिल्ला कर बोलता है। सत्ता पक्ष की तारीफ करता है। सत्ता पक्ष का प्रवक्ता अपनी बात कहते हुए अपना प्रचार करने लगता है। तब भी एंकर उसे बीच में टोकता नहीं है। उसे मालूम है कि उसे अपनी नौकरी बचानी है सत्ता पक्ष का साथ देना है। गोदी मीडिया एंकर एक सधे हुए प्रोफेशनल की तरह बर्ताव करता है। मजेदार बात यह है कि डिबेट्स जिस दिशा में होती है, डिबेट दूसरी दिशा में चली जाती है। जैसे ही विपक्षी प्रवक्ता अपनी बात कहता है, उसकी बात को काट दिया जाता है।
अगर विपक्ष के प्रवक्ता कोई फैक्ट प्रस्तुत करके सवाल पूछते हैं तो एंकर उनके सवालों का तवज्जो न देकर बात घुमा कर प्रश्न के महत्व को कम कर देते हैं। सत्ता पक्ष का प्रवक्ता जब कुछ बोलता है तो स्टूडियो में बैठे पहले से सेट उनके लोग भर भर कर तालियां बजाते है और विपक्ष के प्रवक्ता से कठिन सवाल पूछता है।
हालांकि विपक्ष के प्रवक्ता कठिन सवालों के जवाब जैसे ही देना शुरू करते हैं, और सवाल का जवाब पूरा होने से पहले ही एंकर अपनी रणनीति के तहत उसकी बात को तवज्जो न देकर सीधा-साधा सवाल सत्ता पक्ष से पूछ कर फिर से स्टूडियो में तालियां बाजवा लेता है और घरों में बैठी जनता इन सब खेल नौटंकी को सच मान लेती है। गोदी मीडिया डिबेट्स ( Godi media TV debates ) का नाटक इस तरह से रचा जाता है कि टीवी के सामने बैठी जनता सच्चाई को समझ नहीं पाती है। इस तरह से वोटो का ध्रुवीकरण होता है जिससे एक पक्ष को तगड़ा फायदा होता है। गोदी मीडिया के काम करने के अंदाज से अब आप वाकिफ हो चुके हैं, इस लिए चलते हैं, गोदी मीडिया के बारे में और जानकारी हासिल करें।
गोदी मीडिया की डिबेट होती है पहले से प्रायोजित

यह सिलसिला 2014 से अब तक बदस्तूर जारी है। आपको बता दे कि सत्ता पक्ष के लिए पूरा समय प्राइम टाइम मीडिया में केवल सत्ता पक्ष और काल्पनिक बातें उनसे जुड़ी हुई चीज डिबेट बहस और न्यूज़ में सामने आती रहती है। जनता इन्हें ही सच मान लेती है। सौ बार अगर झूठ को परोसा जाए तो वह भी एक तरह से सच बन जाता है। गोदी मीडिया दिनभर यही काम करती है। गोदी मीडिया के 8- 10 चैनल पर हर समय एक ही व्यक्ति की तस्वीर लहराती रहती है और डिबेट्स में काल्पनिक बातों का इस्तेमाल करके खबरें बनाई जाती है। 5 साल का समय बीत गया लेकिन बढ़ती हुई महंगाई बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर कोई भी चर्चा अधिक समय तक किसी गोदी मीडिया ने कभी कराया ही नहीं। कहीं-कहीं तो इस खबर की चर्चा भी नहीं होती है।
सच्ची पत्रकारिता यूट्यूब और सोशल मीडिया पर
भला हो निर्भीक सच्चे पत्रकार जिन्हें मुख्य धारा की पत्रकारिता से अलग कर दिया गया है वह अपनी बातें यूट्यूब और सोशल मीडिया में बाकायदा रखते हैं जिससे लाखों की संख्या में यूजर इन रिपोर्ट को देखकर शिक्षित हो रही है। लेकिन गोदी मीडिया का आतंक भी इस प्लेटफार्म पर भी है अपने अपने वेबसाइट पोर्टल और यूट्यूब चैनल के माध्यम से इस प्लेटफार्म में भी गोदी मीडिया गंदगी मचाई हुई है।
पैसे के लालच में गोदी मीडिया कर रही है देश के जनता को गुमराह
एक बुरा व्यक्ति पूरे समाज को कलंकित कर देता है। एक कहावत तो आप सब ने सूना ही होगा – एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। वही कहावत भारत देश की कुछ बड़ी मिडिया संस्थाओं पर सटीक बैठ रही है। सबको पता ही है इसलिए हम बिना नाम लिये बता रहे हैं कुछ बड़ी मीडिया संस्थाओं ने आज पूरी मीडिया जगत को कलंकित कर दिया है। अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के फिराक में संविधान का चौथा स्तम्भ पत्रकारिता जो सदियों से निशुल्क सेवा देता रहा। उसे बदनामी के ऐसे मोड़ पर लाया गया। जहाँ निस्पक्ष साफ-सुथरे पत्रकारों को भी पत्रकारिता करने में शर्म आ रही है, क्योंकि? निस्पक्ष पत्रकारों द्वारा अपने मिडिया संस्थाओं को दिया जाने वाला खबर कुछ और होता है, सरकार के रहमों करम पर चलने वाली मिडिया संस्थाओं द्वारा एडिट कर दिखाया कुछ और जाता है। दूरदराज के लोगों को गोदी मिडिया संस्थाओं से प्रकाशित खबरे सत्य तो लगती है, किन्तु जहां की खबर होती है, वहां के स्थानीय लोग निस्पक्ष पत्रकार पर उंगली उठाने से कैसे चुक सकतें हैं, जो मनगढ़ंत तरीके से उलट कर सरकार के हितों में दिखाया गया हो।
आज हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज निस्पक्ष पर्दाफ़ाशी पत्रकार अमित श्रीवास्तव गंभीर मुद्दा संविधान का चौथा स्तम्भ पत्रकारिता पर वो खुलासा करते लेखनी प्रकाशित कर रहे हैं, जिस पर आज विश्व पटल में भारतीय मीडिया को गोदी मीडिया जैसे अपमानित शब्दों से संबोधित किया जा रहा है।
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गोदी मीडिया शब्द का पहला प्रयोग कब हुआ, किसने किया

वैसे गोदी मीडिया शब्द सर्वप्रथम हमारे साथी निस्पक्ष पत्रकार रवीश कुमार ने भारतीय बिकीं मीडिया संस्थाओं को दिया है। जिन पूंजीपतियों ने मिडिया को अपना व्यवसाय बना पत्रकारिता जगत मे कदम रखा, आम जन तक अपनी खबरों कि पहूँच बनाई फिर पक्षपाती हो खबरें दिखाना शुरू कर दिया। उन्हें यह भूलते देर नही लगी जब आमजन हमारी करतूतों को जान जायेगी और विश्व पटल पर ये बात जायेगी की भारतीय मिडिया निस्पक्ष नही बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के हाथों की कठपुतली बन, जैसे मां की गोद में बैठा छोटा बच्चा मां द्वारा रटाये शब्दों को बोलने लगता है, वैसे ही कुछ धन उपार्जन के उद्देश्य से सत्तारूढ़ पार्टी जो धन दे धनाढ्य बना रही उनकी एकतरफ़ा गीत आम जन के बीच परोसने पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
आज रवीश कुमार द्वारा भारतीय बिकीं मिडिया का जो नाम गोदी मीडिया कुछ वर्षों पहले दिया गया वो आज विश्व पटल पर पहुंच चुका है।
गूगल से लोग जानने की कोशिश कर रहे हैं कि, गोदी मीडिया क्या है? गोदी मीडिया कौन है? आम जन की आवाज बनने वाली, आम जन की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखने वाली भारत की वो निस्पक्ष मीडिया मोदी सरकार बनते ही, हो गई गोदी मीडिया, सरकार की आवाज बन आम जन को दबाने वाली गोदी मीडिया, वगैरह अनेकों तरह की जानकारी इस गोदी मीडिया पर ले रहे हैं। इससे स्पष्ट है विश्व भर के लोगों को भारतीय मिडिया की काली सच्चाई मालूम होते देर नहीं लगी। भारत की बड़ी बड़ी मीडिया संस्थाओं ने निस्पक्ष पत्रकारों कि पत्रकारिता को अपनी जेब भरने की चाह में कलंकित कर दिया।
सरकार का एजेंडा सेट होता है गोदी मीडिया संस्थानों में
उन बड़ी बड़ी मिडिया संस्थाओं के पत्रकारों द्वारा खबरें दी जाती है निस्पक्ष लेकिन एंकर उसे एडिट कर दिखाते हैं सरकार के माफिक। इससे अच्छे निस्पक्ष पत्रकारों कि पत्रकारिता भी धूमिल हो जाती है। ऐसे में निस्पक्ष लेखक, पत्रकार, संपादक उन बड़ी मीडिया संस्थाओं का साथ छोड़, निस्पक्ष लेखनी छोटी-छोटी न बिकाऊ मीडिया के माध्यम से प्रकाशित करते हैं, किन्तु आम जन तक उन अखबारों, चैनलों या साइटों का पहूँच न हो पाने से अच्छी खासी निस्पक्ष पर्दाफ़ाश लेखनी भी आसानी से पहूॅच नही पातीं। मीडिया जगत के लिए अपमानित शब्द गोदी मीडिया पर एक युनिवर्सिटी के एक्जाम में भी पूछा गया है।
गोदी मीडिया क्या है, आप इसके बारे में क्या समझते हैं?

गोदी मीडिया किसे कहते हैं? गोदी मीडिया क्या है? ऐसी तमाम जानकारी आम जन को सही तरह से होनी ही चाहिए। यूनिवर्सिटी के इस प्रश्न का चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव स्वागत करता हूं। किन्तु सत्तारूढ़ पार्टी इस पर चाबुक चलाना शुरू कर दिया है।
पॉलिटिकल साइंस के ग्रेजुएशन में गोदी मीडिया पर पूछा गया सवाल
पित्त पत्रकारिता (Yellow journalism) के अंतर्गत गोदी मीडिया पढ़ाई जाती है विदेश में।
जानिए क्या है पूरा मामला :
कोल्हान यूनिवर्सिटी में स्नातक की सेमेस्टर टू राजनीति विज्ञान की परीक्षा के प्रश्न पत्र में शामिल किया गया। गोदी मीडिया क्या है और इसके बारे में क्या समझते हैं ? यह प्रश्न छात्रों को उलझा दिया। छात्रों को समझ नहीं आ रहा था, इस प्रश्न का उत्तर क्या दिया जाए। कुछ छात्रों ने अपने विवेक का इस्तेमाल कर उत्तर दिया तो कुछ ने इस प्रश्न को छोड़ दिया। जबकि इसे पाठ्यक्रम के तहत पढ़ाया भी गया था। पाठ्यक्रम में शामिल प्रश्न का उत्तर देने से परेशान बच्चों कि पढ़ाई पर मै प्रश्न चिन्ह लगाते यह बताना चाहता हूँ, जब यह पाठ्यक्रम में शामिल किया गया और पढ़ाया गया है, तो बच्चों द्वारा इस प्रश्न मे उलझना यह स्पष्ट करता है, बच्चों ने स्कूली शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया, यानी क्लास में उपस्थित नही होते। इस प्रश्न का उत्तर खासकर वही छात्र दिए जो यूट्यूब पर रवीश कुमार (ravish Kumar) कि खबरों को देखे थे या इस पाठ्यक्रम को क्लास में पढ़ाते समय रहे होगें।
उत्तर में यह दिया गया जो मिडिया सरकार की नियंत्रण, या सत्तारूढ़ पार्टी की गोद में है सरकार के पक्ष में खबरें या डिबेट दिखाती है, उसे गोदी मीडिया कहते हैं। विवाद बढ़ने पर कोल्हान यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डाक्टर राजेंद्र भारती ने बताया विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की ओर से मंजूरी मिलने पर गोदी मीडिया व शहरी नक्सलवाद जैसे टाँपिक पाठ्यक्रम में एक वर्ष पूर्व शामिल किया गया है। जिससे यह प्रश्न बनाया गया है।
इलेक्टोरल कैम्पेन एंड इश्यू आँफ फेक न्यूज, राइज आँफ गोदी मीडिया इंफ्लुएंस आंन इलेक्टोरेट का विषय पहली बार 2022-26 सत्र के चार साल के यूजी (undergraduate) पाठ्यक्रम के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत झारखंड के विश्वविद्यालय में लाया गया है।
यह मामला प्रकाश में आने पर तूल पकड़ लिया। एबीवीपी कोल्हान के संगठन सचिव प्रताप सिंह ने केयू रजिस्ट्रार के पास शिकायत दर्ज करायी। जिसपर रजिस्ट्रार ने कार्यवाई का आश्वासन दिया। वहीं कोल्हान यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक डाक्टर अजय चौधरी का कहना था। यह प्रश्न केयू और राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने तैयार किया है, किन्तु इस प्रकार के प्रश्नों से बचा जा सकता था। प्रताप सिंह का कहना है, रजिस्ट्रार द्वारा इस प्रश्न को बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा गया है, अगर ऐसे अहम प्रश्नों को पाठ्यक्रम के आधार पर पूछा गया फिर सियासत गर्म होने पर प्रोफेसरों के खिलाफ कार्रवाई होती है, तो यह विश्व स्तर पर निंदा जनक है। क्योंकि बच्चों को वर्तमान हालात से जुड़ी शिक्षा देना कोई जुल्म नही होना चाहिए।
शिक्षा का तात्पर्य ही होता है देश व समाज की वास्तविक इतिहास को पढ़ाया जाना किन्तु यहां मनगढ़ंत इतिहास को पढ़ाया और सत्यता को छुपाया जाता है। यह सत्यता अगर बच्चों को पढ़ाया जा रहा है तो राजनीतिक दबाव में आकर कार्यवाई करना निंदनीय है। प्रताप सिंह का कहना है गोदी मीडिया शब्द विपक्षी दलों द्वारा गढ़ा गया है, यह तय कौन करेगा कि कौन गोदी मीडिया है और कौन गोदी मीडिया नही है। उनका यह भी कहना है एक दो भ्रष्ट हो जाने से पूरी मिडिया को बदनाम किया जा रहा है। उनका यह सवाल है क्या पूरी मीडिया बिरादरी गलत है? हमारे नज़र में उनका कहना और सवाल करना दोनों ही सही है किन्तु जैसे एक मछली पूरी तालाब की पानी को गंदा कर देती है, उसी तरह कुछ मीडिया संस्थाओं ने भारतीय मीडिया नाम को ही कलंकित कर दिया है। परिवार का एक व्यक्ति पथ भ्रष्ट हो जाता है तो उस परिवार पर ही लोगों की उंगली उठती है अकेले उस व्यक्ति पर ही नही यह ध्यान होना चाहिए। एनएसयूआई झारखंड समन्वयक प्रभजोत सिंह का कहना है इस प्रश्न के जवाब से पता चल जाएगा देश का युवा मीडिया के बारे में क्या सोच रहा है।
हम भगवान श्री चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव अपनी कर्म धर्म लेखनी से 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद लिखा कुछ हेडिंग बता देता हूं – निजीकरण व्यवस्था नहीं नव रियासती करण, गोल गोल धूमता लोकतंत्र, पांच राज्यों को काग्रेस द्वारा जीते जाने पर – कांग्रेस की जीत भाजपा की हार क्या कारण क्या उपचार आदि वैसे मार्गदर्शी लेखनी समाज को दिया जो अत्यन्त ही दुर्लभ और सत्य लेखनी रही किन्तु सत्तारुढ़ पार्टी को चुभती नज़र आई फिर हुआ वही जो मै पहले ही अपनी दैवीय कलम से लिख चुका था। हमारी लेखनी कटू किन्तु पूरी तरह सत्य पर आधारित होती है कभी अपनी कलम को न पक्षपाती होने दिया न अब कभी होने दे सकता हूँ। क्यूँकि पहले हम खबर अखबारों चैनलों को देते थे। अब निस्पक्ष स्पष्ट लेखनी गूगल को, जो गूगल के पाठकों को हमारी सुस्पष्ट निस्पक्ष लेखनी पढ़कर आसानी से समझ आ जाती है। किसी मुद्दे पर खुलासे के साथ लिखना लेखकों का दायित्व है मुद्दे चाहें जो हो। मुझे बखुबी अपनी दायित्व निभाना तीसो साल से आता है।
किसी के गोद में बैठी हुई मीडिया पर महत्वपूर्ण टिप्पणी

गोदी मीडिया के समाचार
आइए मिडिया की अहमियत को समझें – कलम के पुजारी कहीं सो गए तो, वतन के पुजारी वतन बेच देगें। संविधान के चार स्तंभ होते हैं जिसमें तीन अंग तो सदियों से सरकार की कोष से महिने कि निर्धारित तनख्वाह पाता है। विधानपालिका यानी संसद, कार्यपालिका सरकार के कर्मी, न्यायपालिका अर्थात न्यायालय। चौथा जो मुख्य स्तम्भ है, वो है पत्रकारिता जो निस्पक्ष न हो तो, आम जन की समस्या किसी भी पटल पर नही जा सकती, पत्रकार ही आम जन की आवाज़ होता है। जो आज आमजन की आवाज को दबा सरकार की गुणगान को दिखाते अपमानित जनक शब्द गोदी मीडिया नाम से नवाजा जा रहा है। आज भारतीय मिडिया आम जन नही सरकार की आवाज हो गई है। जो सवाल जनहित में सरकार से करना चाहिए उसे उलट तोड़ मरोड़ विपक्ष के माथे थोप सरकार की पक्षपाती बनी डिबेट करती व खबरें दिखाती। लोकसभा 2024 काग्रेस का चुनावी एजेंडा गोदी मीडिया अपने चैनलों अखबारों से सही तरह आम जन तक पहुंचाने की जगह, सत्तारुढ़ पार्टी की जुबान बोल काग्रेस की इतना अच्छी चुनावी एजेंडा का मजाक बना रही है। वहीं नरेंद्र मोदी इतनी शर्मनाक बात महिलाओं की मंगलसूत्र छीन बाट देगी कांग्रेस मुसलमानों में बोल डाला जिसे दबाने और स्पष्ट अर्थ को भी बदल आम जन मे परोसने का प्रयास कर रही।
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आर्टिकल सारांश
ऐसे मीडिया संस्थाओं से क्या उम्मीद जो अब मीडिया आम जन की आवाज़ बनेगी। पत्रकार सदियों से निशुल्क सेवा देता वास्तविक देश भक्ति निभाता रहा। 2014 लोकसभा चुनाव में वर्तमान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम जन को अपनी चुवावी एजेंडे से लालिपाप देते कह दिया। हमारी सरकार बनी तो पत्रकारों के लिए भी कुछ पारिश्रमिक निर्धारित किया जायेगा, मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते पत्रकारों से किए वादों को पूरा किए कैसे पत्रकारों को कुछ नहीं देगें पत्रकारों के मालिकों मतलब मीडिया संस्थाओं को भरपूर देगें जो निस्पक्ष पत्रकारों कि कलम को तोड़ मरोड़ खबर सरकार की पक्ष में चलाए। साबित हो चुका है झूठ कि गठरी बांध लगभग सभी भाषण बाजी होती है मोदी का बडी-बडी मीडिया के साथ हमदर्दी भरी भारी-भरकम पैकेज से स्थानीय पत्रकारों कि जीविका नही चलती छोट मीडिया के पत्रकारों पर तो शिकंजा भी कसने का घृणित कार्य किया जाता है। 2014 के लालिपाप पर भारतीय पत्रकारों में एक उल्लास जगा, बेरोजगारी के दौर में पढें लिखें जो लोग अपना समय देश हित में दे रहे हैं, उन्हें भी कुछ भाजपा की सरकार बनी तो पारिश्रमिक मिलेगा। गुजरात मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी वास्तव में विकास किये थे। इसका जिक्र मै 2014 के पहले लेखनी में भी कर चुका हूँ वही उनका भाषण गुजरात के तर्ज पर देश का विकास करेंगे आदि मुद्दों को प्राथमिकता से आम जन तक पहुँचा दिया गया। जिसका परिणाम हुआ भारत में पूरी बहुमत से नरेंद्र मोदी कि सरकार बनी। सरकार बनने के बाद 2014 के चुनावी एजेंडे पर ध्यान दिया गया। पांच साल मनमानी करते रहे। उस बीच पत्रकारों कि दशा सुधारने की जगह बिगाड़ने का काम किया और बड़ी बड़ी मिडिया संस्थाओं को अपनी माफिक बना जैसा चाहा वैसी खबरों को आम जन तक परोसना शुरू किया। आम जनता को क्या पता? मोटी रकम बड़ी बड़ी मिडिया संस्थाओं को विज्ञापन के एवज मे दे जो सरकार चाह रही वहीं मिडिया आम जन को दिखा रही।
लेखक: ए० के० पांडेय, मीडिया विशेषज्ञ हैं। मीडिया न्यूज़ चैनल, वेबसाइट, पत्र – पत्रिकाओं के लिए लगातार राजनीतिक सामाजिक और नई मीडिया पर लेखन कार्य करते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद 10 साल से अधिक समय तक कई मीडिया संस्थानों में कार्य किया। आप वर्तमान में स्वतंत्र लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।
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