ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा मनुष्य के जिस राशि में जन्मकुंडली में होता है, पुरुष हो या स्त्री वह उस व्यक्ति का जन्म राशि कहलाती है। और जो राशि पहले भाव में होती है वह लग्न कहलाती है। राशियां कुल बारह होती हैं, जो सत्ताइस नक्षत्र से मिलकर बनती हैं। ये सत्ताईस नक्षत्र चन्द्रमा की 27 पत्नियाँ हैं जो नक्षत्र रुप में विधमान हैं। पूरी जानकारी के लिए हमारी लेखनी कौन किसके वंशज को पढ़िए नीचे लिंक दिया हूं जो चार भागों में विभाजित लेखनी है सहज भाषा में स्पष्ट किया हूं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्र को चार चरणों में बांटा गया है। इस प्रकार एक राशि में नौ चरण होता है। हर नक्षत्र को एक विशिष्ट गण के नाम से जाना जाता है। ब्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उस गण के अनुसार ब्यक्ति का गण होता है। गण कुल तीन प्रकार के होते हैं। मनुष्यगण, देवगण, राक्षसगण – यही गण अपने गुण के अनुसार ब्यक्ति के गुण स्वभाव को प्रभावित करते हैं। आईए आज भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम से जानिए आसान हिन्दी भाषा में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किस गण का क्या गुण होता है।

देव गण –
देव गण के विषय में ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है, आइए जानते हैं। जिस व्यक्ति का जन्म देवगण के साथ होता है। उसमें देवताओं के जैसा गुण पाया जाता है। संक्षेप में यह देवगण के विषय में कह सकते हैं कि मनुष्य देवता के गुण के साथ जन्म लिया है। इस गण का व्यक्ति दिखने में सुन्दर और आकर्षक होते हैं। बुद्धि विवेक से काफ़ी आगे रहते हैं इनका दिमाग बहुत तेजी से काम करता है। बुद्धिमान होते हैं। स्वभाव से सरल, सीधा-साधा होते हैं। दूसरों के प्रति दयावान होते हैं, दयाभाव इनके रग-रग में कूट-कूट कर भरा होता है। किसी भी जरुरतमंद की मदद करने में सदा तत्पर रहते हैं। देवगण के व्यक्ति ह्दय से हर किसी को सहायता प्रदान करते हैं। देवगण के व्यक्ति अल्पाहारी होते हैं। ज्यादा खाना पसंद नही करते। सामान्य भोजन करते हैं।
मनुष्य गण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति मनुष्य गण में जन्म लेता है। वह व्यक्ति बहुत ही स्वाभिमानी होता है। अपने स्वाभिमान का सदैव ध्यान रखते हुए समाज में किर्तिमान स्थापित करता है। मनुष्य गण के व्यक्ति पर धन की देवी लक्ष्मी और देवता कुबेर की कृपा बनी रहती है। ये लोग काफी धनवान होते हैं। शारीरिक तौर पर दिखने में लम्बे होते हैं। इनकी आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। नयन नक्शा इनकी सुन्दरता को बढ़ा देता है। इनका रंग-रूप आकर्षक मनमोहक होता है। शरीर सामान्य रूप भरापूरा होता है। इस गण के मनुष्य हर किसी के प्रति प्रेम व सहानुभूति रखने वाले होते हैं। कभी किसी परिचित अपरिचित व्यक्ति का सहारा बन जाते हैं। किसी को अपने स्तर से सहायता करने से पीछे नहीं रहते हैं।
राक्षस गण
जो व्यक्ति राक्षस गण में जन्म पाता है उसके अंदर राक्षसी प्रवृत्ति देखने को मिल जाती है। जिद्दी और हठी होते हैं सही गलत का निर्णय कर पाना संभव नहीं नही रहता जो करते हैं उसे ही अच्छा समझते हैं। मनमौजी स्वभाव के होते हैं, जो मन करता है उन्हें वही सही लगता है और वही करते हैं। चाहे दूसरों के लिए दुखदायी ही क्यूं न हो। इस गण के व्यक्तियों का शरीर काफी विशाल होता है, शरीर से बहुत ही हष्ट-पुष्ट होते हैं। शरीर भारी होता है। स्वभाव से झगड़ालू होते हैं छोटी-छोटी बातों में भी झगड़े पर उतर जाते हैं। इनके वाणी में मधुरता नही होती, जरूरत से थोड़ी मधुर भांषि दिखाई दे दिए तो अपनी मतलब से, फिर ये कब अपनी बोली भाषा से पलट जायें इसका कोई भरोसा नहीं रहता। बोलचाल में किसी से बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी कह देते हैं। दूसरों को अच्छा लगे या न लगे इसका भी ध्यान नहीं रखते। इस गण के व्यक्तियों को प्रमेह नामक रोग होने की सम्भावना ज्यादा रहती है।

चन्द्रवास चक्र
पूर्वे – मेष, सिंह, धनु
दक्षिणे – वृष, कन्या, मकर
पश्चिमे – मिथुन, तुला, कुम्भ
उत्तरे – कर्क, वृश्चिक, मीन

चन्द्रमा और रोहिणी की प्रेम कहानी
एक बार रोहिणी की सुन्दरता का बखान करते दक्ष प्रजापति रोहिणी से कह दिए तुम्हारा विवाह चन्द्रमा जैसे सुन्दर व्यक्ति से करुंगा। अब रोहिणी का मन चन्द्रमा के प्रति आकर्षित होने लगा। यह देख चन्द्रमा भी रोहिणी की सुन्दरता पर मोहित हो गए। चन्द्रमा के मन में रोहिणी के प्रति प्रेम उमड़ आया। ऋषि कश्यप का विवाह दक्ष प्रजापति की तेरह पुत्रियों से तय हुआ। विवाह समारोह में सभी देवी-देवता निमंत्रित हुए। चन्द्रमा और उनके माता-अनुसूइया पिता- अत्रि ऋषि भी निमंत्रित हुए। सभी विवाह समारोह में उपस्थित हुए। रोहिणी कभी पहले चन्द्रमा को देखी नही थी इसलिए पहचान नही पा रही थी किन्तु चन्द्रमा पहचान रहे थे। चन्द्रमा की इच्छा से एक दूसरे का मिलन हुआ फिर दक्ष प्रजापति अपनी 27 पुत्रियों से विवाह का प्रस्ताव चन्द्रमा के पिता अत्रि ऋषि को दिए। माता-पिता की सहमति से विवाह सम्पन्न हुआ किन्तु चन्द्रमा रोहिणी से ही ज्यादा प्रेम करते रहे यह देखकर अन्य बहनों के मन में अपनी बहन रोहिणी और चन्द्रमा के प्रति ईर्ष्या हुई और इसकी शिकायत 26 बहनों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से कि दक्ष प्रजापति चन्द्रमा पर नाराज हो बुलावा भेजा। पिता की नाराजगी को जानकर रोहिणी पहले चन्द्रमा को जाने से रोक खुद चली गई। राजा दक्ष का क्रोध बढ़ने लगा कि चन्द्रमा हमारे आदेश कि अवहेलना किया है। नाराजगी के साथ चन्द्रमा को उपस्थित होने का आदेश दिया। चन्द्रमा रोहिणी के इशारे पर आये किन्तु रोहिणी अपने पिता को समझाने में असमर्थ रही और राजा दक्ष चन्द्रमा को गल गल के मन जाने का श्राप दे दिया। रोहिणी शिव भक्त थी। अपनी भक्ति से शिव को प्रसन्न कर पति चन्द्रमा का जीवन दान मागी। रोहिणी की भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति के श्राप का मान रखते मृत्यु पश्चात जीवित होने का वर्दान दे दिया जो कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के रूप में चन्द्रमा दिखाई देते हैं। अमावस्या को पूर्णतया दक्ष प्रजापति के श्राप से मृत्यु को प्राप्त होते हैं और पूर्णमासी को शिव के वर्दान स्वरूप पूर्ण जीवन को प्राप्त करते हैं। वही सभी 27 बहनें 27 नक्षत्र के रूप में हैं। जिसमें रोहिणी का विशेष स्थान है।

जानिए चन्द्रमा की उत्पत्ति, चन्द्रमा किसके वंश, पृथ्वी सम्राट दक्ष प्रजापति कि 84 पुत्रियों में से 27 पुत्रियों का चन्द्रमा के साथ विवाह, जो 27 पत्नियाँ बनी 27 नक्षत्र, इसमे चन्द्रमा की सबसे प्रिय पत्नी है – रोहिणी, जिससे चन्द्रमा को सबसे ज्यादा प्रेम…। चन्द्रमा और रोहिणी की प्रेम कहानी इसी आर्टिकल में मिलेगा यहां ऊपर थोड़ी अंकित कर दिया हूं।
शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कैसे हुआ सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़िए हमारी लेखनी – Click on the Article link जानिए अपने पूर्वजों की उत्पत्ति कौन किसके वंशज भाग 1- 2- 3- 4, किसका क्या है ऐतिहासिक इतिहास ?
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