ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में सूर्य का प्रथम स्थान है। सूर्य लग्न भाव पहले स्थान पर है तो व्यक्ति को प्रभावशाली होने का दर्शाता है, व्यक्ति का पूर्वज जैसे पिता, दादा, परदादा अच्छे उच्चें पदों पर रहे होगें, और वो व्यक्ति अपने पूर्वजों की संपत्ति से संपत्तियां अर्जित किया होगा।

सूर्य दूसरे धन भाव में हो तो व्यक्ति को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ता है, फिर भी व्यक्ति का ठीक-ठाक चलता है। सूर्य तीसरे स्थान पर हो तो प्रभाव व वर्चस्व को बढ़ा ही नही देता बल्कि दुष्ट प्रवृति का बना देता है, ये निश्चित है कि उसका भाई होगा। सूर्य चौथे स्थान पर निर्जीव, बेजान, कमजोर हो जाता है, सूर्य का प्रभाव देखने को नही मिलता है। पंचम पांचवें स्थान पर सूर्य हो तो पुत्र प्राप्ति का घोतक होता है, शिक्षा क्षेत्र में उच्च स्थान का घोतक है, इस स्थिति में व्यक्ति दुष्ट प्रवृति का हो सकता है। छठवें भाव में सूर्य हो तो दिमागी संतुलन को खराब करता है, किसी गंभीर बीमारी का सूचक है, किन्तु विदेश व्यापार में रहकर अच्छा कमाई करा सकता है। सूर्य सातवें भाव में है तो पति-पत्नी में वैमनस्य का कारण बनता है, तलाक भी हो सकता है, पुत्र से विरोध की सम्भावना रहती है। आठवें भाव में सूर्य है तो व्यक्ति को उचित फल नही देता है। नवम भाव में सूर्य है तो तीसरे स्थान के बराबर फल देता है। दशम भाव कर्म स्थान में सूर्य उच्च पद के लिए माना जाता है, शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाता है, व्यक्ति अपनी शिक्षा के द्वारा अपनी आय में सहायक होता है। एकादश ग्यारहवें भाव में सूर्य दशम स्थान के बराबर ही फल देता है। द्वादश बारहवें भाव में सूर्य मिलाजुला फल, न फायदा न नुकसान देता है। तुला राशि में सूर्य नींच का होता है, व्यक्ति को घमंडी बना देता है साथ ही सूर्य से सम्बंधित रोग भी होने की संभावना रहती है। मेष राशि में सूर्य उच्च का होता है, व्यक्ति का वर्चस्व बढ़ा देता है, व्यक्ति निरोग रहता है धन संपत्ति की कमी नहीं रहती।

प्रथम सूर्य दूसरे चंद्र साक्षात दिखने वाले देव ग्रह हैं। सूर्य तेज का तो चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र लेखनी के पहले अध्याय में चन्द्रमा को प्रदर्शित कर लिखा हूं। चन्द्रमा का कोई शत्रु ग्रह नही होता जबकि हर ग्रहों का शत्रु ग्रह होता है। सूर्य का मित्र ग्रह- चन्द्रमा, मंगल, वृहस्पति। सम ग्रह- बुध और शत्रु ग्रह – शुक्र और शनि है। न्यायप्रिय शनि सूर्य का पुत्र होते हुए भी सूर्य का शत्रु ग्रह है। इसका इतिहास बहुत लम्बा है। फिर कभी सूर्य पुत्र शनिदेव लेखनी में। चन्द्रमा पुत्र बुध – चन्द्र, शुक्र, शनि का मित्र और सूर्य, चन्द्र, का सम ग्रह है। नैसर्गिक ग्रह मैत्री अगले भाग में विस्तार से आते हैं सूर्य ग्रह पर।
सूर्य किसको कहा जाता है
ज्योतिष शास्त्र और पूर्वजों की उत्पत्ति इतिहास से देखा जाए तो ब्रह्माजी के पुत्र मरिचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान से वैवस्वत मनु हुए। कश्यप पुत्र विवस्वान को ही सूर्य कहा जाता है।
सूर्य का विवाह किससे हुआ, संतान कौन है?
विश्वकर्मा पुत्री संध्या से सूर्य का विवाह हुआ। सूर्य की तेज को संध्या सहन नही कर पा रही थी। इस कारण संध्या अपनी छाया से हम शक्ल उत्पन्न की और अपनी अनुपस्थित में सूर्य की सेवा में छोड़, सूर्य की तेज को सहन करने के उद्देश्य से तपस्या करने चली गई। छाया को सूर्यदेव पत्नी समझ साथ रहते थे, फलस्वरूप एक पुत्र की उत्पत्ति हुई। तपस्या पूरी कर पत्नी संध्या के आ जाने पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा, इस स्थिति में सूर्य छाया का परित्याग कर दिए। छाया अपने पुत्र का देखभाल की फिर पुत्र अपने तप तपस्या से अपना अधिकार भी लिया और देवताओं की श्रेणी में न्याय का देवता शनिदेव के रूप में स्थान प्राप्त किया जो अपने ही पिता सूर्यदेव का शत्रु ग्रह के रूप में स्थित है। शनिदेव की माता छाया और पिता सूर्य हैं। सूर्य से वैवस्वत मनु, यमराज, अश्विनी कुमार, रेवंत, सवर्णि मनु, यमुना, तपती, कालिंदी, भद्रा, शनि, सुग्रीव व कर्ण संतानें हैं।

सूर्य प्रसन्न कैसे होते हैं
रविवार को सूर्य ब्रत, नियमित सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म कर सूर्योदय होने पर जल में अक्षत और गुड़ डालकर सूर्य देव को देखते हुए ध्यान कर ॐ आदित्य नमः या ॐ घृणि सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते जल अर्पित करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। सूर्य की प्रसन्नता से सूर्य से सम्बंधित पित्त, पेट, आंख, ह्रदय, रक्त सम्बन्धित रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को मुक्ति मिलती है। छठ महापर्व त्योहार सूर्य देव से जूडा त्योहार है। कुन्डली में सूर्य की स्थिति ठीक करने के लिए रविवार के दिन गेहूं का दलिया, दूध, गुड़, घी का सेवन करना चाहिए। 11 रविवार गुड़ का दान करना शुभ फलदायी होता है। कुंडली में सूर्य के कमजोर होने पर शरीर में अकड़न, मुंह में थूक ज्यादा आना, मुंह व दांतों में तकलीफ, हार्ट की समस्या आ जाती है। सूर्य को मजबूत करने के लिए सूर्य अराधना के साथ ही विष्णु जी की उपासना वृहस्पति ब्रत भी फायदेमंद है।
बिना कुंडली देखे जान सकते हैं, कुंडली में सूर्य की कमजोर स्थिति
आत्मविश्वास नही रहती
कुंडली में सूर्य के कमजोर होने पर आत्मविश्वास नही रहती। अपने कार्य पर भरोसा कम, सही गलत का निर्णय करने में असमर्थ, बनते-बनते कार्य बिगड़ जाते हैं।
इच्छा शक्ति की कमी
अगर व्यक्ति की अन्दर इच्छाशक्ति कम होने लगे। कार्यों में असफलता हाथ लगे, जो भी कार्य कर रहे हैं उसमें नुकसान हो तो समझ लिजिए कुंडली में सूर्य कमजोर है।
पिता से शत्रुता
जिन व्यक्तियों के कुंडली में सूर्य कमजोर होता है, उनका अपने पिता से संबंध खराब होने लगता है, अगर ऐसी स्थिति दिखाई दे तो तुरंत सूर्य की उपासना करना शुरू करें।

कुंडली मिलान में सूर्य का रखिए ध्यान
सूर्य जन्म कुंडली के सप्तम सातवाँ भाव व्यक्ति की कामुकता व विवाहोत्सव संबंध को दर्शाता है। यदि सूर्य स्त्री की कुंडली के सातवें भाव में हो तो स्त्री ससुराल पक्ष में मजबूत होती है। पती से संबंध विच्छेद भी होने की संभावना रहती है। अगर स्त्री का नाजायज़ सम्बन्ध नहीं तो उसका पति अनैतिक सम्बन्ध बनाने वाला मिल सकता है। कुंडली में सातवें आठवें और दसवें भाव का गहन अध्ययन कर लेना चाहिए। व्यभिचार योग यदि स्त्री की कुंडली के सातवें भाव में कर्क राशि में सूर्य और मंगल है तो स्त्री घमंडी किस्म की होती है। इस योग से स्त्री अपने जीवन को नर्क बना लेती है। शुक्र से सातवें भाव में सूर्य या मंगल हो तो स्त्री गुप्त रूप से अन्य पुरुष के साथ शारीरिक संबंध रखती है। आठवें भाव में सूर्य व सातवें भाव में शुक है तो स्त्री पथभ्रष्ट होती है। यह निर्णय अंतिम नही है। बारहों राशियों में सूर्य का अलग-अलग प्रभाव माना जाता है विस्तृत जानकारी के लिए किसी ज्योतिषी से सम्पर्क कर समाधान निकाल सकते हैं। हमारे पाठक भारतीय ज्योतिष शास्त्र सलाहकार हवाटएप्स +919305810100 से भी सम्पर्क कर सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए भगवान चित्रगुप्त वंशज संपादक लेखक अमित श्रीवास्तव हवाटएप्स +917379622843 पर अपनी इच्छित प्रश्न लिख कर डाल सकते हैं, हमारे सहयोगी ज्योतिषी आपके सवालों के जबाव दे देगें।

3 thoughts on “ज्योतिष शास्त्र – कुंडली में सूर्य ग्रह का महत्व”