श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा: प्रेम, भक्ति, संस्कृति और परंपरा का पर्व

Amit Srivastav

श्री कृष्ण जन्माष्टमी, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पवित्र पर्व है। जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में भाद्र मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो कृष्ण पक्ष के दौरान आता है। इस दिन का विशेष महत्व इस लिए है। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने मानवता की उद्धार, धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश, मनुष्य जीवन का उद्देश्य समझाने, प्रेम का पाठ पढ़ाने और भक्ति मार्ग को प्रशस्त्र करने के लिए धरती पर इसी भाद्रपद अष्टमी तिथि को अवतार लिया था। तो आइये आज भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव की कलम से रोचक लेखनी पढ़िए।

श्री कृष्ण का जीवन और शिक्षाएँ:

भगवान श्री कृष्ण का जीवन अद्भुत प्रेरणादायक है मथुरा के राजा मामा कंस के अत्याचार से प्रेरित जनता के उद्धार के लिए श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। उन्होंने गोकुल में नंद और यशोदा के घर पर बाल्यावस्था बिताई और अपनी बाल लीलाओं से सभी को मोहित किया। भगवान श्री कृष्ण का संपूर्ण जीवन हमें कर्म, प्रेम, सद्भावना, समर्पण और भक्ति का मार्ग दिखाता है।
भगवत गीता में दिया गया है उनका उपदेश – कर्म करो फल की चिंता मत करो, श्री कृष्ण का यह उपदेश जीवन की हर क्षेत्र में प्रेरणा और उत्साह प्रदान करता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की परंपराएं और रीति-रिवाज:

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा: प्रेम, भक्ति, संस्कृति और परंपरा का पर्व

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूरे देश भर में श्री कृष्ण के भक्त जन व्रत रखते हैं और भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं। मथुरा और वृंदावन में इस पर्व की धुम देखने लायक होती है। मंदिरों को भाग्य रूप से सजाया जाता है और रात भर जागरण भजन-कीर्तन होता है। भादों मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि के आधी रात जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। उस समय विशेष आरती की जाती है और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को झूले में विराजमान किया जाता है और जन्मोत्सव मनाया जाता है। कई जगहों पर मटकी फोड़ – दही हांडी, का आयोजन भी होता है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के बाल्यावस्था की लीलाओं का स्मरण किया कराया जाता है। इस दौरान बच्चे और युवक मटकी फोड़ प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। जो समाज में उत्साह और सामूहिकता का संचार करती है।

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

भाद्र मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि यह हमारे संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। इस दिन का संदेश हमें सिखाता है की जीवन में चाहें कितनी भी समस्याएं व कठिनाइयां आएं, हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन इस बात का प्रतीक है कि धर्म की स्थापना के लिए सदैव प्रयासरत रहते अपने जीवन में धर्म का सम्मान करना चाहिए। धर्म की स्थापना के लिए हमें सदैव धार्मिक यात्रा करना चाहिए। जन्माष्टमी के माध्यम से हम भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं। यह पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और यह याद दिलाता है की सच्ची भक्ति और प्रेम से ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा: अधर्म का नाश और धर्म की विजय का महापर्व-

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा: प्रेम, भक्ति, संस्कृति और परंपरा का पर्व

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा भारतीय धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कथा भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के जन्म और उनकी दिव्य लीलाओं से संबंधित है। श्री कृष्ण का जन्म अधर्म में विनाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था। उनकी यह कथा जीवन के हर क्षेत्र में प्रेरणा देती है और हमें धर्म, कर्तव्य, प्रेम और भक्ति का महत्व सिखाती है।

कंस का अत्याचार और पृथ्वी का विलाप:

कथा के अनुसार द्वापर युग में मथुरा नगरी का राजा कंस अत्यंत क्रूर और अधर्मी था। वह अपनी प्रजा जन पर बहुत अत्याचार किया करता था और उसने कई ऋषियों और साधुओं को भी प्रताड़ित किया। कंस की बहन देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ, विवाह के बाद अपनी बहन को कंस विदा कर रहा था, तभी आकाशवाणी हुई की देवकी का आठवां पुत्र तुम्हारा वध करेगा। यह सुनकर कंस अत्यन्त भयभीत हो गया और उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया। कंस ने देवकी के हर एक संतान को जन्म के बाद मार डालता था। लेकिन भगवान विष्णु ने वासुदेव को यह वचन दिया था, कि वह स्वयं देवकी की आठवें पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और कंस का वध करेंगे। इसी बीच पृथ्वी पर बढ़ते अधर्म और अत्याचार से पीड़ित पृथ्वी माता ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वस्त किया कि हम जल्द ही श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेकर अधर्म का नाश करेंगे।

श्री कृष्ण का जन्म और अद्भुत लीलाएं:

वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया। उस रात जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। आकाश में घनघोर घटाएं छाई हुई थी और चारों ओर अंधकार था। लेकिन जैसे ही श्री कृष्ण का प्रकटन हुए कारागार में दिव्य प्रकाश फैल गया। सभी पहरी गहरी निद्रा में चले गए। सभी बंधन खुल गए। कारगार का दरवाजा खुला और वसुदेव देवकी की बेड़ियाँ टूट गई। वासुदेव ने नवजात श्री कृष्ण को मथुरा से गोकुल पहुंचाने का निश्चय किया। वासुदेव श्री कृष्ण को एक टोकरी में रखकर यमुना नदी पार करने लगे। यमुना नदी में भीषण बाढ़ थी। लेकिन श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श होते ही नदी का जल शांत हो गया और वासुदेव सुरक्षित गोकुल पहुंच गए। वहां उन्होंने श्री कृष्ण को बाबा नंद की पत्नी यशोदा के पास छोड़ दिया और यशोदा कि नवजात कन्या को उठाकर मथुरा वापस ले आए।
कंस को जब देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली तो वह कारागार में पहुंचा और नवजात शिशु को मारने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन जैसे ही वह कन्या को उठाने गया। वह उसके हाथों से छूटकर आकाश में चली गई और दिव्य रूप धारण कर कहा, “हे कंस! अब तुम्हारा बध करने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है। यह सुनकर कंस घबरा गया लेकिन उसे पता नहीं चला कि वह बालक कौन है और किसके यहां है। फिर अपनी रक्षा के लिए तरह-तरह का प्रयास किया कभी राक्षसों को भेजा, तो कभी खुद कोई न कोई प्रोपेगेंडा रच गोकुल में जन्मे नवजात शिशुओं को मरवाने लगा।

श्री कृष्ण की बाल लीलाएँ:

श्री कृष्ण ने गोकुल में रहकर अपने बाल्यावस्था के दौरान अनेक लीलाएँ की थी। उन्होंने राक्षसी पूतना का वध किया, कालिया नाग का मर्दन किया और गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के कोप से गोकुलवासियों की रक्षा की। उनकी बाल लीलाओं में बांसुरी की मधुर धुन, माखन चोरी और गोपियों के साथ रासलीला प्रसिद्ध है! यह लीलाएं हमें सिखाती हैं की सच्ची भक्ति और प्रेम में छल नहीं होता है।

कंस वध और धर्म की स्थापना:

जब श्री कृष्ण ने अपने जीवन के युवा अवस्था में प्रवेश किया, तो उन्होंने मथुरा जाकर कंस का वध किया और अपने माता-पिता वसुदेव देवकी को कारागार से मुक्त कराया। इस प्रकार श्री कृष्ण ने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की। उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश देकर कर्म योग का संदेश दिया। जो आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत श्रीमद्भागवत गीता के रूप में है।

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी हार्दिक शुभकामनाएं:

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा: प्रेम, भक्ति, संस्कृति और परंपरा का पर्व

सच्ची भक्ति वह है जिसमें निस्वार्थ भाव हो, कर्म वह है जिसमें फल की चिंता न हो, और सच्चा प्रेम वह है जो सभी सीमाओं से परे हो। आपको और आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव पर भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज- लेखक अमित श्रीवास्तव सर्वपरिवार की तरफ़ से भगवान श्रीकृष्ण के भक्त जन को हार्दिक शुभकामनाएं।
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से आपके जीवन में अद्भुत प्रेम, आनंद, सुख-समृद्धि सदैव बनी रहे। इन्हीं मंगलकारी कामनाओं के साथ जय श्री कृष्ण! राधे-राधे।

भक्तिरस लेखनी का निष्कर्ष:

कृष्ण जन्माष्टमी की कथा हमें यह सिखाती है कि जब भी पृथ्वी पर अधर्म और अन्याय बढ़ता है। तब भगवान श्री विष्णु किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। भगवान विष्णु का अवतार श्री कृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएं हमें भक्ति, कर्म और प्रेम के सच्चे अर्थ को समझने की प्रेरणा देती है। यह पर्व हमें हर परिस्थिति में धर्म का पालन करने और सत्य मार्ग पर चलने का संकल्प दिलाता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हमें जीवन में धर्म, प्रेम और करुणा के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाना चाहिए। जीवन को भगवान श्री कृष्ण की शिक्षाओं के अनुरूप ढालने का संकल्प लेने का अवसर है। आइए, इस कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर हम भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों को अपने जीवन में अपनाएं और समाज में शांति, प्रेम और सद्भाव का संचार करें।

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