कामाख्या देवी मंदिर, Kamakhya Devi Temple असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से आठ किलोमीटर और कामाख्या रेलवे स्टेशन से लगभग चार किलोमीटर पर शहर में स्थित, ब्रह्म पुत्र नदी के तट निलांचल पर्वत पर स्थित भारत के सबसे महत्वपूर्ण शक्ति पीठों में से एक है। इस शक्तिपीठ को 51 शक्तिपीठों में मुख्य प्रथम शक्तिपीठ माना जाता है। यह मंदिर देवी सती के अंगों के गिरने से जुड़े 51 शक्ति पीठों में आता है। यहां देवी सती की योनि भाग गिरी थी, जो स्त्री शक्ति और सृजन का प्रतीक मानी जाती है।
यह मंदिर तांत्रिक साधना का केंद्र है और तंत्र-मंत्र साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है। शक्तिपीठ यात्रा के मुख्य भाग मे कामाख्या योनी पीठ सृष्टि का केन्द्र बिन्दु मोंक्ष का द्वार वर्णन में भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव यहां की यात्रा से जुड़ी ऐतिहासिक सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए अहम जानकारी दी जा रही है, जो माता के प्रति श्रद्धा रखने वाले पाठकों व भक्तों की यात्रा में लाभदायक सिद्ध होगा।
कामाख्या देवी मंदिर: एक अद्वितीय शक्ति पीठ सहित दर्शन
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कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए?
कामाख्या मंदिर Kamakhya Devi Temple पर देश विदेश से श्रद्धालुओं का आना-जाना हर समय लगा रहता है, किन्तु जून माह के अंबुबाची मेला पर बहुत भारी भीड़ देखी जाती है।
अंबुबाची मेला (जून)
यह मंदिर का सबसे बड़ा त्योहार है, जो देवी के मासिक धर्म के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। माता के रजस्वला पर धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस समय असम क्षेत्र में युवतियों के प्रथम रजस्वला पर परिवार में उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस तीन दिनों के दौरान जिस भी युवती को पहला मासिकधर्म आता है, उस युवती को बहुत ही भाग्यशाली व शुभ माना जाता है।
माता के जून मासी रजस्वला को “महानिषा पूजा” भी कहा जाता है। तीन दिनों तक मंदिर के गर्भगृह को बंद रखा जाता है, क्योंकि इस दौरान देवी ‘रजस्वला’ होती हैं। चौथे दिन मंदिर फिर से खुलता है, और भक्तों को प्रसाद के रूप में लाल वस्त्र और पवित्र जल मिलता है।
नवरात्रि (चैत्र और शारदीय)
नवरात्रि के दौरान यहां देवी की पूजा विशेष धूमधाम से होती है। शक्ति उपासक इस दौरान कामाख्या मंदिर में विशेष अनुष्ठान करते हैं। गर्भगृह से पहले माता कामेश्वरी और भैरव कामेश्वर की प्रतिमा दीवार पर मुर्ति रूप में स्थापित है, यहीं दर्शन मात्र से माता कामाख्या देवी के दर्शन के साथ भैरव दर्शन पूर्ण हो जाती है।
भैरव का एक रूप गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुत्र नदी के बीच एक दीप पीकॉक आइलैंड पर उमानंद मदिर स्थित है जिनका मां कामेश्वरी से प्रति वर्ष विवाह सम्पन्न होता है। इस विवाह समारोह में मंदिर के पुजारी ही सम्पूर्ण प्रक्रिया सम्पन्न कराते हैं बाहरी भक्त जन सिर्फ दर्शक होते हैं।
शीतकालीन मौसम (अक्टूबर से मार्च)
इस दौरान गुवाहाटी का मौसम सुखद होता है। श्रद्धालु और पर्यटक मंदिर और आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं।
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कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य
योनि-आकार का शिला (देवी की प्रतिमा नहीं)
मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति के बजाय एक प्राकृतिक योनि-आकार का पत्थर है, जिसे जलधारा से सींचा जाता है।इस पत्थर को “कामाख्या देवी” के रूप में पूजा जाता है।
मासिक धर्म का चमत्कार
अंबुबाची पर्व के दौरान, गर्भगृह में स्थापित काले रंग के पत्थर से निर्मित योनि भाग से तीन दिनों तक रक्तस्राव होता है। इस दौरान मंदिर बंद रहता है। वैज्ञानिक इसे निलांचल के पहाड़ी के मिट्टी में मौजूद खनिजों और जलधारा की क्रिया बताते हैं, लेकिन भक्त इसे देवी का चमत्कार स्त्री प्रजनन से जुड़ी मानते हैं।
तांत्रिक साधना का केंद्र
यह मंदिर भारत का सबसे प्रसिद्ध तांत्रिक साधना स्थल है।यहाँ शक्तिपूजा, यज्ञ, और तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां की साधना से बड़ी सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
कोई छत नहीं है गर्भगृह में
मंदिर के गर्भगृह की छत नहीं है। यह अनोखी वास्तुकला मंदिर को विशेष बनाती है। गर्भगृह में अंधेरा रहता है और प्राकृतिक जलधारा बहती रहती है।
Kamakhya Devi Temple

माँ कामाख्या का विशेष माहात्म्य
असम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर को भारत के सबसे पवित्र और रहस्यमयी मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर माँ कामाख्या को समर्पित है, जो शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं।
माँ कामाख्या और रक्तस्राव का रहस्य
मां कामाख्या के जून मासी रजस्वला से प्रकृति में मादा प्रजाति का मासिक चक्र जूड़ा हुआ है। देवी का रजस्वला ही सृष्टि में सृजन के चक्र को सक्रिय और संतुलित किया हुआ है।
मासिक धर्म की देवी कौन है?
माँ कामाख्या, जो देवी सती का एक रूप हैं, 51 शक्तिपीठों में प्रथम योनी पीठ, सृष्टि में सृजन की देवी हैं। यह आषाढ़ (जून-जुलाई) के महीने में, सप्तमी से दशमी तक दिव्य रक्तस्राव करती हैं। यह मासिक धर्म की देवी हैं। यह दृश्य उस समय होती है जब मानसून अपने चरम पर होता है।
धर्मग्रंथों के अनुसार यह देवी सती के योनि भाग (योनि पीठ) से संबंधित है, जो सती द्वारा अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपना शरीर त्याग के बाद भगवान शिव के तांडव के दौरान, भगवान विष्णु द्वारा – सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित करने के बाद, यहां सती का योनि भाग गिरा था।
ब्रह्मपुत्र का पानी लाल क्यों हो जाता है?
51 शक्तिपीठों में प्रथम कामाख्या देवी जो मासिक धर्म की देवी भी हैं। आषाढ़ (जून-जुलाई) के महीने में, सप्तमी से दशमी तक दिव्य रक्तस्राव करती हैं। इस समय विश्व भर के तांत्रिकों का जमावड़ा अपनी तंत्र-मंत्र साधना के लिए रहता है। इस समय सप्तमी से दशमी तक माता रजस्वला होती हैं, इनके रजस्वला से ब्रह्मपुत्र नदी का पानी का रंग लाल हो जाता है।
माता के रजस्वला से जन कल्याण
उस समय माता के रजस्वला से पूर्व ही पूजा पाठ कर योनि भाग गर्भगृह को सफेद कपड़ा से ढक दिया जाता है। जब एकादशी तिथि को प्रातः काल मंदिर का पट खुलता है। उस समय सप्तमी को डाला गया सफेद कपड़ा माता के रक्तस्राव से लाल हो चुका रहता है, जिसे अंबुबाची वस्त्र या माता का वस्त्र के रूप में भक्त प्रसाद के रूप में प्राप्त करते हैं।
इस वस्त्र को भक्त जन सहित तांत्रिक हर बांधा दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं। इस अंबुबाची वस्त्र का एक सूत ही तांबे या सोने की ताबीज़ में भरकर कच्चे मोम से पैक कर शनिवार या मंगलवार को माता के गर्भ भाग से निकलने वाले जल से स्पर्श करा, जल प्रसाद रूप में सेवन कर या ताबीज़ को धूप-दीप दिखाकर धारण करने से सम्पूर्ण मनवांछित लाभ मिलता है।
कामाख्या देवी का भोग क्या है
कामाख्या मंदिर में देवी माँ को मांसाहारी भोग अर्पित किया जाता है। सुबह मंदिर का पट खुलने से पहले नियमित जो एक बली बकरे की नियमित दी जाती है, उसके साथ मां के गर्भ गृह को खोल कर रसोई घर में चला जाता है, यहां मंदिर के पुजारी “पंडा” द्वारा रसोई घर में पकाया जाता है, प्रमुख बात यह है इस भोग में लहसुन प्याज नही पड़ता है। इस भोग में मछली और बकरे का मांस प्रमुख होता है।
माँ कामाख्या को यह भोग दोपहर 1 बजे परोसा जाता है। भोग की तैयारी और पूजा की प्रक्रिया के चलते मंदिर को दोपहर 1:00 बजे से 3:00 बजे के बीच बंद रखा जाता है।
शक्ति और आस्था का केंद्र
कामाख्या मंदिर देवी शक्ति और प्राकृतिक चक्रों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यहाँ पर देवी के रक्तस्राव को धरती की उर्वरता और सृजन का प्रतीक माना जाता है। यह स्थान हर दिन हजारों भक्तों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
कामाख्या मंदिर दर्शन
कामाख्या देवी मंदिर गर्भ गृह में 21 सौ सामान्य भक्त जनों को और तीन सौ वीआईपी भक्त जन को दर्शन कराने की प्रत्येक दिन व्यवस्था रहती है। इसके लिए दोनों ही तरह के भक्तो को टोकन दिया जाता है, जो मंदिर में प्रवेश द्वार से थोड़ा पहले जमा करना होता है। गर्भ गृह के अंदर से बाहर निकलने वाले गर्भ भाग मे मां कामेश्वरी भैरों कामेश्वर की प्रतिमा दिवाल पर स्थापित है।
वीआईपी टोकन 501 रूपये शुल्क के साथ देने की व्यवस्था मंदिर प्रांगण में रहती है, जबकि सामान्य भक्त जन को फ्री टोकन देने की व्यवस्था नरकासुर मार्ग की ओर से रहती है। श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती घटती रहती है। सोमवार मंगलवार और शुक्रवार शनिवार को भीड़ ज्यादा रहती है, बढ़े समय में गर्भ गृह में जाकर दर्शन करने के लिए एक दो दिन रुकना भी पड़ जाता है। ज्यादातर श्रद्धालु भीड़ को सहन नहीं कर पाते वो ज्यादातर दो नम्बर गेट से देवी के विग्रह स्वरूप का दर्शन कर वापस हो जाते हैं।
आंखों देखी सम्पूर्ण जानकारी के साथ बता रहे हैं, सामान्य फ्री दर्शन टोकन के लिए 2 बजे रात्रि से लाइन लगाने की व्यवस्था मंदिर समिति द्वारा की गई है, पहले इस मार्ग पर लाइन लगाने से मंदिर प्रसाशन रोकता है कि शेर आते हैं आप लोग दो बजे से पहले लाइन में नही आ सकते हैं। लाइन नरकासुर मार्ग पर नीचे की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है जो नीचे जंगल एरिया पड़ता है।
उसी मार्ग में महाकाली मंदिर आगे जहां तक नरकासुर सीडी का निर्माण किया है वहीं से बायें साइड एक रास्ता बंगला मुखी आगे पिचमार्ग से सबसे ऊपर शिखर पर भुवनेश्वरी माता मंदिर स्थित है।
कामाख्या मंदिर का प्राचीन काल से यह अनूठा रिवाज देवी के प्रति भक्ति और श्रद्धा का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।

कामाख्या देवी मंदिर कहां है, कैसे पहुँचे?
कामाख्या देवी मंदिर असम राज्य के गुवाहाटी शहर में, ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे नीलांचल पहाड़ी पर कामरूक जिले में स्थित है।
हवाई मार्ग:
लोकप्रिया गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, गुवाहाटी से 20 किमी दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग:
कामाख्या रेलवे स्टेशन से मात्र 4 किमी और गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से मंदिर 8 किमी की दूरी पर है। रेलवे स्टेशन से ऑटो, टैक्सी, या स्थानीय बसें आसानी से उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग:
गुवाहाटी रेलवे या कामाख्या रेलवे या शहर से मंदिर के लिए नियमित बसें, टेम्पो और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए वाहन या पैदल मार्ग का विकल्प है। रेलवे स्टेशन से मंदिर के नीचे तक 10 से 20 रूपये और मंदिर के नीचे भाग से ऊपर मंदिर के करीब तक बस या कार टेम्पो से भाड़ा 10 से तीस रुपये तक है।
कामाख्या मंदिर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
मंदिर का संक्षिप्त इतिहास
यह मंदिर 8वीं-9वीं शताब्दी के आसपास बना था। इसके निर्माण का श्रेय कामरूप के राजा नरकासुर को दिया जाता है।
तंत्र साहित्य में स्थान
कामाख्या मंदिर तंत्र विद्या का केंद्र है। इसे “तंत्र की राजधानी” कहा जाता है।
पौराणिक महत्व
देवी भागवत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में इसका वर्णन है। यह मंदिर स्त्री शक्ति और सृजन का प्रतीक है।
मंदिर से जुड़े अन्य रोचक तथ्य
मंदिर का नाम ‘कामाख्या’ क्यों पड़ा?
‘काम’ का अर्थ है कामदेव और ‘अख्या’ का अर्थ है अभिलाषा। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां कामदेव को जीवनदान दिया था।
प्रकृति और आध्यात्मिकता का संगम
नीलांचल पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता और अध्यात्म का अद्वितीय संगम है। यहां से ब्रह्मपुत्र नदी और गुवाहाटी का दृश्य अद्भुत दिखाई देता है।
भक्तों की आस्था का केंद्र
इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु और साधक आते हैं। यह स्थान न केवल हिंदू भक्तों के लिए, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। दोपहर और रात्री मे काली माता मंदिर के पास प्रसाद के लिए फ्री टोकन दी जाती है जिससे भक्त जन फ्री में प्रसाद रूप में भर पेट स्वादिष्ट भोजन करते हैं।
कामाख्या देवी मंदिर अपने आध्यात्मिक, पौराणिक और तांत्रिक महत्व के कारण विश्व प्रसिद्ध है। यहां आना एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है, जो आपकी आत्मा को शांति और ऊर्जा से भर देता है।
कामाख्या देवी मंदिर को हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख केंद्र माना गया है। मान्यता है कि यहां देवी के दर्शन मात्र से जीवन के पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
तीन बार के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति का रहस्य
पहला दर्शन- शारीरिक शुद्धि और शक्ति का जागरण
कामाख्या देवी के पहले दर्शन से व्यक्ति के शरीर और मन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। देवी सती के योनि पीठ में स्थित होने के कारण, यह स्थान सृजन और पुनर्जन्म का प्रतीक है। यहां का प्राकृतिक जलधारा और ऊर्जा क्षेत्र व्यक्ति को नई शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे उसके जीवन की शारीरिक समस्याएं और बाधाएं दूर होती हैं।
दूसरा दर्शन- मानसिक और आत्मिक शांति
दूसरे दर्शन में व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। मंदिर की तांत्रिक शक्तियां और यहां की ऊर्जा से व्यक्ति के मन में सच्ची श्रद्धा और भक्ति का संचार होता है। यह अवस्था आत्मा को कर्मबंधन से मुक्त करने की ओर ले जाती है।
तीसरा दर्शन: मोक्ष का मार्ग
तीसरे दर्शन में भक्त को देवी के आशीर्वाद से जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी कामाख्या को ब्रह्मांड की सृजनकर्ता और संहारकर्ता माना जाता है। तीसरे दर्शन के साथ व्यक्ति की आत्मा देवी में विलीन होकर परमानंद का अनुभव करती है।
तांत्रिक परंपरा और मोक्ष
यह मंदिर तांत्रिक साधना का भी प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि यहां किए गए अनुष्ठान और देवी के प्रति पूर्ण समर्पण से साधक को मोक्ष प्राप्त होता है। यह स्थान जीवन की जटिलताओं को सुलझाने और आत्मा को उच्चतर आध्यात्मिक स्तर पर ले जाने के लिए आदर्श माना जाता है।
विशेष धार्मिक मान्यता
कामाख्या मंदिर के गर्भगृह में स्थित योनि-आकार की शिला और वहां बहती प्राकृतिक जलधारा, स्त्री शक्ति और सृजन का प्रतीक है। देवी के दर्शन के साथ इस शिला को स्पर्श करने और जलधारा का आचमन करने से आत्मा को शुद्धि और उन्नति का अनुभव होता है।
मोंक्ष मार्ग लेखनी का सार
कामाख्या देवी मंदिर में तीन बार दर्शन करना भक्ति, तांत्रिक परंपरा, और आत्मा की यात्रा का प्रतीक है। यह यात्रा मनुष्य को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्त करके मोक्ष के द्वार तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करती है। श्रद्धालु यहां आकर देवी के दर्शन और अनुष्ठानों के माध्यम से परम शांति और मोक्ष की प्राप्ति का अनुभव कर सकते हैं।

गुवाहाटी और आसपास के प्रमुख दर्शनीय स्थल
कामाख्या देवी मंदिर के साथ गुवाहाटी और इसके आसपास के क्षेत्र में कई दर्शनीय स्थल हैं, जो अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां 14 प्रमुख स्थानों की सूची दी गई है।
1. उमानंद मंदिर
स्थान: ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित पीकॉक आइलैंड।
महत्व: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर एक छोटे से द्वीप पर स्थित है। इसे “उमानंद” नाम इसलिए मिला क्योंकि शिव और पार्वती के प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
कैसे पहुंचे?: गुवाहाटी के घाट से नौका सेवा द्वारा।
2. श्री नवग्रह मंदिर
स्थान: चितरांचल पहाड़ी।
महत्व: यह मंदिर नौ ग्रहों (नवग्रहों) को समर्पित है।
विशेषता: ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कैसे पहुंचे?: गुवाहाटी शहर से सड़क मार्ग द्वारा।
3. श्री बशिष्ठ आश्रम
स्थान: गुवाहाटी के बाहरी इलाके में।
महत्व: यह स्थान ऋषि वशिष्ठ की तपोभूमि मानी जाती है।
विशेषता: यहां एक प्राकृतिक झरना और प्राचीन गुफाएं भी हैं।
कैसे पहुंचे?: गुवाहाटी से लगभग 15 किमी की दूरी पर।
4. आसन सु क्षेत्रीय उद्यान (Deepor Beel)
स्थान: गुवाहाटी के दक्षिण-पश्चिम में।
महत्व: यह एक प्राकृतिक झील और पक्षी अभयारण्य है।
विशेषता: यह स्थान सर्दियों में प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए प्रसिद्ध है।
कैसे पहुंचे?: गुवाहाटी से लगभग 13 किमी दूर।
5. पांडु क्षेत्र और ताम्रेश्वर मंदिर
स्थान: गुवाहाटी।
महत्व: महाभारत के पात्र पांडवों से जुड़ा हुआ क्षेत्र।
विशेषता: यहां एक शिला पर भगवान गणेश का प्राचीन शिलाचित्र है।
6. शुक्रेश्वर मंदिर
स्थान: गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे।
महत्व: यह भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।
विशेषता: यहां का शिवलिंग भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है।
7. डोल गोविंदा मंदिर
स्थान: चंद्रपुर।
महत्व: यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है।
विशेषता: यह ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है और प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श है।
8. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kaziranga National Park)
स्थान: गुवाहाटी से लगभग 200 किमी दूर।
महत्व: विश्व धरोहर स्थल, एक सींग वाले गैंडे के लिए प्रसिद्ध।
विशेषता: सफारी और वन्यजीव प्रेमियों के लिए आदर्श।
9. हाजो (Hajo)
स्थान: गुवाहाटी से लगभग 24 किमी।
महत्व: यह स्थान हिंदू, बौद्ध और मुस्लिम धर्मों के लिए पवित्र है।
विशेषता: हयग्रीव माधव मंदिर: भगवान विष्णु को समर्पित।पाओ मेका बौद्ध मठ: बौद्ध अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण। पुवा मक्का: मुस्लिम धर्मस्थल।
10. महाभैरव मंदिर, तेजपुर
स्थान: गुवाहाटी से 175 किमी।
महत्व: यह भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।
विशेषता: यहां का शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है।
11. सत्यनारायण मंदिर
स्थान: गुवाहाटी।
महत्व: भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप को समर्पित।
विशेषता: यहां हर पूर्णिमा को विशेष पूजा होती है।
12. नेहरू पार्क
स्थान: गुवाहाटी।
महत्व: यह एक खूबसूरत पार्क है, जो परिवार और बच्चों के लिए आदर्श है।
विशेषता: यहां कई मूर्तियां और मनोरम दृश्य हैं।
13. उग्रतारा मंदिर
स्थान: गुवाहाटी।
महत्व: देवी तारा को समर्पित यह मंदिर शक्ति पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
14. पोबीटोर वन्यजीव अभयारण्य (Pobitora Wildlife Sanctuary)
स्थान: गुवाहाटी से लगभग 48 किमी।
महत्व: यहां एक सींग वाले गैंडे पाए जाते हैं।
विशेषता: इसे “मिनी काजीरंगा” भी कहा जाता है।
गुवाहाटी और इसके आसपास के ये स्थल धार्मिक, ऐतिहासिक, और प्राकृतिक रूप से समृद्ध हैं। यहां की यात्रा आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ प्रकृति की सुंदरता का आनंद भी प्रदान करती है।
जय मां कामाख्या देवी 🙏
सभी भक्तों की हर मनोकामना पूरी करेंगी मां कामाख्या कमेंट बॉक्स में लिखिए अपने विचार प्रेम से लिखिए जय मां कामाख्या देवी 🙏
जय मां कामाख्या