आओ समझें देशी अर्थशास्त्र: Economics महंगाई, बाजार, और आम आदमी की चुनौतियां

Amit Srivastav

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Economics अर्थशास्त्र

Economics देशी अर्थशास्त्र – भारतीय अर्थव्यवस्था, जो कभी “सोने की चिड़िया” कहलाती थी, आज आम आदमी के लिए एक संघर्ष बन गई है। रुपये की गिरावट, महंगाई, बेरोजगारी, और बाजार की गिरती हालत ने देश के आम नागरिक को गंभीर चिंता में डाल दिया है। इस लेख में हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव अपने सहयोगी अर्थशास्त्री Economics शिक्षक लेखक अभिषेक कांत पांडेय के साथ इन मुद्दों का विश्लेषण करेंगे और यह समझाने की कोशिश करेंगे कि कैसे एक मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए आम आदमी का योगदान अहम है।

रुपये की गिरावट: बढ़ती महंगाई की जड़

डॉलर के मुकाबले रुपये की लगातार गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। जब रुपये की कीमत कम होती है, तो इसका असर आयातित वस्तुओं की लागत पर पड़ता है।

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तेल का आयात- कच्चे तेल की कीमतें रुपये की गिरावट के कारण बढ़ जाती हैं, जिससे पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं।
अन्य आयातित सामान- दवाइयां, खाद्य तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी महंगे हो जाते हैं।
लोकल मार्केट पर असर- आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से हर चीज पर असर पड़ता है, क्योंकि परिवहन और उत्पादन की लागत भी बढ़ जाती है।

महंगाई और आम आदमी पर असर-

हर घर में महीने के बजट का बड़ा हिस्सा महंगे पेट्रोल और खाने-पीने की चीजों पर खर्च हो रहा है। जिससे मध्यम वर्गीय परिवार बचत नहीं कर पा रहा है। वहीं निम्न वर्ग के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा दिया जा रहा फ्री अनुदान के तहत पांच किलो राशन निम्न आय वर्ग के लिए जीवन जीने का सहारा बना हुआ है। यह फ्री पांच किलो राशन आम जन बेरोजगार लोगों को धीरे धीरे अपंग बनाते जा रहा है। इस विषय पर विस्तृत जानकारी अगले लेख में दिया जायेगा।

बाजार में उपभोग क्यों घट रहा है?

आम आदमी की कमाई और खर्च के बीच बढ़ते अंतर ने बाजार की रौनक छीन ली है। उपभोग में कमी के कारण बाजार में डिमांड घट रही है।

  • कमाई नहीं बढ़ रही- सरकारी कर्मचारियों, मजदूरों, और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि नगण्य है।
  • बढ़ती बेरोजगारी- बढती जनसंख्या और बेरोजगारी के मुताबिक नई नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा है।
  • महंगाई का दबाव- आम आदमी अनावश्यक खर्च टाल रहा है, क्योंकि आमदनी का जरिया नही है। किसी तरह दो जून की रोटी का व्यवस्था करना ही मुस्किल साबित हो रहा है।

सर्वेक्षण – छोटे शहर के अनेकों दुकानदारों ने बताया कि पहले उनके यहां रोजाना 10,000 रुपये से अधिक की बिक्री होती थी, जो अब घटकर 3,000 रुपये रह गई है। ग्राहक केवल अनिवार्य वस्तुएं खरीद रहे हैं।

अगर स्थिति 2014 से पहले जैसा बना रहा होता लोगों के पास तरह-तरह के आय का साधन होता तो बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ बाजार की रौनक उसी तरह चकाचौंध रहती, ज्यादा से ज्यादा लोग रोजी-रोजगार से जुड़े रहते आय का श्रोत बना रहता।

उदाहरण – एक कार्य के साथ लोग दूसरे कार्यो में व्यस्त रहते थे, जैसे- कोई व्यक्ति निजी क्षेत्र या सरकारी क्षेत्र में अच्छी आमदनी के साथ कार्य करते हुए चिटफंड कम्पनियों जैसे बैकिंग सेक्टर से जुड़ा हुआ था, वहां से आम लोगों का धन दो तीन साल में दो गुना हो जाता था। इस तरह आम जन अपनी जमा पूंजी से अपना ग्रोथ करता था। निवेशकों को भी फायदा था और निवेश करने वालों को भी अपने रुपये से रुपये बढ़ाने में फायदा था।

2014 में भाजपा सरकार में आकर उन सभी लोगों के पेट पर लात मार दी जो लोग पैसों से पैसा आसानी से बढ़ाकर अपना विकास करते थे। सरकार अपने फायदे के लिए चिटफंड बैकिंग को गैरकानूनी घोषित कर सरकार के अधिनस्थ बैकों का बढ़ावा दे खुद फायदे का रास्ता अपनाई यहां तक कि आम जन की जमा पूंजी चिटफंड बैकों से मिलजुलकर लूटवा ली। आज 10 सालों से डूबा पूंजी भी इस भाजपा सरकार में मिलने कि संभावना दूर-दूर तक नही दिखाई दे रही है।

क्योंकि ज्यादातर चिटफंड बैकों के संचालक गंगा स्नान कर चुके हैं। मात्र सहारा इंडिया को छोड़कर क्योंकि सहारा इंडिया से सुब्रत राय का परिवार शुरू से कांग्रेसी विचारधारा का रहा है और वो परिवार गंगा स्नान करने के लिए तैयार नही इस लिए कभी-कभी एलान होता है चिटफंड में डूबा पैसा वापस होगा सहारा इंडिया में निवेश करने वालों अपना फीडबेक दो।

Click on the link चिटफंड बैकिंग और सरकार आम जन की जमा पूंजी चिटफंड बैकों से कहां गई विस्तृत जानकारी के लिए यहां क्लिक किजिये।

ग्रामीण और शहरी Economics अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

आओ समझें देशी अर्थशास्त्र: Economics महंगाई, बाजार, और आम आदमी की चुनौतियां

ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था –

किसान महंगे बीज, खाद और डीजल के कारण लागत बढ़ने से परेशान हैं। अनाज की सरकारी खरीद घटने से उनकी आय कम हो रही है। महंगाई के कारण ग्रामीण परिवार गैर-जरूरी खर्चों को रोक रहे हैं।

शहरी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था –

शहरी निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार अब सस्ते विकल्प तलाश रहे हैं। घर, कार, और शिक्षा जैसे बड़े खर्च टाल दिए जा रहे हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्र आर्थिक रूप से कमजोर हो गया है।

निजीकरण और पूंजीवाद का प्रभाव

सरकार की निजीकरण और पूंजीवादी नीतियां बाजार को संतुलित रखने में असफल रही हैं।

बड़े उद्योगपतियों को लाभ – बड़ी कंपनियों को भारी छूट और सब्सिडी दी जा रही है, जबकि छोटे व्यापारी संघर्ष कर रहे हैं।

सार्वजनिक सेवाओं में कटौती –  रेलवे, एयर इंडिया जैसे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है, जिससे नौकरियां घट रही हैं।

जीएसटी का बोझ – छोटे व्यापारियों और उपभोक्ताओं पर जीएसटी का भार बढ़ गया है।

जिन-जिन योजनाओं पर भाजपा विपक्ष में रहकर काग्रेस सरकार मे विरोध करती थी धीरे-धीरे उन सभी योजनाओं को भाजपा सरकार अपने शासनकाल में लागू किया है।

हम शुरू से भाजपाई रहे 2014 में भाजपा की एकछत्र सरकार दी गई क्योंकि चुनावी घोषणा पत्र पर भरोसा किया गया चुनावी भाषणों पर यकीन किया गया लेकिन सब सिर्फ सत्ता हासिल करने का महज़ जरिया था। 2017 तक भाजपा के प्रति उल्लास बना रहा। अनायास ही लगभग 2015 में संपादकीय लिखा जिसका शीर्षक था गोल गोल घूमता लोकतंत्र निजीकरण व्यवस्था नही नव रियासती करण उस समय तो काल्पनिक संपादकीय लोगों के जेहन में नही बैठ रहा था लेकिन एक वर्ष बाद ही भाजपा निजीकरण ध्यान देते हुए गिने-चुने लोगों के हाथ बेचना शुरू कर दी।

देशी अर्थशास्त्र Economics: समस्याओं का समाधान

आर्थिक सुधार केवल आंकड़ों से नहीं, बल्कि लोगों की जेब में पैसे डालकर संभव है। यहां कुछ जरूरी समाधान सुझाए गए हैं जो सरकार अमल मे लेती है तो परिवर्तन सम्भव है।

आय में वृद्धि

सरकारी और निजी क्षेत्रों में वेतन वृद्धि हो। ताकि पहले जैसे एक व्यक्ति की कमाई से परिवार का भरण-पोषण हो और आर्थिक बचत हो जिससे मनमाफिक वस्तुओं की खरीदारी करने में मदद मिले इससे बाजार में रौनक लौट आयेगी और लोगों में खुशहाली दिखाई देगा।

किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सही तरीके से लागू हो। फसल में लगने वाली लागत और बिक्री से होने वाले फायदे के फलस्वरूप लोगों का रुझान खेती-बाड़ी के तरफ फिर से लगेगा जिससे बेरोजगारी निकम्मापन का एहसास नही होगा।

महंगाई पर नियंत्रण

पेट्रोल-डीजल और घरेलू गैस पर टैक्स में कटौती की जाए 2014 से पहले सरकार इन आवश्यक पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी देती थी वर्तमान की भाजपा सरकार इस पेट्रोलियम पदार्थों से अच्छा खासा फायदा कमाने के चक्कर में मुल्य वृद्धि कर तमाम टेक्स लगा आम जन के लिए मुसीबत खड़ा कर दी है। 350 रूपये का गैस सिलेंडर आधे दामों पर देने का चुनावी मंचों से वादा कर चार गुना तक बढ़ा देना कितना उचित है खुद भारतीय जनता पार्टी को विचार करना चाहिए।

झूठ कि राजनीति से अच्छा है, जीन नेताओं में थोड़ा भी शर्म हया हो वो सत्ता का त्याग कर दें। लेकिन नेतागिरी झूठ के दम पर ही टिकाऊ है, यह भाजपा ने सावित कर दिखाया है। आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी दर कम करना। सरकार अपने कमाई का जरिया बनाती जा रही है आम जन को बेरोजगार बनाती जा रही है।

नौकरी के अवसर बढ़ाना

स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर सृजित करना चाहिए न कि तमाम तरह के टेक्स और कानूनी शिकंजा में जकड़ कर उद्योग को कम करना चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा जैसी योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए, मनरेगा के तहत ग्रामीण असहाय लोगों को रोजगार देकर आर्थिक स्थिति मजबूत करना चाहिए।

उपभोग बढ़ाने के उपाय

छोटे और मझोले उद्योगों को सस्ते कर्ज और सब्सिडी दी जानी चाहिए। उद्योग लगाने के इच्छुक युवाओं को आकर्षित करते हुए उद्योग लगाने में मदद करनी चाहिए। सरकार एक तरफ विज्ञापन के तहत दावा करती है और कहती है उद्यमी आगे आये सरकार हर संभव मदद करेगी लेकिन मै इस बात का हकीकत देख चुका हूं, सरकार का यह विज्ञापन सफेद हाथी दांत ही सावित हो रहा है।

Click on the link नेताओं के सर झूठ व लूट की गठरी घोटाले को सार्वजनिक करता संपादक कि कलम पढ़ने के लिए ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये पढ़िए जानिए यहां लेख में नीचे सरकार के इस फरमान का जीता जागता उदाहरण भी प्रस्तुत किया हूं।

किसानों और मजदूरों के लिए विशेष राहत पैकेज दिया जाना चाहिए किसान समृद्धि योजना का लाभ कितने और कैसे किसानों को मिल पा रहा है इस पर थोड़ा सरकार को विचार करना चाहिए।

निम्न और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए करों में छूट की प्रावधान किया जाना चाहिए न कि उसके दस रुपये की बचत पर तमाम तरह की टेक्स लगा हड़पने का काम किया जाना चाहिए। निम्न व मध्यम वर्ग आय के लोगों के बैंक खातों में जब दो हज़ार रुपये से कम हो जाता है तो बैंकों द्वारा सरचार्ज काट खातों को माईनस में कर दिया जाता है जो उनके बचत को हड़पने के अलावा और क्या कहा जाए। एक तो ब्याज दर घटाकर कम कर दिया गया है जो सरकारी बैंकों से 2014 से पहले लगभग 5 वर्ष में धन दो गुना होता था वो अब पंद्रह सालों में हो यह आखिर क्या है?

देसी अर्थशास्त्र Economics का मूल मंत्र

भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए तीन प्रमुख कदम आवश्यक हैं-
1. आम आदमी की आय बढ़ाएं।
2. बाजार में डिमांड बनाए रखें।
3. महंगाई और करों को नियंत्रित करें।

देशी अर्थशास्त्र Economics लेखनी का सार

अगर लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा होगा, तो बाजार चकाचक होगा। डिमांड और सप्लाई का संतुलन अर्थव्यवस्था को स्थिर रखता है। सरकार को पूंजीपतियों से हटकर आम जनता की ओर ध्यान देना होगा।
देश की आर्थिक नीति का लक्ष्य सिर्फ जीडीपी बढ़ाना नहीं होना चाहिए, बल्कि आम नागरिक की जीवन स्तर को सुधारना होना चाहिए। “देसी अर्थशास्त्र” का मतलब है-
हर जेब में पैसा हो। हर घर में रोजगार हो। हर बाजार में रौनक हो।
सरकार को यह समझना होगा कि जब तक आम आदमी का भला नहीं होगा, तब तक अर्थव्यवस्था का असली विकास संभव नहीं है।

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देशी अर्थशास्त्र पर क्या है आपका विचार

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अंग्रेजों से सत्ता का हस्तांतरण क्या गांधी ने इसी लिए लिया कि हम नेताओं को लूटने के लिए भारत हमे लीज पर दे दो, हम तय किराया देगें, और इस सोने की कही जाने वाली चिड़िया को लूटने का महज़ काम करेंगे। चोर चोर मौसेरा भाई भारतीय नेता सिर्फ भारत की जनता को लूटने का ही काम करते रहे हैं, जागरूकता लाइए और अपने हक के लिए आगे बढ़िए। 1997 में देवगौड़ा की केन्द्र में सरकार थी तब विपक्ष की भाजपा सरकार ने देश ब्यापी आंदोलन कि थी गोपनीयता भंग करो आखिर क्या थी गोपनीयता हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताईयें फिर विस्तृत जानकारी आगे लेख में दिया जाएगा।

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